Thursday, February 23, 2012

क्या कारगर होगा पीएसजीए?


केके पनगोत्रा
जम्मू-कश्मीर में भ्रष्टाचार को कुंद करने के लिए जवाबदेही आयोग के सफल गठन और असफल नतीजों के बाद सत्ता के गलियारों और अफसरशाही की चकाचौंध से भरपूर मखमली कालीनों और वातानुकूल कक्षों की चमकदार मुलायम मेजों पर से आम जनता की खातिर एक बार फिर सरकारी प्रचार का शोरगुल उठा है। इस बार शासन-प्रशासन में बड़े मगरमच्छों पर कम निचले स्तर के कर्मचारियों पर सत्ता शीर्ष की नजरें तरेरी हैं। जनता फिर हर्षित है। अबकि बार सरकारी प्रचार की बानगी में गजब का जोश है। यह समझाने की कोशिश है कि देशव्यापी मोर्चे पर समाजसेवी अन्ना हजारे की आकांक्षाओं को जम्मू-कश्मीर सरकार ने सबसे पहले पूरा किया है। जवाबदेही आयोग के पंगु हो जाने और इस संस्था को जनता की मांग पर आधे-अधूरे मन से साल 2011 में पुन: बैसाखियों पर खड़ा तो कर दिया, मगर आयोग को स्वायत्त शक्ति संपन्न बनाने में सरकार ने खूब कंजूसी बरती है। क्यों? कारण और नीयत साफ है। सत्ता शीर्ष पर जमे राजनेताओं ने अपवाद को छोड़कर देश के किसी भी कोने में भ्रष्टाचार निरोधी कानून बनाते समय अपने गिरेबान को बचाने की हीलाहवाली की है। मजबूत लोकपाल और लोकायुक्त के गठन के पीछे इन्हीं कारणों और नीयत की मजबूरी नजर आ रही है। नि:संदेह जम्मू-कश्मीर का शासक वर्ग भी मजबूत लोकायुक्त से कन्नी काटता नजर आ रहा है। जवाबदेही आयोग का शिकंजा इतना मजबूत और कारगर ही नहीं था कि राज्य मंत्रिमंडल में दागियों का बाल बांका कर सकता। देश के दूसरे नंबर पर भ्रष्ट राज्य के तमगे को उतारने के लिए अब आम लोगों को पब्लिक सर्विस गारंटी एक्ट (पीएसजीए) का सहारा मिल रहा है। बेशक ऊपरी तौर पर यही लग रहा है कि अब जनता ही राजा है लेकिन बहुत प्रसन्न होने की भी जरूरत नहीं। पंजाब और हरियाणा की सरकारें भी ऐसा कानून बना चुकी हैं। देश में मध्य प्रदेश पहला ऐसा राज्य बन चुका है जिसने 18 अगस्त 2010 को इसी तर्ज का कानून बनाया है। ठीक इसके एक साल बाद जम्मू-कश्मीर ने अगस्त 2011 में पब्लिक सर्विस गारंटी एक्ट लागू किया। क्या इन राज्यों, विशेषत: मध्य प्रदेश जहां भ्रष्टाचार और पारदर्शिता संबंधी कानून देश में सबसे पहले लागू हुआ, को भ्रष्टाचार मुक्त कहा जा सकता है? पंजाब सरकार ठीक उसी तरह अपने राइट टू सर्विस एक्ट में 67 सेवाओं को अधिसूचित कर चुकी है। जैसे जम्मू-कश्मीर सरकार ने जनरल एडमिनिसट्रेशन डिपार्टमेंट (जीएडी) द्वारा जारी अधिसूचना नंबर जीएडी (एडीएम) 66/2011-5 में छह विभागों की कुल 45 सेवाओं को पब्लिक सर्विस गारंटी एक्ट में शामिल किया है। अब कुछ और सेवाओं को शामिल किया गया है। सेवा के लिए तय समय सीमा के संदर्भ में भी जम्मू-कश्मीर अन्य राज्यों से पीछे लगता है। मसलन हरियाणा में राशन कार्ड के लिए 15 दिन का समय है जबकि जम्मू-कश्मीर में 30 दिन है। इसी प्रकार इंतकाल और लर्निग ड्राइविंग