Thursday, August 4, 2011

डॉक्टरों की हड़ताल

मेडिकल कॉलेज में आए दिन डॉक्टरों पर लापरवाही के आरोप लगने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। लेकिन बीते कुछ समय से इनसे निपटने के लिए जीएमसी प्रशासन ने जिस प्रकार से रवैया अपनाया हुआ है उससे डॉक्टरों में रोष पनपना स्वभाविक है। यह बात किसी से नहीं छुपी है कि दो दिन पहले एक युवक की मौत के बाद डॉक्टरों के खिलाफ लापरवाही की शिकायत को किसी ने भी गंभीरता से नहीं लिया। होना तो यह चाहिए था कि उसी समय परिजनों के आरोपों को भी प्रशासनिक अधिकारी सुनते और संबंधित डॉक्टरों को भी बिठाकर उनका पक्ष लेते, मगर ऐसी पहल नहीं होने के कारण मामले ने तूल पकड़ा और बीते सोमवार को जिला प्रशासन को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा। विडंबना यह है कि प्रशासन ने जांच कमेटी तो गठित कर दी, मगर डॉक्टरों की बात न सुनकर मामले को शांत करने के स्थान पर और बढ़ा दिया। विगत दिवस जूनियर डॉक्टरों का अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाना इसका द्योतक है।
डॉक्टरों के इस कदम से नि:संदेह सबसे अधिक परेशानी मरीजों को करनी पड़ रही है। मेडिकल कॉलेज अस्पताल जम्मू संभाग का सबसे बड़ा अस्पताल है और इस पर पचास लाख से अधिक लोग निर्भर हैं। हालांकि डॉक्टरों ने इमरजेंसी सेवाओं को हड़ताल से अलग रखकर मरीजों को थोड़ी बहुत राहत जरूर दी है, मगर वार्डो में डॉक्टरों के काम नहीं करने के कारण मरीजों को स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं जिससे इलाज के लिए आने वाले मरीज तो दरबदर हो ही रहे हैं, उपचाराधीन मरीज भी प्राइवेट क्लीनिकों का रुख कर रहे हैं। सबसे अधिक परेशानी विशेष इलाज के लिए दूरदराज से जीएमसी अस्पताल में आए गरीब तबके के लोगों को झेलनी पड़ रही है।
यहां प्रश्न यह उठता है कि ऐसे हालात ही क्यों उत्पन्न हुए? डॉक्टरों की दो प्रमुख मांगों में उन्हें सुरक्षा उपलब्ध करवाना और जांच कमेटी को भंग करना है। सुरक्षा देने की मांग उनकी वर्षो से चली आ रही है। प्रशासन भी भली-भांति यह जानता है कि अगर अस्पताल में सुरक्षा के उचित प्रबंध हों तो डॉक्टरों और मरीजों के बीच होने वाली हाथापाई की घटनाओं पर स्वयं ही अंकुश लग जाएगा, लेकिन अभी तक ऐसे कदम नहीं उठाए गए। प्रशासन को चाहिए कि वह डॉक्टरों की मांगों पर भी गंभीरता से चर्चा करे। वहीं डॉक्टरों को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि उनका पेशा लोगों की जिंदगी के साथ जुड़ा हुआ है और जरा सी अनदेखी भी मरीजों की जान ले सकती है।
(Courtesy : Local Editorial, Dainik Jagran, 4 Aug. 2011)

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