Monday, October 10, 2011

कांग्रेस की नकारात्मक भूमिका


प्रो. हरिओम
कांग्रेस निरंतर गैर जिम्मेदाराना व्यवहार कर रही है और उन लोगों पर आरोप लगा रही है जो इसे नेशनल कांफ्रेंस की बी टीम कह रही है और इसकी विश्वसनीयता व उपयोगिता पर सवाल खड़े कर रही है जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्य में कांग्रेस की नकारात्मक भूमिका के कारण कुछ गंभीर और अनुभवी समालोचक इसके बारे में शोक समाचार लिख रहे हैं। आमतौर पर यह माना जाता है कि वर्ष 1947 से जेएंडके में देश जिन समस्याओं का सामना कर रहा है, उसके लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है। पूरे देश में यह आम सोच बन गई है कि कश्मीर समस्या के लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है। यह सोच विधर्म पर आधारित नहीं है। यह कटु तथ्यों पर आधारित है। जनवरी 2009 से आज तक राज्य में कांग्रेस ने जो कुछ किया है, उसका परिलक्षित होना वांछनीय है। वास्तव में वर्ष 2005 से पहले की गलतियों से कांग्रेस कोई सबक नहीं सीखी है। यह निरंतर गैर जिम्मेदाराना व्यवहार कर रही है और उन लोगों पर आरोप लगा रही है जो इसे नेशनल कांफ्रेंस की बी टीम कह रही है और इसकी विश्वसनीयता व उपयोगिता पर सवाल खड़े कर रही है। 5 जनवरी 2009 से नेशनल कांफ्रेंस के नेता और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला विधानसभा के भीतर और बाहर विवादास्पद बयान दे रहे हैं। उनके कुछ बयान इतने निंदनीय हैं कि अगर दुनिया के किसी दूसरे देश में इस तरह के बयान दिए जाते तो उन्हें तत्काल निलंबित कर न्याय के कठघरे में खड़ा कर दिया जाता। इस तथ्य को नजरअंदाज करते हुए कि वह संवैधानिक पद पर काबिज हैं, एक बार नहीं बल्कि अनेकों बार देश में राज्य के विलय, भारतीय संविधान और भारतीय कानून में अविश्वास व्यक्त कर चुके हैं। वह और उनकी पार्टी राज्य से सभी केंद्रीय कानूनों की वापसी चाहती है ताकि राज्य में लोगों के छोटे समूह की एक स्थानीय सरकार फिर से स्थापित हो सके, जैसा कि 9 अगस्त 1953 से पहले यह मौजूद थी, जब शेख अब्दुल्ला को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों के कारण सत्ता से बेदखल कर गिरफ्तार किया गया था। नेशनल कांफ्रेंस ने इस पर एक रिपोर्ट भी तैयार की है। बावजूद इसके कांग्रेस उमर अब्दुल्ला को सहयोग दे रही है। वह राज्य के सर्वोच्च कार्यकारी कार्यालय में उपेक्षा का ढोंग करती है और राष्ट्रीय एकता, अखंडता और देश के संवैधानिक संगठनों पर मुख्यमंत्री के हमले करने पर भी तटस्थ बनी हुई है। यही नहीं, वह उमर अब्दुल्ला के पीछे-पीछे चलती है और उसका बचाव कर रही है। हर कोई जानता है कि गृह मंत्री पी चिदंबरम और विदेश मंत्री एसएम कृष्णा सार्वजनिक रूप से उमर के विलय संबंधी विचारधारा का समर्थन कर चुके हैं। यह तथ्य है कि उमर देश में राज्य के विलय पर अनेकों बार सवाल उठा चुके हैं। समय-समय पर वह राज्य में सेना और अ‌र्द्धसैनिक बलों की उपस्थिति पर भी प्रश्न उठाते रहे हैं और तिरस्कारपूर्ण रूप से आतंकरोधी कानून को क्रूरतम कानून के रूप में खारिज करते रहे हैं। इसके बावजूद पतवारहीन और दिशाहीन कांग्रेस नेतृत्व या तो चुप रही या उमर का यह कहते हुए समर्थन किया कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और हर किसी को अपना विचार व्यक्त करने का अधिकार है। इतना ही नहीं, उमर ने वर्ष 2009 में प्रधानमंत्री और अखिल भारतीय कांगे्रस कमेटी अध्यक्ष और यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी की उपस्थिति में कहा था कि हमें वित्तीय और रोजगार पैकेज की जरूरत नहीं है। हमें राजनीतिक पैकेज की जरूरत है कारण जम्मू-कश्मीर एक राजनीतिक समस्या है। कांग्रेस नेतृत्व इस तथ्य को नजरअंदाज कर कि उमर ने जो कुछ कहा है वह पूरे सिस्टम के खिलाफ एक तरह का विद्रोह है, तटस्थ बना रहा। उमर को कुछ कहने के लिए कांग्रेस नेतृत्व में हिम्मत ही नहीं है। वास्तव में कांग्रेस दोयम दर्जे की पार्टी बनकर रह गई है। राज्य में नेशनल कांफ्रेंस का ही हुक्म चलता है। चार दिन पहले ही कांग्रेस ने सभी सीमाएं लांघ कर चारों तरफ से घिरे उमर को अपना समर्थन दिया है, जिसके खिलाफ पीडीपी ने अभियान छेड़ रखा है और वह उमर को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की मांग कर रही है। पीडीपी का मानना है कि उमर, उनके पिता और केंद्रीय मंत्री फारूक अब्दुल्ला और राज्य के गृह मंत्री नासिर असलम वानी प्रत्यक्ष रूप से नेशनल कांफ्रेंस के प्रमुख कार्यकर्ता हाजी सैयद मोहम्मद यूसुफ की हत्या के लिए जिम्मेदार हैं। यदि निष्पक्ष रूप से जांच की जाए और जांच आयोग यह पता लगाए कि यूसुफ की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है, तो उमर और वानी नहीं बच सकते हैं। पीडीपी इसे हिरासती मौत का मामला मानती है। उसका कहना है कि यूसुफ को रास्ते से हटाया गया, क्योंकि वह बहुत कुछ जानते थे। कांग्रेस जोकि नेशनल कांफ्रेंस के साथ सत्ता में साझीदार है, पीडीपी से सहमत या असहमत होने का उसके पास अधिकार है। हालांकि पीडीपी की परिचालन विधि और मांग के बारे में भी प्रश्न पूछे जा सकते हैं। कारण, यह किस आधार पर तत्काल इस निष्कर्ष पर पहुंच गई कि ए निर्दोष और बी पक्षपातपूर्ण और राजनीतिक रूप से प्रेरित है। उमर का कहना है कि उन्होंने हाई कोर्ट से न्यायिक जांच का अनुरोध किया है ताकि सच सामने आ सके। वहीं, पीडीपी की मांग है कि उमर पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दें। उसका कहना है कि यदि उमर जांच में बेदाग साबित होते हैं तो वह फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल सकते हैं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के लिए तटस्थ रहना बेहतर होगा, लेकिन इसने एक बार फिर यह स्थापित कर दिया है कि इसकी भूमिका सिर्फ उमर अब्दुल्ला का समर्थन करने तक ही सीमित है। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने यूसुफ की मौत पर जारी विवाद पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि उमर ने किसी तरह की दमनात्मक कार्रवाई नहीं की है। उन्होंने खुद ही यूसुफ की हिरासत में मौत की न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं। इससे पता चलता है कि उमर ने कुछ नहीं छिपाया है। उन्होंने तत्काल इसका खंडन करते हुए यह संकेत दिया कि कांग्रेस उमर के साथ दृढ़तापूर्वक खड़ी है। सिंघवी का कहना है कि कांग्रेस को इस मामले में शामिल नहीं होना चाहिए, क्योंकि कुछ विपक्षी पार्टियां पहले से ही छाती पीट रही है। इस मामले में कांग्रेस तटस्थ नहीं है। तथ्य यह है कि कांग्रेस पार्टी अपना रास्ता भूल चुकी है। यह खुद इसे पकड़ने की स्थिति में नहीं है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि कांग्रेस राज्य ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी विश्वसनीयता खोती जा रही है।
(लेखक : जम्मू विवि के सामाजिक विभाग के पूर्व डीन हैं)
               

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