Saturday, February 25, 2012

बर्फीले तूफान से एलओसी पर बाड़ को नुकसान


श्रीनगर। कश्मीर घाटी में नियंत्रण रेखा के पास बाड़बंदी बर्फीले तूफान से व्यापक रूप से क्षतिग्रस्त हुई है। सेना ने आज कहा कि इसके परिणामस्वरूप घुसपैठ रोकने के तंत्र के लिए नई चुनौती खड़ी हो गयी है। सेना ताजा बर्फीले तूफान की आशंका के चलते नियंत्रण रेखा के समीप कुछ चौकियों को खाली करने की संभावना पर विचार कर रही है।

उत्तरी कमान के लेफ्टीनेंट जनरल के.टी. परनायक ने यहां संवाददाताओं को बताया कि कई क्षेत्रों में बाड़बंदी को व्यापक नुकसान हुआ है विशेषकर शम्सबारी (पर्वतीय) रेंज में नियंत्रण रेखा के पास घुसपैठ रोकने के उपायों के तहत 2004 में बाड़ लगायी गयी थी। यह घुसपैठ रोकने के सेना के प्रयासों में काफी महत्वपूर्ण साबित हुई है।

लेफ्टीनेंट जनरल परनायक ने बताया कि क्षेत्र में इस कदर बर्फ है कि उसमें बाड़ तक ढंक गयी है। उन्होंने कहा, ‘‘यह एक सालाना ढर्रा है लेकिन इस बार बर्फ काफी अधिक है। बाड़ क्षतिग्रस्त हो गयी है। वास्तव में इस कदर बर्फ है कि बाड़ उसके नीचे दब गयी है।

बांदीपोरा जिले में 22 फरवरी को नियंत्रण रेखा के समीप गुरेज सेक्टर में द्वार क्षेत्र में स्थित 109 इंफेंट्री ब्रिगेड के मुख्यालय भारी बर्फीले तूफान की चपेट में आ गया। इसके परिणामस्वरूप 14 सैनिकों की मौत हो गयी जबकि दो अभी तक लापता हैं। इसी दिन गंदेरबल जिले के सोनमर्ग क्षेत्र में सेना के एक शिविर के बर्फीले तूफान की चपेट में आने से तीन और सैनिकों की जान चली गयी।

लेफ्टीनेंट जनरल परनायक के कहा कि बर्फ के पिघलने और गर्मी शुरू होने के बाद सेना को बाड़ को निकालने और उसकी मरम्मत के लिए एक बड़े काम को अंजाम देना होगा। उन्होंने कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि इसे समय पर किया जायेगा।

अमरनाथ यात्रा के लिए चिकित्सा प्रमाण-पत्र अनिवार्य


अमरनाथ यात्रा के लिए चिकित्सा प्रमाण-पत्र अनिवार्य
जम्मू। श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड (एसएएसबी) ने फैसला किया है कि अब से अमरनाथ यात्रा के लिए पंजीकरण कराने के समय श्रद्धालुओं को चिकित्सा प्रमाण-पत्र दिखाना होगा। बोर्ड ने यह फैसला यात्रा पर जाने वाले कई श्रद्धालुओं की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण हर साल मौत के बढ़ते मामलों को देखते हुए किया है।

बोर्ड के आधिकारिक प्रवक्ता ने कहा कि कल शाम हुई श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड की एक उच्चस्तरीय बैठक में यह फैसला किया गया। इस बैठक की अध्यक्षता जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एन.एन. वोहरा ने की। बैठक में हृदयाघात से मरने वाले श्रद्धालुओं के संबंध में चर्चा की गयी।

प्रवक्ता ने कहा, ‘‘बोर्ड ने हृदय संबंधी समस्याओं के कारण मारे जाने वाले श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या पर चर्चा की। 2009, 2010 और 2011 में क्रमशः 45,68 और 107 लोगों की मौत हुई। इस स्थिति को देखते हुए बोर्ड ने तय किया कि यात्रा के लिए पंजीकरण कराने के समय श्रद्धालुओं को किसी पंजीकृत चिकित्सक द्वारा जारी चिकित्सा प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा।”

प्रवक्ता ने कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने भी श्रद्धालुओं द्वारा यात्रा से पूर्व चिकित्सा प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने संबंधी सलाह दी थी। इस साल अमरनाथ यात्रा 37 दिनों की होगी। यह यात्रा 25 जून से शुरू होकर दो अगस्त को समाप्त होगी। दो अगस्त को रक्षाबंधन भी है। यात्रा का यह कार्यक्रम एसएएसबी की एक उप-समिति ने तय किया है। इस समिति के अध्यक्ष आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर हैं।

Thursday, February 23, 2012

‘सिलसिलेवार गलतियों का नतीजा है कश्मीर समस्या’


‘सिलसिलेवार गलतियों का नतीजा है कश्मीर समस्या’
नई दिल्ली। पूर्व विदेश मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने बुधवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर की समस्या भारत की सिलसिलेवार गलतियों का नतीजा है। जनवरी 1948 को भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र जाना सबसे बड़ी गलती थी। पाकिस्तान भारत के प्रति हमेशा से आक्रामक रहा है। भारत-पाकिस्तान वार्ता के दौरान इस्लामाबाद का मुख्य मुद्दा जम्मू-कश्मीर ही रहता है। आज पाकिस्तान भारत के खिलाफ खुलकर बोल रहा है और हम चुप बैठे हैं।

श्री सिन्हा ‘पीओके और जम्मू-कश्मीर उत्तरी सीमांत की वर्तमान स्थिति व भावी दिशा’ विषय पर आय़ोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। इसका आयोजन ‘सेंटर फॉर सिक्योरिटी एन्ड स्ट्रेटेजी’ के तत्वावधान में किया गया था।

उन्होंने कहा कि आज पाक अधिगृहीत कश्मीर (पीओके) में पाकिस्तान द्वारा मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है। वहां के युवाओं में बेराजगारी को लेकर भी रोष व्याप्त है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण रूप से प्राप्त करने के लिए आज एक देशव्यापी आंदोलन करके लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है। भारत इस मुद्दे पर लम्बे समय से सभ्य तरीके से व्यवहार कर रहा है लेकिन अब समय आ गया है कि पीओके सहित गिलगित एवं बाल्टिस्तान को वापस पाने के लिए भारत इस मामले में कठोर कदम उठाए।

सम्मेलन में वाशिंगटन स्थित ‘इंस्टीट्यूट ऑफ गिलगित-बाल्टिस्तान स्टडीज’ के निदेशक सेंज सेरिंग ने कहा कि उत्तरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग पाकिस्तानी शासन से त्रस्त आ चुके हैं। वहां के लोगों पर पाकिस्तान द्वारा घोर अत्याचार किया जा रहा है।

सेरिंग ने कहा, “इस क्षेत्र में यूरेनियम समेत अन्य खनिजों का भंडार है लेकिन सरकार उसका उपयोग वहां के लोगों के आर्थिक हितों के लिए नहीं कर रही। स्थानीय निवासियों के लिए खनन पर प्रतिबंध है। जबकि सरकार ने खनन का हक चीन को दे रखा है और इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि चीन द्वारा यूरेनियम का प्रयोग कितना विनाशकारी होगा। भारत को इस क्षेत्र में अपना दखल बढ़ाना चाहिए और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को भी चीन पर पीछे हटने के लिए दबाव बनाना चाहिए।”

सेरिंग ने कहा कि बाल्टिस्तान में 1.4 मिलियन लोग दुखदायी परिस्थितियों में रह रहे हैं। उन्होंने भारत सरकार को धन्यवाद देते हुए कहा कि अंततः सरकार बाल्टिस्तान के लोगों की परवाह कर रही है।

