Monday, January 31, 2011

विलय में नेशनल कान्फ्रेंस की कोई भूमिका नहीं

डॉ. मोहन कृष्ण टेंग

आज मुझे आपके साथ एक्सचेंज ऑफ व्यू करने के लिए कहा गया है, एक ऐसे विषय पर जो बहुत ही संजीदा है। वह है अनुच्छेद-370।... वर्ष 1947 में विभाजन के बाद भारत स्वतंत्र हुआ। इसके बाद जिन लोगों को अंग्रेजों से भारत की सत्ता विरासत में मिली, उन लोगों ने राजनीतिक शक्ति जिस वर्ग को दिया, उस राजनीतिक वर्ग ने बड़े ही अक्लमंदी के साथ 1946 से लेकर 15 अगस्त 1947 तक के घटनाक्रम को छिपा दिया।

आज तक बहुत कम लोगों को मालूम है कि भारत का जो विभाजन हुआ- वह पूरे हिंदुस्तान का विभाजन नहीं था; बल्कि वह सिर्फ ब्रिटिश इंडिया का था। इसके लिए अग्रेजों और मुस्लिग लीग ने पूरा प्रयास किया कि विभाजन ब्रिटिश इंडिया का हो। अब आप पूछेंगे कि आखिर ये ब्रिटिश इंडिया क्या है? तो मैं कहना चाहूंगा कि अंग्रेजों का भारत में जो सम्राज्वादी ढांचा था, उसके दो हिस्से थे- एक था ब्रिटिश इंडिया; जो कि यह मनती थी कि इंडिया में उनकी टेरिटरी है, वह प्रांतों में विभाजित था, उसको ब्रटिश इंडिया कहते थे। इसके अलावा एक और इंडिया था जिसे इंडिया ऑफ प्रिंसीपल स्टेट्स कहा जाता था। 562 प्रिंसीपल स्टेट्स थी। दस करोड़ का 1/4 जो आबादी थी वह स्टेट्स में रह रही थी। 1/3 जो इंडिया की टेरिटरी थी उसका 1/3 स्टेट्स के तहत टेरिटरी थी।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है हमारे यहां जिस ब्रिटिश इंडिया में जो स्वतंत्रता का संग्राम हुआ था उसमें कांग्रेस लीड कर रही थी। और जहां कांग्रेस लीड कर रही थी उन क्षेत्रों में ज्यादा क्रांति हुई। जो स्वतंत्रता आंदोलन भारत में 1908 से लेकर 1933 के दौरान हुआ, वह इंडिया ऑफ प्रिंसीपल स्टेट्स में ही था। मैंने आपको यह इसलिए बताया क्योंकि ये बातें अनुच्छेद-370 के साथ बहुत हद तक जुड़ी हैं।

विभाजन सिर्फ ब्रिटिश भारत का हुआ था। मुस्लिम लीग ने इंडियन मुस्लिमों के लिए मुस्लिम होमलैंड के रूप में पाकिस्तान की मांग की। ताकि इस होमलैंड का स्वतंत्र रूप से आनंद उठाया जा सके। हिंदुस्तानी मुसलमानों के लिए इस अलग स्वतंत्रता का उद्देश्य था कि जो उनकी इस्लामिक डेस्टिनी है, उसको रियलाइज कर पाएं। खैर! इसमें और आगे हम नहीं जाएंगे।

मुस्लिम लीन ने मांगे थे सिंध, नार्थ-वेस्टर्न फ्रंटियर का प्राविंस, बलोचिस्तान, पंजाब, बंगाल और छठा आसाम का प्राविंस। इनमें से आसाम को छोड़कर शेष सभी मुस्लिम बहुल राज्य था। आसाम हिंदू बहुल राज्य था। मगर कैबिनेट मिशन के बाद कुछ कारणों से ईस्ट बंगाल से बहुत जबरदस्त मुस्लिमों का विस्थापन हुआ। उस वक्त साउथ-वेस्ट आसाम को सिलहट डिविजन कहा जाता था। यह क्षेत्र बाद में आसाम से कट गया। खैर! इसकी भी चर्चा हम नहीं करेंगे।

पाकिस्तान का निर्माण एकदम सख्ती का नताजा है। पाकिस्तान को सिंध, नार्थ-वेस्टर्न फ्रंटियर, बलोचिस्तान, पंजाब और बंगाल के मुस्लिम बहुल क्षेत्र मिले। साथ ही आसाम का सिलहट डिवीजन भी मिला। मुख्य रूप से यही पाकिस्तान का प्रादेशिक परिचय है। पाकिस्तान ने इसके अलावा सारे मुस्लिम बहुल राज्यों की मांग की थी। जिनमें से सबसे बड़ा और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जम्मू-कश्मीर था। इसके अलावा पाकिस्तान ने मुस्लिम शासित राज्य भी मांगे थे। यानी जहां के शासक मुसलमान हैं उनकी मांग की थी। यानी जो टेरिटोरियल स्टेट्स भारत के हिस्से में आ गए हैं वो भारत के साथ विलय करें। जम्मू-कश्मीर ऐसा राज्य था जिसकी सीमा दोनों देशों से लगी थी। खैर! इसमें नहीं जाउंगा। इसके बाद पाकिस्तान का कश्मीर में छद्म युद्ध छेड़ना और नेहरू के कहने पर संयुक्त राष्ट्र का युद्ध के बीच में ही हस्तक्षेप। मैंने आपको इसलिए बताया ताकि इसके पीछे की वास्तविकता आप ठीक से समझ सकें।

26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हुआ। सच्ची बात यह है कि नेशनल कांफ्रेस के अधिकांश नेता सितम्बर के मध्य तक और उनका नेतृत्व सितम्बर के अंतिम तक यानी शक्ति के हस्तांतरण के डेढ़ महीने बाद तक जेल में थे। शेख अब्दुल्ला को 29 सितम्बर 1947 को रिहा किया गया। शेख 1 या 2 अक्टूबर को श्रीगर पहुंचे। 3 अक्टूबर को उन्होंने अपने पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक बुलाई। इस बैठक में उन्होंने विलय का समर्थन करने का फैसला लिया। दरअसल, यह जनता की राय थी लेकिन इस बात को उन्होंने उजागर नहीं किया। कुछ दिन बाद मौलाना इफ्तिखारुद्दीन श्रीनगर आए। यह उनकी कई वर्षों बाद की श्रीनगर यात्रा थी। उनके साथ शेख अब्दुल्ला चुपचाप लाहौर चले गए। संभावना व्यक्त की गई कि वे लाहौर में जिन्ना के साथ कोई बातचीत करेंगे। हालांकि शेख और जिन्ना के बीच क्या क्या बातचीत हुई, यह सारी बातें गुप्त रखी गईं। मैं आपको यह बताना चाह रहा हूं कि पीठ के पीछे क्या हो रहा था, यह जानना मुश्किल था। 21 अक्टूबर को छद्म पाकिस्तानी सैनिकों ने जम्मू-कश्मीर पर हमला बोल दिया। भारत की अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लगातार पांच दिन तक इन आक्रमणकारियों के खिलाफ कोई निर्णय नहीं लिया, चुपचाप बैठे रहे।

उन दिनों मुजफ्फराबाद से श्रीनगर तक रास्ता आवागमन की दृष्टि से बिल्कुल साफ था। उस रास्ते गाड़ी आ जा सकती थी। उस वक्त मुजफ्फराबाद से श्रीनगर आने में करीब 14-15 घंटे का समय लगता था। 22 तारीख को सुबह पांच बजे पाकिस्तानी सेना पूरे मुजफ्फराबाद में फैल चुकी थी। वह शाम या दूसरे दिन सुबह तक श्रीनगर पहुंचे होते। लेकिन भारत सरकार ने हमेशा यही कहा है कि इसकी सूचना उसे 26 तारीख को मिली। जबकि 22 तारीख को 10.30 बजे प्रधानमंत्री के टेबल पर पाकिस्तानी सेना के दाखिले की लिखित सूचना पहुंच चुकी थी। लेकिन प्रधानमंत्री की हिम्मत नहीं थी कि वो गवर्नर जनरल से बातचीत करें। दूसरे दिन लंच मीटिंग पर ऐसे ही बातचीत हुई। इस आक्रमण में 38 हजार हिंदू, सिख और अंग्रेज मारे गए। यह मेरे किताबों में पहली बार आया। यह आंकड़ा आप लोगों ने पहली बार सुना होगा। यानी इस आक्रमण के खिलाफ प्रधानमंत्री नेहरू ने फैसला लेने में पांच दिन लगा दिए। इन पांच दिनों में 38 हजार लोग मारे गए। आप कल्पना कर लीजिए, यह कोई छोटी बात नहीं है।

