कश्मीर में आतंकवाद से त्रस्त होकर राजधानी दिल्ली आए 3353 विस्थापित कश्मीरी पंडितों का रिकार्ड राजस्व विभाग से गायब हो चुका है, मगर उन्हें मानवीय सहायता के रूप में दी जाने वाली राशि अभी भी बांटी जा रही है। इस चौंकाने वाले तथ्य का खुलासा सूचना के अधिकार कानून (आरटीआइ) के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में राजस्व विभाग के अधिकारियों ने किया है। इस खुलासे के बाद राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं कि प्रति माह विस्थापितों को दी जाने वाली लाखों रुपये की मानवीय सहायता राशि किसकी जेब में जा रही है। जबकि यह रिकार्ड कब से गायब है इसकी भी सरकारी जवाब में कोई जानकारी नहीं दी गई है। कश्मीर में कुछ वर्ष पहले आतंकवाद विस्थापित कश्मीरी पंडित शरणार्थियों के रूप में बड़ी संख्या में राजधानी आ गए थे। उन्हें राजधानी एवं इसके आसपास के क्षेत्रों में फिर से बसने में सरकार ने मदद की थी। उस समय सरकार की ओर से विस्थापित कश्मीरी पंडितों को प्रति व्यक्ति 1250 रुपये और प्रति परिवार पांच हजार रुपये की राशि मानवीय सहायता के रूप में देने की योजना शुरू की गई थी। यह राशि अब भी दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग की रिलीफ ब्रांच द्वारा विस्थापित कश्मीरी पंडितों को जारी की जा रही है। प्रति वर्ष यह राशि 50 लाख रुपये के ऊपर है। और यह गोरखधंधा कितने सालों से जारी है इसकी भी अभी तक कोई जानकारी नहीं दी गई है। कड़कड़डूमा कोर्ट में काम करने वाले पवन कुमार कौल ने इस संबंध में आरटीआइ के तहत राजस्व विभाग से जानकारी मांगी थी। पूछा गया था कि राजस्व विभाग में मानवीय सहायता पाने वाले कितने विस्थापित कश्मीरी पंडितों के नाम दर्ज हैं और उन्हें कितनी राशि मानवीय सहायता के रूप में दी जाती है? इसके अतिरिक्त लाभांवित परिवारों का पता, फोन नंबर एवं अन्य सम्पूर्ण विवरण क्या है? जवाब में राजस्व विभाग की रिलीफ ब्रांच के एसडीएम डीपी राणा ने बताया कि दिल्ली सरकार द्वारा 3353 विस्थापित कश्मीरी पंडितों को मानवीय सहायता राशि दी जा रही है। उन्हें प्रति व्यक्ति 1250 और प्रति परिवार पांच हजार रुपये की राशि दी जाती है। अंतिम प्रश्न के जवाब में एसडीएम ने कहा है कि राजस्व विभाग में किसी भी विस्थापित कश्मीरी पंडित का पूर्ण विवरण, फोन नंबर और पतों का कोई रिकार्ड मौजूद नहीं है। एसडीएम के जवाब से पता चलता है कि कार्यालय से विस्थापित पंडितों का रिकार्ड गायब है।
(dainik jagran),23\06\2011
No comments:
Post a Comment