डॉ. मोहनराव मधुकर भागवत
हमारा कर्तव्य और स्वभाव हमारे भूमि से जुड़ा है। हम देखते हैं दुनिया में, ये जो सारी बातें मैं बोल रहा हूं- जाकी रहे भावना जैसी प्रभु मुरति ..... देखहिं तैसी। अपने यहां पर सबकी मान्यता है, बाकी दुनिया में नहीं है। हमारी भावना ऐसी क्यों है? यह इसलिए है क्योंकि युगों से हमारा देश एक सुरक्षित भूमि रहा है। यातायात के साधन कम थे, घोड़ों और बैलगाड़ियों पर सवारियां होती थी। उस समय हिंदू-कुश से लेकर आराकांत की पहाड़ियों तक पूरे फैले हिमालय ने कम्पाउंड का काम किया, बाहर से कोई आने वाला नहीं है। व्यापार करने वाले इक्का-दुक्का आए, लेकिन समूह तो आएगी नहीं, सेना तो आ नहीं सकती। बाकी तीनों ओर से सागर है। तौ कौन आएगा। अंदर कोई आने वाला नहीं है, हमी लोग हैं। विस्तीर्ण भूमि है। सुजलां, सफलां, मलयज शीतलां, इसीलिए खाने-पीने के लिए पर्याप्त है। सब अपने ही लोग हैं, झगड़ा करने का स्वभाव ही नहीं बनता। बाहर से कोई आ भी गया तो हम उसको कहते हैं कि भई तू भी बस जा। बहुत बड़ा विस्तीर्ण देश है। इसलिए भाषाएं अनेक हैं, पहले से आदत है। भरपूर होता है इसलिए फूर्सत मिलती है, कम श्रमों में भरपूर देने वाली भूमि और कृषि एक मात्र साधन, ऐसा उस जमाने में था, तो फूर्सत भी रहती थी और चिंतन भी बहुत होता था। चिंतन के द्वारा लोगों ने अनुमान लगाया कि अपने-अपने तरीके से लोग सत्य को समझते हैं। सत्य को कौन कैसे समझता है इसका महत्व नहीं है बल्कि मिलजुलकर रहो। इसलिए नया कोई आता है, तो उसकी भाषा मालूम नहीं, पंथ, सम्प्रदाय मालूम नहीं, फिर भी हम कहते हैं कि ठीक है हमारे साथ रहो। ये गुण हमारी भूमि ने हमको प्रदान किया है।
रेगिस्तान में कोई पैदा हुआ तो वहां की भूमि से कुछ मिलने वाला है नहीं। दो ही मार्ग हैं- सेवा करो अथवा लूट कर लो। व्यापारियों के काफिले आते जाते हैं, वहां पर अच्छी सेवा करो, नहीं तो उनको लूटो। अच्छी सेवा से लूट करना ये सार्टकट है। चोरी से जल्दी मिलता है। आदमी के मन में धर्म का चिंतन नहीं होगा, तो आदमी नैतिकता से जल्दी भागता है। क्योंकि जिसका धर्म नहीं है वह अपने पेट को केवल देखता है। आहार, निद्रा, भय, मैथुनं च, ......। तो उधर भागता है, लेकिन आपको लूटना है तो लोग भी आपको लुटेंगे। तो आपको सदैव तैयार रहना है। सोल्जर कमेटी बनना है। और सेना में ऐसा है जो अपना है यह मालूम है वही अपना है, बाकी सब लोग शक के घेरे में है। इसलिए कट्टर स्वभाव अपने आप ही बनता है।
जिनके भूमि से बहुत ज्यादा मिलता नहीं, जीवन की आवश्यकता पूरी करनी है तो सागर लांघकर जाने के लिए नौकानयन करना पड़ता है, व्यापार करना पड़ता है। वो नौकानयन के साहसी स्वभाव के साथ-साथ व्यापार का कपट भी अपने स्वभाव में ले आते हैं। हम देखते हैं ऐसे ही स्वभाव चलता है।
हम लोगों को बार-बार वहां से विस्थापित क्यों होना पड़ा है। हमारी अपनी कमियां जो कुछ भी होंगी, वो होगी। लेकिन उसका वाह्य कारण या निमित्त कारण है यह कट्टरता। और इस कट्टरता का उपाय हमारे पास है। यदि हम वहां रहते हैं तो इस कट्टरता के विष को समाप्त कर देंग। लेकिन ये जो हमारा स्वभाव है यह अपनी भूमि के कारण बना है। और इसलिए भूमि से वियोग यानी अपने स्वभाव से वियोग। तो स्वभाव छोड़ने वालों का क्या होता है, ठीक नहीं होता है। अपने स्वभाव से वियुक्त नहीं होना चाहते तो अपनी भूमि से भी वियुक्त नहीं होना चाहते। इसलिए मैं अपने घर में रहूं, अपने जमीन पर रहूं। आप लीगलिटी या मोरलिटी में मत जाइए। ये बिल्कुस सत्य मांग है। ये तर्क वाली बात नहीं है। सत्य तर्क के परे ही होता है। दोनों हाथ की दस उंगलियों को हम बच्चों को तर्क से कभी-कभी ग्यारह बताते हैं। तो इसका कारण यह है कि वह जानता नहीं है या उसके पास ज्ञान नहीं है। हालांकि वह समझ भी रहा है कि यह झूठ है लेकिन बड़े के सामने बुद्धि नहीं चला सकता। अंत में वह कहता है कि नहीं-नहीं आप हमको मत बरगलाओ, मैं जानता हूं कि दस उंगलिया हैं। तो अपने हृदय में हम जानते हैं और किस साक्ष्य की आवश्यकता है।