कार्यक्रम को पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक पी.सी. डोगरा ने भी संबोधित किया। उन्होंने कहा, "जम्मू-कश्मीर के उत्तरी क्षेत्रों में चीन की उपस्थिति भारत के लिए खतरे की घंटी है। गिलगित-बाल्टिस्तान भारत के लिए रणनीतिक तौर पर बहुत महत्वपूर्ण है। आज वहां चीन ने कराकोरम हाई-वे का निर्माण कर लिया है और वहां वह अपनी सैन्य स्थिति मजबूत कर रहा है। जम्मू-कश्मीर के उत्तरी क्षेत्रों में अपना प्रभुत्व स्थापित कर रहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक वहां 7 हजार से 10 हजार तक चीनी सैनिक मौजूद है। चीन वहां सड़क निर्माण तो कर ही रहा है, इसके साथ ही उसने वहां 22 टनल भी बनाए हैं जहां ईरान से चीन तक गैस पाईपलाइन बिछाई गई है। चीनी सेना न केवल गिलगित बाल्टिस्तान, बल्कि पीओके में भी उपस्थित है।”
पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा कि गिलगित एवं बाल्टिस्तान में 15 हजार मेगावॉट जल विद्युत की क्षमता है और इसे बेचकर वहां की आर्थिक स्थिति में सुधार किया जा सकता है। इस क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों की काफी संभावनाएं हैं लेकिन पाकिस्तान ने उन सभी को चीन के हवाले सौंप दिया है। चीन आज इन संसाधनों का प्रयोग अपने लिए कर रहा है। आज जम्मू-कश्मीर के उत्तरी क्षेत्र में स्वास्थ्य, शिक्षा व रोजगार के लिए संभावनाएं नहीं है। नई दिल्ली को भारत-चीन सीमा विवाद में इस क्षेत्र को भी शामिल करना चाहिए।

कनाडा के इंटरनेशन सेंटर फॉर पीस एंड डेमोक्रेसी के कार्यकारी निदेशक मुमताज खान ने कहा कि पीओके को पाकिस्तान की सेना द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है। 1974 एक्ट के तहत कश्मीर विधानसभा बनी और उसमें सभी नेता पाकिस्तान द्वारा भेजे गए। पाकिस्तान की सेना पीओके का प्रयोग भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियां चलाने के लिए कर रही है। वहां पाकिस्तानी सेना स्थानीय निवासियों पर कड़ी नजर रखती है। इस क्षेत्र में स्वास्थ्य, शिक्षा व अन्य सभी क्षेत्रों पर पाकिस्तानी सेना का आधिपत्य है और इन सभी क्षेत्रों की हालत जर्जर है। आज वहां के लोग अपनी स्वतंत्र पहचान चाहते हैं।

कार्यक्रम में प्रो. के.एन. पंडिता, राज्यसभा सांसद एवं द पॉयनियर से सम्पादक चन्दन मित्रा, कैप्टन आलोक बंसल, अजीत डोवाल, राणा बैनर्जी, वरिष्ठ पत्रकार विजय क्रांति, डॉ. नरेन्द्र सिंह, जी. पार्थसारथी सहित कई गण्यमान्य लोग उपस्थित थे।

क्या कारगर होगा पीएसजीए?


केके पनगोत्रा
जम्मू-कश्मीर में भ्रष्टाचार को कुंद करने के लिए जवाबदेही आयोग के सफल गठन और असफल नतीजों के बाद सत्ता के गलियारों और अफसरशाही की चकाचौंध से भरपूर मखमली कालीनों और वातानुकूल कक्षों की चमकदार मुलायम मेजों पर से आम जनता की खातिर एक बार फिर सरकारी प्रचार का शोरगुल उठा है। इस बार शासन-प्रशासन में बड़े मगरमच्छों पर कम निचले स्तर के कर्मचारियों पर सत्ता शीर्ष की नजरें तरेरी हैं। जनता फिर हर्षित है। अबकि बार सरकारी प्रचार की बानगी में गजब का जोश है। यह समझाने की कोशिश है कि देशव्यापी मोर्चे पर समाजसेवी अन्ना हजारे की आकांक्षाओं को जम्मू-कश्मीर सरकार ने सबसे पहले पूरा किया है। जवाबदेही आयोग के पंगु हो जाने और इस संस्था को जनता की मांग पर आधे-अधूरे मन से साल 2011 में पुन: बैसाखियों पर खड़ा तो कर दिया, मगर आयोग को स्वायत्त शक्ति संपन्न बनाने में सरकार ने खूब कंजूसी बरती है। क्यों? कारण और नीयत साफ है। सत्ता शीर्ष पर जमे राजनेताओं ने अपवाद को छोड़कर देश के किसी भी कोने में भ्रष्टाचार निरोधी कानून बनाते समय अपने गिरेबान को बचाने की हीलाहवाली की है। मजबूत लोकपाल और लोकायुक्त के गठन के पीछे इन्हीं कारणों और नीयत की मजबूरी नजर आ रही है। नि:संदेह जम्मू-कश्मीर का शासक वर्ग भी मजबूत लोकायुक्त से कन्नी काटता नजर आ रहा है। जवाबदेही आयोग का शिकंजा इतना मजबूत और कारगर ही नहीं था कि राज्य मंत्रिमंडल में दागियों का बाल बांका कर सकता। देश के दूसरे नंबर पर भ्रष्ट राज्य के तमगे को उतारने के लिए अब आम लोगों को पब्लिक सर्विस गारंटी एक्ट (पीएसजीए) का सहारा मिल रहा है। बेशक ऊपरी तौर पर यही लग रहा है कि अब जनता ही राजा है लेकिन बहुत प्रसन्न होने की भी जरूरत नहीं। पंजाब और हरियाणा की सरकारें भी ऐसा कानून बना चुकी हैं। देश में मध्य प्रदेश पहला ऐसा राज्य बन चुका है जिसने 18 अगस्त 2010 को इसी तर्ज का कानून बनाया है। ठीक इसके एक साल बाद जम्मू-कश्मीर ने अगस्त 2011 में पब्लिक सर्विस गारंटी एक्ट लागू किया। क्या इन राज्यों, विशेषत: मध्य प्रदेश जहां भ्रष्टाचार और पारदर्शिता संबंधी कानून देश में सबसे पहले लागू हुआ, को भ्रष्टाचार मुक्त कहा जा सकता है? पंजाब सरकार ठीक उसी तरह अपने राइट टू सर्विस एक्ट में 67 सेवाओं को अधिसूचित कर चुकी है। जैसे जम्मू-कश्मीर सरकार ने जनरल एडमिनिसट्रेशन डिपार्टमेंट (जीएडी) द्वारा जारी अधिसूचना नंबर जीएडी (एडीएम) 66/2011-5 में छह विभागों की कुल 45 सेवाओं को पब्लिक सर्विस गारंटी एक्ट में शामिल किया है। अब कुछ और सेवाओं को शामिल किया गया है। सेवा के लिए तय समय सीमा के संदर्भ में भी जम्मू-कश्मीर अन्य राज्यों से पीछे लगता है। मसलन हरियाणा में राशन कार्ड के लिए 15 दिन का समय है जबकि जम्मू-कश्मीर में 30 दिन है। इसी प्रकार इंतकाल और लर्निग ड्राइविंग लाइसेंस की समय सीमा हरियाणा में मात्र पांच दिन है जबकि जम्मू-कश्मीर में इन्हीं सेवाओं के लिए क्रमश: 30 और 15 दिन तय किए हैं। पंजाब सरकार ने राइट टू सर्विस एक्ट पर विधानसभा में विधेयक लाने से पहले एक अध्यादेश जारी करके राइट टू सर्विस एक्ट लागू किया था। देखा जाए तो इस लिहाज से सेवाओं की गारंटी देने में पंजाब अब भी जम्मू-कश्मीर से कहीं आगे है। सरकार के इस कदम को पंजाब में हो चुके विधानसभा चुनाव में सत्ता हासिल करने की रणनीति के रूप में भी देखा गया था। इसी प्रकार जम्मू-कश्मीर में पीएसजीए को भी नेकां की तीन साल बाद सत्ता वापसी के लिए अग्रिम रणनीति के रूप में देखा जा सकता है। सुनने में यह बहुत अच्छा लगता है कि राज्य में पीएसजीए के लागू होने से सरकारी कार्यालयों में फाइलों पर धूल नहीं जमेगी, मगर इसके परिणाम कैसे रहेंगे, इसे परखने के लिए थोड़ा इंतजार तो करना ही पड़ेगा। अक्सर यह देखा गया है कि कोई भी सरकार ऐसे कानून बनाते समय वोट बैंक को तो ध्यान में रखती है। इसमें कुछ गलत भी नहीं है, बशर्ते लोगों को ऐसे कानूनों का लाभ मिले। जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में यही चिंता का विषय है। आखिर राज्य में भ्रष्टाचार निरोधी प्रचलित कानून इतने कमजोर भी नहीं थे और राज्य जवाबदेही आयोग का गठन एक सराहनीय कदम था, मगर फिर भी राज्य के गले से दूसरे नंबर के भ्रष्ट राज्य का टैग नहीं उतार सका। आम जनता की नब्ज टटोल कर देखें तो ऐसा लगता है कि गनीमत है किसी गैर सरकारी संस्था ने सर्वे नहीं किया। अगर ऐसा होता तो संभव है राज्य भ्रष्टाचार में एक पायदान ऊपर उठकर पहले पायदान पर होता। नि:संदेह देश के कुछ अन्य राज्यों की नकल पर पीएसजीए को एक मील का पत्थर कहा जा सकता है, मगर शातिर बाबूशाही और अफसरशाही क्या इसमें पलीता लगाने में कोई कसर नहीं रखेगी? आखिर वर्तमान में भ्रष्टाचार है क्या? भ्रष्ट तत्व इसे जनता का खून चूसने का एक नैसर्गिक अधिकार समझते हैं। जब देश में आरटीआई और जम्मू-कश्मीर में जवाबदेही आयोग गठित हुआ था तो ऐसा लगा था कि अब भ्रष्टाचारियों की खैर नहीं और व्यवस्था में पारदर्शिता आ जाएगी। भ्रष्टाचार के कारक तो पूरे देश में समान हैं। अब देखना यह है कि चतुर चालाक बाबूशाही और नौकरशाही, जिसे नेताशाही का संरक्षण प्राप्त होता है, राज्य में पीएसजीए का कैसे मुकाबला करती है? बहरहाल यह तो समय ही बताएगा कि पीएसजीए जम्मू-कश्मीर जैसे बड़े भ्रष्ट राज्य में कैसे और कितना कारगर साबित होता है। कुछ भी हो सरकार पर भरोसा करते हुए इस कदम का फिलवक्त स्वागत ही करना होगा और यह भी देखना होगा कि सरकार पीएसजीए को लागू करवाने में कितनी और कैसे गंभीरता का परिचय देती है या फिर समय के साथ इस बहुप्रचारित कानून की भी हवा निकल जाती है।
(लेखक जेएंडके के सामाजिक विषयों के अध्येता हैं)  

चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में हुर्रियत


दैनिक जागरण, 23 फरवरी 2012
श्रीनगर। कश्मीर मुद्दे को फिलहाल दस साल के लिए फ्रीज करने की भारत-पाक की कवायद के बीच ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के उदारवादी खेमे की कश्मीर नीति में भी बदलाव नजर आने लगा है। हालात ऐसे बन गए हैं कि हुर्रियत का उदारवादी खेमा और कुछ अन्य अलगाववादी दल अगले दो सालों में कश्मीर के चुनावी मैदान में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में उतर सकते हैं।
सूत्रों ने बताया कि मीरवाइज मौलवी उमर फारूक की अगुवाई वाली हुर्रियत कांफ्रेंस का खेमा अब वर्ष 2002 और 2008 की अपनी गलतियों को दोहराने के मूड में नहीं है। बीते चार सालों से हुर्रियत के संविधान और संगठनात्मक ढांचे में बदलाव के जो प्रयास किए जा रहे हैं, वह कश्मीर की चुनावी सियासत को ध्यान में रखते हुए ही किए जा रहे हैं। हालांकि हुर्रियत ने सभी घटक दलों के एक ही ध्वज में विलय से पूर्व सभी जिला मुख्यालयों में एक संगठित राजनीतिक दल की तरह अपने जिला कार्यालय स्थापित किए थे, लेकिन श्री अमरनाथ भूमि विवाद और पार्टी के कुछ नेताओं द्वारा उस समय चुनावी सियासत का विरोध किए जाने के बाद इन कार्यालयों को बंद कर दिया गया था। अब यह प्रक्रिया फिर शुरू की गई है।
सूत्रों के अनुसार मीरवाइज का खेमा चुनावी सियासत में उतरने से पहले कश्मीर मुद्दे पर केंद्रीय पैकेज पर नजर गढ़ाए हुए है। वह यह देख रहे हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे को लेकर विभिन्न फार्मूलों पर जारी काम किस अंजाम तक पहुंचता है। लोगों में पैठ बनी रहे, इसलिए अब वह अपने मंचों पर कश्मीर की आजादी और कश्मीर समस्या के हल के बजाय कश्मीर की बेरोजगारी, बिजली-पानी के संकट जैसे मुद्दे उठाते हुए लोगों को अपने साथ जोड़ने में जुटे हुए हैं। बीते कुछ महीनों के दौरान मीरवाइज के इस संदर्भ में जारी बयान इनका संकेत देते हैं।
हुर्रियत के चुनावी मैदान में उतरने की अटकलों पर कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ और पत्रकार बशीर मंजर ने कहा कि यह कोई अप्रत्याशित नहीं है। इसके संकेत तो कई बार मिले हैं और जबसे पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद गनी लोन ने चुनाव लड़ा है, हुर्रियत के उदारवादी खेमे की सोच भी बदली है। सुनने में तो यह भी आया है कि सज्जाद गनी लोन और मीरवाइज मौलवी उमर फारूक के बीच बीते कुछ महीनों के दौरान कश्मीर चुनावी सियासत को लेकर कई बैठक हुई हैं। सज्जाद और उनके भाई बिलाल गनी लोन के बीच जो राजनीतिक व निजी मतभेद थे, वह भी मीरवाइज के प्रयासों से दूर हुए हैं।
सूत्रों ने बताया कि मीरवाइज और डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी के चेयरमैन शब्बीर शाह अगले कुछ दिनों में दिल्ली से लौटने के बाद राज्य के विभिन्न हिस्सों में अपनी जनसभाओं का दौर शुरू करेंगे, ताकि वह लोगों को बदलते राजनीतिक परिवेश में अपनी बदलती कश्मीर नीति से अपने समर्थकों को अवगत करा सकें।
अलगाववादियों का चुनावी इतिहास : हुर्रियत कांफ्रेंस वर्ष 2002 के विधानसभा चुनावों में हिस्सा लेने को पूरी तरह तैयार थी, लेकिन आतंकियों द्वारा हुर्रियत के वरिष्ठ नेता और पीपुल्स कांफ्रेंस के तत्कालीन चेयरमैन अब्दुल गनी लोन की हत्या के बाद वह पीछे हट गई थी। अलबत्ता, अलगाववादी खेमे ने पांच छदम उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जो चुनाव जीत गए थे। इसके बाद वर्ष 2008 में हुए विधानसभा चुनावों के लिए भी अलगाववादी खेमा विशेषकर पीपुल्स कांफ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन राजी थे, लेकिन श्री अमरनाथ भूमि विवाद से कश्मीर में पैदा हुए हालात के बाद अलगाववादी खेमा न प्रत्यक्ष रूप से और न ही परोक्ष रूप से चुनावी दंगल में शामिल हुआ।

हुर्रियत के लिए खोई साख पाने का मौका : कमाल
हुर्रियत के कश्मीर की चुनावी सियासत में शामिल होने के मिल रहे संकेतों को स्वागतयोग्य बताते हुए नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता डॉ. मुस्तफा कमाल ने कहा कि अगर यह सच होता है, तो यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। हालांकि हुर्रियत को बहुत पहले ऐसा करना चाहिए था। खैर, देर आयद पर दुरुस्त आयद। मुझे इस बात की खुशी है कि देर से ही सही लेकिन अलगाववादियों को समझ आ गया कि किसी भी मसले का हल गोली से नहीं बल्कि बोली से होता है। डॉ. कमाल ने कहा, 'सच कहें तो हुर्रियत अपनी पहचान खोती जा रही है। मैं समझता हूं कि विस चुनाव में भाग लेने से हुर्रियत अपनी खोई हुई साख भी वापस हासिल कर सकती है और लोकप्रियता भी।'

