Saturday, April 14, 2012

अलगाववादी जम्मू व लद्दाख में तलाशेंगे अपना आधार



जम्मू। बदल रहे राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को देखते हुए अलगाववादी संगठन विशेषकर ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के दोनों गुट अब कश्मीर से बाहर अपना आधार तलाशने में जुट गए हैं। नई रणनीति के तहत मीरवाइज मौलवी उमर फारूक, सैय्यद अली शाह गिलानी और मुहम्मद यासीन मलिक जम्मू संभाग और लद्दाख में जनसभाएं करने की तैयारी है। कट्टरपंथी गिलानी ने जम्मू के अलावा मुस्लिम बहुल जिलों में ही अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय करते हुए स्थानीय अल्पसंख्यकों को बैठकों में दावत देने को कहा है। उदारवादी गुट के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने अपने सहयोगी शब्बीर अहमद शाह और बिलाल गनी लोन की मदद से जम्मू संभाग के उन इलाकों में भी बैठकें करने का फैसला किया है, जहां गैर मुस्लिमों की आबादी कम है। इनमें आरएसपुरा, कठुआ व सांबा जैसे क्षेत्र शामिल हैं। बीते दिनों कश्मीर में मीरवाइज व गिलानी ने कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए हैं कि वे सभाओं में आम लोगों की समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर उठाएं जो राज्य में लोगों को प्रभावित करते हों। कश्मीर समस्या का जिक्र करते हुए हमेशा ध्यान रखें कि उससे गैर मुस्लिम आबादी खुद को उपेक्षित महसूस न करें। इसके अलावा जम्मू संभाग में जब भी मौका मिले तो अपने मंच पर स्थानीय नेताओं विशेषकर अल्पसंख्यक समुदायों से आए लोगों को ही बोलने का मौका दें। कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार रशीद राही ने कहा कि अब कश्मीर को लेकर भारत-पाक के बीच बहुत कुछ बदल चुका है। इसके अलावा पाकिस्तान भी कई मामलों पर हुर्रियत नेताओं से अलग थलग होने लगा है। ऐसे में हुर्रियत को अपनी सियासत चलाने के लिए कश्मीर से बाहर भी विशेषकर अल्पसंख्यक समुदायों में भी अपने लिए जमीन तैयार करनी है। इसलिए अब वह जनहित के मु्द्दों को भी उठा रही है। सबसे बड़ी बात तो पंडितों की वापसी के लिए जिस तरह से हुर्रियत के दोनों गुटों ने बीते दिनों आग्रह किया है, वह भी इसी सियासत का हिस्सा हैं ताकि कोई यह न कह सके कि हुर्रियत की सियासत कश्मीरी मुस्लिमों के एक वर्ग विशेष तक ही सीमित है। (14/04/2012)

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