महाराजा हरिसिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को सभी राज्यों की तरह ही विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। अन्य राज्यों से यह किसी भी तरह भिन्न नहीं था। नेशनल कांफ्रेस के कोई भी नेता को विलय की ठीक से जानकारी नहीं थी। शेख अब्दुल्ला उस वक्त दिल्ली में थे, नेहरू से मिले, उनके जान के लाले पड़े हुए थे। शेख ने कहा कि किसी भी तरह से आप सेना भेज दीजिए, विलय जैसे भी करना है आप कर दें, लेकिन जल्दी सेना भेजें, नहीं तो बहुत लोग मारे जाएंगे। इसके बावजूद नेशनल कांफ्रेंस इस बात को बार-बार दुहरा रही है कि सशर्त विलय हुआ था। उनका यह दावा सरासर झूठ है। इसकी तो बात ही नहीं हुई थी उस वक्त।

विलय पत्र का मसौदा तैयार करने में किसी अंग्रेज की भूमिका नहीं थी बल्कि स्टेट्स मंत्रालय ने तैयार किया था और सरदार पटेल इस मंत्रालय के प्रमुख थे। अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने इस मंत्रालय को राज्यों के विलय का विशेष जिम्मा सौंपा था। भारत सरकार ने शेख के जाने के पहले ही विलय की फाइल को बंद कर दिया। विलय का यही मसौदा वी.के. कृष्णमेनन और माउंटबेटन को सौंपा गया था। सरदार पटेल को भी इन सारी बातों की जानकारी थी। उस मसौदे में दूरसंचार, विदेश मामले और आंतरिक रक्षा भारत सरकार के जिम्मे था। साथ ही हर राज्य को अपना अलग संविधान बनाने का अधिकार दिया गय़ा था। कश्मीर को कोई विशेष रियायत नहीं दी गई थी। यही इंस्ट्रमेंट ऑफ एक्सेशन महाराजा हरिंसिंह ने भी साइन किया था। एक्सेशन के साइन होने में नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं की कोई भूमिका नहीं थी। साथ ही उस समय के प्रजा मंडल के सदस्यों की भी कोई भूमिका नहीं थी। यही सभी राज्यों के साथ था। नेशनल कांन्फ्रेंस के नेता सशर्त विलय की बात करके सरासर झूठ बोल रहे हैं, उसमें कोई सच्चाई नहीं है। केवल एक प्रोपेगंडा भर है।

मैंने जम्मू-कश्मीर और भारत के अभिलेखागार का 20 वर्षों तक गहन अध्ययन किया है। एक-एक कागज मैंने देखा है, जिसके आधार पर ये बातें बोल रहा हूँ। नेशनल कान्फ्रेंस की सारी बातें झूठ हैं। अब क्या हुआ, कहानी अब शुरू हो जाती है। भारती की संविधान सभा संविधान निर्माण में जुटी थी। कुछ राज्यों के बारे में समस्या थी जिसको हम सैल्युट्स स्टेट्स कहते थे। बाकी छोटे-छोटे राज्य थे।

1949 के मध्य में भारत की संविधान सभा ने अपना कार्य लगभग पूर्ण कर लिया था। उस समय यह समस्या उठ खड़ी हुई कि राज्यों का क्या किया जाए। जम्मू-कश्मीर को छोड़कर राज्यों के विलय का जो मसला है वो अभी पूरा ही नहीं हुआ था। केवल तीन राज्यों में ही संविधान सभा का निर्माण हो सका था- त्रावणकोर कोचीन, सौराष्ट्र स्टेट्स यूनियन और मैसूर।

जम्मू-कश्मीर सहित इन सभी राज्यों की दिल्ली में अप्रैल 1949 में बैठक हुई। इन राज्यों का कहना था कि यदि यही कहा जाता रहा कि विलय की प्रक्रिया पूरी हो उसके बाद संविधानसभा बने तो इसमें तो दस साल लगेंगे। इस बैठक में इन राज्यों ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए भारत सरकार को संविधान बनाने का अधिकार दे दिया। और यह निर्णय हुआ कि उन राज्यों के शासक घोषणापत्र के जरिए इस निर्णय पर अपनी मुहर लगाएं। असल में झगड़ा अब शुरू हुआ।

भारत के हर राज्य के शासकों ने यह निर्णय स्वीकार किया कि भारत की संविधान सभा जो संविधान बनाएगी वो हमे मंजूर होगा। उन शासकों में महाराजा हरिसिंह भी थे जिन्होंने ऐसी घोषणा की कि भारतीय संविधान सभा के द्वारा बनाया गया संविधान उन्हें मंजूर होगा। ये सारी बातें भारतीय अभिलेखागार में मौजूद हैं। नेशनल कान्फ्रेंस के लोगों ने यहां पर रोड़ा अटकाया। नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं ने कहा कि नहीं साहब, यह निर्णय हमें मंजूर नहीं हैं। हम अपनी संविधान सभा में अपना संविधान बनाएंगे।

इन बातों को मैं कुछ अन्य तथ्यों को रखने के बाद बाद में बताउंगा; ताकि आप आसानी से समझ सकें। उस दौरान भारत सरकार इन राज्यों को सीधे डील नहीं करती थी बल्कि इसके लिए एक समिति बनाई गई थी, वही डील करती थी। (Negotiation Commettee) इस समिति ने 14 मई 1949 को नेशनल कान्फ्रेंस की लीडरशिप को दिल्ली बुलाया। इस समिति ने कहा कि विलय के मुताबिक तो आपको भारतीय संविधान की मूलभूत बातें स्वीकार करनी होगी। क्योंकि विलय का काम पूर्ण हो चुका है। नेशनल कान्फ्रेंस ने कहा कि हमें भारतीय संविधान की एक बातें भी स्वीकार नहीं होंगी। समिति ने कहा कि ठीक है आप मत स्वीकार करें, अपना अलग संविधान बनाएं। समिति ने कहा कि इन्सट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन के कारण जम्मू-कश्मीर भारत का अंग बन चुका है। स्टेट्स मंत्रालय ने राज्यों के लिए अलग संविधान सभा की वकालत तो की ही थी साथ ही उस इन्सट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन में राज्यों के विलय कर लेने के बाद भारतीय संविधान की मूलभूत बातें स्वीकार करना प्रमुख रूप से शामिल था। झगड़ा यहां शुरू हुआ।

संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव में जनतम संग्रह की बात कही गई थी। जबकि नेशनल कान्फ्रेंस के नेता यह समझ रहे थे कि उनके पास कश्मीर को पाकिस्तान या भारत में ले जाने के लिए अभी कुछ विकल्प बचा है। इसी घटना ने नेशनल कान्फ्रेंस के नेताओं की भारतीय यूनिटी के बारे में 1947 से लेकर जनवरी 1949 तक जो दृष्टिकोण था उसको बदल दिया।

जब आप कश्मीर सरकार, उस वक्त के नेशनल कान्फ्रेंस के रिकॉर्ड्स व उनकी चिट्ठियां और भारत सरकार के बीच पत्र-व्यवहार का अध्ययन करेंगे, जो अभिलेखागार में मौजूद है; तो स्पष्ट हो जाता है कि इन्होंने आपना दृष्टिकोण बदल दिया। यानी 1949 में अनुच्छेद-370 का झगड़ा शुरू हुआ।

14 मई 1949 की बैठक में कांग्रेस नेताओं ने नेशनल कान्फ्रेंस से कहा कि हम आपको इतनी छूट नहीं दे सकते। हम आपको अलाहिदा नहीं सकते। कम से कम आपको बेसिक स्ट्रक्चर जैसे- फंडामेंटल राइट्स, टेरिटोरियल ज्यूरिस्डिक्शन ऑफ इंडिया, सिटीजनशिप ऑफ इंडिया, डाइरेक्टिव प्रिंसीपुल्स, इंडियन जूडिशिएरी और सुप्रीम कोर्ट का ज्यूरिशडिक्शन को तो आपको स्वीकार करना ही होगा। हालांकि, इन बातों को नेशनल कान्फ्रेंस ने स्वीकार कर लिया। उसने ये बातें क्यों मानी, मेरी समझ में नहीं आ रहा है। फिर कुछ ऐसा हुआ कि बैठक के दूसरे दिन यानी 15 मई 1949 की शाम को नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को एक पत्र भेजा। पत्र में एक वाक्य यह था कि बाद में आप कहते हैं कि डिसीजन नहीं हुआ। इसलिए मैं आपको इस बैठक में हुए निर्णयों की जानकारी देने के लिए यह पत्र आपको लिख रहा हूं। इसकी प्राप्ति का स्वीकृति पत्र नेहरू को मिल गया।

नेशनल कान्फ्रेंस के नेता नई दिल्ली बैठक से श्रीनगर पहुंचे। उन लोगों ने इस समझौते से आहिस्ता-आहिस्ता बाहर निकलने के प्रयास शुरू कर दिए थे।

