Wednesday, July 20, 2011

पैसे के दम पर अमेरिकी नेताओं को बहकाता रहा फई

चार्ली सावेज/एरिक स्किमिट। पाकिस्तानी सेना ने खुफिया एजेंसी आइएसआइ की मदद से भारत के प्रति अमेरिकी नीतियों को प्रभावित करने के लिए पिछले दो दशकों में 40 लाख डॉलर (17 करोड़ 80 लाख रुपये) खर्च किए। इस क्रम में आइएसआइ ने अमेरिकी नेताओं को दान के रूप में धनराशि मुहैया कराई। यहां तक कि अमेरिकी चुनावों को भी प्रभावित करने की कोशिश की। पाकिस्तान के एजेंटों का नेटवर्क कितना दमदार था यह इसी से पता चलता है कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर के चुनाव प्रचार में भी फंड दिया। आइएसआइ की इस करतूत का खुलासा ऐसे समय पर हुआ है जब पाकिस्तान के साथ उसके संबंध सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। अमेरिका की संघीय जांच एजेंसी (एफबीआइ) की ओर से मंगलवार को दाखिल आरोप पत्र के अनुसार आइएसआइ ने इस कार्य के लिए वर्जीनिया के फेयरफैक्स में रहने वाले सैयद गुलाम नबी फई की मदद ली। एफबीआइ ने मंगलवार को फई की गिरफ्तारी की और एलेक्जेंड्रिया स्थित अदालत में 43 पेज का हलफनामा दाखिल किया। इसमें फई के साथी जहीर अहमद का नाम भी शामिल है।

एफबीआइ ने दोनों को आइएसआइ का एजेंट बताया है। फई वॉशिंगटन स्थित कश्मीरी-अमेरिकी परिषद का अध्यक्ष है। इस संगठन को कश्मीर सेंटर के नाम से भी जाना जाता है। एफबीआइ का आरोप है कि इस संगठन के जरिए फई ने अमेरिकी कांग्रेस के कई सांसदों को फंड दिया। एफबीआइ पाकिस्तान में फई के चार साथियों के नाम पता लगाने में भी कामयाब रही है। अमेरिकी कानून के मुताबिक कोई भी विदेशी सरकार उसके राजनेताओं को किसी प्रकार का फंड मुहैया नहीं करा सकती। ईस्टर्न डिस्टि्रक्ट ऑफ वर्जीनिया के अटार्नी नील मैकब्राइड ने कहा, आइएसआइ ने फई की मदद से लाखों डॉलर अमेरिकी नेताओं को दिए। फई 20 वर्षो से यह काम कर रहा था। उसका मकसद कश्मीर से जुड़ी अमेरिकी नीतियों में पाकिस्तान के हित साधना था। मैकब्राइड ने बताया कि कश्मीर सेंटर के जरिए फई ने अमेरिकी सांसदों को डॉलर दिए, हाइ-प्रोफाइल सेमिनार कराए और वॉशिंगटन में बैठे नीति-निर्माताओं को अन्य रास्तों से भी लाभ पहुंचाने का कार्य किया। हालांकि वाशिंगटन स्थित पाकिस्तानी दूतावास के प्रवक्ता ने इन आरोपों से इंकार किया है।

उन्होंने कहा, फई पाकिस्तान का नागरिक नहीं है और हमारे दूतावास के पास आइएसआइ या अन्य किसी पाकिस्तानी संस्था की ओर से उसे फंड दिए जाने की कोई जानकारी नहीं है। अमेरिकी अधिकारियों ने बताया कि जहीर अहमद ने 10 अन्य लोगों को भी एकत्र किया। इन सभी ने न केवल कश्मीर सेंटर के लिए धनराशि एकत्रित की बल्कि उसे वितरित कराने में भी सहायता की। एफबीआइ की ओर से दाखिल हलफनामे में इन लोगों के नाम नहीं दिए गए हैं। इन्हें अलग-अलग कोड के जरिए संबोधित किया गया है। हालांकि जांच अभी चल रही है और एफबीआइ ने 17-18 वारंट जारी किए हैं। कश्मीर सेंटर की कार्यशैली के बारे में एफबीआइ ने बताया कि फई अपने साथियों की मदद से अमेरिका में मौजूद भारतीय लॉबी के कामकाज को भी प्रभावित करता रहा। इसके लिए फई और उसके साथी कांग्रेस सांसदों की समितियों के साथ मुलाकात करते। समिति के सदस्यों से निजी बैठकें करते और कैसे भी करके कश्मीर से जुड़ी नीतियों पर पाकिस्तानी हित साधने का लक्ष्य पूरा करते।

