Thursday, February 17, 2011

पीडीपी के नए पैंतरे के खतरे

विष्णु गुप्त

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी यानी पीडीपी जैसी राष्ट्रविरोधी राजनीतिक प्रक्रिया का दमन क्यों नही होना चाहिए? क्या भारतीय सत्ता पीडीपी की राष्ट्रविराधी हरकतों पर अंकुश लगाएगी? अगर नहीं तो फिर भारतीय संप्रभुता इसी तरह लहूलुहान और संकटग्रस्त होती रहेगी? इसका लाभ दुश्मन देश उठाते रहेंगे और हम अपने दुश्मन देश के नापाक इरादों और साजिशों का शिकार होते रहेंगे। भारतीय सत्ता की उदासीनता और कमजोरी का परिणाम ही है कि परहित साधने और परसंप्रभुता को खुश करने की मानसिकता लहलहाती है। पीडीपी की राष्ट्रविरोधी प्रक्रिया पर हमें आइएसआइ-पाकिस्तान की साजिशों को पूरी तरह खंगालना होगा। पीडीपी की पृष्ठभूमि और इसके एजेंडे को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह पार्टी आइएसआइ और पाकिस्तान की मोहरा है। कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय दबाव कायम कराना पाकिस्तान की कूटनीति रही है। पीडीपी की यह कोई पहली राष्ट्रविरोधी हरकत नहीं है। पीडीपी ने देश के अविभाज्य अंग की महत्वपूर्ण चोटियों और भूभाग को चीन और पाकिस्तान का अंग दिखा दिया। पीडीपी के अध्यक्ष मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी बेटी महबूबा सईद की पूरी राजनीतिक संरचना और मानसिकता भारत विरोधी है। देश का नेतृत्व करने वाली पार्टी कांग्रेस की उदासीनता की वजह से पीडीपी की राष्ट्रविरोधी हरकतों को प्रोत्साहन मिलता है। यकीन मान लीजिए, अगर इन बाप-बेटी पर भारतीय कानूनों का सोटा चलता तो इनकी राष्ट्रविरेाधी हरकतों हदें नहीं पार करती। जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और भारतीय संसद ने चीन और पाकिस्तान द्वारा अतिक्रमण किए गए जम्मू-कश्मीर के हिस्से को वापस लेने का संकल्प दर्शाया था। इसलिए भारतीय सत्ता को कर्तव्यबोध होना चाहिए कि इस तरह की राष्ट्रविरोधी हरकतें हमारी संप्रभुता को न केवल संकट में डालती हैं, बल्कि इससे दुश्मन देशों के मंसूबों को भी खाद-पानी मिलता है। जाहिर तौर पर चीन और पाकिस्तान हमारे दुश्मन देश हैं और दोनों देशों ने सामरिक रूप से महत्वपूर्ण हमारी चोटियों और भूभाग पर गैरकानूनी कब्जा कर रखा है। राष्ट की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए जरूरी है कि परराष्ट्रहित साधने वाली नीतियों पर कानून का बुलडोजर चले और सीमाओं पर हमारी सेना दबावरहित होकर अपनी भूमिका निभा सके।

जम्मू-कश्मीर के प्रसंग में यह कहना सही होगा कि भारतीय सत्ता की उदासीनता और गंभीर नीतियों के अभाव में आतंकवादी संगठन और इसके समर्थक पाकिस्तान के मंसूबों को पूरा करते हैं। पाकिस्तान कभी भी शांति का समर्थक हो ही नही सकता है। उसकी पूरी सक्रियता और संरचना भारत विरोधी है। इस यथार्थ को समझने की हमने कभी कोशिश ही नहीं की है। जहां तक चीन का सवाल है तो उसने न सिर्फ जम्मू-कश्मीर, बल्कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में हमारे सामरिक भूभागों पर कब्जे करने की कुदृष्टि लगाई हुई है। सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश पर वह हमेशा अपना अधिकार जताता रहता है। पीडीपी और महबूबा जैसों की पैंतरेबाजी से सबसे ज्यादा चीन और पाकिस्तान का ही हित सधेगा। पीडीपी की इस हरकत का यथार्थ क्या है? इस प्रश्न का जवाब भी ढूढ़ना चाहिए कि आखिर भारतीय कश्मीर के महत्वपूर्ण भूभागों को पाकिस्तान और चीन का हिस्सा बताने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या इसमें आइएसआइ की कोई भूमिका है? क्या पीडीपी फिर से जम्मू-कश्मीर की राजनीति में उफान पैदा करना और आतंक को फिर से बल देना चाहती है? सही तो यह है कि पीडीपी जैसी राष्ट्रविरोधी राजनीतिक संरचना और सक्रियता का यथार्थ से परे कोई कदम हो ही नहीं सकता है। इस तथ्य पर भी हमें गौर करने की जरूरत है कि जम्मू-कश्मीर की सत्ता से दूर होने के बाद पीडीपी की कोई अहमियत नहीं रही। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के सत्ता आने के साथ ही पीडीपी व मुफ्ती मोहम्मद सईद और महबूबा मुफ्ती की हैसियत घट गई। उनकी नीतियों से जम्मू-कश्मीर की जनता भी असहमत हुई है और उफान की राजनीति से तौबा करने लगी है। पीडीपी का आधार सीमावर्ती भूभाग तक ही सिमट कर रह गया है। भारतीय सत्ता ने कश्मीर की समस्या के लिए जो मैप तैयार किया है और जिस नीति पर चलकर भारतीय सत्ता घाटी के लोगों का विश्वास जीतना चाहती है, उसमें भी पीडीपी की निर्णायक भूमिका नहीं है।