सितम्बर 1949 में भारतीय संविधान सभा ने यह निर्णय लिया कि जम्मू-कश्मीर के बारे में समझौते के अनुसार हम प्रोविजन इन्क्लुड करेंगे। उस वक्त अंतरिम सरकार में कश्मीर मामले को गोपाला स्वामी अयांगर देख रहे थे। उन्होंने इस समझौते के आधार पर एक स्ट्रक्चर बनाया और नेशनल कान्फ्रेंस को भेज दिया। नेशनल कान्फ्रेंन ने इस सिरे से ही खारिज कर दिया। गोपाला स्वामी ने उस मसौदे में वर्णित फंडामेंटल राइट्स और डाइरेक्टिव प्रिंसीपल को छोड़ कर फिर वापस नेशनल कान्फ्रेंस को भेज दिया। जबकि नेशनल कान्फ्रेंस का कहना था कि हमें कोई भी प्रोविजन स्वीकार नहीं हैं। फिर समिति ने उनको बातचीत के लिए वापस दिल्ली बुलाया। ये लोग सितम्बर में दिल्ली आ गए।

फिर बैठक हुई, इसमें सारे लोग थे- शेख, बेग, मौलाना नसीरूद्दीन और मोतीराम बेगरा साहब। ये चार लोग जम्मू-कश्मीर से भारतीय संविधान सभा के लिए चुने गए थे। इन चार लोगों के अतिरिक्त जम्मू-कश्मीर से आए कुछ अन्य लोगों ने भी इस बैठक में हिस्सा लिया था। बैठक में कांग्रेस नेताओं ने कहा कि आप हमारे साथ समझौता किए हैं। हम कौन सा मुंह दिखाएंगे 287 सदस्यीय भारतीय संविधान सभा को। शेख ने कहा कि जम्मू-कश्मीर मुस्लिम राज्य है, वहां का काई मुसलमान भारत की संविधान सभा को स्वीकार नहीं कर रहा है। नेहरू जी इस मसले पर पटेल से मिले, पटेल तो गंभीर आदमी थे। उन्होंने कहा कि ये बातें एकदम नहीं मानेंगे। बैठक में नेशनल कान्फ्रेंस के सारे नेता खड़े हो गए और कहा- We break of the Negotiation.

इन लोगों ने जम्मू-कश्मीर की अंतरिम सरकार सहित संविधान सभा से अगले दिन इस्तीफा देने की धमकी दी। और ये सभी लोग दिल्ली के पृथ्वीराज रोड स्थित जम्मू-कश्मीर भवन में आकर बैठ गए। उस वक्त यही जम्मू-कश्मीर हाउस था।

अब उस वक्त सुरक्षा परिषद में मामला इतना बिगड़ गया था कि वहां के पश्चिमी देश भारत सरकार पर दबाव बना रहे थे। ये देश कह रहे थे कि आप ने माना है कि पाकिस्तान अपनी सेना को जम्मू-कश्मीर से बाहर निकालेगा, लेकिन पाकिस्तान कुछ समस्याओं की वजह से यह नहीं कर सका है। आप एक और बात मानिए ............... इतना होने के बावजूद भी भारत की संविधान सभा के सभी सदस्य यह विश्वास कर रहे थे कि यदि जनमत संग्रह होगा तो हम उसमें विजयी होंगे और इस कदम में नेशनल कान्फ्रेंस सहित मुस्लिमों का सहयोग मिलेगा।

इसके बाद बातचीत के लिए गोपाला स्वामी गए, उन्होंने कहा कि आप कोई प्राविजन स्वीकार मत करिए लेकिन यदि आप अनुच्छेद-1 को स्वीकार नहीं करेंगे, तब कोई समझौता नहीं हो सकता। नेशनल कान्फ्रेंस के नेताओं ने कहा कि कि अनुच्छेद-1 भी स्वीकार नहीं होगा।

स्वामी अयांगर ने इसी प्राविजन को एक शक्ल दे दी जिसको अनुच्छेद-306(A) कहा गया। इसके अनुसार केवल अनुच्छेद-1 ही जेएंडके पर लागू होगा बाकी कोई भी लागू नहीं होगा। इसमें सारा विवरण टेरिटरी का था। अनुच्छेद-306(A) को ही बाद में अनुच्छेद-370 कहा गया।

संविधान सभा में जिस दिन 306(A) बहस के लिए आया तो इसमें राज्य सरकार के बारे में थोड़ी सी हेराफेरी की गई। और जिस दिन अनुच्छेद-370 स्वीकार किया गया, उस दिन नेशनल कान्फ्रेंस ने संविधान सभा की बहस में हिस्सा ही नहीं लिया। उसने इस बैठक का बहिष्कार कर दिया। यह किसी को मालूम नहीं है। ये बात छिपाई गई है। जम्मू-कश्मीर के सभी अपेक्षित लोग आए थे लेकिन लॉबी में बैठे रहे।

आयंगर के भाषण का ¾ हिस्सा समाप्त हो जाने तक ये लोग अंदर नहीं आए। फिर इन लोगों ने सोचा कि अंदर देखें क्या होता है। बेग ने आयंगर को धमकी दी कि मैं संशोधन पेश करुंगा, संविधान सभा के सदस्य घबरा गए थे कि यदि इन लोगों ने संशोधन लाया तो इसका असर बहुत बुरा होगा। शायद ये लोग सुरक्षा परिषद के फैसले के कारण ही अंदर गए थे और वह भी दो-ढ़ाई घंटे बाद जब अधिकांश बहस समाप्त हो चुकी थी। उस वक्त संविधान सभा के अध्यक्ष ने इनकी तरफ देखकर बार-बार यह दुहराते हुए कहा कि यदि जम्मू-कश्मीर के प्रतिनिधि कुछ अपनी बात रखना चाहते हैं तो आपका स्वागत है, आप अपने मत रखें। लेकिन इन लोगों ने कुछ भी नहीं बोला और चुपचाप बैठे रहे। यानी अनुच्छेद-370 इनके बिना सहयोग के ही पास हो गया। इनको छोड़कर शेष सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से पास किया।

इसके बाद शेख अब्दुला और बेग बाहर आ गए। इन लोगों ने आयंगर को एक पत्र दिया जिसमें लिखा था कि यदि आप पुनर्विचार नहीं करते तो हम राज्य की अंतरिम सरकार व भारतीय संविधान सभा से इस्तीफा दे देंगे। संयोग देखिए, उस वक्त नेहरू अमेरिका में थे। आयंगर इतना घबरा गये थे, ये बातें मैं किन शब्दों में आपको बताऊं। इसके बाद आयंगर ने यह पत्र शेख को वापस भेज दिया। जैसे एक निःसहाय आदमी किसी के सामने हाथ जोड़कर रो पड़ता है, आयंगर ने कहा- “मैंने आपका क्या बिगाड़ा है। आप इस्तीफे की बाद तब तक न करें जब तक कि नेहरू वापस न आ जाएं।” आयंगर नेशनल कान्फ्रेंस के नेताओं के समक्ष एकदम गिड़गिड़ा रहा था। यानी उनके ऊपर इतनी घबराहट और इतना दबाव था। इन लोगों ने इस्तीफा तो नहीं दिया मगर उसी वक्त यह फैसला हुआ कि अनुच्छेद-370 को जो संविधान सभा ने स्वीकार किया है उसको कमजोर (अंडरमाइन) करना है। सिड्यूल-1 में जिसमें जम्मू-कश्मीर को शामिल किया गया था इसको खत्म कर दिया गया। अगर आयंगर ने ये बाते नहीं मानी होतीं तो भारत और उनके ऊपर कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ता। पता नहीं क्यों वे घबरा गए थे, यह समझ से परे है।

(यह आलेख डॉ. मोहन कृष्ण टेंग द्वारा “जम्मू-कश्मीर : तथ्य, समस्याएं और समाधान” विषयक सेमीनार में दिए गए व्याख्यान का सम्पादित अंश है। सेमीनार का आयोजन 25 व 26 जनवरी, 2011 को “जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र” ने जम्मू के अंबफला स्थित कारगिल भवन में किया था।)

Saturday, January 29, 2011

भारतीय सम्प्रभुता के खिलाफ है अनु्च्छेद-370 : प्रो. टेंग

डॉ. मोहन कृष्ण टेंग कश्मीर विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष हैं। वे दिसम्बर 1991 में विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने जम्मू-कश्मीर समस्या का गहनतम अध्ययन किया है। उनकी कश्मीर मामले पर कई पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं; जिनमें- कश्मीर अनुच्छेद-370, मिथ ऑफ ऑटोनामी, कश्मीर स्पेशल स्टेटस, कश्मीर : कांस्टीट्यूशनल हिस्ट्री एंड डाक्यूमेंट्स, नार्थ-इस्ट फ्रंटियर ऑफ इंडिया, प्रमुख हैं। उनका मानना है कि कश्मीर की वर्तमान समस्या के पीछे पंडित नेहरू और भारत का राजनैतिक प्रतिष्ठान प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार है। श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा न फहराने देने के प्रति उमर सरकार की प्रतिबद्धता और केंद्र सरकार की अपील को भी वे उचित नहीं मानते। उनका कहना है कि दोनों सरकारों का यह रवैया भारतीय संविधान की मूल भावनाओं के खिलाफ है। डॉ. टेंग पिछले सप्ताह जम्मू के अम्बफला स्थित कारगिल भवन में आयोजित जम्मू-कश्मीर : तथ्य, समस्याएं और समाधान विषयक दो दिवसीय (25 व 26 जनवरी) सेमीनार में हिस्सा लेने आए थे। इसका आयोजन जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र ने किया था। इस दौरान विश्व हिंदू वॉयस से जुड़े पवन कुमार अरविंद ने उनसे विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत है अंश-

