Thursday, July 21, 2011

आईएसआई के जाल में फंसे कई भारतीय, एजेंट की गिरफ्तारी से भड़के अलगाववादी

श्रीनगर/नई दिल्ली। अमेरिका में कश्मीर के मुद्दे पर दुष्प्रचार करने वाले कश्मीरी मूल के अमेरिकी नागरिक गुलाम नबी फाई की गिरफ्तारी से भारत में मौजूद कट्टरपंथी अलगाववादी भड़क गए हैं। अलगाववादी संगठनों ने फाई को बेकसूर बताते हुए भारत और अमेरिका की आलोचना की है।

ऑल इंडिया हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (एपीएचसी) के कट्टरपंथी धड़े के प्रमुख सैयद अली शाह गिलानी ने कहा है कि फाई राजनयिक साजिश का शिकार बनाया गया है। गिलानी ने कहा, 'फाई बेकसूर है और फाई पर लगे आरोप भारत के राजनयिक प्रयासों और साजिश का नतीजा हैं। फाई पिछले 32 सालों से लोगों के दुखदर्द को दुनिया के सामने ला रहे हैं। इसलिए वह भारत की आंखों में खटक रहे थे।' वहीं, एक और अलगाववादी संगठन जेकेएलएफ ने भी फाई की गिरफ्तारी की निंदा की है।

फाई को मिलने वाले फंड का एक बड़ा हिस्सा कश्मीर पर आयोजित होने वाली अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में खर्च होता था। ऐसी कॉन्फ्रेंस में भारत के कई जाने माने लोग हिस्सा ले चुके हैं। इनमें दिलीप पडगांवकर, दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस राजिंदर सच्चर, मशहूर पत्रकार कुलदीप नय्यर और सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा प्रमुख हैं। इस तरह के सेमीनार में हिस्सा लेने वाले ज़्यादातर लोगों को यह नहीं मालूम है कि फाई का आईएसआई के साथ क्या रिश्ता है।

भारत से करीब 11 लोगों ने कश्मीर पर फाई की ओर से आयोजित कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया है। इन सभी की यात्राओं का पूरा खर्च फाई ने उठाया है। जम्मू-कश्मीर के मसले पर भारत सरकार की ओर से नियुक्त वार्ताकार पडगांवकर का कहना है कि उन्होंने 2005 में ऐसी एक सेमीनार में हिस्सा लिया था। उनके मुताबिक वह दो दिन का कार्यक्रम था। दिलीप ने कहा, 'मुझे मालूम नहीं था, इसके पीछे कौन लोग हैं। लेकिन मैं कॉन्फ्रेंस में तभी शामिल हुआ जब मुझे यह बताया गया कि इसमें भारत और पाकिस्तान के कई नामी पत्रकार हिस्सा ले रहे हैं। मैं यह मानता हूं कि अगर मुझे फाई के बारे में थोड़ी भी जानकारी होती तो शायद मैं वहां नहीं जाता।'

वहीं, जम्मू-कश्मीर में अख़बार चलाने वाले वेद भसीन भी फाई के सेमीनारों में अक्सर जाते हैं। लेकिन भसीन इस बाबत चुप्पी साधे हुए हैं। जबकि फाई की एक कॉन्फ्रेंस में हिस्सा ले चुकीं पत्रकार हरिंदर बावेजा ने कहा, उस समय (सेमीनार के समय) वह जांच के दायरे में नहीं थे, अगर रहे होते तो अमेरिकी सरकार उन्हें कैपिटल हिल में सेमीनार आयोजित नहीं करने देते। मैंने एक पत्रकार के तौर पर सेमीनार में शिरकत कर कुछ भी गलत नहीं किया है।

उधर, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कमल मित्र चिनॉय भी फाई के सेमीनार में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किए जा चुके हैं। चिनॉय ने इस बारे में कहा, मैं उनके बुलावे पर कॉन्फ्रेंस में नहीं गया था। लेकिन पाक के कब्जे वाले कश्मीर में मेरी उनसे मुलाकात हो चुकी है। मैं जानता हूं कि वे सभी तरह की विचार रखने वाले लोगों को बुलाते हैं, लेकिन उनमें ज़्यादातर लोगों का पाकिस्तान को लेकर झुकाव रहता है। लेकिन यह अहम है कि उनकी गिरफ्तारी अभी हुई है। इससे साफ है कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच समस्याएं बढ़ रही हैं।

जुलाई, 2007 में सातवीं कश्मीर कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने वाले पत्रकार प्रफुल्ल बिदवई ने कहा कि वह फाई पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि वह निजी तौर पर उनको नहीं जानते हैं।
(दैनिक भास्कर, 21 जुलाई 2011)

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