Wednesday, December 14, 2011

तरक्की के लिए तरसते रास्ते


दयासागर
जम्मू संभाग के डोडा क्षेत्र (किश्तवाड़, डोडा और रामबन) की तरह राजौरी और पुंछ जिले भी उपेक्षा के शिकार हैं। वर्ष 1978-79 में मुगल रोड की जो दुर्दशा शुरू हुई वह उपेक्षा की कहानी बयां करती है। कृषि और बागवानी विभाग से भी सौतेला व्यवहार किया गया है। इन जिलों में भी स्वादिष्ट फलों का उत्पादन हो सकता है। पुंछ के स्वादिष्ट आडू प्रशंसनीय हैं। राजौरी की दालों और मीठे चावलों से बाहरी लोगों को कभी परिचित नहीं कराया गया। यद्यपि मुगल शासकों ने कश्मीर जाने के लिए इसी रास्ते का प्रयोग किया था, लेकिन उन्होंने भी इन क्षेत्रों के विकास के लिए कुछ नहीं किया। वर्ष 1947 से पहले महाराजा के शासनकाल में भी यहां पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। पुंछ, जम्मू-कश्मीर राज्य का एक जागीर था। जेएंडके के महाराजा ने श्रीनगर को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया था। उन्होंने सिर्फ कश्मीर घाटी को ही बाहरी दुनिया के सामने प्रदर्शित किया। नि:संदेह महाराजा के पास संसाधनों की कमी थी। हालांकि पिछले पांच वर्षो में राज्य सरकार ने इन जिलों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए थोड़ी रुचि दिखाई है, लेकिन उपेक्षाओं की भरपाई के लिए बड़ी परियोजनाओं पर काम करने की जरूरत है। वर्ष 1947 में पाक प्रायोजित जनजातीय समुदाय के हमलों में सबसे अधिक इन्हीं इलाकों को नुकसान हुआ था। वर्ष 1990 से इन जिलों में आतंकियों ने अनेक निर्दोष लोगों का खून बहाया है, जिस कारण जो थोड़ा-बहुत विकास हो रहा था वह भी थम गया है। शैक्षणिक और प्रशासनिक दृष्टि से ये इलाके बहुत पिछड़े हैं। इन क्षेत्रों में अधिकांश लोग गरीब हैं और सरकारी स्कूलों पर ही निर्भर हैं। पिछले 21 वर्षो की अशांति ने सरकारी स्कूलों के बुनियादी ढांचे को ध्वस्त कर दिया है। बावजूद इसके इन जिलों में व्यावसायिक पर्यटन के विकास की अपार संभावनाएं हैं। इन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल हैं। इनके इर्द-गिर्द पर्यटकों की रुचि के कई स्थान हैं, जहां गर्मियों में भी ठंडा और सुहावना मौसम होता है। बुद्धा अमरनाथ मंदिर मंडी, गुरुद्वारा नांगली साहिब, दशनामी अखाड़ा (पुंछ), राजौरी स्थित शाहदरा शरीफ की जियारत, जियारत बडगयाल डोरा (पुंछ), जियारत बाटलकोट मंडी, जियारत गुनट्रियन पुंछ, जियारत पमरोट सुरनकोट व जियारत छोटे शाह मेंढर जैसे तीर्थस्थल और मकबरे पर्यटकों को लुभा सकते हैं। इन क्षेत्रों में कुछ दिन रुकने की योजना बनाई जा सकती है। यहां रिसॉर्ट और मनोरंजनस्थल बनाए जा सकते हैं। छुट्टी बिताने और स्वास्थ्य लाभ के लिए सैरगाह को बढ़ावा दिया जा सकता है। कश्मीर से पर्यटक यहां आएं और फिर कश्मीर के रास्ते ही लौटें, यह ठीक नहीं होगा। कश्मीर जा रहे पर्यटकों को इन जिलों से जाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। यहां तक कि मुगल शासक भी कश्मीर घाटी जाने के लिए राजौरी-पुंछ मार्ग का ही इस्तेमाल करते थे। सुंदरबनी तक गर्म इलाकों की यात्रा करने के बाद पर्यटकों को बढि़या मौसम मिल सकता है। पुंछ के रास्ते में चिंगस और लंबेरी (नौशहरा) के किलों में पर्यटकों की रुचि हो सकती है। बफलियाज-शोपियां मार्ग से भी पर्यटकों के लिए रास्ता बनाया जा सकता है। रोमांच से भरा यह रास्ता पर्यटकों की प्रतीक्षा कर