Monday, November 28, 2011

गठबंधन में गांठ


प्रो. हरिओम
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के चाचा और नेशनल कांफ्रेंस अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला के भाई मुस्तफा कमाल अपने बड़े भाई व भतीजे के खिलाफ निरंतर विष वमन कर रहे हैं। मुस्तफा उनसे काफी नाराज हैं। कारण, उनका मानना है कि कुछ लोग जिनमें उमर भी शामिल हैं, उनके खिलाफ षड्यंत्र रचकर उन्हें अतिरिक्त महासचिव और मुख्य प्रवक्ता के पद से बेदखल कर दिया है। वह नेकां पार्टी में 30 दिनों तक रहे, लेकिन सार्वजनिक रूप से कांग्रेस और कांग्रेस नेतृत्व की निंदा करने में मशगूल रहे। इसी कारण उनके सगे भाई फारूक ने उन्हें दोनों पदों से मुक्त कर दिया।

ऐसा मानना है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआइसीसी) के आग्रह पर फारूक ने अपने भाई के खिलाफ यह कार्रवाई की। कहा जाता है कि अगर फारूक ने अपने भाई की कुर्बानी नहीं दी होती तो उमर को अपने पद से हाथ धोना पड़ता। यह कहना कठिन है कि यह महज अटकलबाजी है या फिर कटु तथ्य। लेकिन कोई भी निश्चित रूप से यह कह सकता है कि मुस्तफा को राजनीतिक कारणों से हटाया गया। स्पष्टतया उन्हें स्थानीय कांग्रेस नेतृत्व और एआइसीसी महासचिव राहुल गांधी को शांत करने के लिए हटाया गया ताकि नेकां-कांग्रेस गठबंधन अक्षुण्ण रहे और उमर की सरकार बनी रहे।

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस नेतृत्व पर नेकां के विष वमन बंद करने के बाद जेकेपीसीसी के कुछ कार्यकर्ताओं ने नेकां के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। उदाहरणस्वरूप, जेकेपीसीसी उपाध्यक्ष और महासचिव का 18 और 19 नवंबर को दिया गया बयान। 18 नवंबर को जेकेपीसीसी के एक उपाध्यक्ष ने तिरस्कारपूर्ण रूप से नेकां को देशद्रोहियों की पार्टी के तौर पर खारिज कर दिया और इसके दोहरे मापदंड का भंडाफोड़ करने की धमकी दी। प्रो. सैफुद्दीन सोज जो इसके अध्यक्ष हैं, जेकेपीसीसी उपाध्यक्ष के काफी करीब हैं। उनका संदेश बिल्कुल स्पष्ट और मुखर था। उन्होंने यह संदेश दिया कि कांग्रेस और नेकां के बीच मधुर संबंध नहीं बिगड़े हैं। सोज ने श्रीनगर से नेकां को अपना संदेश भेजा। मानों यह सब नेकां नेतृत्व को परेशान करने, उपहास उड़ाने और निराश करने के लिए पर्याप्त नहीं था।

जेकेपीसीसी के एक महासचिव ने भी नेकां की अहितकारी भाषा में निंदा की। 19 नवंबर को नई दिल्ली में उन्होंने न केवल एआइसीसी अध्यक्ष को नेकां-कांग्रेस गठबंधन सरकार की कार्य निष्पादन की पुनर्समीक्षा करने के लिए कहा, बल्कि नेकां और इसके नेतृत्व के खिलाफ कटु भाषा का भी प्रयोग किया। उन्होंने नेकां को उन लोगों की पार्टी कहकर खारिज कर दिया जो नरम अलगाववाद में विश्वास रखते हैं। उन्होंने कहा कि राज्य की सुरक्षा और अखंडता खतरे में है। नेकां नेताओं की राजनीतिक वाक्पटुता से सुरक्षा ढांचा कमजोर पड़ गया है। इससे पहले कि काफी देर हो जाए, आज की स्थिति ऐसी ही पुनर्समीक्षा की मांग करती है। यह समीक्षा न केवल सुरक्षा ढांचाओं बल्कि सभी मोर्चो पर राज्य की स्थिति, कश्मीरी पंडितों की वापसी, मानवाधिकारों और राजनीतिक मेलजोल और कमजोर स्वास्थ्य को दर्शाते हुए होनी चाहिए। वह स्वर्गीय इंदिरा गांधी की जयंती पर अधिवक्ताओं द्वारा आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि नेकां अपनी असफलता और अयोग्यता को ढंकने के लिए दोहरी भाषा का प्रयोग कर रही है। उन्होंने निराशा जताते हुए कहा कि कश्मीरी पंडितों की जातीय सफाई से यहां की जनसांख्यिकी गड़बड़ा गई है, जिससे कश्मीर के हालात चौराहे पर खड़े व्यक्ति ही तरह हो गया है। इससे समाज अस्त-व्यस्त होकर रह गया है और लोगों को शारीरिक व मानसिक कष्ट झेलना पड़ रहा है। बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और लाचारी से राज्य बर्बादी के कगार पर पहुंच गया है। वह यहीं नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा कि पार्टी हाईकमान के लिए यह बढि़या अवसर है। उन्हें झांसा देने वालों और लोगों को मूर्ख बनाने का प्रयास करने वालों को दरकिनार कर मुख्यमंत्री को हटा देना चाहिए।

उन्होंने सुझाव दिया कि कांग्रेस पार्टी को मुख्यमंत्री पद का दावा करना चाहिए और इसके लिए योग्य, ईमानदार और स्पष्टवादी व्यक्ति को अविलंब इस पद के लिए नामांकित करना चाहिए। इससे पता चलता है कि राज्य की राजनीति में ऊथल-पुथल मचा हुआ है और जल्द ही उमर सत्ता से बेदखल हो जाएंगे और कोई कांग्रेसी नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होगा। सबसे महत्वपूर्ण नेकां का देशद्रोहियों, झांसा देने वालों और नरम अलगाववादियों की पार्टी के रूप में खारिज करना है, जिसने एक पार्टी के रूप में सुरक्षा ढांचों को कमजोर किया है। ये उपाधियां आम कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने नेकां के लिए प्रयोग नहीं किया है, बल्कि वरिष्ठ पार्टी कार्यकर्ताओं ने सार्वजनिक रूप से इसका इस्तेमाल किया है। कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने खुद नेकां की निंदा की है। उन्होंने रणनीति बनाकर उमर नेतृत्व वाली सरकार को गिराने के लिए नेकां की निंदा की है और एक गैर नेकां नेता की अध्यक्षता में नई सरकार बनाने की पेशकश की है।

तथ्य यह है कि जेकेपीसीसी उपाध्यक्ष और महासचिव ने उनकी बातों को सेंसर नहीं किया है। उन्होंने जो कुछ कहा है वह विभिन्न मीडिया रिपोर्टों से मेल नहीं खाता है। स्थानीय कांग्रेसियों ने नेकां नेतृत्व के खिलाफ किसी तरह की टिप्पणी न करने का निर्देश दिया है। यह महज एक संकेत है जिसका अभिप्राय नेकां को बेदखल करना है। इसकी प्रतिक्रिया में नेकां क्या कदम उठाती है, इस पर गौर करना रुचिकर होगा।
(लेखक : जम्मू विवि के सामाजिक विभाग के पूर्व डीन हैं।) 

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