क्या पाकिस्तान हुर्रियत को अनुमति देगा : बेग
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व उपमुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग ने कहा कि अगर हुर्रियत चुनावी सियासत में आती है तो यह स्वागतयोग्य है। लेकिन सवाल यह है कि क्या सचमुच पाकिस्तान हुर्रियत को चुनाव लड़ने की अनुमति देगा, क्योंकि हुर्रियत की नीतियां पूरी तरह पाकिस्तान से प्रभावित रहती हैं। इस समय अगर पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को लेकर ज्यादा सक्रिय नहीं है तो वह सिर्फ अपनी घरेलू दिक्कतों के कारण। इसी कारण वह इस समय कश्मीर मुद्दे से खुद को बचाना चाहता है। अगर कल को पाकिस्तान के हालात सुधरते हैं तो क्या फिर वह हुर्रियत की चुनावी सियासत का समर्थन करेगा, यह भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। वैसे हुर्रियत को यह कदम बहुत पहले उठाना चाहिए था। इससे कश्मीर मसले के हल में ही मदद होगी।

फिर गर्माया भेदभाव का मुद्दा


जम्मू। सरकार की ओर से राज्य में सोलह नई शहरी स्थानीय निकाय के गठन में जम्मू से भेदभाव का मुद्दा गर्मा गया है। राज्य विधानसभा सत्र से ठीक पहले विपक्ष को गठबंधन सरकार के खिलाफ एक और मुद्दा मिल गया है, जिसे लेकर विभिन्न दल सरकार को घेरने की तैयारी में हैं। जम्मू-कश्मीर डेमोक्रेटिक फ्रंट ने सचिवालय के बाहर इस मुद्दे पर सरकार का घेरने का फैसला किया है। भेदभाव के मुद्दे पर फ्रंट वीरवार शाम शहर में मशाल रैली निकालने जा रही है। फ्रंट के चेयरमैन अनिल गुप्ता ने सरकार के फैसले को जम्मू से भेदभाव की ताजा मिसाल बताते हुए कहा कि सरकार ने कश्मीर में बारह जबकि जम्मू में चार नई शहरी स्थानीय निकाय बनाकर साबित कर दिया है कि सरकार की नजर में कश्मीर सर्वोपरि है। 

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार स्थानीय निकाय की संख्या के आधार पर ही नगर निगम को फंड जारी करती है और जम्मू में इनकी संख्या कम होने से विकास कार्यो पर भी असर पड़ेगा। उधर, प्रदेश भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भी इसे जम्मू से भेदभाव करार देते हुए कहा है कि पिछले तीन साल में इस गठबंधन सरकार ने हर क्षेत्र में जम्मू की अनदेखी की है। इस मुद्दे पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने बुधवार को गंग्याल में सरकार विरोधी प्रदर्शन भी किया। भाजपा के जम्मू जिला प्रधान राजेश गुप्ता की अगुवाई में पार्टी कार्यकर्ताओं ने सरकार का पुतला जलाकर अपना रोष भी प्रकट किया। जम्मू से कांग्रेस मंत्रियों के इस्तीफे की मांग करते हुए राजेश गुप्ता ने कहा कि जम्मू से भेदभाव के लिए ये मंत्री सबसे अधिक दोषी है और इन मंत्रियों ने जम्मू की जनता के साथ विश्वासघात किया है। विधानसभा चुनाव 2008 में जनता ने इन पर विश्वास व्यक्त कर विधानसभा भेजा था। भाजपा इस मुद्दे पर चुप नहीं बैठेगी और आने वाले दिनों में विधानसभा व सदन के बाहर भी इस मुद्दे को उठाया जाएगा। (दैनिक जागरण, 23 फरवरी 2012)

अब देश से नहीं कटेगा लेह


जम्मू। कोई भी मौसम हो या फिर कठिन चुनौतियां। सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण साल के छह माह सड़क मार्ग से कटा रहने वाला लेह और कारगिल अब हर मौसम में देश से जुड़ा रहेगा। केंद्र सरकार ने कश्मीर से लेह तक बनने वाली जोजिला टनल के निर्माण को मंजूरी दे दी है। इसका निर्माण अगस्त से शुरू होगा। यह जानकारी वीरवार को राज्य के ट्रांसपोर्ट मंत्री कमर अली अखून ने दी। नई दिल्ली में केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री डॉ. सीपी जोशी से बैठक के बाद अखून ने बताया कि पहले चरण में गगनगीर (गांदरबल जिला) से सोनामर्ग के बीच छह किलोमीटर लंबी सुरंग तैयार होगी, जिसका नींव पत्थर इसी साल अगस्त में रखा जाएगा। एक किलोमीटर सुरंग के निर्माण पर करीब 200 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। यानि छह किलोमीटर सुरंग के लिए 1200 करोड़। उन्होंने बताया कि डायरेक्टर जनरल रोड स्वयं इस निर्माण कार्य की निगरानी करेंगे। अखून ने बताया कि बालटाल से मेनामर्ग तक की सुरंग का निर्माण दूसरे चरण में होगा। इसको शुरू करने की तिथि की घोषणा भी पहले चरण के नींव पत्थर समारोह के दौरान की जाएगी। इस सुरंग की प्राथमिक प्रोजेक्ट रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी गई है। केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री ने डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट सौंपने के लिए मार्च 2012 तक का समय दिया है। अखून ने बताया कि उन्होंने केंद्रीय मंत्री को जानकारी दी कि 420 किलोमीटर लंबे श्रीनगर-कारगिल-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग के अलावा कोई और सड़क नहीं है जो लेह को कश्मीर से जोड़ती है। सोनामर्ग व द्रास में भारी बर्फबारी के कारण साल के अधिकतर समय तक यह रास्ता बंद रहता है, जिस कारण लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सुरंग बनने से क्षेत्रीय लोग सालभर देश से जुड़े रहेंगे। बता दें कि हिमाचल प्रदेश में रोहतांग से भी लेह को रास्ता जाता है, लेकिन वह भी भारी बर्फबारी के कारण सर्दियों में बंद रहता है। वहां भी लेह को जोड़ने के लिए सुरंग का निर्माण किया जा रहा है। (दैनिक जागरण, 17 फरवरी 2012)

