Saturday, January 7, 2012

कठिन समय के संकेत

केवल कृष्ण पनगोत्रा 
नया साल जम्मू-कश्मीर की जनता, विशेषत: बेरोजगार युवाओं के लिए सामाजिक एवं आर्थिक लिहाज से बीते वर्ष की अपेक्षा ज्यादा कष्टदायक हो सकता है। ऐसे संकेत वर्ष 2011 में ही प्राप्त होना शुरू हो गए थे। दैनिक वेतन भोगियों, कांट्रेक्चुअल व स्थायी कर्मचारियों और अन्यत्र व्यवसायों से जुड़े लोगों ने बीते साल धरनों-प्रदर्शनों और हड़तालों के जरिए जैसी बेचैनी प्रदर्शित की उससे तो यही लग रहा था कि वर्ष 2012 में आम लोगों की कठिनाइयों में बढ़ोतरी होने वाली है। पिछले साल सरकार द्वारा जारी भर्ती नीति ने तो शिक्षित बेरोजगार युवाओं को उनके भविष्य और सामाजिक-आथिर्क जीवन की उम्मीदों को लेकर काफी निराश किया है। बेरोजगार युवा वर्ग के साथ आम जनता भी सरकार द्वारा घोषित नई रोजगार नीति से काफी क्षुब्ध है। महंगाई, मंदी-तंगी और खासकर राज्य में सुरसा की भांति मुंह फैलाए घूसखोरी एवं भ्रष्टाचार आम जनता के कई सपनों व आशाओं को निगल रहा है। राज्य में आतंकवाद और अलगाववाद से भी बड़ी समस्या वर्तमान में विकराल भ्रष्टाचार की है। जिनके एजेंडे में कभी भ्रष्टाचार शायद ही रहा वे भी आज भ्रष्टाचार को कोस रहे हैं। दिसंबर के अंतिम सप्ताह में अलगाववादी नेता मीरवाइज मौलवी उमर फारूख ने भी कहा कि भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी समस्त बुराइयों की जड़ है। पूरी दुनिया में जो असंतोष है, उसका बड़ा कारण यह भ्रष्टाचार है। इसको मिटाना बहुत जरूरी है। हम सभी को इसमें सहयोग करना चाहिए। राज्य सरकार भी भ्रष्ट है। इसके खिलाफ एक ऐसा आंदोलन जरूरी है। अन्ना हजारे ने जो शुरुआत की है, उसकी कामयाबी के लिए हम दुआ करेंगे। नए साल में आम जनता और बेरोजगार क्या आशा कर सकते हैं? इस संदर्भ में केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को जो निर्देश दिए हैं उससे भविष्य की कष्टदायी आशंकाएं मूर्त रूप लेती नजर आ रही हैं। केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को कहा है एक अप्रैल, 2012 से शुरू होने वाली 12वीं पंचवर्षीय योजना और 2012 की वार्षिक योजना में केंद्र से सुरक्षित एवं उदार निधि (सिक्योर लिबरल फंडिंग) प्राप्त करने के लिए राज्य सरकार कर्मचारियों के वेतन और ऊर्जा खर्चो में कठोर उपाय करे। ऐसे समाचार प्राप्त हो रहे हैं कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय और योजना आयोग ने जम्मू-कश्मीर द्वारा सालाना 14500 करोड़ रुपये के वेतन खर्चो पर आपत्ति जताई है। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार ने राज्य की बिजली खरीद खर्च पर भी चिंता जताई है। गत वर्ष राज्य का बिजली खर्चा 2500 करोड़ था जो ऊर्जा दरों में बढ़ोतरी से 3000 करोड़ तक जाने की संभावना है। ज्ञात हो कि पिछले साल बिजली से राज्य को 800 से 900 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ, मगर सरकार इसे आने वाले वर्ष में दोगना करना चाहती है ताकि खर्च और प्राप्त राजस्व में घाटे के अंतर को पूरा किया जा सके। केंद्र ने वेतन खर्चो और बिजली खर्च को लेकर