Tuesday, December 6, 2011

जमायत-ए-इस्लामी दो फाड़


श्रीनगर। कश्मीर की सियासत में अब तक के बडे़ फेरबदल में जमायत-ए-इस्लामी दो फाड़ हो गई है। बागियों ने आमीर जमात पर इस्लाम और जमायत के संविधान की अवज्ञा का आरोप लगाते हुए तहफुज-ए-दस्तूर नामक अलग संगठन बनाने का एलान कर दिया है। अलबत्ता, जमायत प्रवक्ता एडवोकेट जाहिद अली ने विभाजन से इंकार करते हुए कहा कि बागियों को पहले ही निकाला जा चुका है। 
विदित हो कि कश्मीर में दो ही संगठनों को मॉस काडर बेस वाला कहा जाता है। एक नेशनल कांफ्रेंस और दूसरी जमायत-ए-इस्लामी कश्मीर है। हिजबुल मुजाहिदीन का पहला और पुराना कैडर भी जमायत से ही संबंधित है। जमायत में इस विभाजन का कारण कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी ही रहे हैं। बागियों को उनकी उपेक्षा सहन नहीं हो रही थी। उन्होंने कट्टरपंथी नेता के संगठन तहरीके हुर्रियत कश्मीर में शामिल होने से इंकार कर दिया है। बागी गुट की अगुआई जमायत-ए-इस्लामी के कश्मीर में सबसे पुराने नेताओं में अग्रणी प्रो. मुहम्मद अब्दुल्ला शैदा कर रहे हैं, जबकि वरिष्ठ जमायत नेता एडवोकेट सोफी अब्दुल गफ्फार महासचिव हैं। शैदा ने कहा कि तहफुज-ए-दस्तूर सिर्फ जमायत-ए-इस्लामी के संविधान की सुरक्षा के लिए है। हमारे साथ जमायत के 250 से ज्यादा पंजीकृत रूकन (डेलीगेट) हैं। वे जमायत के मौजूदा नेतृत्व की नीतियों से नाराज थे। सभी से सलाह पर ही उसका एक समांतार गुट तहफुज-ए-दस्तूर का गठन किया है। एडवाकेट सोफी ने कहा कि जमायत नेतृत्व से हमारे मतभेद गिलानी संग समझौते से आमीर जमात के इंकार के बाद से शुरू हो गए थे।

No comments:

Post a Comment