Monday, August 1, 2011

स्वशासन का दुष्चक्र

दयासागर

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने अक्टूबर 2008 में स्वशासन की अवधारणा प्रस्तुत कर जेएंडके में एक अतिरिक्त क्षेत्रीय बहस की शुरुआत कर दी है। पीडीपी का यह नजरिया कितना न्यायोचित है, इसे केंद्र सरकार को जांचने की जरूरत है। साथ ही इस पर गौर करने की भी जरूरत है कि वर्ष 2008 के बाद इस मामले में कितनी प्रगति हुई है। ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र सरकार को स्वशासन के नजरिये में कोई चीज गलत नजर नहीं आती है। कोई भी प्रासंगिक सोच वाला व्यक्ति मुख्यधारा की पार्टी के रूप में पीडीपी से अंतरराष्ट्रीय प्रभावों को देखते हुए जेएंडके मामलों पर बड़ी सावधानी से संबोधित करने की बात कहेगा। पीडीपी का आशय वर्ष 1945 से है, खासकर 1980 से राष्ट्रीय नीति क्षेत्राधिकार का संघर्ष बढ़ा है। ध्रुवीकरण ने अधिक ताकतवर देशों को उनके मानकों और अभ्यासों का दुनिया के दूसरे भागों में नेतृत्व किया है। ऐसे नजरिये से स्पष्ट है कि पीडीपी देश के आंतरिक मुद्दों की ओर कम और राज्य के मुद्दों पर अधिक ध्यान देती है।
स्वशासन दस्तावेज के अनुच्छेद 15 में देश की आजादी के बाद के सांगठनिक स्तंभ-धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और लोकतंत्र के बारे में जिक्र किया गया है। अनुच्छेद 16 में पीडीपी का कहना है कि 1. ये तीनों स्तंभ कमजोर हो चुके हैं 2. धर्मनिरपेक्षता को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है 3. समाजवाद का परित्याग कर दिया गया है 4. जेएंडके के दृष्टिकोण से लोकतंत्र का चरित्र बदल गया है 5. राज्य के लिए लोकतांत्रिक प्राधिकरण के तौर पर इसका परिचालन किया गया है 6. भारत देश और राष्ट्रीयता भी बदलाव के दौर से गुजरा है। भारतीय राज्य के बारे में इस तरह के निष्कर्ष को जेएंडके के प्रति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व सदस्य, देश के पूर्व गृह मंत्री और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री के नजरिये से लिया गया है, जिन्होंने कांग्रेस से सत्ता में हिस्सेदारी की थी। ऐसे परिणामों पर तत्काल ध्यान देने और स्पष्टीकरण की जरूरत है। साथ ही केंद्र सरकार और भारतीय नेताओं द्वारा इसे नकारने की जरूरत है, लेकिन यह नहीं किया गया है बल्कि यह अनुत्तरित है। ऐसे आरोपों के विरोध से उन लोगों की स्थिति मजबूत हुई है जो कश्मीर घाटी में भारत की सत्यता और उसके इरादों के खिलाफ लोगों को उकसाते हैं। निश्चित रूप से ये आरोप साधारण नहीं हैं। अनुच्छेद 17 में पीडीपी भारतीयता को मुख्य चुनौती के रूप में देखती है, लेकिन केंद्र को इसकी परवाह नहीं है। स्वशासन दस्तावेज में भारतीय संघ पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं और धर्म जैसे संवेदनशील मुद्दों पर कड़े कदम उठाने तक की बात कही गई है। अनुच्छेद 18 में पीडीपी का आरोप है कि 1. देश में दबी-कुचली जाति और समुदाय फिर से उभरने लगे हैं 2. भारत में हिंदुओं के अधिकारों में बढ़ोतरी हुई है 3. देश में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रीयता अत्यंत दबाव में है 4. हिंदू सांप्रदायिकता या राष्ट्रवादियों ने धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवादियों की वापसी के बाद अपनी मजबूत पकड़ बना ली है। ये बहुत ही गंभीर आरोप हैं और अलगाववादियों के लाभ के लिए कश्मीरी अवाम को द्विराष्ट सिद्धांत पर उद्वेलित कर सकते हैं। पीडीपी ने जिस तरह हिंदू धर्म के अनुयायियों का हवाला दिया है उसे राज्य और देश के लोगों को हल्के में नहीं लेना चाहिए। अनुच्छेद 20 के मुताबिक देश में जब कभी राष्ट्रीयता दबाव में होता है तो यह हिंदुत्व को उजागर करता है।