हालांकि एफबीआइ ने यह भी दावा किया कि कश्मीर सेंटर से सहायता राशि लेने वाले किसी भी सांसद या अन्य नेता को नहीं पता था कि इसका मकसद क्या है और उनके पास पैसा कहां से आ रहा है? एफबीआइ के हलफनामे में धनराशि लेने वाले किसी सांसद का नाम नहीं दिया गया है, लेकिन फेडरल इलेक्शन कमीशन के डाटाबेस से पता चला कि कश्मीर सेंटर ने नेशनल रिपब्लिकन सीनेटोरियल कमेटी और इसके प्रतिनिधि डेन बर्टन को बड़ी राशि दी। इसके अलावा सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों को भी धनराशि उपलब्ध कराई गई। इनमें वर्जीनिया से जेम्स पी. मोरेन, ओहायो के डेनिस जे. क्यूकिनिक और न्यूयॉर्क के ग्रेगरी डब्ल्यू मीक्स के नाम शामिल हैं। इसके अलावा 2000 से 2008 के बीच पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर और मौजूदा राष्ट्रपति बराक ओबामा सहित विभिन्न चुनावों के लिए 250 बार फंड दिया गया। जहीर अहमद ने कांग्रेस सांसद डेन बर्टन को सबसे ज्यादा फंड मुहैया कराया। बर्टन को अमेरिकी कांग्रेस में बीते 15 वर्षो से कश्मीर मामलों का माहिर कहा जाता है। कश्मीर से जुड़ी नीतियों पर उनके विचारों को पूरा सदन बड़े ध्यान से सुनता है। बर्टन पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और मौजूदा राष्ट्रपति बराक ओबामा से कश्मीर समस्या हल करने के लिए भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता का दबाब डालते हैं। पाकिस्तान लंबे समय से विवाद हल करने के लिए अमेरिकी मध्यस्थता की मांग कर रहा है। वह कश्मीर में जनमत संग्रह के भी पक्षधर रहे हैं।

उनका कहना है कि कश्मीरियों को अपना फैसला खुद करने का अधिकार दिया जाना चाहिए। बर्टन ने आइएसआइ एजेंट के रूप में पहचाने जाने के बाद फई की गिरफ्तारी पर हैरानी जताई है। उन्होंने कहा, मैं फई को 20 वर्षो से जानता हूं, लेकिन उनके पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के साथ संबंध होंगे, मैंने कभी सोचा भी नहीं था। बर्टन ने बताया कि फई ने बॉय स्काउट ऑफ अमेरिका कार्यक्रम के लिए फंड उपलब्ध कराया था। फई और अहमद ने पेन्सिल्वेनिया से रिपब्लिकन सांसद जो पिट्स को भी फंड दिया। उन्होंने 2001 से 2004 में दक्षिण एशिया की यात्रा की थी और इस दौरान वह भारत-पाकिस्तान के प्रतिनिधियों से मिले थे। उन्होंने 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को सलाह दी थी कि वह कश्मीर समस्या हल करने के लिए विशेष दूत नियुक्त करें जिससे भारत-पाक के बीच शांति वार्ता में मदद मिले। ध्यान रहे कि भारत शुरू से कश्मीर मसले पर तीसरे पक्ष का विरोधी रहा है। पिट्स के प्रवक्ता ने बताया कि फई ने उनके कार्यक्रम के लिए 4000 डॉलर उपलब्ध कराए थे। (द न्यूयॉर्क टाइम्स)
(दैनिक जागरण, 21 जुलाई 2011)