Que. जम्मू-कश्मीर राज्य के भारत में विलय के संबंध में उमर अब्दुल्ला के बयान पर आपका क्या कहना है?
Ans. हां, मैंने भी सुना था। राज्य विधानसभा में सशर्त विलय की बात उमर ने कही थी। लेकिन ऐसा कोई समझौता तो नहीं हुआ था। विलय का अधिकार राज्यों के राजाओं को था। महाराजा हरिसिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, जो एकदम पूर्ण था। यह विलय अन्य राज्यों से किसी भी प्रकार से भिन्न नहीं था। गवर्नर जनरल ने उसको स्वीकार भी कर लिया था। विलय के हस्ताक्षर होने में नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं की कोई भूमिका नहीं थी। साथ ही उस समय के प्रजा मंडल के सदस्यों की भी कोई भूमिका नहीं थी। हालांकि 3 अक्टूबर को श्रीनगर में हुई नेशनल कान्फ्रेंस की बैठक में शेख ने विलय का समर्थन करने का फैसला लिया था। यह जनता की राय थी लेकिन इस बात को उन्होंने उजागर नहीं किया।

विलय पत्र का जो मसौदा तैयार किया गया था उसमें किसी अंग्रेज की भूमिका नहीं थी; बल्कि गृह मंत्रालय ने तैयार किया था। इस मंत्रालय के प्रमुख सरदार पटेल थे। अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पटेल को राज्यों के विलय का विशेष जिम्मा सौंपा था। विलय का यही मसौदा वी.के. कृष्ण मेनन और माउंटबेटन को सौंपा गया था। नेशनल कांफ्रेस के किसी भी नेता को विलय की ठीक से जानकारी नहीं थी। भारत सरकार ने शेख अब्दुल्ला के दिल्ली पहुंचने से पहले ही उस फाइल को बंद कर दिया। शेख पंडित नेहरू से मिले, उनके जान के लाले पड़े हुए थे। शेख ने कहा कि किसी भी तरह से आप जम्मू-कश्मीर में सेना भेज दीजिए, विलय जैसे भी करना है आप कर लें, लेकिन जल्दी सेना भेजें, नहीं तो बहुत लोग मारे जाएंगे। जबकि विलय की प्रक्रिया पूर्ण कर फाइल बंद कर दी गई थी। इसके बावजूद आज नेशनल कांफ्रेंस इस बात को बार-बार दुहरा रही है कि सशर्त विलय हुआ था। उनका यह दावा सरासर झूठ है। उस वक्त इसकी तो बात ही नहीं हुई थी।

Que. क्या संविधान में अनुच्छेद-370 शामिल करने के पीछे विलय की भी कोई भूमिका है?

Ans. अरे भई, 26 अक्टूबर 1947 को ही विलय का कार्य पूर्ण हो चुका था। विलय से अनुच्छेद-370 का कोई संबंध नहीं है। झगड़ा तो विलय के दो वर्ष बाद यानी 1949 में शुरू हुआ। वर्ष 1949 के मध्य तक संविधान सभा ने अपना कार्य लगभग पूर्ण कर लिया था। लेकिन यह समस्या उठ खड़ी हुई कि राज्यों का क्या किया जाए। अन्य राज्यों के विलय का मसला अभी पूर्ण नहीं हुआ था। इसको सुलझाने के लिए जम्मू-कश्मीर सहित सभी राज्यों की दिल्ली में एक बैठक हुई थी। इन राज्यों का कहना था कि यदि यही कहा जाता रहा कि विलय की प्रक्रिया पूरी हो, उसके बाद संविधान सभा बने, तो इस प्रक्रिया में 10 साल लग जाएंगे। विदित हो कि गृह मंत्रालय ने विलय के मसौदे में राज्यों के लिए अलग संविधान सभा की वकालत की थी। इस बैठक में इन राज्यों ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए भारत सरकार को संविधान बनाने के लिए अधिकृत कर दिया। इस दौरान यह तय हुआ कि उन राज्यों के शासक घोषणा-पत्र के जरिए इस निर्णय पर अपनी मुहर लगाएं। भारत के हर राज्य के शासकों ने यह निर्णय स्वीकार किया कि भारत की संविधान सभा जो संविधान बनाएगी, उन्हें मंजूर होगा। उन शासकों में महाराजा हरिसिंह भी थे जिन्होंने ऐसी घोषणा की कि भारतीय संविधान सभा के द्वारा बनाया गया संविधान उन्हें मंजूर होगा। ये सारी बातें भारतीय अभिलेखागार में मौजूद हैं। नेशनल कान्फ्रेंस के लोगों ने यहां पर रोड़ा अटकाया। उन्होंने कहा कि यह निर्णय हमें मंजूर नहीं हैं। हम अपनी संविधान सभा में अपना संविधान बनाएंगे। हम भारतीय संविधान की कोई बात स्वीकार नहीं करेंगे। जबकि इन्सट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन में राज्यों के विलय कर लेने के बाद भारतीय संविधान की मूलभूत बातें स्वीकार करना प्रमुख रूप से शामिल था। गृह मंत्रालय ने 14 मई 1949 को नेशनल कान्फ्रेंस के नेताओं को दिल्ली बुलाया। मंत्रालय ने कहा कि विलय के मुताबिक आपको भारतीय संविधान की मूलभूत बातें स्वीकार करनी होंगी। नेशनल कान्फ्रेंस ने कहा कि हमें भारतीय संविधान की एक बात भी स्वीकार नहीं होगी। असल में झगड़ा यहीं से शुरू हुआ।

Que. यदि भारत सरकार नेशनल कान्फ्रेंस की बातें नहीं मानती तो क्या होता?
Ans. कुछ नहीं होता। विलय की प्रक्रिया नेशनल कान्फ्रेंस के रोड़ा अटकाने से दो वर्ष पहले ही पूरी हो चुकी थी। विलय को नेशनल कान्फ्रेंस को मानना ही पड़ता। लेकिन सरकार ने उसको झूठ में महत्व दिया। अगर सरकार ने ये बातें नहीं मानी होतीं तो देश के ऊपर कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ता। इसको लेकर नेहरू क्यों घबरा गए थे, यह समझ से परे है।

Que. पंडित नेहरू कश्मीर की वर्तमान स्थिति के लिए कहां तक जिम्मेदार हैं?
Ans. 21 अक्टूबर 1947 को छद्म पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सीमा में प्रवेश किया। 22 तारीख को सुबह पांच बजे पाकिस्तानी सेना पूरे मुजफ्फराबाद में फैल चुकी थी। इस संदर्भ में भारत सरकार का कहना था कि इसकी सूचना उसे 26 तारीख को मिली। जबकि 22 तारीख को 10.30 बजे अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के टेबल पर पाकिस्तानी सेना के दाखिले की सूचना लिखित रूप से पहुंच चुकी थी। इसके बावजूद नेहरू की हिम्मत नहीं थी कि वे गवर्नर जनरल से बातचीत करते। इसकी चर्चा दूसरे दिन लंच मीटिंग के दौरान हुई।

Que. तो आपका कहना है कि पाकिस्तानी आक्रमण के खिलाफ नेहरू ने फैसला लेने में पांच दिन लगा दिए?
Ans. हां, यदि उन्होंने सूचना मिलने के तुरंत बाद इसके खिलाफ कार्रवाई की होती; तो न पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की समस्या उत्पन्न होती और न ही इस आक्रमण में इतने लोग मारे गए होते। इन पांच दिनों में 38 हजार लोग मारे गए। इसमें हिंदू, सिख और अंग्रेज शामिल थे। आप कल्पना कर लीजिए, यह कोई छोटी बात नहीं है। यही नहीं नेहरू ने दूसरी बड़ी गलती यह की कि एक ओर जब भारतीय सेना पाकिस्तानी आक्रमणकारियों को खदेड़ रही थी तो बीच में ही जीती हुई लड़ाई को वे संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गए। उनमें लड़ने की हिम्मत नहीं थी, वह डरपोक थे।

Que. क्या अनुच्छेद-370 भारत की सम्प्रभुता के खिलाफ है?
Ans. इससे भारत का कोई हित नहीं जुड़ा है। यह देश की सम्प्रभुता के खिलाफ है ही; लोकतंत्र और सेकुलरिज्म की मूल भावना के भी खिलाफ है। सबसे प्रमुख बात यह है इसके कारण नागरिकों के मूलाधिकार, नागरिकता का अधिकार, सुप्रीम कोर्ट का अधिकार-क्षेत्र स्वीकार नहीं है। यही भारतीय संविधान का मूल है।

Que. अनुच्छेद-370 हटाने से कश्मीर समस्या समाप्त हो जाएगी, आपका क्या कहना है?