राज्य सरकार को जैसे तेवर दिखाए हैं उससे आम आदमी को ही कष्टदायक सामाजिक-आर्थिक सूरत-ए-हाल से गुजरना पडे़गा और रही सही कसर भ्रष्टाचार रूपी दानव निकाल देगा। केंद्र सरकार सरकारी खर्च में कटौती के पक्ष में यह दलील दे रही है कि जनसंख्या के लिहाज से जम्मू-कश्मीर से बड़े राज्य कर्मचारियों के वेतन पर कम खर्च कर रहे हैं। केंद्र सरकार इस संबंध में सुधार करने पर जोर दे रही है। दरअसल, राज्य सरकार की पिछले वर्ष जारी भर्ती नीति और बिजली किरायों में बढ़ोतरी को केंद्र सरकार के इसी दबाव की नजर से देखा जा सकता है। राज्य सरकार की नई रोजगार नीति और केंद्र द्वारा सुधारों की नसीहत वास्तव में केंद्र की 1990 में शुरू की गई आर्थिक नीतियों का ही परिणाम हैं। राज्य सरकार की जारी हुई रोजगार नीति जिसके तहत एक नवंबर, 2011 से सरकारी सेवा में आने वाले युवाओं को मूल वेतन का एक निश्चित भाग देना तय है, भी केंद्र की नई नीतियों से प्रभावित है। नि:संदेह शिक्षित बेरोजगार, आम जनता और किसी भी वर्ग एवं श्रेणी के सरकारी कर्मचारी नए साल में राज्य सरकार की नीतियों और भ्रष्टाचार पर प्रतीकात्मक कदमों से नाराज ही रहेंगे, मगर जनता यह भी आशा नहीं कर सकती कि सरकार वेतन खर्चो और बिजली किरायों को लेकर जनता की ओर झुकाव दिखाएगी। स्पष्ट हो रहा है कि केंद्र सरकार पूर्व की भांति अपनी जनविरोधी नीतियों को जारी रखेगी जिसका समान प्रभाव देश के अन्य राज्यों के साथ जम्मू-कश्मीर पर भी पड़ेगा। हालांकि राज्य सरकार ने केंद्र को बताया है कि छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के कारण वेतन खर्चो में बढ़ोतरी हुई है, मगर केंद्र किसी भी कीमत पर वेतन खर्चे में कटौती चाहती है। बेशक केंद्र सरकार ने सरकारी खर्चो पर राज्य सरकार पर दबाव बनाया है, मगर राज्य सरकार और राजनेताओं के चिरपरिचित स्वभाव से लगता है कि आने वाले समय में सुधारों की प्रक्रिया आम जनता की जेब पर ही भारी पड़ेगी। कारण, राज्य सरकार पूर्व में उठाए गए कठोर उपायों का हवाला देते हुए केंद्र सरकार को यह विश्वास दिला रही है कि इस संबंध में वह शीघ्र ही इसी प्रकार के कठोर उपाय करेगी। नई रोजगार नीति, छठे वेतन आयोग की सिफारिशों संबंधी बकाए पर टालमटोल, बिजली किरायों की दरों में बढ़ोतरी जैसे कठोर उपाय पहले ही बेरोजगारों, आम जनता और सरकारी कर्मियों पर भारी पड़ रहे हैं। जब शीर्ष से लेकर निचले स्तर तक भ्रष्टाचार पूरे यौवन पर है। जनता क्या करे? जनता के पास सिवाए संघर्ष और आंदोलन के कोई रास्ता नहीं। जम्मू-कश्मीर में भी तीव्र संघर्ष की जरूरत है। राजनेता अन्ना हजारे को चाहे जितना मर्जी कोसें, उनकी इस बात में दम है कि जब तक नाक नहीं दबाओगे, यह सरकार मुंह नहीं खोलती। राज्य में भ्रष्टाचार का आलम है कि अलगाववादियों की सियासी विचारधारा भले ही भारत विरोधी हो, भ्रष्टाचार पर वे भी अन्ना का समर्थन करते हैं। यानि पूरे देश में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी एक साझा मुद्दा है-धर्म और क्षेत्रवाद से परे।

(लेखक : जम्मू-कश्मीर मामलों के अध्येता हैं।)

No comments:

Post a Comment