लाइसेंस की समय सीमा हरियाणा में मात्र पांच दिन है जबकि जम्मू-कश्मीर में इन्हीं सेवाओं के लिए क्रमश: 30 और 15 दिन तय किए हैं। पंजाब सरकार ने राइट टू सर्विस एक्ट पर विधानसभा में विधेयक लाने से पहले एक अध्यादेश जारी करके राइट टू सर्विस एक्ट लागू किया था। देखा जाए तो इस लिहाज से सेवाओं की गारंटी देने में पंजाब अब भी जम्मू-कश्मीर से कहीं आगे है। सरकार के इस कदम को पंजाब में हो चुके विधानसभा चुनाव में सत्ता हासिल करने की रणनीति के रूप में भी देखा गया था। इसी प्रकार जम्मू-कश्मीर में पीएसजीए को भी नेकां की तीन साल बाद सत्ता वापसी के लिए अग्रिम रणनीति के रूप में देखा जा सकता है। सुनने में यह बहुत अच्छा लगता है कि राज्य में पीएसजीए के लागू होने से सरकारी कार्यालयों में फाइलों पर धूल नहीं जमेगी, मगर इसके परिणाम कैसे रहेंगे, इसे परखने के लिए थोड़ा इंतजार तो करना ही पड़ेगा। अक्सर यह देखा गया है कि कोई भी सरकार ऐसे कानून बनाते समय वोट बैंक को तो ध्यान में रखती है। इसमें कुछ गलत भी नहीं है, बशर्ते लोगों को ऐसे कानूनों का लाभ मिले। जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में यही चिंता का विषय है। आखिर राज्य में भ्रष्टाचार निरोधी प्रचलित कानून इतने कमजोर भी नहीं थे और राज्य जवाबदेही आयोग का गठन एक सराहनीय कदम था, मगर फिर भी राज्य के गले से दूसरे नंबर के भ्रष्ट राज्य का टैग नहीं उतार सका। आम जनता की नब्ज टटोल कर देखें तो ऐसा लगता है कि गनीमत है किसी गैर सरकारी संस्था ने सर्वे नहीं किया। अगर ऐसा होता तो संभव है राज्य भ्रष्टाचार में एक पायदान ऊपर उठकर पहले पायदान पर होता। नि:संदेह देश के कुछ अन्य राज्यों की नकल पर पीएसजीए को एक मील का पत्थर कहा जा सकता है, मगर शातिर बाबूशाही और अफसरशाही क्या इसमें पलीता लगाने में कोई कसर नहीं रखेगी? आखिर वर्तमान में भ्रष्टाचार है क्या? भ्रष्ट तत्व इसे जनता का खून चूसने का एक नैसर्गिक अधिकार समझते हैं। जब देश में आरटीआई और जम्मू-कश्मीर में जवाबदेही आयोग गठित हुआ था तो ऐसा लगा था कि अब भ्रष्टाचारियों की खैर नहीं और व्यवस्था में पारदर्शिता आ जाएगी। भ्रष्टाचार के कारक तो पूरे देश में समान हैं। अब देखना यह है कि चतुर चालाक बाबूशाही और नौकरशाही, जिसे नेताशाही का संरक्षण प्राप्त होता है, राज्य में पीएसजीए का कैसे मुकाबला करती है? बहरहाल यह तो समय ही बताएगा कि पीएसजीए जम्मू-कश्मीर जैसे बड़े भ्रष्ट राज्य में कैसे और कितना कारगर साबित होता है। कुछ भी हो सरकार पर भरोसा करते हुए इस कदम का फिलवक्त स्वागत ही करना होगा और यह भी देखना होगा कि सरकार पीएसजीए को लागू करवाने में कितनी और कैसे गंभीरता का परिचय देती है या फिर समय के साथ इस बहुप्रचारित कानून की भी हवा निकल जाती है।
(लेखक जेएंडके के सामाजिक विषयों के अध्येता हैं)  

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