Ans. जम्मू-कश्मीर की समस्याएं हिंदुस्तान की सारी समस्याओं का एक प्रमुख हिस्सा है। दूसरी बात यह है कि कम से कम एक जो अनिश्चितता है वो तो खत्म हो जाएगी। भारतीय संविधान की दृष्टि से समानता के साथ ही जम्मू-कश्मीर और देश के अन्य राज्यों के नागरिकों के बीच भी समानता आ जाएगी। जम्मू-कश्मीर के नागरिकों की नागरिकता दोहरी नहीं रह जाएगी। दो विधान और दो निशान खत्म हो जाएंगे।

Que. क्या भारतीय संसद अनुच्छेद-370 को समाप्त कर सकती है?

Ans. हां, वह ऐसा कर सकती है। यह अनुच्छेद-370 भारतीय संविधान में अस्थाई संक्रमणकालीन विशेष उपबंध के रूप में शामिल किया गया था; फिर हटाने में कोई समस्या नहीं है। संसद के पास संशोधन और अभिनिषेध; दोनों करने का अधिकार है। लेकिन इसके लिए हमारे नेताओं के पास दृढ़-इच्छाशक्ति का अभाव है, नहीं तो यह समस्या कभी की समाप्त हो जाती। संसद केवल संविधान की मूल भावना के खिलाफ नहीं जा सकती।

Que. कश्मीर की वर्तमान समस्या के पीछे क्या आप अमेरिका की भी कोई भूमिका देखते हैं?

Ans. नहीं, अमेरिका की कोई भूमिका नहीं है। मेरा मानना है कि पहले भी कोई भूमिका नहीं रही है। पाकिस्तान को छोड़कर किसी अन्य देश की ऐसी कोई भूमिका नहीं है। इस समस्या के पीछे भारत का राजनैतिक प्रतिष्ठान ही मूल रूप से जिम्मेदार है।

Que. लाल चौक पर तिरंगा न फहराने देने की उमर सरकार की प्रतिबद्धता कहां तक उचित है?

Ans. यह सरासर अनुचित और संविधान के विरूद्ध है। यही बात तो अलगाववादी भी कर रहे हैं। फिर सरकार और अलगाववादियों में क्या अंतर बचता है।

Que. लेकिन राज्य और केंद्र की सरकार एक स्वर में बोल रही थी कि तिरंगा फहराने से राज्य में काफी समय बाद स्थापित अमन-चैन बिगड़ने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा?
Ans. जहां तक तिरंगा फहराने की बात है तो केवल इतना ही होता न कि दो चार आतंकवादी आ जाते और गोली चलाकर कुछ लोगों को मार डालते, इससे ज्यादा तो कुछ नहीं होता। इसके बावजूद भाजपा कार्यकर्ताओं को तिरंगा फहराने नहीं दिया गया। वे तो प्राणों की आहुति देने को भी तैयार थे। उन्हें पठानकोट और माधवपुर में रोक दिया गया। क्या आप अमन-चैन के बहाने राष्ट्र-ध्वज को फहराने से किसी को रोक सकते हैं? दरअसल भारत सरकार के पास कोई साहस ही नहीं है; नहीं तो कोई कड़ा कदम उठाती।

Que. केंद्र द्वारा नियुक्त वार्ताकारों का दल कश्मीर समस्या को सुलझाने की दिशा में क्या कुछ आवश्यक पहल कर पाएगा, आपको क्या लगता है?

Ans. सबसे मुख्य बात है कि वार्ताकारों में किसी को भी जम्मू-कश्मीर की स्थानीय भाषा की जानकारी नहीं है। फिर ये त्रि-सदस्यीय वार्ताकार स्थानीय लोगों की भाषा कैसे समझते होंगे। मुझे तो इसी बात पर हैरानी हो रही है। राज्य के संदर्भ में आवश्यक पहल तो दूर की कौड़ी है।

Que. जम्मू-कश्मीर से संबंधित आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट (एएफएसपीए) को हटाने या इसके नियमों में ढील देने की मांग उठती रहती है, कहां तक उचित है?
Ans. कुछ नहीं, यह केंद्र और राज्य सरकार कर रही है। ये बेकार का प्रोपेगंडा है। यदि इसमें संशोधन होगा तो सेना के पास कार्य करने का कोई रास्ता नहीं बचेगा, उसके हाथ बंध जाएंगे।

Thursday, January 27, 2011

देश की सम्प्रभुता के खिलाफ है अनुच्छेद-370 : प्रो. टेंग

जम्मू। “जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र” ने 25 व 26 जनवरी, 2011 को जम्मू के अम्बफला स्थित कारगिल भवन में एक सेमीनार का आयोजन किया। इसका विषय था- “जम्म-कश्मीर : तथ्य, समस्याएं और समाधान”। इसमें कश्मीर विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. मोहन कृष्ण टेंग, प्रो. काशीनाथ मिश्रा, प्रो. हरिओम, वरिष्ठ पत्रकार श्री संत कुमार शर्मा और डॉ. बजरंग लाल गुप्ता सहित कई विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए।

सेमीनार के उद्घाटन सत्र में नई दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार एवं “जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र” से जुड़े श्री आशुतोष भटनागर ने अध्ययन केंद्र के उद्देश्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला।

इस दौरान प्रमुख रूप से सुरेश, वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र सहगल, नई दिल्ली के पत्रकार पवन कुमार अरविंद, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता देवेंद्र शर्मा, हिंदुस्थान समाचर के बलवंत, उपेंद्र सहित कई प्रमुख लोग उपस्थित थे।

(प्रो. मोहन कृष्ण टेंग)


(प्रो.काशीनाथ मिश्रा)


(प्रो. हरिओम)

(वरिष्ट पत्रकार श्री संत कुमार शर्मा)

(सेमीनार में अध्यक्षीय उद्बोधन देते डॉ. बजरंग लाल गुप्ता)

Monday, January 24, 2011

Trains carrying BJYM workers diverted

Jammu Tawi, January 23
Rashtriya Swyamsevak Sangh (RSS) has vetoed the secret pact between government and Bhartiya Janta Party (BJP) over Ekta Yatra and plan for flag hoisting at Lal Chowk in Srinagar on January 26.Following the veto, a confrontation between state government and the saffron brigade is imminent as both the sides are fully geared up for the showdown. Even as J&K Police has launched a crackdown to foil the flag hoisting plan, sources informed that a number of BJP and its youth wing activists have managed to enter the state. According to sources in the Sangh Parivar, RSS has made it clear that hoisting of national tricolour at Lal Chowk by a handful of BJP leaders under government sponsorship is not priority but a message to the nation that despite being an integral part of India, nationalistic forces are not allowed to exercise such activities here.This was conveyed to the BJP leadership during an emergency meeting with RSS, late last night, sources informed adding that following the development,
4000 cops reach Lakhanpur, traffic suspended

Punjab refuses to help Jammu administration

By Sanjeev Pargal
JAMMU, Jan 23: Administration in Punjab today flatly refused to come to the help of authorities in Kathua district in stopping BJYM’s ‘Ekta Yatra’ from entering Lakhanpur, the gateway of Jammu and Kashmir prompting police and civil administration in Kathua to give a final touch to the measures to stop the yatra as soon as it enters the State on January 25 "at any cost’’.
Four thousand Central Reserve Police Force (CRPF), Jammu and Kashmir police and Haryana police personnel(40 companies) beside two platoons of lady constables have been stationed in full battle dress in Kathua district and will take positions at Lakhanpur on Jammu-Punjab border tomorrow evening to stop BJYM’s ‘Ekta Yatra’ at the gateway of Jammu and Kashmir "come what may".
All kind of vehicular movement at Lakhanpur from Punjab and all other States is being stopped from January 24 morning to ensure that no BJP or BJYM worker could manage to enter the State in the guise of Mata Vaishno Devi pilgrim or other passengers. All routes leading from Punjab and Himachal Pradesh to Kathua, which skipped Lakhanpur, including from Bani, Basohli and Billawar have also been completely sealed.
While prohibitory orders were clamped in Kathua district today, similar restrictions will be imposed in Jammu and Samba districts tomorrow to thwart any move by the BJP and BJYM leaders and activists to march towards Jammu and Srinagar from these two districts, police sources said.
Gareeb Dass ‘GD’, DIG (Crime, Intelligence and Vigilance) in Police Headquarters has been designated as Officer on Special Duty to stop ‘Ekta Yatra’ at Lakhanpur when it would enter there after a rally at Madhopur in Punjab, bordering J&K, on January 25 morning. Several Revenue officials have been designated as Magistrates and would be deployed at various places between Lakhanpur to Kathua.
Official sources told the Excelsior that district administration of Kathua including SSP J L Sharma and Deputy Commissioner Zahida Khan besides OSD ‘GD’, DIG, met their Gurdaspur counterparts SSP Virender Pal Singh, Deputy Commissioner Prithvi Chand and SDM Pathankot Virender Pal Walia this evening seeking their help in controlling the mob along with them between Madhopur and Lakhanpur.
However, the Punjab officials flatly refused to oblige the officials of Kathua on the ground that they were under instructions from the Punjab Government to allow peaceful rally at Madhopur on January 25 and then let the yatra move towards Jammu. It may be mentioned that BJP is a coalition partner along with Shiromani Akali Dal in Punjab Government
Later, ADGP Law and Order K Rajendra and IGP Jammu Dilbag Singh visited Lakhanpur and discussed the strategy to be adopted for stopping the yatra.
Immediately after their return, the senior police and civil officers in Kathua held their meeting at the district headquarters and gave a final touch to their strategy. Principal PTTS Kathua Ashok Sharma and Principal PTTS Vijaypur Pran Nath Sharma also joined the meeting as majority of their recruits have been deployed for maintaining law and order.
After a thorough review of the situation, the administration decided to stop every kind of vehicular movement towards Jammu from Punjab and other States from January 24 morning a day ahead of the scheduled entry of yatra to prevent BJP and BJYM activists from reaching Jammu.
Lakhanpur was divided into 7 sectors, each headed by a DySP. Twenty four gates have been installed at Lakhanpur. Riot control, water canon and teargas vehicles have moved into the town.
"All security arrangements would be put in place from tonight. We are equipped with CRPF, JKP and Haryana police with adequate number of lady constables. Magistrates have also been designated. Police and para-military personnel are fully geared to stop the yatra at Lakhanpur with minimum use of force’’, OSD Gareeb Dass told the Excelsior on telephone from Kathua.