पाक को लेकर अमेरिका का दोहरा चरित्र

वाशिंगटन, प्रेट्र : पाकिस्तान को लेकर अमेरिका का दोहरा चेहरा सामने आया है। एक तरफ तो उसका कहना है कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई में ढिलाई बरत रहा है। दूसरी तरफ अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने राजनयिक रेमंड डेविस की रिहाई के दो दिन बाद ऐसे प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान को सहयोगी बताया गया था। गवर्नमेंट एकाउंटेबिलिटी ऑफिस द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में इसका जिक्र किया गया है। इसके मुताबिक, विदेश मंत्रालय ने 29 मार्च को कांग्रेस को एक प्रमाण पत्र दिया, जिसमें पाकिस्तान का समर्थन किया गया था।

इस प्रमाण पत्र से अमेरिका के लिए वित्तीय वर्ष 2011 में पाकिस्तान को सुरक्षा संबंधी सहायता देने का रास्ता साफ हुआ था। दरअसल अमेरिका द्वारा हर वित्तीय वर्ष में पाकिस्तान को मदद देने से पहले विदेश मंत्रालय को प्रमाण पत्र जारी करना होता है कि पाकिस्तान आतंकी नेटवर्क के खात्मे पर अमेरिका के साथ सहयोग करने को प्रतिबद्ध है। विदेश मंत्रालय ने 2011 के वित्तीय वर्ष में पाकिस्तान के लिए 29.6 करोड़ डॉलर (करीब 1300 करोड़ रुपये) की सहायता राशि का आग्रह किया था। रेमंड को इस साल जनवरी में लाहौर में दो पाकिस्तानी नागरिकों की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इस घटना की वजह से अमेरिका और पाकिस्तान के राजनयिक रिश्तों में दरार आ गई थी। उसके बाद अमेरिका द्वारा मारे गए लोगों के परिजनों को धन राशि (ब्लड मनी) का भुगतान करने के बाद 16 मार्च को उन्हें रिहा किया गया था। जबकि 18 मार्च को हिलेरी ने प्रमाण पत्र पर दस्तखत किए थे। इस सौदे के बावजूद अब अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य मदद रोक दी है।
(दैनिक जागरण, 21 जुलाई 2011)


वर्जीनिया में आइएसआइ एजेंट की गिरफ्तारी से पाक फिर बेनकाब

वाशिंगटन, प्रेट्र : मुंबई हमले से लेकर तमाम भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहने वाले पाकिस्तान की कलई एक बार फिर खुल गई है। कश्मीर मुद्दे पर अमेरिकी नीति को प्रभावित करने की पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ की काली करतूत उजागर हुई है। उसके एक एजेंट, कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद गुलाम नबी फई को अमेरिकी संघीय जांच एजेंसी एफबीआइ ने मंगलवार को गिरफ्तार किया। फई के माध्यम से आइएसआइ कश्मीर पर अमेरिकी नीति को प्रभावित करने के लिए प्रति वर्ष 40 लाख डॉलर (17 करोड़ 80 लाख रुपये) खर्च कर रही थी। अमेरिका में पाकिस्तानी मूल के लोगों के बीच डॉक्टर साहब के नाम से पहचाने जाने वाले फई के पाकिस्तान में चार आका हैं जिनसे उसने जून 2008 से 2011 के शुरुआती दिनों तक 4000 बार संपर्क किया।