रहा है। इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता देखने लायक है। हरे-भरे जंगलों, चारागाहों, ऐतिहासिक जलप्रपातों और सात खूबसूरत झीलों (चन्दन सर, दिव्य सर, सुख सर, गम सर) की सुंदरता मनमोहक है। इसके आसपास कुछ और छोटी झीलें हैं, लेकिन ये अधिक ऊंचाई पर हैं। पीरपंजाल क्षेत्र में 12000 फीट की ऊंचाई पर स्थित घाटियां अलियाबाद सराय से सिर्फ 6-7 किलोमीटर दूर हैं। गंगा छौती, टट्टा कट्टी, कंगलाना आदि पहाड़ी चोटियों की कोई सानी नहीं है। इन इलाकों के पिछड़ेपन के लिए कश्मीरी नेतृत्व पर आरोप लगाने का कोई मतलब नहीं है। बेहतर होगा कि अच्छे परियोजनाओं पर काम कर केंद्र सरकार को प्रभावित किया जाए ताकि वह विशेष कार्यक्रमों के जरिए राज्य सरकार की मदद करे। काफी समय बीत चुका है, इसलिए इन क्षेत्रों में औद्योगिक विकास के लिए अधिक समय और अतिरिक्त पूंजी की जरूरत है। शुरुआत में तीर्थस्थलों को बढ़ावा दिया जा सकता है। इसके बाद व्यावसायिक पर्यटन के लिए बुनियादी ढांचे को विकसित किया जा सकता है। पांच या दस करोड़ के छोटे प्रस्तावों के बदले कुछ हजार करोड़ रुपये आवंटित करने की जरूरत है। पर्यटकों के सुरक्षित और आरामदायक सफर के लिए एक किलोमीटर सड़क निर्माण की न्यूनतम लागत 5 से 10 करोड़ रुपये आएगी। छह दशकों की उपेक्षा की भरपाई के लिए इन जिलों के लिए एक उच्च अधिकार प्राप्त पर्यटन विकास प्राधिकरण की आवश्यकता है। प्राधिकरण का मुखिया अतिरक्त मुख्य सचिव से कम स्तर का अधिकारी नहीं होना चाहिए। इन इलाकों में बुनियादी ढांचे के विकास पर तीन से चार हजार करोड़ रुपये खर्च करने की जरूरत है। अगर सही समय पर काम किया गया होता तो तीन-चार सौ करोड़ रुपये में ही कार्य संपन्न हो जाता। मुगल रोड परियोजना को भी पर्यटन विकास कार्यक्रम से जोड़ने की आवश्यकता है। जब सड़कों और इमारतों का निर्माण होता है तो कई बार कुल लागत की आधी से अधिक धनराशि प्रत्यक्ष या परोक्ष सेवा के रूप में स्थानीय लोगों को मिलती है। यही नहीं, रोजगार और व्यापार के अवसर भी उपलब्ध होते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था बेहतर होती है। इससे धर्म के नाम पर गरीबों का शोषण करने वाले देश विरोधी तत्वों का काम कठिन हो जाता है। शैक्षणिक पिछड़ापन भी दूर होता है। स्थानीय लोग बाहरी सूचनाओं से जुड़ते हैं। हिमाचल प्रदेश के डलहौजी व धर्मशाला की तरह पुंछ और राजौरी भी सुंदर है। सुरनकोट की सुंदरता और इसके नजदीक बफलियाज मार्ग पर छह किमी लंबे मैदान का दृश्य दुर्लभ है। नूरी छम्ब में चीर के जंगल और जल प्रपात हैं। छम्ब से महज 22 किमी दूर मंडी में बुद्धा अमरनाथ श्राइन है। पर्यटकों के ठहरने के लिए मंडी को विकसित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए बुद्धल ठंडा और सुंदर क्षेत्र है, लेकिन यह शहर उपेक्षित है। बुद्धल के पास संगरी एक अन्य सुंदर पहाड़ी इलाका है। मंडी से सिर्फ 22 किमी दूर लोरान है। लोरान से छह किमी दूर 10 वर्ग किलोमीटर लंबा गली मैदान है। गली मैदान से करीब 20 किमी दूर मुगल रोड पर पूरे साल बर्फ के मैदान देखे जा सकते हैं। मुगल रोड से लिंक जोड़ने के लिए बड़े सुरंगों का निर्माण आवश्यक है। इसके लिए अनुभवी व पेशेवर निर्माण कंपनियों की जरूरत है, ताकि इन परियोजनाओं को वर्ष 2014 तक पूरा किया जा सके। (लेखक जम्मू-कश्मीर मामलों के अध्येता हैं।)

No comments:

Post a Comment