लोग युक्तिवाद की बातें करते हैं लेकिन युक्तिवाद, तर्कवाद की बात ही नहीं है। युक्तिवाद और तर्कवाद की बातें करने वालों का इरादा ठीक नहीं। कितनी सीधी सी बात है कि कश्मीर के रहने वाले कश्मीर में रहें। लेकिन इसको लेकर बड़ा भारी बवाल और न जाने क्या-क्या हो रहा है। और इतनी सरल बात है वो हो नहीं रही। ये उल्टी नीति कब बदलती है, जब शिव जागृत होते हैं तब बदलती है। अपने हृदय के शिव को समाज व धर्म के लिए जागृत करना चाहिए।
पहले राजनीति अपने जगह रहती थी। वह अपने मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करती थी। हर बात में राजनीति नहीं होती थी। केवल राष्ट्र संबंध और कानून व सुव्यवस्था का नियंत्रण, इसमें राजतंत्र काम करता था। बाकी सारा समाज के नियंत्रण में था। लेकिन आज ऐसा नहीं है। मुझे नया फोन का नंबर चाहिए तो भी, गैस सिलिंडर चाहिए तो भी, सब में राजनीति आती है। कुछ न कुछ राजनीति बीच में आती है।
स्वतंत्र भारत में चार लाख विस्थापित लोग अपनी ही भूमि से उजड़ गए। ये सब ऐसे ही नहीं हुआ बल्कि इसके पीछे राजनीति ही है। इसलिए इस चर्चा में हम न पड़ें। हम इतना सोचें कि हम जहां के हैं वहां हमको स्थापित होना है। मैं यह नहीं मानता कि आप लोगों ने जाने की बात छोड़ दी है लेकिन मैं यह जरूर मानता हूं आप लोग तब तक वहां न जाएं जब तक कि भारत भक्त हिंदू सम्मानित व सुरक्षित वहां नहीं रह सकते। क्योंकि कश्मीर से हम विस्थापित कहां हुए हैं। हम तो स्वतंत्र भारत से अपने घरों से विस्थापित हुए हैं। ये भारत की चिंता का विषय है कि भारतीय नागरिक भारत के अंदर अपने घरों से निकाला जाता है। सामान्य भाषा में ऐसा हो जाए तो गुंडागर्दी के केसेज लगेंगे। लेकिन ये गुंडीगर्दी चल रही है स्वतंत्र भारत में, कानून व सुव्यवस्था सब होने के बाद। कहते हैं बाकी कानून वहां नहीं लगता क्योंकि अनुच्चेद 370 है, तो मैं कहता हूं कि इसको हटाओ। जिस किसी भी कारण से स्वतंत्र देश के नागरिक अपने घर में अपने धर्म का पालन करते हुए देशभक्त बनकर सम्मान व सुरक्षा के साथ अपनी सुरक्षा के पूर्ण मालिक बनकर नहीं रह सकते, तो उस स्थिति को बदलना चाहिए।
ये पक्की बात है, हमको इस लड़ाई के लिए सबको तैयार करना पड़ेगा। इसके लिए सारे देश को तैयार करना चाहिए। तैयारी में अनेक बातें आती हैं। आप ये मत मानें कि सारा देश आपके साथ नहीं है। इसके पहले भी हमने जनसम्पर्क अभियान कश्मीर मसले को लेकर चलाये हैं और अभी भी चल रहा है। कश्मीर का विषय लेकर स्वयंसेवक घर-घर सम्पर्क कर रहे हैं। हम तो हर स्थिति के लिए तैयार हैं। अपना तो अनुभव ऐसा है कश्मीर की समस्या में भारत के पक्ष के साथ और इस समस्या में कश्मीरी पंडितों व कश्मीरियों व हिंदुओं के दुःख-दर्द के साथ सारा समाज मन से साथ है। इससे हमारा नाता क्या है। ये केवल जमीन या पॉपर्टी नहीं कि हम इसको किसी को दे दें या बेच दें। ये हमारी माता है। आदि भावना स्पष्ट नहीं है। लेकिन ये भाव स्वार्थ के कारण धुंधली हो गई है। हम लोगों को इसको याद रखना पड़ेगा। संकट आते हैं, भयंकर संकट आते हैं, कभी-कभी लम्बे समय तक विद्यमान रहते हैं। ऐसा न हो यह हम सबकी कामना है लेकिन फिर भी होता है। ये बात ऐसी नहीं है जो वापस नहीं हो सकती। यह एक न एक दिन हम इसको वापस करके रख देंगे। इस हिम्मत को छोड़ना नहीं, इस हिम्मत को पीढ़ी दर पीढ़ी अपने नए लोगों में जगना चाहिए।
