Monday, August 1, 2011

संदेह के घेरे में निष्ठा

प्रो. हरिओम
अमेरिका ने अपने हितों के लिए एक आवश्यक और संदेहरहित कार्य किया है। 19 जुलाई को फेडरल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टीगेशन (एफबीआइ) ने अमेरिकी नागरिक और पाकिस्तानी कश्मीरी एजेंट गुलाम नबी फई जो अमेरिकन कश्मीर कमेटी (एकेसी) के निदेशक हैं, को गिरफ्तार कर आंग्लो-अमेरिकन-एशियन व‌र्ल्ड को हैरत में डाल दिया है। फई 1990 से अमेरिका में रह रहे हैं। एफबीआइ का आरोप है कि वह किसी योग्य अधिकारी से पंजीकरण करवाए बिना पाकिस्तान के लॉबिस्ट के रूप में वाशिंगटन डीसी में पाकिस्तान सरकार की ओर से जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर अमेरिका के लोगों की राय को प्रभावित कर रहे थे।
फई पर लगे आरोप गंभीर हैं और उन्हें अमेरिका में भारत विरोधी जमीन तैयार करने के लिए पाकिस्तानी धन का इस्तेमाल करने का दोषी पाया गया है। फई ने लिखित में विभिन्न भारतीयों के बीच अपने संबंधों को उजागर किया है, जिसमें जम्मू-कश्मीर के मुख्य वार्ताकार दिलीप पडगांवकर भी शामिल हैं। भारतीय अभिजात्य वर्ग के ये प्रमुख लोग पाकिस्तानी आतिथ्य का लुत्फ उठा चुके हैं और पाक प्रायोजित घृणास्पद कार्य और भारत को तोड़ने के अभियान को वैधता प्रदान कर चुके हैं। एकेसी में आइएसआइ प्रायोजित समारोहों में भारत का जिक्र अति निर्मम और लोकतंत्र विरोधी देश के रूप में किया जाता है। वाशिंगटन डीसी, बु्रसेल्स (बेल्जियम), लंदन और स्कॉटलैंड यार्ड (यूनाइटेड किंगडम) से मिली रिपोर्ट और आरोपपत्र से भारतीयों के नजरिये का पता चलता है कि कैसे कुछ भारतीय स्तंभकार आइएसआइ और कश्मीरी अलगाववादियों के जरिये अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे थे। साथ ही पाकिस्तानी विचारधारा का प्रचार कर रहे थे कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग नहीं है। यह विवादित क्षेत्र है, जिस पर पाकिस्तान वैध दावा कर रहा है। इस प्रकार तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा था कि इस्लामाबाद और फई कुछ भारतीयों को सम्मेलन में भाग लेने के लिए राजी कर उनकी सेवाओं का लाभ उठा रहे थे।
सच यह है कि भारत विरोधी तत्वों ने पाकिस्तान को देश से बाहर पांच सितारा होटलों में ठहरने और मौज-मस्ती करने के लिए शिक्षित किया था। राष्ट्रीय हितों की अदला-बदली एक फायदेमंद कारोबार बन गया था। इसलिए इस्लामाबाद और इसके खूंखार आइएसआइ और फई, फारूक कटवाड़ी जैसे इंसानों को इसका श्रेय देना अपराध होगा, जो अपने तंत्रों को यूरोप, अमेरिका और मुस्लिम देशों के एक छोर से दूसरे छोर तक पाकिस्तान और इसके भारतीय कश्मीरी मातहतों जैसे सैयद अली शाह गिलानी और मीरवाइज उमर फारूक के अनुरोध पर विकसित कर रहे थे। यह अलग कहानी है कि केंद्र सरकार पाकिस्तान को धोखेबाज, अलगाववाद समर्थक और भारत विरोधी एजेंटों को कानून के कठघरे में खड़ा करने की बात कहकर देश के प्रति अपने दायित्व के निर्वहन में नाकाम साबित हुई है।
एक बार मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने इस मुद्दे पर कोई भी टिप्पणी करने से इसलिए इनकार कर दिया था कि यह एक निजी मामला है। नए केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह को इसका पूरा श्रेय जाता है कि उन्होंने थिंपू (भूटान) में यह कहने की हिम्मत जुटाई कि फई की गिरफ्तारी का समय समाप्त हो चुका था। पूरे देश में लोग गुस्से से उबल रहे हैं और उनका मानना है कि अधिकारियों को एकेसी से संबंध रखने वालों और लंदन, ब्रुसेल्स व स्कॉटलैंड आधारित संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। कश्मीरी अलगाववादियों की धरपकड़ से इसकी शुरुआत होनी चाहिए, जो कि केंद्र सरकार की उदारता का लाभ उठाकर देश के बाहर यात्रा करते हैं और फई जैसे लोगों के सम्मेलनों में भाग लेकर गणतंत्र के बारे में बुरा-भला कहते हैं और इसे बदनाम करते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि फई के सेमिनारों में मुख्य वार्ताकार दिलीप पडगांवकर के भाग लेने पर वार्ताकार एमएम अंसारी ने बड़ी निर्भीकता से अपनी बात रखी है। उनका कहना है कि यदि यह सच है कि पडगांवकर को ऐसी गतिविधियों के बारे में जानकारी थी तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
अंसारी ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या वह पडगांवकर के सेमिनार में भाग लेने के बारे में अनभिज्ञ थी या फिर कश्मीर पर मुख्य वार्ताकार के रूप में उनकी नियुक्ति के बारे में पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया गया? यह वैध प्रश्न है और इससे आसानी से नहीं बचा जा सकता। वास्तव में, अंसारी ने व्यावहारिक रूप से उन्हें पेपर सौंपने और 13 अक्टूबर 2010 से वह जिस कमेटी के अध्यक्ष हैं, उसे अलविदा करने के लिए कहा है। जब संवाददाताओं ने पडगांवकर से इस विवाद पर टिप्पणी करने के लिए कहा तो उनकी प्रतिक्रिया थी कि वह काफी समय पहले फई के निमंत्रण पर यात्रा किए थे।
फई की आइएसआइ से संबद्धता के बारे में उनके दिमाग में विचार ही नहीं आया, क्योंकि उस समय गूगल उपलब्ध नहीं था। क्या किसी वरिष्ठ पत्रकार का ऐसा सूचना स्रोत हो सकता है? पडगांवकर देश के शीर्ष राय देने वाले नेताओं में से एक माने जाते हैं। वह ऐसे व्यक्ति हैं कि एक साक्षात्कार में शेखी बघारते हुए यह भी कह चुके हैं कि वह देश में दूसरे सबसे महत्वपूर्ण काम का जिम्मा संभाले हुए हैं। वह तीन दशकों से अधिक समय से जनमत को प्रभावित कर रहे हैं और दुनिया के विभिन्न भागों से रिपोर्टिग कर रहे हैं, जिसमें पेरिस भी शामिल है। यही नहीं, वह जम्मू-कश्मीर पर कई वर्षो से लिख रहे हैं। अब उनका कहना है कि वह फई के इस्लामाबाद से संबंधों के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। सचमुच यह हास्यास्पद और दयनीय बचाव है।
(लेखक जम्मू विवि के सामाजिक विभाग के पूर्व डीन हैं)

(दैनिक जागरण, 31 जुलाई 2011)

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