Sunday, February 5, 2012

पेंशन का असहनीय बोझ


दयासागर
वर्ष 2003 के बाद नियुक्त सरकारी कर्मियों के लिए केंद्र ने सेवानिवृत्त पेंशन योजना बंद कर दिया है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने भी वर्ष 2009 के बाद नियुक्त कर्मियों के साथ ऐसा ही किया है। नि:संदेह सहयोगात्मक प्रोविडेंट फंड (सीपीएफ) जैसी योजनाएं गैर पेंशनधारी कर्मचारियों के लिए लागू होंगी। लेकिन सेवानिवृत्त पेंशन के पहले के प्रावधानों के लिए सीपीएफ कोई समतुल्य स्थानापन्न नहीं है। स्थिति यह है कि एक सरकारी कर्मचारी को प्रतिमाह 40000 रुपये पेंशन मिल रहा है। (पेंशन पर महंगाई भत्ता भी मिलता है और ग्रेड संशोधन के साथ पेंशन को भी संशोधित किया जाता है)। यह किसी व्यक्ति द्वारा बैंक में 50 लाख से अधिक की धनराशि निश्चित समयसीमा तक जमा करने के बाद प्रतिमाह सूद प्राप्त करने की तरह है। क्या सीपीएफ योजना इससे मेल खाती है? कभी नहीं, इसके बावजूद सरकारी नौकरी हासिल करने के लिए लोग लालायित रहते हैं। फलस्वरूप बड़ी संख्या में शिक्षित युवा बेरोजगार हैं। कोई भी सरकारी कर्मचारी संघ या एसोसिएशन पेंशन न देने की नई नीति के विरोध में उद्वेलित नहीं हुआ है। इसका जवाब इस तथ्य में निहित है कि कर्मचारी संघ/एसोसिएशनके बदले वर्ष 2010 (जेएंडके में) से पहले नियुक्त लोग इसका संचालन करते हैं और इसका लाभ भी उठा रहे हैं। यह उद्धृत किया जा सकता है कि केंद्र सरकार के कर्मचारी जो वर्ष 2030 या उसके बाद सेवानिवृत्त होंगे, उन्हें पेंशन का लाभ मिलेगा। वर्ष 2004 के बाद सरकारी सेवारत युवा जो हतोत्साहित होकर नौकरी खोज रहे थे, पेंशन के विवादों में पड़ने के बारे में नहीं सोच सकते। जबकि नव नियुक्त, कांट्रैक्चुअल, कनसॉलिडेट पे, डेलीवेजरों और कैजुअल कर्मचारी बड़े पैमाने पर रैलियां निकालते हैं। नियमित कर्मचारियों के नेतृत्व में कर्मचारी संघों द्वारा इनके प्रदर्शनों को संचालित किया जाता है। राजनीतिज्ञों के साथ-साथ सरकारी सेवारत वरिष्ठ कर्मचारियों पर भी बेरोजगार युवाओं का शोषण करने का आरोप लगता है। एक व्यक्ति जो हाल ही में सरकारी सेवा में शामिल हुआ है, जब उससे पूछा जाता है कि क्या भर्ती किए गए नए नियमित कर्मचारियों (जो वर्ष 2003 के बाद केंद्र सरकार और 2009 के बाद जेएंडके सरकार), कांट्रैक्चुअल, कंसालिडेटेड पे कर्मचारियों, डेलीवेजरों और कैजुअल कर्मचारियों का अलग-अलग एसोसिएशन है? इस बारे में वह कुछ तर्क दे सकता है। सरकारी नौकरियों की आकांक्षा रखने वाले बेरोजगारों की चिंता बढ़ाते हुए कर्मचारी केंद्र सरकार से सेवानिवृत्ति की आयु 60 से 62 वर्ष करने और राज्य सरकार के कुछ कर्मचारी सेवानिवृत्ति की आयु 58 से 60 वर्ष करने की मांग उठा रहे हैं। निश्चित रूप से इससे सरकारी विभागों में उपलब्ध सीमित नौकरियों के अवसर कम होंगे। नि:संदेह सरकारी कर्मचारी जो पहले से नौकरी कर रहे हैं, सभी संभावित संसाधनों का उपयोग करेंगे और बढ़ी हुई सेवानिवृत्ति आयु को प्रभावित करेंगे। कारण, वे नीति योजना में भी शामिल हैं। लेकिन जब देश में शिक्षित/उच्च शिक्षा प्राप्त बेरोजगारों की भरमार है तो ऐसे में सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाना कहां तक न्यायोचित है, क्योंकि सरकार के पास संसाधनों की कमी है। यदि सेवानिवृत्ति आयु नहीं बढ़ाई जाती है तो