इस्रायल के लोग अपनी भूमि से 18 सौ साल बाहर रहे। कश्मीर से हम बाहर हैं लेकिन हमको अपना कहने के लिए पूरा भारत है और हमको अपना कहने वाला पूरा भारत भारतीय समाज है। यहूदियों को ऐसा नहीं था। लेकिन फिर भी वो कहते रहे, लोग हंसते थे और कहते थे कि यह कैसा सपना देख रहे हो तुम, अब हजार साल हो गए फिर भी वही कह रहे हो तुम कि हम अगले साल अपने त्यौहारों में येरुशल जाएंगे। आप हजार साल में नहीं जा पाए तो अब क्या जा पाओगे। लेकिन इस्रायल ने याद रखा। अपनी पीढ़ी दर पीढ़ी इस बात को जगाए रखा। इस्रायल दुनिया का सामर्थ्य सम्पन्न राष्ट्र यहूदी राष्ट्र के नाते दुनिया के सामने फिर से खड़ा हो गया।
लेकिन कश्मीर के संदर्भ में हमको इतना समय नहीं लगेगा। यहां बैठे हुए सबको लम्बी उम्र प्राप्त हो। सौ साल जो जी लेंगे वो अपनी आंखों के सामने देखेंगे कि फिर से कभी भी विस्थापित न होने के लिए हमारे हिंदू बंधु कश्मीर में फिर से अपने घरों में बस जाएंगे। हम देखेंगे उस बात को। इस निश्चय से इस बात को याद रखना और अपनी अगली पीढ़ी को पढ़ाना। दूसरी बात है कि इसके लिए जो करना है वो सब कुछ करना। केवल आपको ही नहीं करना बल्कि आपको तो करना है ही। इसके लिए पूरे भारत को भी करना पड़ेगा।
शिव जी के जीवन में एक ही लक्ष्य था। सतत् ब्रह्माभि संधा...। इतनी विचित्र गृहस्थी दूसरे किसी और की नहीं है। पार्वती जी दुर्गा के रूप में सिंह की सवारी करती हैं तो पास में नंदी भी बैठा है। इतना सारा समन्वय करते हुए विविधता से परिपूर्ण परिवार चलाना लेकिन ये करते हुए भी अपना ब्रह्माभि संधा... नहीं झुकने देना। यही शिव जी करते हैं। ऐसा जीवन जीकर दिखाना, ये उनका लक्ष्य है। बाकी उनको कुछ नहीं चाहिए, वे सर्वस्व त्यागी हैं। सारे देश के संदर्भ में भारतीयों को ऐसा करने का समय आ गया है। कश्मीरी बंधुओं के लिए विशेष एक बात जुड़ गई है कि हम अपने जन्मस्थान की भूमि से विस्थापित हैं। हम अपने घर से दूर भी अपनी ही भूमि पर हैं लेकिन अपने घर में नहीं हैं। वह भूमि भारत का अभिन्न अंग है। इसलिए उस विशेष तैयारी के साथ हम सब लोग प्रयास करें।
मैं जब कश्मीरी भाइयों को देखता हूं तो मेरे मन में अनायास ही आदर व सम्मान का भाव पैदा हो जाता है। लाख कष्टों को झेलते हुए भी वे लोग भारत के हैं। क्योंकि हम हिंदू हैं। हम संबंधों को मानते हैं। हम सौदों को नहीं मानते। भारतीय माटी में रचे-बसे हैं। हमें मातृभूमि की सारी दुनिया में प्रतिष्ठा के लिए जीवन जीना है। आपकी इस जीवट को मेरा प्रणाम है, उस जीवट को लगातार कायम रखने की आवश्यकता है। उस जीवट के बल पर ही हम अपनी मातृभूमि का सम्मान और अपना सम्मान वापस लाएंगे। आपका सबका धन्यवाद।
(उपरोक्त आलेख राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव मधुकर भागवत द्वारा ‘सामूहिक शिवरात्रि (हेरथ) महोत्सव – 2011’ में दिए गए उद्बोधन का संपादित अंश है। इसका आयोजन 27 फरवरी 2011 को ‘जम्मू-कश्मीर विचार मंच’ के तत्वावधान में दिल्ली के फिक्की ऑडिटोरियम में किया गया था।)
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