Monday, July 25, 2011

कश्‍मीर : एक बयान देशद्रोह दूसरा क्‍या है?

सिद्धार्थ राय
बुकर पुरस्कार विजेता एवं सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधति राय ने पिछले दिनों कश्मीर पर एक बयान दिया. उनका कहना था कि कश्मीर कभी भी भारत का अभिन्न अंग नहीं रहा. उन्होंने ये बातें श्रीनगर में आयोजित एक सेमिनार में कहीं. इस बयान पर सरकार की भौंहें तनी और दिल्ली पुलिस को आदेश दे दिया गया कि वह अरुंधति के बयान की अच्छी तरह जांच करे और वे आधार ढूंढे, जिनसे उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जा सके. गौरतलब है कि इसी दौरान दिलीप पडगांवकर ने भी एक बयान दिया. वरिष्ठ पत्रकार और कश्मीर पर बने मध्यस्थ दल की अध्यक्षता कर रहे दिलीप पडगांवकर ने श्रीनगर में कहा कि कश्मीर में शांति बहाली के लिए जारी बातचीत में पाकिस्तान को भी शामिल किया जाना चाहिए. अब सवाल यह है कि यदि अरुंधति राय का बयान देशद्रोह है तो पडगांवकर का बयान क्या है? उनकी जिम्मेदारी कश्मीर में शांति बहाली के लिए रास्ता खुलवाना था या फिर इस पूरे प्रकरण का राजनीतिकरण करना. क्या वह संयुक्त राष्ट्र में नेहरू जी के उस भाषण को भूल गए थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है? बावजूद इसके पडगांवकर का कहना था कि अगर लोग यह मानते हैं कि बिना पाकिस्तान के साथ बातचीत किए हालात सुधारे जा सकते हैं तो यह गलत होगा. पाकिस्तान कश्मीर मामले में 1947 से ही जुड़ा हुआ है, इसलिए शांति बहाली के लिए उससे बातचीत आवश्यक है.

चौथी दुनिया से बातचीत में प्रख्यात इस्लामिक विद्वान कल्बे रुशैद रिजवी ने कहा कि कश्मीर के आम लोग यह कभी नहीं चाहते कि कश्मीर मसले पर किसी भी रूप में पाकिस्तान को शामिल किया जाए।

पडगांवकर के इस बयान पर राजनीतिक बहस तो छिड़ी ही, साथ ही समाज के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों ने भी इस पर आपत्ति जताई. चौथी दुनिया से बातचीत में प्रख्यात इस्लामिक विद्वान कल्बे रुशैद रिजवी ने कहा कि कश्मीर के आम लोग यह कभी नहीं चाहते कि कश्मीर मसले पर किसी भी रूप में पाकिस्तान को शामिल किया जाए. वहां की जनता पाकिस्तान को एक बीमार देश के रूप में देखती है, जो किसी की भी मदद नहीं कर सकता. बहरहाल, पडगांवकर यह बयान भी देते हैं कि कश्मीर में मध्यस्थ दल वहां के लोगों से मीडिया के सामने बातचीत नहीं करेगा. गौरतलब है कि गृहमंत्री पी चिदंबरम ने भी मध्यस्थ दल को निर्देश दिया है कि मीडिया से बातचीत कम ही की जाए. दिलचस्प तथ्य यह है कि पडगांवकर खुद एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. ऐसे में एक पत्रकार का मीडिया के बारे में नकारात्मक बयान देना कहां तक सही माना जा सकता है? वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर इस पर कहते हैं कि पहले तो सरकार कश्मीर मसले पर मीडिया को प्रोत्साहित करती है, फिर इस मामले को मीडिया की नजरों से छुपाने की कोशिश कर रही है. सरकार को ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है.

जाहिर है, शुरू से ही कश्मीर एक संवेदनशील मसला रहा है. अरुंधति राय के बयान को भी जायज नहीं ठहराया जा सकता. हालांकि अरुंधति ने अपने बयान के बारे में यही कहा था कि वह वही कह रही हैं, जो लाखों लोग रोज कहते हैं. लेकिन ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि जब कुछ ऐसा ही बयान सरकार द्वारा बनाए गए मध्यस्थ दल के मुखिया भी देते हैं, तब क्यों सरकार चुप्पी मार जाती है? यह क्यों साफ नहीं किया जाता कि मध्यस्थ दल किसके इशारे पर ऐसा बयान दे रहा है. क्या इस बयान के लिए सरकार, प्रधानमंत्री कार्यालय और कांग्रेस ने अपनी सहमति दी थी? अगर नहीं तो फिर देशद्रोह का मुकदमा चलाने की धमकी किसी एक को ही क्यों दी जाती है?

यह सरकार
गैगिंग गवर्नमेंट बन चुकी है. विरोध में आवाज उठाने वाले लोगों का मुंह बंद कराने की कोशिश इस सरकार की पॉलिसी बन गई है.
- ए बी वर्धन, महासचिव, सीपीआई.

पहले तो सरकार कश्मीर मसले पर मीडिया को प्रोत्साहित करती है, फिर इस मामले को मीडिया की नजरों से छुपाने की कोशिश कर रही है. सरकार को ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है.
- कुलदीप नैयर, वरिष्ठ पत्रकार.


कश्मीर के आम लोग कभी नहीं चाहते कि कश्मीर मसले पर किसी भी रूप में पाकिस्तान को शामिल किया जाए. वहां की जनता पाकिस्तान को एक बीमार देश के रूप में देखती है, जो किसी की भी मदद नहीं कर सकता. -कल्बे रुशैद रिजवी, इस्लामिक विद्वान.
(www.chauthiduniya.com)

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