Sunday, February 12, 2012

गिलगिट-बाल्टिस्तान चीन को देने की पाक की तैयारी


वाशिंगटन (एजेंसी)। अमेरिका के साथ तनाव के बीच चीन से अपने रिश्ते को मजबूत करने के लिए पाकिस्तान गिलगिट-बाल्टिस्तान 50 सालों के लिए बीजिंग को देने के प्रस्ताव पर विचार कर रहा है। अमेरिका के प्रतिष्ठित मिडल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट ने शुक्रवार को जारी अपनी रिपोर्ट में स्थानीय उर्दू अखबारों के हवाले से बताया कि पाकिस्तान का यह कदम अमेरिका के साथ कभी भर न सकने वाले दरारों के बीच चीन के साथ संबंधों को पूरी तरह मजबूत करने के लिए है। रिपोर्ट के मुताबिक, गिलगिट बाल्टिस्तान के लिए पाकिस्तान चीन सामरिक कार्यक्र म का फैसला संभवत: सेना प्रमुख जनरल परवेज अशरफ कयानी की जनवरी 2012 में चीन यात्रा के दौरान लिया गया । उर्दू अखबार रोजनामा बांग ए शहरमें एक खबर प्रकाशित हुई जिसका शीषर्क पाकिस्तान की बिगड़ती स्थिति, अमेरिका के साथ तनावग्रस्त संबंध : गिलगिट बाल्टिस्तान को चीन को 50 साल के लिए देने का विचारथा। खबर में बताया गया कि पाकिस्तान में बिगड़ती स्थिति, अमेरिका के साथ तनावपूर्ण संबंधों के आलोक में गिलगिट बाल्टिस्तान चीन को 50 साल की लीज पर देने पर विचार शुरू हो गया है। एफबीआई के एक पूर्व अधिकारी की अगुवाई वाले अमेरिकी थिंक टैंक के मुताबिक, उर्दू अखबार की खबर में कहा गया कि चीन की एक थिंक टैंक ने भी हरी झंडी दे दी है। इस अखबार को पाकिस्तानी सीमा चौकी पर नाटो हमले में 24 पाकिस्तानी सैनिकों के मारे जाने के तीन हफ्तों के भीतर 13 दिसम्बर 2011 को गिलगिट बालिटस्तान में वितरित किया गया। उर्दू अखबार ने कहा कि चीन और पाकिस्तान के थिंक टैंक ने इस इलाके को चीन के नियंतण्रमें देने के विषय पर विचार विमर्श शुरू कर दिया है। खबर में कहा गया,‘योजना के पहले चरण में चीन इलाके में विकास परियोजनाओं की रणनीति तैयार करेगा और धीरे-धीरे क्षेत्र को अपने नियंतण्रमें ले लेगा।रिपोर्ट के मुताबिक, चीन 50 सालों के लिए गिलगिट बाल्टिस्तान को पूरी तरह अपने नियंतण्रमेंले लेगा और अपनी सेना को वहां तैनात करेगा। अमेरिकी थिंक टैंक ने कहा कि पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल परवेज अशरफ कयानी की 4 - 8 जनवरी की पांच दिवसीय चीन यात्रा के कारण रोजनामा बंग-ए-सहर की रिपोर्ट महत्वपूर्ण हो जाती है। बीजिंग में चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ के साथ बैठक में जनरल कयानी ने कहा कि चीन पाकिस्तान सामरिक साझेदारी दोनों देशों की नीतियों के लिए महत्वपूर्ण हैं। अपनी टिप्पणी में चीनी प्रधानमंत्री ने कहा,‘चीनी सरकार और सेना दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को मजबूत करना और ज्यादा से ज्यादा सैन्य आदान प्रदान जारी रखेगी।उर्दू अखबार में प्रकाशित खबरों के हवाले से वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक ने कहा कि पाकिस्तानी और चीनी सेना गिलगिट बाल्टिस्तान के संयुक्त सैन्य प्रबंधन की दिशा की ओर बढ़ रहे हैं। 
(राष्ट्रीय सहारा, 12/02/2012)

Give more focus to youth: Governor

SRINAGAR, Feb 11: Governor N N Vohra today said that the youth who comprised 50% of the State's population are the most important segment of the society and there is urgent need to devote focused attention for securing a bright and prosperous future for them.
The Governor said this while chairing a discussion on "Kashmiri Youth and Media: A Survey" organized by the Institute of Research on India and International Studies (IRIIS), a Delhi-based NGO, here today.
He observed that along with focusing on the serious issues of governance, corruption, delivery of services and all other tasks, which required to be carried out, need to focus on the youth of Jammu and Kashmir who grew up in the circumstances which obtained in the Valley for over two decades. He said "we need to take stock of all the issues relating to the balanced development of youth and facilitate an enabling environment for their growth".
Referring to the high potential of the youth of J&K, Mr Vohra said that despite interruptions in the educational schedules due to the disturbed situations in the past years "our youth have been excelling in varied spheres at the State and national levels". In this context, he mentioned about Dr. Shah Faisal, who topped the All India Civil Services Examination three years ago. Many other boys and girls from the State are doing extremely well in various other arenas, he added.
Referring to the "Perception Survey of Media Impact on the Kashmiri Youth" conducted by the IRIIS, the Governor emphasized the need for conducting such surveys in the far-flung districts with a much larger sample size. He also suggested to Prof. Navnita Chadha Behera, honorary Director, IRIIS, to take note of all the suggestions which had emerged during the Question-Answer session in the panel discussion.
Earlier, in her opening remarks, Prof. Navnita Chadha Behera, honorary Director, IRIIS, highlighted the salient features of the findings of the Survey Report and the methodology adopted to conduct it. She added that it was a first step and more such studies would need to be carried out.
Bashir Manzar, Editor-in-Chief, Kashmir Images, said in his presentation that it was perhaps for the first time that such a survey has been carried out and gave a critical analysis of the impact of the media on Kashmiri youth, besides expressing his views on the various findings in the Survey Report.
Prof. Neera Chandhoke, expressed her views on the genesis of Nation States in the international context, the glorious pluralistic traditions of Kashmir and the significance of Article 370 of the Constitution of India.
Riyaz Masroor, BBC correspondent, congratulated the IRIIS for bringing out the Survey Report and gave his views on the various recommendations.
The panel discussion was followed by a lively Question-Answer session.
Prominent among those present on the occasion were Dr. Tej Partap, Vice Chancellor, University of Agricultural Sciences and Technology, Kashmir, A. H. Samoon, Divisional Commissioner, Kashmir, R. Chengappa, Editor-in-Chief, The Tribune, media persons, intellectuals, academicians, businessmen and social activists.

(www.dailyexcelsior.com)

बालटिस्तान पर होगा चीन का नियंत्रण


वाशिंगटन, प्रेट्र : अमेरिका के साथ चल रहे तनावपूर्ण संबंध के बीच चीन के साथ अपने रणनीतिक संबंध को मजबूत बनाने के इरादे से पाकिस्तान विवादित गिलगिट-बालटिस्तान क्षेत्र को उसे 50 वर्षो के लीज पर देने पर विचार कर रहा है। अमेरिका के एक थिंक टैंक की ओर से यह दावा किया गया है। मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट की ओर से शुक्रवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है, पाकिस्तान ने यह कदम चीन के साथ संबंध मजबूत करने के उद्देश्य से उठाया है। पिछले साल से दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण चल रहे हैं। रिपोर्ट स्थानीय उर्दू अखबारों के हवाले से जारी की गई है। इसमें कहा गया है कि इसी महीने पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कियानी के चीन दौरे के समय दोनों देशों के बीच इस क्षेत्र को लेकर रणनीति के बारे में निर्णय लिया गया था। उर्दू दैनिक रोजनामा बंग-ए-शहर में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है, पाकिस्तान में गिलगिट-बालटिस्तान क्षेत्र को चीन को 50 वर्षो के लीज पर सौंपने के बारे में विचार शुरू हो गया है। एक चीनी थिंक टैंक ने भी सकारात्मक संकेत दिए हैं। योजना के प्रथम चरण में चीन वहां विकास परियोजनाओं के बारे में रणनीति बनाएगा। उन पर काम करने के नाम पर इस क्षेत्र का नियंत्रण अपने हाथ में ले लेगा। चीन इस क्षेत्र में अपने सैनिकों को भी तैनात कर सकता है। अमेरिकी थिंक टैंक के मुताबिक, यह उर्दू दैनिक अखबार गिलगिट-बालटिस्तान क्षेत्र में 13 दिसंबर 2011 को बांटा गया है।
(दैनिक जागरण, जम्मू संस्करण, 12/02/2012)