He said no vehicle would be allowed to enter Lakhanpur from tomorrow morning. This restriction was also necessitated to prevent the civilians from getting trapped in any action against the ‘Ekta Yatra’. Police officers were confident that the senior leaders accompanying the yatra would prevail upon their workers and return from Lakhanpur peacefully on being stopped. However, they said, if they tried to forcibly enter the State and violate prohibitory orders "we will act and take all possible measures at our command to push them back’’.
Sources said 40 companies of para-military CRPF and police comprising about 4000 personnel including lady cops, have been kept at the disposal of district administration in Kathua and would move towards Lakhanpur tomorrow to take position to stop BJYM president Anurag Thakur led ‘Ekta Yatra’ tomorrow morning. One company of Haryana Police, which was at the disposal of Jammu Police, has also been shifted to Kathua. More force could be rushed-in if required, they added.
The ‘nafri’ has been mobilized from different districts of Jammu region and sent to Kathua. At least six other points, which lead from Madhopur to different parts of Kathua skipping Lakhanpur, have also been completely sealed by police and para-military personnel to prevent clandestine entry of BJYM workers from Punjab.
Sources said prohibitory orders under Section 144 CrPC have been imposed in Kathua district by the District Magistrate while similar restrictions are being imposed in Samba and Jammu districts tomorrow. Depending upon the situation, the prohibitory orders could also be clamped in Udhampur district.
According to sources, the passenger buses from twin border districts of Rajouri and Poonch have also been restricted. The restrictions would continue till January 25.
Sources said a number of people were sent to Katra town by the authorities after they boarded off the trains at Jammu as the administration anticipated them as the BJP and BJYM workers. This has added rush to the yatra, which today crossed 18,000 as against average of 10,000 to 12,000. Authorities feared that the BJP activists could try to march towards Tikri on Jammu-Srinagar highway from Katra, where they were being sent from the Railway Station.
Sources said the authorities were in dilemma as how to check the arrival of BJYM workers from the trains. They were in touch with Railways authorities on this issue.
The BJYM ‘Ekta Yatra’, as per the revised schedule, would enter Lakhanpur on January 25 morning after holding a rally at Madhopur, the last town of Punjab on J&K border.
Police said they would request the BJYM leaders and workers to return peacefully from Lakhanpur as the State Government has decided not to allow the yatra to enter the State on the ground that it could disturb peaceful atmosphere in the Valley.
The BJYM yatra had taken off from Kolkata on January 12 and proposed to reach Srinagar on January 26 to hoist tricolor at Lal Chowk on the occasion of Republic Day on January 26.
However, police warned that any one trying to violate the prohibitory orders and forcing entry into the State from Lakhanpur, would be dealt with under law. The police and para-military personnel would act as per the directions of senior police officers and Magistrates deployed at Lakhanpur.
"We will implement the Government directions not to allow the yatris in. That is very clear. The BJP and BJYM leaders have been apprised of the Government decision at the appropriate level. Still, if they try to violate the law, they will have to face the consequences’’, police said.
They added that police have planned to disperse the BJYM leaders and workers from Lakhanpur as it wouldn’t be possible to arrest such a large number of persons. However, if required, a Guest House has been kept as a stand-by jail to keep the BJYM leaders while the workers will be lodged in District Police Lines (DPL), Kathua. But, they too would be packed off in buses and sent back immediately after their detention. According to police, the priority would be to send back all the yatris from Lakhanpur itself.
Intelligence agencies have reports that since both the neighbouring States of Himachal Pradesh and Punjab are ruled by BJP along with their ally, a large number of people would gather at Madhopur especially from Himachal as Anurag Thakur happened to MP of the State and son of Chief Minister Prem Kumar Dhumal.
"It would be an uphill task to disperse such a large number of rallyists unless they decide to revert on their own. Therefore, police and para-military personnel have been equipped with teargas shells, lathis and other equipments’’, sources said.
They added that Deputy Commissioner, Jammu, Sanjeev Verma today called the State BJP leaders to discuss with them their proposed rally at Parade Ground on January 25. However, the BJP leaders didn’t turn up for the meeting.
The Deputy Commissioner has denied permission for holding the public meeting at Parade Ground to the BJP.
Sources said a strategy was in place at Samba, Jammu and Udhampur districts from where the BJP and BJYM activists could try to march towards Srinagar to hoist tricolor at Lal Chowk. All the BJP and BJYM leaders and activists trying to march towards Srinagar would be detained, they added.
In fact, sources didn’t rule out the possibility of police making preventive arrests during next two days in different parts of Jammu to ensure that the BJYM workers didn’t manage to move towards Srinagar.
"If at all, the BJP and BJYM workers managed to move towards Srinagar, they would be detained under Section 144 CrPC and in anticipation of breach of peace’’, sources said, adding police and para-military personnel will be deployed in adequate strength from tomorrow.
DIG Jammu-Kathua range Farooq Khan said, hopefully, good sense would prevail upon the BJP leaders and workers and they would return from Lakhanpur. Otherwise, he added, all steps would be taken to stop the yatra at Lakhanpur and prevent any march of BJP activists from Jammu.