न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार फाई के अनुदानों का अधिकांश हिस्सा दो भागों में अमेरिका गया। इंडियाना के रिपब्लिकन प्रतिनिधि डेन बर्टन और राष्ट्रीय रिपब्लिकन सीनेटोरियल समिति को। बर्टन कश्मीर मसले पर काफी मुखर रहे हैं और कश्मीर का फैसला कश्मीरियों के मत से कराने की भी बात कह चुके हैं। अमेरिका में राजनीतिक उम्मीदवारों के विदेशी सरकार से अनुदान लेने पर प्रतिबंध है। एफबीआइ ने फई को मंगलवार को वर्जीनिया स्थित उसके आवास से गिरफ्तार करने के कुछ घंटे बाद एलेक्जेंड्रिया की अदालत में पेश किया। अदालत में दायर हलफनामे मे एजेंसी ने कहा कि अमेरिकी की कश्मीर नीति को प्रभावित करने के लिए आइएसआइ ने बीते दो दशक में लाखों डॉलर खर्च किए हैं। 43 पन्नों का हलफनामा फई और एक अन्य अमेरिकी नागरिक 63 वर्षीय जहीर अहमद को पाकिस्तानी एजेंट बताते हुए दाखिल किया गया है। जहीर पाकिस्तान में रहता है, जिसके जरिए आइएसआइ फई को अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए धन उपलब्ध कराती है।

एफबीआइ के अनुसार फई की गतिविधियों के संचालन का खर्च आइएसआइ वहन करती है। हलफनामे में पाकिस्तान में फई के चार आकाओं ब्रिगेडियर अब्दुल्ला, जावेद अजीज खान उर्फ राठौर उर्फ अब्दुल्ला उर्फ निजामी मीर, तौकीर महमूद बट्ट और सोहेल महमूद उर्फ मीर का नाम लिया गया है। हलफनामे के अनुसार ब्रिगेडियर अब्दुल्ला कश्मीर मामलों की देखरेख करने वाला आइएसआइ अफसर है। फई अपने आकाओं के निर्देशानुसार ही काम करता रहा है। जावेद अजीज खान ने 2006 से 2011 के बीच 2000 बार फई को फोन किए। 62 वर्षीय अमेरिकी नागरिक फई वाशिंगटन स्थित कश्मीरी अमेरिकी समिति का अध्यक्ष है। अमेरिकी नीति को प्रभावित करने के प्रयासों का दोषी पाए जाने पर उसे पांच साल की सजा हो सकती है। मामले की अगली सुनवाई गुरुवार को होगी। पाकिस्तान सरकार यानी आइएसआइ और सेना एफबीआइ की विशेष एजेंट सारा वेब्ब लिंडेन ने कहा, फई 20 वर्षो से भी ज्यादा समय से पाकिस्तानी सरकार के निर्देशों पर काम कर रहा है।

पाकिस्तानी सरकार लंबे समय से अमेरिका में अपने पक्ष में प्रचार करने का निर्देश देने के अलावा अनुदान भी दे रही है। लिंडेन ने अदालत में कहा कि पाकिस्तान की सरकार से उनका आशय मुख्य रूप से आइएसआइ और पाकिस्तानी सेना से है। आइएसआइ तैयार करती थी गुलाम नबी फई के भाषण वाशिंगटन, प्रेट्र : कश्मीरी-अमेरिकी परिषद (केएसी) में सैयद गुलाम नबी फई जो भाषण देता था या उसके बैनर तले वक्तव्य जारी करता था, उसका लगभग 80 फीसदी हिस्सा आइएसआइ उसे तैयार करके भिजवाती थी।। जबकि 20 फीसदी बातें फई खुद जोड़ लिया करता था। अदालत में दायर हलफनामे में एफबीआइ ने यह बात कही है।

हालांकि फई ने इससे इंकार किया है कि उसका आइएसआइ से कोई संबंध है। अदालत में पेश दस्तावेजों में कहा गया है कि इस साल 22 मार्च को भी एफबीआइ एजेंटों ने फई से इस मामले में पूछताछ की थी। तब फई ने कहा था कि वह किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं जानता, जिसका संबंध पाकिस्तान से हो। उसने कहा था कि वह यह भी नहीं जानता कि क्या अमेरिका में आइएसआइ का कोई प्रतिनिधि है? जबकि एफबीआइ ने एक खुफिया गवाह के हवाले से कहा है कि आइएसआइ ने फई को इसलिए इस काम के लिए चुना क्योंकि उसका पाकिस्तान से प्रत्यक्ष संबंध नहीं है।

(दैनिक जागरण, 21 जुलाई 2011)

No comments:

Post a Comment