गिलगिट और बालटिस्तान चीन के हवाले करेगा पाकिस्तान


वाशिंगटन, एजेंसी : अमेरिका के साथ चल रहे तनावपूर्ण संबंध के बीच चीन के साथ अपने रणनीतिक संबंध को मजबूत बनाने के इरादे से पाकिस्तान विवादित गिलगिट-बालटिस्तान क्षेत्र को उसे 50 वर्षो के लीज (पट्टा) पर देगा। अमेरिका के एक थिंक टैंक की ओर से यह दावा किया गया है। यह क्षेत्र सामरिक दृष्टिकोण से भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे पहले भारत के लिए संवेदनशील अक्साई चीन पर भी चीन का प्रभाव है। पाकिस्तान इस कदम से एक ओर जहां अमेरिका के साथ दोस्ती में आई दरार के बाद शक्ति संतुलन स्थापित करने के लिए प्रयासरत है, वहीं भारत को भी घेरने की तैयारी कर रहा है। मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट की ओर से शुक्रवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है, पाकिस्तान ने यह कदम चीन के साथ संबंध मजबूत करने के उद्देश्य से उठाया है। पिछले साल से दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण चल रहे हैं। रिपोर्ट स्थानीय उर्दू अखबारों के हवाले से जारी की गई है। इसमें कहा गया है कि इसी महीने पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी के चीन दौरे के समय दोनों देशों के बीच इस क्षेत्र को लेकर नई रणनीति के बारे में निर्णय लिया गया था। उर्दू दैनिक रोजनामा बंग-ए-शहर में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है, पाकिस्तान में गिलगिट-बालटिस्तान क्षेत्र को चीन को 50 वर्षो के लीज पर सौंपने के बारे में विचार शुरू हो गया है। एक चीनी थिंक टैंक ने भी इस बारे में सकारात्मक संकेत दिए हैं। योजना के प्रथम चरण में चीन वहां विकास परियोजनाओं के बारे में रणनीति बनाएगा। बाद में उन पर काम करने के नाम पर इस क्षेत्र का नियंत्रण अपने हाथ में ले लेगा। चीन इस क्षेत्र में अपने सैनिकों को भी तैनात कर सकता है। थिंक टैंक के मुताबिक, यह उर्दू दैनिक अखबार गिलगिट-बालटिस्तान क्षेत्र में 13 दिसंबर, 2011 को बांटा गया है। इससे पहले 26 नवंबर, 2011 को नाटो द्वारा पाकिस्तान के सैन्य पोस्ट पर किए गए हमले में 24 सैनिक मारे गए थे। अमेरिकी संघीय जांच एजेंसी (एफबीआइ) के पूर्व अधिकारी इस थिंक टैंक के प्रमुख हैं। इसके मुताबिक, पाकिस्तान और चीन की सेना गिलगिट-बालटिस्तान में संयुक्त सैन्य प्रबंधन को लेकर आगे बढ़ रही है। दोनों देशों की सेना पाकिस्तान की विशिष्ट योजना के अनुरूप कार्य करेगी और इस क्षेत्र को लेकर रणनीतिक कार्यक्रम जून, 2012 में प्रारंभ हो जाएगा। भारत, चीन और पाकिस्तान के लिए महत्वपूर्ण गिलगिट-बालटिस्तान क्षेत्र के उत्तर में अफगानिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, दक्षिण में पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर और दक्षिण-पूर्व में भारत की सीमा लगती है। इस क्षेत्र में बालटिस्तान के दो जिले और गिलगिट के पांच जिले शामिल हैं। यह क्षेत्र 72,496 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। 

(दैनिक जागरण, राष्ट्रीय संस्करण, 12/02/2012)

1987 elections frustrated valley youth: Governor


MANZOOR-UL-HASSAN
Srinagar, Feb 11: Governor NN Vohra on Saturday said the Kashmiri youth were being alienated and frustrated by ‘worrying political happenings’ in the past including 1987 elections that prompted violent reaction from them and changed the political discourse thereafter.
“Post 1970 years were very eventful that changed the political discourse and later the worrying elections of 1987 frustrated the Kashmiri youth,” he said while chairing a panel discussion on ‘Kashmiri Youth and Media: A Perception Survey’ at a hotel here.
Speaking on the occasion, Vohra admitted said the time had come for shifting full attention to governance issues. “Our concern this time should be to provide a space to youth to engage them productively,” he said.
Governor said the recent Home Ministry survey had tried to touch some of the important points vis-à-vis Kashmir. “It should be treated as a starting point. However there are certain areas which were left out in the survey like pre-1990 period,” he said. Much more needs to be done to carry this exercise forward, he added.
“There is a need to conduct such surveys in far-flung districts with a much larger sample size,” Vohra said.
The panel discussion was organized by the Institute for Research on Indian and International Studies in the backdrop of releasing its study report regarding media impact on Kashmiri youth conducted by its honorary director Navnita Chadha Behera.  “The idea of the research was to understand the usage and impact of media and other communication channels available to the youth in Kashmir. And one important thing which comes out of it is the realization that we need to engage youth. There is a need to give them sense of security and democratic freedom,” Behera said.
She pointed to the total opaque system under which the media was functioning in Kashmir. “There is no such thing as Audit Bureau of Circulation in Kashmir. There is no way to know circulation of newspapers or reach of the electronic media,” she observed.
According to her the research has also found that use of force by government and booking youth under various laws like Public Safety Act (PSA) keep them at bay from political rallies and mass protests.
Other participants in the discussion including journalists and academicians were critical about the timing and language of the survey report. “This is the first survey that tries to know the media usage in Kashmir but the vocabulary used in the report is confusing as it doesn’t put the statement made in it into perspective,” said BBC’s Kashmir Correspondent Riyaz Masroor.
Quoting an example from the report, Masroor said the finding that Kashmir youth is turning to Islam has been misrepresented in the report. “This statement creates confusion in the minds of people. We were religious before also and the frame in which this point was made doesn’t clarify the finding,” he said.
Journalist Bashir Manzar said the survey should have incorporated the perception of youth living outside Jammu and Kashmir. “The next generation of Kashmir is moving towards New Delhi and other parts of India but rather than becoming the ambassadors they return with bitter experience of harassment and assault. So government has to think over the issue,” he said.
Academician Prof Neera Chandhoke expressed her views on the genesis of Nation States in the international context, the glorious pluralistic traditions of Kashmir and the significance of Article 370 of the Constitution of India.
“Kashmir issue and aspiration of valley people should be thoroughly discussed at the academic level and at social science forums to get the clear understanding about it,” she said.
Prominent among those present on the occasion were Vice-Chancellor, SK University of Agricultural Sciences and Technology, Dr. Tej Partap, Divisional Commissioner, Kashmir, Asgar H Samoon, Editor-in-Chief, The Tribune, R. Chengappa, journalist Ahmad Ali Fayaz, academicians from Kashmir University and Islamic University, businessmen and social activists.
(www.greaterkashmir.com)

AFSPA can't be revoked on basis of single incident: BJP


PRESS TRUST OF INDIA
New Delhi, Feb 11: BJP today said the Armed Forces Special Powers Act cannot be revoked in Jammu and Kashmir on the basis of a single firing incident like the one that occurred in Baramulla.
 "Based on a single incident alone, the Act cannot be repealed," BJP spokesperson Mukhtar Abbas Naqvi said here today.

 Naqvi was asked by reporters if the AFSPA should continue to be in force in Jammu and Kashmir in the wake of the death of a youth allegedly in firing by forces in Baramulla on Saturday which has triggered protests in the district.

 Baramulla district witnessed protests for the second day today over the killing of the youth with Chief Minister Omar Abdullah ordering a magisterial probe into the incident.

(www.greaterkashmir.com)

Thursday, February 9, 2012

Assessing Sino-Indian relations

Daily Excelsior/ 09/02/2012/ Editorial

Ordinarily, state ministers including the Chief Ministers seldom make comments on country's foreign relations. Omar Abdullah is generally choosy in his statements, more so when a subject relating to foreign affairs is at hand. But, the other day, he has made some generalizations while speaking at a function at Mubarak Mandi. He was reflecting on Sino-Indian relations and spoke of need for restraint in drawing inferences from prevailing relations between the two countries.

If Omar made a comment on the subject, and indeed it is a statesmanlike comment, he is not without justification. The State of Jammu and Kashmir is contiguous to Peoples Republic of China. Ladakh region has a long common border with the Chinese province of Xinjiang or Eastern Turkistan, where twenty-million Uyghur Muslims are in a state of political upheaval. Nearly five thousand square kilometers of the territory of original J&K State has been ceded by Pakistan to China and China has illegally built the Karakoram Highway through the territory of Jammu and Kashmir State that links Xinjiang with Pakistan. China has built a motor road along the border of the J&K State that makes a link to Tibet. Apart from all this, China has only recently sent nearly twenty thousand troops of PLA to Gilgit area where, according to Chinese sources, they are engaged in constructional and developmental activities. Nevertheless, the presence of troops in such large numbers is a matter of concern for the State Government and also the Government of India. We know that the Chinese troops along the Ladakh border have been making forays into our territory, painting stones red and writing Chinese impressions on them. We also know that China has been issuing maps showing its territories right up to Zoji La pass and claiming rights over Ladakh territory on the basis of ethnic commonality. We also know that for last two years Chinese embassy in New Delhi has been issuing visa to Kashmiri citizens on a separate sheet of paper to indicate that China does not recognize J&K as integral part of the Indian Union. We also know that of late China has changed her decades old neutral policy on Kashmir dispute and is now openly supporting Pakistan's stand. And finally, we are also aware that large quantities of Chinese goods are smuggled into Ladakh region and clandestine traded goes to the benefit of the Chinese intruders.