Trains carrying BJYM workers diverted
BJP deplores PM, firm on hoisting flag at Lal Chowk
NEW DELHI/SRINAGAR, Jan 23: Hitting back at Prime Minister Dr Manmohan Singh for veiled advice against Bharatiya Janata Yuva Morcha Ekta Yatra from Kolkata to Srinagar, the BJP today made it clear the yatra would not be rolled back and demanded curbs on separatists rather than on ‘yatris’ as security was further beefed up in the Valley and Central Reserve Police Force(CRPF) braced up to hoist the tricolour at the Lal Chowk on Republic Day.
The CRPF will hoist the National Flag at Lal Chowk, the nerve centre of the summer capital, Srinagar, on the 62nd Republic Day when Bharatiya Janata Party (BJP) has also decided to unfurl the tricolour in the same area.
Security forces have intensified security arrangements across the Kashmir valley, particularly in and around the Bakshi stadium, venue for the main function.
"The Commandant of local CRPF Battalion will hoist national flag on Palladium post at the historic Lal Chowk,’’ CRPF spokesperson Prabhakar Tripathi said. "This is nothing new as we have been hoisting the flag on Palladium post since it was set up there,’’ he said.
CRPF and other security forces across the Kashmir valley are unfurling the tricolour on their respective posts to celebrate the Day. Similar flag hoisting ceremonies are also held on Independence Day, he added.
A report from Ahmednagar said police and railway officials here hoodwinked Bharatiya Janata Party activists headed to Jammu and Kashmir for the Republic Day flag hoisting and shunted their special train back to Karnataka early today.
The Bengaluru-New Delhi Karnataka Express, whose 18 bogies were full of Karnataka BJP youth activists, arrived at Sarola station in the district and was due for onward departure to the north. The activists, estimated at around 1,500, were scheduled to join other colleagues from different States for the party’s Tiranga Yatra in Srinagar on January 26.
In a related development, J&K State vice president of the BJP Sofi Yousuf was taken into preventive custody by police last night. The arrest of Mr Yousuf came few hours after police arrested six BJP activists from Lal Chowk area when they were distributing some posters.
Police have intensified a vigil in Lal Chowk and its adjoining areas and hotel owners have been directed to inform police about the guests staying there.
Official sources said it was a preventive measure to avoid any law and order situation in Srinagar, where the BJP has decided to hoist the national flag at Lal Chowk on January 26 despite permission being denied by the Government. They said Mr Yousuf was taken into preventive custody last night in the summer capital, Srinagar.
Mr Yousuf was among a four-member BJP delegation that met Inspector General of Police (IGP) S M Sahai, seeking permission and security for flag hoisting ceremony.
However, Mr Sahai has asked them to seek permission to district magistrate (DM), Srinagar. However, the DM has refused permission in view of the threat to peace in the Valley.
Police said there are intelligence inputs that BJP and JKLF activists are planning to stay in the hotels and other buildings in the area to come out on January 26 in Lal Chowk for hoisting flags.
Police reportedly searched the BJP office here yesterday and also seized some flags and posters.
Meanwhile, two youths were today detained near the Lal Chowk here as authorities have increased the vigil around the area to prevent BJP’s plan of flag hoisting.
"We have detained two youths as they were moving in a suspicious manner near the Clock Tower in Lal Chowk," a police officer said.
Official sources said the two were BJP activists and carrying a flag for hoisting it on the Clock Tower.
BJP activists might try to hoist the tricolour on the Clock Tower even before the Republic Day in view of the State Government’s decision to not allow the party to succeed in its plans, they said.
Flatly rejecting Prime Minister’s advice to exercise restraint in hoisting the national flag on Republic Day, the BJP today asserted that the party would go ahead with its Yuva Morcha Ekta Yatra and hoist the tricolour on January 26.
Expressing concern over unleash of fear and repression against the BJP Yuva Morcha activists seeking to join the Ekta Yatra in Jammu and Kashmir, leader of Opposition in Rajya Sabha, run Jaitley told reporters that the party was not at all apologetic to hoist the national flag in Jammu and Kashmir as well as other parts of the country.
"Flag hoisting is a peaceful assertion of the citizens to express the sense of national pride on Republic Day and the party is determined to go ahead with this peaceful assertion,’’ he said.
Alleging that the State and Central forces were trying to prevent the entry of BJP youths to join the Yatra, Mr Jaitley said it was reminiscent of what happened in Jammu and Kashmir in 1953 when Jansangh founder Shyama Prasad Mukherjee entered the State without permit.
Fifty-eight years later, the same Governments are unleashing repression on the youth in a meek psychological surrender of the separatists, Mr Jaitley said.
The BJP leader said that the Ekta Yatra which started on January 12 had crossed 11 provinces and would enter Jammu and Kashmir through Lakhanpur. "We are getting reports that J&K Government will prevent the youth from entering the State. This kind of fear and repression by the State and Central Government forces is nothing but overreaction. The Yatra is against the separatist forces and has been peaceful throughout,’’ he said.
He further said the Prime Minister should explain how and why the hoisting of national flag is a devisive act and we totally reject this attitude.
Mr Jaitley said the Centre was a mute spectator when separatist forces were holding seminars discussing the ways of secession in the name of "free expression". The same Government feels that hoisting of national flag is divisive act. ‘’We condemn this psychological surrender.’’
As Dr Singh called for maximum restraint in sensitive areas like Jammu and Kashmir vis-a-vis the BJP’s youth wing’s plan of hoisting the national flag in Srinagar, the party’s patriarch L K Advani today said curbs should be targeted to those who have declared that the national flag would not be allowed to put up there.
"If the rationale for the prohibitory orders is apprehension of breach of peace, curbs should be targeted towards those who have declared that they will not let the tricolour be put up at the Lal Chowk and certainly not against those who have been repeatedly asserting that they will peacefully, and respectfully, unfurl the Tricolour at Lal Chowk,’’ Mr Advani wrote in the latest posting titled ‘Let not the State surrender to separatist’ on his blog.
Mr Advani said, "I wish the PM realises that these young men (BJP Yuva Morcha) led by Anurag Thakur are not trying to score a political point; they are challenging the separatists. And the State is surrendering to them !’’
Mr Advani also cited a Supreme Court judgement in relation to the citizen’s right to fly the national flag a fundamental right subject only to reasonable restrictions spelt out in two statutes.

The former Deputy Prime Minister said, "At 5 PM on January 20 at a function at the Vithal Bhai Patel Bhavan grounds, New Delhi, I formally handed over to Anurag Thakur, MP, and president of the Bharatiya Janata Yuva Morcha, a Tricolour Flag to be hoisted in Srinagar.’’
He expressed surprise that "A couple of hours later the J&K State Government officially announced that they would not allow the BJP to hoist the National Flag at the Lal Chowk, because it would be a programme which has the potential of vitiating the peaceful atmosphere in the State.’’
Senior BJP leader M Venkaiah Naidu also today made it clear that the national flag would be hoisted despite obstacles, being created by the Congress-led UPA Government.
"We are not trying to hoist Pakistan flag. We want to unfurl our national flag. Why should the Government object to this,’’ he told a press conference here.
Alleging that the Government was creating hurdles to prevent the programme, he said trains in which people were going to participate in the programme, were being stopped.
Warning the Government of dire consequences if the flag hoisting programme was prevented, the BJP leader said trying to spoil the flag hoisting was an arbitrary act.
He alleged that the Centre had aligned with the Trinamool Congress which was working together with the Maoists in West Bengal. Earlier, former Andhra Pradesh Chief Minister Y S Rajasekhar Reddy also had moved closer to the Maoists, he alleged
Maharashtra Police today diverted a Karnataka Express, carrying 2,000 BJP workers from the State, bound for Jammu to attend the ‘Ekta Yatra’ in Kashmir on January 26.
A BJP Spokesperson said the train that left Bangalore on Friday was halted in the early hours of today near Ahmednagar in Maharashtra by the police and immediately it was diverted back. "The train is now heading back to Bangalore and has left Gulbarga and will arrive here tonight,’’ he said. Chief Minister B S Yeddyurappa, speaking in the city, condemned the act of the police.
"There are still someone who do not want Jammu and Kashmir be integral part of the country. I condemn the police high handedness in forcibly sending back the train,’’ he said. Meanwhile, the Ekta Yatra, reached Amritsar this evening.
The march, led by Anurag Thakur, president of BJYM, a youth wing of the BJP, received a warm welcome from saffron party activists and supporters as it entered the holy city. The Srinagar-bound yatra started on January 12 from Kolkata in West Bengal.
Dal Khalsa, a radical Sikh organisation, said the march would aggravate the already "volatile atmosphere in Kashmir". The Ekta yatra was a gimmick by the saffron party, Dal Khalsa secretary Kanwar Pal said. (Agencies)

2 women Hizbul Mujahideen workers arrested in J&K

Jan 23, 2011, 19:45 IST
Jammu : Three suspected over ground workers (OWG) of the Hizbul Mujahideen, including two women, were arrested in Ramban and Doda districts of Jammu & Kashmir.
Acting on a tip-off, a team of Rashtriya Rifles and J&K police raided a hideout and arrested one Shamina Begum, 30, wife of top Hizb militant Gulam Qadir Malik in Zabafara belt of Ramban district today, army officials said. She was working as courier, guide and informer for the militants, they said.
Police also busted a Hizb module in Doda district and arrested one Rukshana Begum and Farooq Ahmad, officials said.

(Courtesy : www.dnaindia.com)

UN concern over abuses in IHK

Dr Raja Muhammad Khan
After her 11 days tour of four Indian states and Indian Occupied Kashmir, Ms. Margaret Sekaggya, the United Nations (UN) special rapporteur on human rights defenders, emphasized India to repeal the barbaric laws, given to its security forces in Kashmir. She address a news conference in New Delhi on January 20, 2011, seriously objecting to the laws, giving Indian security forces, wide-ranging powers of arrest, illegal detention and torture to the people of this heavenly state. The UN human rights defender particularly mentioned that, during her visit to the occupied state of Jammu and Kashmir, she learnt through the grieved families about the “killing, torture, ill-treatment, disappearances, threats, arbitrarily arrests and detention,” of their loves one by Indian security forces.

Ms Sekaggya particularly insisted for the immediate repeal of two laws viz; the Armed Forces Special Power Act and the Public Safety Act. India enforced these inhuman laws in Kashmir, in 1990s, after the massive public uprisings in the State, against the illegal Indian occupation. In 1990, Governor Rule was imposed in the occupied state of Jammu and Kashmir and Indian Security Forces were given sweeping powers of arrest and detention, through; the Jammu and Kashmir Public Safety Act (PSA) and the Terrorist and Disruptive Activities (TADA). They could even shoot to kill with virtual immunity. These special legal provisions contravene most of the human rights provisions laid down in international human rights instruments to which India is a party, notably the right to life and the right not to be subjected to torture or to arbitrary arrest and detention.

The discriminatory law, permits people to be detained for a period up to two years on vaguely defined grounds to prevent them “from acting in any manner prejudicial to the security of the state or the maintenance of public order. The broad definition of this act permits the authorities to detain persons without trial for simply asking whether the state of Jammu and Kashmir should remain part of India. This contravenes their right to express their opinions guaranteed in Article 19 of the ICCPR, which provides that any individual arrested or detained be brought promptly before a court in order to decide immediately on the lawfulness of the detention.