पदों के निर्माण की नियमित प्रक्रिया पर ब्रेक नहीं लगेगा। नव नियुक्त कर्मचारियों के वेतन और सेवानिवृत्त कर्मचारियों के पेंशन भुगतान के बाद भी सरकार पर उतना बोझ नहीं पड़ेगा। यद्यपि आइएएस/ आइपीएस/ आइएफएस/आइआरएस और स्थानीय सेवा में जुटे लोग समयबद्ध पदोन्नति मिलने से अपने करियर में ठहराव महसूस नहीं करते हैं लेकिन आम सेवाओं में लगे लोग अनावश्यक ठहराव का सामना करते हैं। इसलिए यदि सेवानिवृत्ति की आयु नहीं बढ़ाई जाती है तो ऐसे कर्मचारियों को भी पदोन्नति मिलेगी और वे प्रोत्साहित होंगे। अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि जटिल प्रक्रिया के कारण गैर निष्पादन/ अयोग्य/भ्रष्टसरकारी कर्मचारियों को दंडित करना या उससे मुक्ति पाना बहुत कठिन है। जेएंडके के मुख्यमंत्रियों ने भी कई अवसरों पर उद्धृत किया है कि उन्होंने भ्रष्ट तत्वों से मुक्त होने की योजना बनाई है, लेकिन वे इसमें सफल नहीं हुए। इसलिए यदि सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाई जाती है तो अवांछित कर्मियों को भी परोक्ष रूप से विस्तार मिलेगा। कुछ लोगों का तर्क है कि यदि सेवानिवृत्ति की आयु दो वर्षो के लिए बढ़ाई जाती है तो जीपीएफ का भुगतान, नकद भुगतान को छोड़ दें तो सरकार दो वर्षो तक पेंशन और ग्रेच्युटी देने से इंकार कर देगी। सेवानिवृत्ति आयु बढ़ने पर नकारात्मक प्रभावों के सामने ऐसे तर्क कहीं नहीं टिकते हैं जैसे-1. विस्तृत सेवा अवधि के दौरान वेतन में बढ़ोतरी 2. सेवानिवृत्ति पर पेंशन में भी बढ़ोतरी 3. सरकार को अतिरिक्त खर्च करने पर दो वर्षो से भी अधिक समय तक वृद्ध और बीमार कर्मचारियों का निर्वहन 4. कानून व्यवस्था और अपराध नियंत्रण विभागों में बहुत कम युवाओं का कार्यरत होना आदि शामिल है। इसलिए सेवानिवृत्ति की आयु कम करने के बजाय इसे बढ़ाने पर विचार करने की जरूरत है। बेहतर होगा कि पेंशन के लिए 20 वर्षो की समयसीमा के साथ नियमित सेवानिवृत्ति की आयु कम कर 55 वर्ष करने के प्रस्तावों पर विचार किया जाए। अभी भी यह प्रावधान रखा जा सकता है, अगर कुछ कर्मचारी असाधारण कर्तव्यनिष्ठ, अनुभवी, योग्य और स्वस्थ हों तो 55 वर्ष की आयु पूरी होने के बाद दो वर्षो के लिए उन्हें सेवा विस्तार देने पर विचार किया जा सकता है। इससे कोई नुकसान नहीं होगा यदि अपवाद स्वरूप मामलों में 65 वर्ष की उम्र तक सेवा विस्तार की पुनरावृत्ति होती है। इस प्रकार 1. सरकार को अयोग्य तत्वों से मुक्ति मिलेगी 2. सरकारी नौकरियों में बेरोजगार युवाओं के लिए प्रवेश बाधित नहीं होगा 3. राजकोष पर वेतन का भार कम पड़ेगा। सरकार को भी चाहिए कि वह वर्ष 2003 के बाद नियुक्त लोगों के लिए सेवानिवृत्ति पेंशन बहाल करने पर विचार करे, क्योंकि सेवा संचालित नियमों जिनका सरकारी कर्मचारियों को अनुसरण करना होता है, प्राइवेट इंटरप्राइज/बिजनेस हाउस में किसी के काम करने की तुलना में अधिक कठोर है। सरकारी कर्मचारियों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्राइवेट इंटरप्राइज की अनुमति नहीं दी जा सकती है। सरकारी नौकरी की तलाश कर रहे युवाओं के शोषण और अन्याय की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती प्रक्रिया में काफी विलंब हो चुका है।
(लेखक जम्मू-कश्मीर मामलों के अध्येता हैं।)

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