These are no small facts about what is going on between the two countries especially in the light of geographical location of Jammu and Kashmir. As such, Chief Minister Omar Abdullah is more than justified to make a comment on Sino-Indian relations. And yet, in response to a question posed by a news correspondent, he has very remarkably kept his cool while commenting on these relations. He is fully aware that the subject of relations between India and China is very sensitive and both countries are handling it with utmost care and restraint. Omar did not have any brief on the subject from the Minister of External Affairs but being the Chief Minister of a very sensitive state which has common border with China, he has made a comment of remarkable sagacity and statesmanship of the highest quality. India and China are two ancient civilizations that have contributed richly to the development of human civilization. They are the most populous countries of the world and they are two Asian nuclear giants. It is no secret that they are rivals vying with one another to achieve political, economic and diplomatic superiority. They will come to the maneuvering of their regional and global interests. In the process, irritants will surface and bottlenecks will appear. That is and has been the course of the history of nations on the globe, and the two countries are no exception. But notwithstanding these harsh realities, the right course of conducting their national pursuits is of mutual understanding and dialogue. There are no two opinions about the interests of a third country in giving media hype to imaginary war engulfing the two Asian giants. These are two fast developing economies in the world and neither would want to reverse the process of development. As such Omar Abdullah has made exceptionally appropriate observation that the two countries are committed to maintaining good relations and conduct of trade and commerce to the advantage of people on both the countries. 

Tuesday, February 7, 2012

जम्मू में पर्यटन विकास को गंभीर नहीं सरकार

जम्मू. जम्मू संभाग में पर्यटन से जुड़ी परियोजनाओं को तय समय-सीमा के भीतर पूरा न करने पर ऑल होटल एंड लॉजिस एसोसिएशन ने सरकार के प्रति रोष जताया। मंगलवार को हुई बैठक में प्रधान इंद्रजीत खजूरिया ने कहा कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने हाल ही में आयोजित टूरिज्म एडवायजरी कमेटी की बैठक में कहा था कि तवी में कृत्रिम झील को पूरा होने में तीन वर्ष और लगेंगे। कृत्रिम झील पर काम पिछले छह वर्षों से चल रहा है। सरकार की लापरवाही के कारण परियोजना पर काम लटका हुआ है। वहीं, मुबारक मंडी, महामाया, बाग-ए-बाहु रोपवे परियोजना को भी काफी समय के बाद पूरा नहीं किया जा सका। खजूरिया ने आरोप लगाया कि सरकार जम्मू में पर्यटन विकास को लेकर गंभीर नहीं है। यदि सरकार गंभीर होती तो महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में देरी न होती। उधर, सरकार द्वारा बॉर्डर टूरिज्म शुरू करने की घोषणा का एसोसिएशन ने स्वागत किया है।

विधानसभा सत्र गर्माने को तैयार है भाजपा


जम्मू। स्थानीय निकाय चुनाव की तैयारी कर रही भाजपा 23 फरवरी से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में उठने वाले अहम मुद्दों को लेकर सड़कों पर भी आंदोलन करेगी। सदन में गर्माने वाले मुद्दों को लोगों के बीच भी जोर शोर से उठाया जाएगा। यह रणनीति भाजपा के राज्य प्रभारी प्रो. जगदीश मुखी के नेतृत्व में सोमवार को यहां कोर ग्रुप, विधायकों व वरिष्ठ नेताओं से पार्टी मुख्यालय में हुई तीन अलग अलग बैठकों मे बनी। इस दौरान अप्रैल में प्रस्तावित निकाय चुनाव को लेकर की जा रही तैयारियों पर भी चर्चा हुई। एक दिवसीय जम्मू दौरे के दौरान राज्य प्रभारी ने कोर ग्रुप की बैठक में प्रदेश अध्यक्ष शमशेर सिंह व राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य डॉ. निर्मल सिंह, अशोक खजूरिया, डॉ. जितेंद्र सिंह, विधायक दल के नेता जुगल किशोर, उपाध्यक्ष चंद्र प्रकाश गंगा, महासचिव सत शर्मा व उषा चौधरी से बैठक की। बैठक में विधानसभा के बजट सत्र में पार्टी द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दों के साथ जम्मू में अपना मेयर बनाने के लिए अपनाई जा रही रणनीति पर विचार किया गया। प्रदेश पदाधिकारियों, वरिष्ठ नेताओं, जिला प्रधानों व मोर्चा प्रभारियों से हुई दूसरी बैठक में नेताओं को लोगों के मसलों को जोर शोर से उठाने के लिए कहा गया। 

क्रॉस-वोटिंग से उपजे हालात का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता पार्टी उम्मीदवारों को कामयाब बनाकर साबित करें कि पार्टी हर लिहाज से मजबूत है। सभी जिला इकाइयां महीने के एक ही दिन बैठक करने का फैसला करें। इस दौरान प्रदेश अध्यक्ष ने जोर दिया कि जिलों में पार्टी की गतिविधियों को संचालित करने के लिए जिला मुख्यालयों में अच्छे पार्टी कार्यालय बनाए जाएं। वहीं विधायकों से बैठक में विधानसभा सत्र की रणनीति बनाई गई और पार्टी द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दों पर भी चर्चा हुई। विधायक अशोक खजूरिया, जुगल किशोर, सुखनंदन चौधरी व शाम चौधरी के साथ शमशेर सिंह मन्हास भी बैठक में मौजूद थे। बैठकों में बाली भगत, सोमराज खजूरिया, सोफी यूसुफ, कर्नल उत्तम सिंह, सत शर्मा, चंद्र मोहन शर्मा, कवींद्र गुप्ता, हरींद्र गुप्ता, युद्धवीर सेठी, ममता शर्मा, शिल्पी वर्मा, सुनील शर्मा, पवन खजूरिया, बलवीर राम, बंसी लाल भारती, सकीना बानो, मुनीष शर्मा, कर्ण सिंह, सुभाष भगत, राजेश गुप्ता व अन्य मौजूद थे।

पुनर्गठन से ही खत्म हो सकती है अनदेखी


जम्मू। राज्य के पुनर्गठन की मांग दोहराते हुए जम्मू स्टेट मोर्चा ने केंद्र व राज्य सरकार पर जम्मू संभाग के साथ भेदभाव का आरोप लगाया है। मोर्चा के प्रधान प्रो. वीरेंद्र गुप्ता ने सरकार के तीनों संभागों के बराबर विकास के दावों को जम्मूवासियों के साथ कोरा मजाक बताया। उन्होंने कहा है कि सरकार समानता की बड़ी-बड़ी बातें तो करती है, लेकिन स्थिति विपरीत है। गुप्ता ने कहा है कि केंद्र सरकार ने डल झील के संरक्षण व साफ-सफाई के लिए 386 करोड़ की राशि जारी कर स्पष्ट कर दिया है कि सरकार को जम्मू के पर्यटन स्थलों की फिक्र नहीं है। 

हकीकत तो यह है कि पिछले वर्ष कश्मीर में करीब दो लाख ही पर्यटकों का आगमन रहा है, जबकि जम्मू में माता वैष्णों देवी की यात्रा के लिए ही एक करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं का जम्मू में पिछले वर्ष आना हुआ है। गुप्ता ने जम्मू में पार्टी के कार्यकर्ताओं की बैठक में कहा कि हाल ही में सूचना विभाग में हुई असिस्टेंट इंफारमेशन ऑफिसर की नियुक्तियों में भी किसी भी जम्मूवासी को जगह नहीं मिली है। वहीं पर जम्मू संभाग के बर्फबारी से प्रभावित डोडा, किश्तवाड़ व रामबन के जिलों में लोगों को अभी तक मुआवजा ही नहीं मिल पाया है। 