घाटी की समस्या का समाधान करने के लिए वातावरण तैयार करने और सलाह देने के लिए नियुक्त वार्ताकार जम्मू-कश्मीर की संपूर्ण राजनीतिक-सामाजिक प्रक्रिया को कसौटी पर रखकर चल रहे हैं। इस कारण जम्मू-कश्मीर में सकारात्मक वातावरण भी तैयार हुआ है। ऐसे में पीडीपी खुद को राजनीतिक रूप से अलग-थलग मान रही है और वह इस नीति पल चल पड़ी है कि कश्मीर पर कोई भी निर्णय लेने के पहले पीडीपी की अहमियत स्वीकार की जाए तथा उसकी राजनीतिक शक्ति को सम्मान दिया जाए। फारुख अब्दुल्ला परिवार के प्रति जम्मू-कश्मीर की जनता विशेष लगाव रखती है। फारुख अब्दुल्ला के बाद उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने राज्य के अन्य राजनीतिक दलों की शक्तिविहीन करने और उन्हें आवाम की ताकत से अलग करने में भूमिका निभाई है। हालांकि राज्य के अन्य राजनीतिक दलों को कमजोर करने के लिए उमर अब्दुल्ला भी अपने बयानों व नीतियों में राष्ट्र की संप्रभुता के प्रतिकूल प्रक्रिया चलाते रहे हैं। पत्थरबाजी के पीछे भी पीडीपी का हाथ था। पत्थरबाजी में पीडीपी के कई पार्टी पदाधिकारी गिरफ्तार हुए हैं, पर यह सही है कि मुफ्ती मोहम्मद सईद और महबूबा यह कहते रहे हैं कि उन्होंने पत्थरबाजी को हवा नहीं दिए हैं। पत्थरबाजी आतंकवादी संगठनों की एक खूनी और उफान वाली राजनीतिक साजिश थी। इस साजिश की नींव भी आयातित थी। बेशक आइएसआइ ने घाटी में पत्थरबाजी को हथियार बनाया था।

आइएसआइ के मंसूबों को पूरा करने में पीडीपी की ताकत लगी हुई थी। पत्थरबाजी ने घाटी में कैसे हालात पैदा किए थे, यह भी जगजाहिर है। इसके लिए आतंकवादी संगठनों ने हथियार की जगह करेंसी खर्च किए थे। करोड़ों रुपये बांटकर पत्थरबाजी को खतरनाक स्थिति में पहुंचाया और भारतीय सत्ता पर आरोप मढे़ गए। कहा गया कि घाटी में भारतीय सेना निर्दोष जनता का खून बहा रही है, जबकि असलियत यह थी कि भारतीय सेना ने कठिन परिस्थितियों में भी पत्थरबाजों से धैर्य और अहिंसक ढंग से काम लिया था। फिर भी भारतीय सेना को बदनाम करने के लिए राजनीतिक साजिश रची गई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत और भारतीय सेना की छवि खराब की गई। मुस्लिम देशों के संगठनों ने कश्मीर में भारतीय सेना को मुस्लिम समुदाय का संहार करने जैसे आरोप भी लगाए। इसका परिणाम यह हुआ कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिथ्या प्रचारों से भारतीय सत्ता प्रभावित हो गई और आतंकवादी संगठनों के नापाक मंसूबों के जाल में फंस गई। बहरहाल, आइएसआइ और पाकिस्तान की पूरी कूटनीति और मंसूबों को समझा जाना चाहिए।

भारत और पाकिस्तान के बीच संपूर्ण वार्ता का दौर जारी है। अटकी हुई वार्ताएं फिर से शुरू हो चुकी हैं। भारत और पाकिस्तान के विदेश सचिव संपूर्ण वार्ता का एक पड़ाव हाल ही में तय कर चुके हैं। आइएसआइ की चाल यह हो सकती है कि वार्ता में भारत का पक्ष कमजोर करने और भारत की कूटनीतिक घेरेबंदी के लिए कश्मीर में भारत विरोधी भावनाएं भड़काई जाएं। ऐसा राजनीतिक माहौल बनाया जाए कि आवाम को लगे कि कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है। इससे पाकिस्तान के पक्ष को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन मिलेगा। विडंबना है कि भारतीय लोकतंत्र की खूबियों के चलते सत्ता की मलाई खा चुकी पीडीपी पाकिस्तान और आइएसआइ के सुर में सुर मिला रही है। चीन और पाकिस्तान की जुगलबंदी से हमारी संप्रभुता लहूलुहान होती रही है। 1962 में चीन ने हमला कर हमारी लाखों एकड़ भूमि हथिया ली है। पाकिस्तान ने गुलाम कश्मीर का एक बड़ा भूभाग चीन को सौंप दिया है। पीडीपी की इस राजनीतिक साजिश से चीन और पाकिस्तान की खुशी ही बढ़ी होगी। भारतीय सत्ता को पीडीपी जैसे राष्ट्रविरोधी दलों और तत्वों का दमन करना होगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

(Courtesy : दैनिक जागरण, राष्ट्रीय संस्करण, 17 फरवरी 2011)

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