Thursday, February 23, 2012

चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में हुर्रियत


दैनिक जागरण, 23 फरवरी 2012
श्रीनगर। कश्मीर मुद्दे को फिलहाल दस साल के लिए फ्रीज करने की भारत-पाक की कवायद के बीच ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के उदारवादी खेमे की कश्मीर नीति में भी बदलाव नजर आने लगा है। हालात ऐसे बन गए हैं कि हुर्रियत का उदारवादी खेमा और कुछ अन्य अलगाववादी दल अगले दो सालों में कश्मीर के चुनावी मैदान में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में उतर सकते हैं।
सूत्रों ने बताया कि मीरवाइज मौलवी उमर फारूक की अगुवाई वाली हुर्रियत कांफ्रेंस का खेमा अब वर्ष 2002 और 2008 की अपनी गलतियों को दोहराने के मूड में नहीं है। बीते चार सालों से हुर्रियत के संविधान और संगठनात्मक ढांचे में बदलाव के जो प्रयास किए जा रहे हैं, वह कश्मीर की चुनावी सियासत को ध्यान में रखते हुए ही किए जा रहे हैं। हालांकि हुर्रियत ने सभी घटक दलों के एक ही ध्वज में विलय से पूर्व सभी जिला मुख्यालयों में एक संगठित राजनीतिक दल की तरह अपने जिला कार्यालय स्थापित किए थे, लेकिन श्री अमरनाथ भूमि विवाद और पार्टी के कुछ नेताओं द्वारा उस समय चुनावी सियासत का विरोध किए जाने के बाद इन कार्यालयों को बंद कर दिया गया था। अब यह प्रक्रिया फिर शुरू की गई है।
सूत्रों के अनुसार मीरवाइज का खेमा चुनावी सियासत में उतरने से पहले कश्मीर मुद्दे पर केंद्रीय पैकेज पर नजर गढ़ाए हुए है। वह यह देख रहे हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे को लेकर विभिन्न फार्मूलों पर जारी काम किस अंजाम तक पहुंचता है। लोगों में पैठ बनी रहे, इसलिए अब वह अपने मंचों पर कश्मीर की आजादी और कश्मीर समस्या के हल के बजाय कश्मीर की बेरोजगारी, बिजली-पानी के संकट जैसे मुद्दे उठाते हुए लोगों को अपने साथ जोड़ने में जुटे हुए हैं। बीते कुछ महीनों के दौरान मीरवाइज के इस संदर्भ में जारी बयान इनका संकेत देते हैं।
हुर्रियत के चुनावी मैदान में उतरने की अटकलों पर कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ और पत्रकार बशीर मंजर ने कहा कि यह कोई अप्रत्याशित नहीं है। इसके संकेत तो कई बार मिले हैं और जबसे पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद गनी लोन ने चुनाव लड़ा है, हुर्रियत के उदारवादी खेमे की सोच भी बदली है। सुनने में तो यह भी आया है कि सज्जाद गनी लोन और मीरवाइज मौलवी उमर फारूक के बीच बीते कुछ महीनों के दौरान कश्मीर चुनावी सियासत को लेकर कई बैठक हुई हैं। सज्जाद और उनके भाई बिलाल गनी लोन के बीच जो राजनीतिक व निजी मतभेद थे, वह भी मीरवाइज के प्रयासों से दूर हुए हैं।
सूत्रों ने बताया कि मीरवाइज और डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी के चेयरमैन शब्बीर शाह अगले कुछ दिनों में दिल्ली से लौटने के बाद राज्य के विभिन्न हिस्सों में अपनी जनसभाओं का दौर शुरू करेंगे, ताकि वह लोगों को बदलते राजनीतिक परिवेश में अपनी बदलती कश्मीर नीति से अपने समर्थकों को अवगत करा सकें।
अलगाववादियों का चुनावी इतिहास : हुर्रियत कांफ्रेंस वर्ष 2002 के विधानसभा चुनावों में हिस्सा लेने को पूरी तरह तैयार थी, लेकिन आतंकियों द्वारा हुर्रियत के वरिष्ठ नेता और पीपुल्स कांफ्रेंस के तत्कालीन चेयरमैन अब्दुल गनी लोन की हत्या के बाद वह पीछे हट गई थी। अलबत्ता, अलगाववादी खेमे ने पांच छदम उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जो चुनाव जीत गए थे। इसके बाद वर्ष 2008 में हुए विधानसभा चुनावों के लिए भी अलगाववादी खेमा विशेषकर पीपुल्स कांफ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन राजी थे, लेकिन श्री अमरनाथ भूमि विवाद से कश्मीर में पैदा हुए हालात के बाद अलगाववादी खेमा न प्रत्यक्ष रूप से और न ही परोक्ष रूप से चुनावी दंगल में शामिल हुआ।

हुर्रियत के लिए खोई साख पाने का मौका : कमाल
हुर्रियत के कश्मीर की चुनावी सियासत में शामिल होने के मिल रहे संकेतों को स्वागतयोग्य बताते हुए नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता डॉ. मुस्तफा कमाल ने कहा कि अगर यह सच होता है, तो यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। हालांकि हुर्रियत को बहुत पहले ऐसा करना चाहिए था। खैर, देर आयद पर दुरुस्त आयद। मुझे इस बात की खुशी है कि देर से ही सही लेकिन अलगाववादियों को समझ आ गया कि किसी भी मसले का हल गोली से नहीं बल्कि बोली से होता है। डॉ. कमाल ने कहा, 'सच कहें तो हुर्रियत अपनी पहचान खोती जा रही है। मैं समझता हूं कि विस चुनाव में भाग लेने से हुर्रियत अपनी खोई हुई साख भी वापस हासिल कर सकती है और लोकप्रियता भी।'

क्या पाकिस्तान हुर्रियत को अनुमति देगा : बेग
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व उपमुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग ने कहा कि अगर हुर्रियत चुनावी सियासत में आती है तो यह स्वागतयोग्य है। लेकिन सवाल यह है कि क्या सचमुच पाकिस्तान हुर्रियत को चुनाव लड़ने की अनुमति देगा, क्योंकि हुर्रियत की नीतियां पूरी तरह पाकिस्तान से प्रभावित रहती हैं। इस समय अगर पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को लेकर ज्यादा सक्रिय नहीं है तो वह सिर्फ अपनी घरेलू दिक्कतों के कारण। इसी कारण वह इस समय कश्मीर मुद्दे से खुद को बचाना चाहता है। अगर कल को पाकिस्तान के हालात सुधरते हैं तो क्या फिर वह हुर्रियत की चुनावी सियासत का समर्थन करेगा, यह भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। वैसे हुर्रियत को यह कदम बहुत पहले उठाना चाहिए था। इससे कश्मीर मसले के हल में ही मदद होगी।

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