(07 फरवरी, दैनिक जागरण)

Sunday, February 5, 2012

मानसिकता का विरोध


केवल कृष्ण पनगोत्रा
 
विस्थापित कश्मीरी पंडित समुदाय से संबंधित प्रसिद्ध कवि-लेखक और पंडितों के अंतरराष्ट्रीय संगठन पनुन कश्मीर के संयोजक डॉ. अग्निशेखर ने अपनी पुस्तक जवाहर टनल के लिए कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी की ओर से वर्ष 2010 के लिए मिलने वाले सर्वश्रेष्ठ पुस्तक अवार्ड को लेने से इंकार कर दिया है। इसे राज्य की वर्तमान और पूर्ववर्ती सरकारों के उस रवैये को लेकर नाराजगी की अलामत माना जा रहा है जिसके चलते विस्थापित पंडित समुदाय को अपने ही देश में विस्थापन की कठिनाइयों को झेलना पड़ रहा है। सबसे अहम यह है कि उनके इस निर्णय से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसी पुरानी मानसिकता को करारी चोट मिली है जिसका सीधा संबंध मात्र पंडित समुदाय ही नहीं बल्कि समूचे राज्य में व्याप्त राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक बेचैनी से है। यह बेचैनी अब छिपी नहीं है। अब यह बेचैनी मात्र महसूस ही नहीं बल्कि नंगी आंखों से देखी भी जा सकती है। उनका यह कदम इस बेचैनी की सही समझ का प्रतिनिधित्व करता है। मैंने जवाहर टनल पढ़ी नहीं है फिर भी अग्निशेखर जी की विचारधारा, पंडित समुदाय के प्रति उनकी चिंताओं और राज्य के भारत से संबंधों पर समीचीन नजरिये से परिचित होने के कारण इतना अनुमान लगा सकता हूं कि इस पुस्तक का हृदय स्थल विस्थापन के घावों से रक्तरंजित जरूर होगा। राष्ट्रीय स्तर के कई हिंदी लेखकों ने डॉ. अग्निशेखर के निर्णय का समर्थन किया है। इस प्रकार का राष्ट्रीय समर्थन नि:संदेह उस मानसिकता का विरोध करता है जिसकी वजह से कश्मीर में भारत विरोध के बीज फूटे थे। यह विरोध किसी व्यक्ति विशेष, संस्थान या राजनीतिक पार्टी को निशाना नहीं बनाता अपितु यह उस मानसिकता का विरोध करता है जिसने सबसे पहले अल फतह जैसे देश विरोधी संगठन पैदा किए और कश्मीर में राष्ट्रवादी धारा को कुंद करने की कोशिश की। एतिहासिक घटनाक्रम पर नजर डालें तो 1947 के रक्तपात और उसके बाद की राजनैतिक और सामाजिक परिस्थितियों ने राज्य में सांप्रदायिकता का बीज बोया। कश्मीर केंद्रित मानसिकता और धर्माधता के चलते ही 1990 तक कश्मीरी हिंदुओं को घाटी से पलायन करना पड़ा। 1947 के बाद जम्मू शरणार्थियों की पनाहगाह तो बना ही, शरणार्थियों ने जम्मू संभाग के मूल निवासियों के साथ मिलकर सियासी और सामाजिक संघर्ष लड़ना भी सीखा। 1931 तक जम्मू शांत था मगर उसके बाद की परिस्थितियों ने जम्मू को संघर्ष का केंद्र बना दिया। देखा जाए तो डॉ. अग्निशेखर की साहित्य वेदना और अकादमी सम्मान ठुकराना भी उसी निरंतर संघर्ष की एक कड़ी है जो आज तक अनवरत किसी न किसी रूप में जारी है। 1947 तक जम्मू संभाग की जनता भी राज्य के लिए स्वायत्तता की हामी भरती थी मगर अब परिस्थितियां बदल गई हैं। अब कश्मीर केंद्रित मानसिकता वाले लोग ही ऐसी मांगों के हामी हैं जिन्हें आए दिन बड़ी राजनैतिक चतुरता से पेश किया जाता है। हिंदुओं के साथ जम्मू के अधिकतर मुस्लिम भी संपूर्णत: भारत के साथ जुड़ाव के हामी हैं। राज्य के तीनों खित्तों में सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक असमानता और जम्मू व लद्दाख से भेदभाव के चलते जम्मू, लद्दाख और पश्चिमी पाकिस्तान एवं गुलाम कश्मीर के शरणार्थियों के साथ पंडित समुदाय ने मिलकर एक साझी विचारधारा को जन्म दिया है। यह विचारधारा अब स्थापित हो चुकी है और इस विचारधारा के मानने वालों का उद्देश्य कश्मीर केंद्रित मानसिकता से मुक्ति है। इस साक्षी विचारधारा को सुदृढ़ता देने के लिए डॉ. अग्निशेखर ने एक नवीन प्रयोग किया है। उनका क्षोभ मात्र विस्थापित पंडित समुदाय की मांगों की पैरवी नहीं करता अपितु सैद्धांतिक रूप से शरणार्थियों की अनदेखी और राज्य के दो खित्तों, जम्मू और लद्दाख के साथ निरंतर भेदभाव की मानसिकता पर भी एक बौद्धिक प्रहार है। जिस गैर मुस्लिम जनता ने कभी जिन हुकमरानों पर भरोसा किया था वह उस भरोसे को कायम रखने में असफल रहे हैं। भले ही शासक तबका जम्मू को अलग राज्य, लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश और पंडितों के लिए होमलैंड की मांगों को न माने मगर यह मांगें तार्किक जमीन पर खड़ी हैं। अपवादों को छोड़कर वादी ने हमेशा यह आभास करवाया है कि उच्की सच्ची और पूरी सहानुभूति भारत से नहीं बल्कि केंद्र से मन माफिक धनराशि के लिए भारत से अधूरा जुड़ाव प्रदर्शित करना मात्र है। 1947 के बाद जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच कोई मैच खेला गया तो वहां की अधिकतर मुस्लिम जनता ने पाकिस्तान का ही पक्ष लिया। यह कोई अनजानी खुराफातें नहीं हैं बल्कि एक सोचे समझे मनसूबे और खास मानसिकता की अलामत है। विशारत पीर की पुस्तक कफ्र्यू नाइट में ऐसी ही बातों का उल्लेख है जो कश्मीर सूबा की भारत विरोधी मानसिकता दर्शाते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि विशारत पीर जैसे लोग अपनी पुस्तक के माध्यम से भारत विरोधी मानसिकता को प्रकट करने की कोशिश करते हैं जबकि अग्निशेखर अपनी पुस्तक पर मिलने वाले सम्मान को ठुकराकर उसी मानसिकता पर चोट करने का प्रयास कर रहे हैं जो भारत समर्थक पंडितों की विरोधी रही है। अग्निशेखर के निर्णय का समर्थन करने वालों में क्षमा कौल का नाम ही खुलकर सामने आया है मगर यह उतना ही खिन्न करने वाला है कि क्षमा के अतिरिक्त शायद ही जम्मू के किसी साहित्यकार ने खुलकर उनकी मुखरता का समर्थन किया है। दर्दपुर क्षमा जी का प्रसिद्ध उपन्यास है जिसमें विस्थापन के कारणों की विषमता को उभारा गया है। जिन लोगों ने इस उपन्यास को पढ़ा है वे कभी भी डॉ. अग्निशेखर के निर्णय को अनुचित नहीं ठहरा सकते। अग्निशेखर एक ऐसे प्रतिभा के धनी हैं जिन्होंने अपनी विलक्षण बौद्धिक क्षमता का उपयोग न सिर्फ कश्मीरी पंडित समुदाय बल्कि राज्य में राष्ट्रच्की सच्ची पैरवी और क्षेत्रीय भेदभाव के विरोध के लिए प्रत्येक पंथ और संप्रदाय के हर उस नागरिक के नाम कर दी जिसे भारत और भारतीयता से लगाव है।
(लेखक जेएंडके के सामाजिक विषयों के अध्येता हैं)