कोई भी व्यक्ति मुफ्ती मोहम्मद सईद से यह पूछ सकता है कि वह ऐसा क्यों महसूस करते हैं कि जब कभी भारतीय राष्ट्रीयता दबाव में होता है तो इससे सिर्फ हिंदू ही परेशान होते हैं? मुफ्ती यह कैसे आरोप लगा सकते हैं कि भारतीय राष्ट्रीयता हमेशा हिंदू धार्मिक संवेदनशीलता से छल करता है? परोक्ष रूप से पीडीपी अपने स्वशासन दस्तावेज में हिंदुओं पर भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को कमजोर करने का आरोप लगाती है। ऐसे नजरिये से कश्मीरी मुस्लिमों में हिंदुओं के प्रति घृणा का संदेश पहुंचता है। मालूम होता है कि इस तथ्य के बावजूद मुफ्ती इस बात को भूल गए हैं कि इस्लामिक पाकिस्तान का निर्माण धर्म के आधार पर हुआ था। पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी बड़ी तेजी से कम हुई है, जबकि भारत में मुस्लिमों की आबादी सामान्य रूप में बढ़ी है। भारत में संवैधानिक रूप से मुस्लिमों की आबादी के लिए विशेष प्रावधानों की व्यवस्था की गई है। यही नहीं, मुस्लिमों की देखरेख नहीं करने के कारण पाकिस्तान से पूर्वी बंगाल अलग होकर बांग्लादेश बन गया है।
केंद्र सरकार को पीडीपी के इन आशयों को हल्के में नहीं लेना चाहिए और बिना किसी विरोध के अब से तीन वर्षो के लिए इसे छोड़ देना चाहिए। अनुच्छेद 20 में पीडीपी का कहना है कि भारतीय राष्ट्रीयता का प्रोजेक्ट दुष्कर है। कारण, एक आम इतिहास का होना असंभव है। अनुच्छेद 30 में, भारतीय राज्य को यह ध्यान में रखना चाहिए कि अग्रसारित करने के लिए सिर्फ यही रास्ता है-1. क्या यह गैर सैन्य रास्ता है 2. आतंकवाद के दौर में एक सबक तो जरूर मिला है कि बंदूक किसी समस्या का हल नहीं है। चाहे यह सैनिकों के हाथ में हो या फिर आतंकियों के हाथ में। पीडीपी आगे कहती है कि 1. अनुच्छेद 39 के मुताबिक भारत, पाकिस्तान व अंतरराष्ट्रीय नजरिये को जम्मू-कश्मीर के लोगों के समक्ष उजागर नहीं किया गया है। 2. अनुच्छेद 43 के मुताबिक ऐतिहासिक कारणों से जेएंडके राज्य भारत और पाकिस्तान का महत्वपूर्ण राजनीतिक साझीदार है। 3. अनुच्छेद 49 के अनुसार इसकी सराहना करने की जरूरत है कि राजनीतिक पदों का दायरा आत्म निर्णय और संप्रभुता, विखंडन और क्षेत्रीय अखंडता, विभाजन और सह अस्तित्व और संघर्ष प्रस्ताव की लोकतांत्रिक विधियां और व्यक्तित्व के आदर पर आधारित प्रबंधन और समूह अधिकारों के बीच है। 4. जब देश की आजादी का कानून पारित हुआ था और भारत व पाकिस्तान नामक दो देश अस्तित्व में आए थे तो जेएंडके एक स्वतंत्र देश बन गया था। इसी कारण जेएंडके पूर्णरूपेण अधिकार प्रदत्त भारतीय राज्यों की श्रेणी में आता है। अगर केंद्र सरकार राज्य में शांति बहाली की इच्छुक है तो उसे पीडीपी के स्वशासन दस्तावेज में दिए गए विवरणों पर गौर करने की जरूरत है। केंद्र सरकार को स्वशासन के दस्तावेज में लगाए गए आरोपों को स्वीकार करने या फिर स्पष्ट रूप से खारिज करने की जरूरत है।
(30 जुलाई 2011 दैनिक जागरण)

(लेखक जम्मू-कश्मीर मामलों के अध्येता हैं)

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