Through the Armed Forces Special Power Act, the Army and Para-military forces in disturbed areas have the power to shoot to kill any individual who is violating or behaving in contravention of the law enforced. Provisions of this act are; “It is necessary so to do for maintenance of public order - - - - - fire upon or otherwise use force even to the cause of death against any person who is acting in contravention of any law or order for the time being in force in the disturbed area prohibiting the assembly of five or more persons or the carrying of weapons or things capable of being used as weapons or of fire arms, ammunition or explosive substances.”

Besides, the Terrorist and Disruptive Activities (Prevention) Act (TADA), is yet another discriminatory law, enforced in the Occupied State to maltreat the Kashmiris. The inhuman law permits Indian Security Forces, to detain the people arbitrarily for just inquiring whether Jammu and Kashmir should remain part of India or discussing the possibilities of plebiscite. This cruel act allows the authorities to arrest and detain people just on mere suspicion and people can be remanded up to 60 days in police custody. Amnesty International has found the provisions of TADA, is a gross violation of the international Human Rights Laws.

These broadly defined powers provide sufficient ground for shooting of detainees and suspects even in custody. In spite of expression of concern by Human Rights Organizations and Amnesty International over these “cruel laws” which contravene the right to life, Indian Government has not bothered to soften the provisions. All these laws make the security forces of India operating in the state of Jammu and Kashmir immune from prosecution for acts committed while exercising powers under these laws. Thus, members of the forces are encouraged to act with impunity.

United Nations, Amnesty International, and Kashmiris strongly feel that these laws are a license in the hands of the Indian Security Forces to kill the helpless Kashmiris in custody as well as on open roads and streets. Since no member of the security forces including police can be prosecuted, and alleged to have committed human rights violations, therefore they are free to do anything with the lives of any Kashmiris under the cover of these the laws. It is worth mentioning that, in spite of fraudulent treaty of accession of the state by Maharaja Harisingh, the people of Kashmir have never accepted their state as part of India. It was only in 1990, that, they formally started an armed liberation struggle against the Indian subjugation, upon pushing them against the wall. It was purely an indigenous uprising of the Kashmiri youth. In 1989/90, Kashmiri boycotted the Lok Sabha elections and started peaceful protests for their right of self-determination in the light of UN resolutions. This provoked India, which moved over 700,000 security forces in the occupied territory to suppress the Kashmiris. Indian forces were deployed in each nook and corner of the state. Indeed, through a unanimous vote, Kashmiris had rejected the Indian Lok Sabha elections under the Indian constitution in 1989 by casting even less than 2% votes. Thus, 98% people remained off the polling stations. This action of Kashmiris caused a panic in the ranks of the Indian government and they perpetrated brutalities on Kashmiris, continuing even today. Indian forces battling the Kashmiri freedom fighters in the state were given unlimited powers to suppress the popular uprising through above-mentioned discriminatory laws.

Ever since the outbreak of renewed insurgency in the state of Jammu and Kashmir by its people in 1989/90, a reign of terror and repression has been let loose by the Indian authorities. In the garb of so-called terrorism, a veritable war was started against the defenseless masses, obviously for their open and large-scale support to this new phase of the decade’s old movement for the right of self-determination. Siege and search operations, the ransacking of the houses during searches, identification parades, dusk-to-down curfews without break, random arrests, mostly of the youth including teen-age boys (in the age group of 14-19 years) were the most common features of Indian forces. Besides this, unprovoked / indiscriminate shootings, massacres, target killings, severe beating of civilian irrespective of age and sex for fun or revenge killings, physical torture at improvised centers, night raids, rape are continued even today.

Today, once again, the world body (UNO), feels that, “The Armed Forces Special Powers Act and the Public Safety Act should be repealed, and application of other security laws which adversely affect the work of human rights defenders should be reviewed.” Indeed, it is high time that, India should listen to the global voices on its grass human rights violations in its occupied portion of Kashmir and give Kashmiris, their right of self-determination.

(The writer is an International Relations analyst.)

(Courtesy : http://pakobserver.net)

Geelani demands UNO tribunal on Kashmir

Jammu : Geelani demands UNO tribunal on KashmirSrinagar, MTT News Desk: The Chairman of All Parties Hurriyat Conference (APHC) and the President of Tahreek e Hurriyat (TeH) Jammu & Kashmir, Syed Ali Shah Geelani has demanded the United Nations to set up a tribunal to penalize those who have been involved in the human rights violations in Occupied State of Jammu & Kashmir (OSJK).
The demand was made in a memorandum sent to the UN Rapporteur, Margaret Sekaggya who is on a visit to the occupied territories of OSJK to assess the situation of human rights defenders.
Syed Ali Shah Geelani deplored that India is trying to mislead the world community by portraying the Kashmiris’ just struggle for right of Self-Determination as terrorism.
Mr. Geelani had said that the Indian armed forces were responding to the liberation struggle in Kashmir with blatant use of force and they had killed over 112 civilians, mostly teenagers, since June 11, 2010.
(Courtesy : www.markthetruth.com)

रणभूमि में बदला कश्मीर का प्रवेशद्वार लखनपुर

लखनपुर (जम्मू-कश्मीर)। जम्मू एवं कश्मीर के श्रीनगर के लाल चौक पर भारतीय जनता पार्टी [भाजपा] की 26 जनवरी को तिरंगा फहराने की योजना से पहले पंजाब की सीमा से सटे राज्य का प्रवेश द्वार समझे जाने वाले लखनपुर में पुलिस बलों की टुकड़ियां तैनात कर दी गई है। बख्तरबंद वाहनों की आवाजाही हो रही है तथा यहां आने वाली हरेक बस की तलाशी ली जा रही है।

सरकार ने भाजपा की प्रस्तावित योजना को रोकने का संकल्प लिया है। पंजाब से सटे इस क्षेत्र में पुलिसबल तैनात कर दिए गए है। पुलिस लाठियों, आंसू गैस के गोलों से लैस है और वह रावी नदी के पुल पर पैनी नजर रखे हुए है। इस पुल के मध्य को पंजाब और जम्मू एवं कश्मीर की विभाजक रेखा माना जाता है। करीब 100 मीटर के पुल पर तैनात पुलिस अधिकारियों में से एक ने बताया कि हमें हिदायत दी गई है कि भाजपा कार्यकर्ताओं को यहां से हरगिज राज्य में दाखिल होने की इजाजत न दी जाए। जम्मू एवं कश्मीर सीमा पर 2,000 से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात किए गए है तथा बहुत से अन्य को तैयार रखा गया है।

पुलिस अधिकारियों को मोबाइल फोन या वायरलैस सेट्स के माध्यम से हिदायते दी जा रही है और उनके शीर्ष अधिकारी ताजा हालात का जानकारी ले रहे है। ऐसी आशंका व्यक्तकी जा रही है कि भाजपा कार्यकर्ता वैष्णो देवी के श्रद्धालुओं के वेश में प्रदेश के अन्य हिस्सों से राज्य में दाखिल हो सकते है और गड़बड़ी फैला सकते है। पंजाब से आने वाली सड़क को राष्ट्रीय राजमार्ग 1-ए के नाम से जाना जाता है और यही इकलौता सड़क मार्ग जम्मू एवं कश्मीर को शेष भारत से जोड़ता है। लखनपुर के बहुत से प्रवेश द्वार है।

कठुआ की उपायुक्त जाहिदा खान ने कई बार शहर का दौरा किया और हिदायतें दीं, लेकिन उन्होंने संवाददाताओं के प्रश्नों का जवाब देने से इंकार कर दिया। यह क्षेत्र खान के ही अधिकारक्षेत्र में आता है। एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि भाजपा कार्यकर्ताओं को जम्मू एवं कश्मीर में दाखिल होने से रोकने के लिए सभी जरूरी उपाय कर लिए गए है। उन्होंने बताया कि पुलिस को हिदायत दी गई है कि आवश्यकता पड़ने पर बल प्रयोग किया जाए। सामान की आपूर्ति करने वाले ट्रकों तक की तलाशी ली जा रही है। जम्मू एवं कश्मीर को सभी प्रकार की आपूर्ति इसी सड़क मार्ग से की जाती है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि इस क्षेत्र में ऐसी सख्ती पहले कभी नहीं की गई। इतना ही नहीं 19 साल पहले के भाजपा मार्च के दौरान भी इतनी सख्ती नहीं की गई थी।
(Courtesy : jagran.com, 24.01.2011)

तिरंगा राजनीति से उड़ा अवाम का चैन
January 24, 2011
श्रीनगर। बीते साल हिंसक प्रदर्शनों की भट्ठी से बाहर निकली कश्मीरी अवाम का चैन अब भाजपा की तिरंगा राजनीति ने उड़ा दिया है। २६ जनवरी को लेकर लोग अभी से दहशत में हैं। इसके अलावा एकता रैली को लेकर भाजपा नेताओं के अड़ियल रवैये के बाद स्थानीय प्रशासन के भी हाथ-पांव फूल गए हैं। हालात के मद्देनजर सुरक्षा एजेंसियों को २४ घंटे की ड्यूटी पर लगाया गया है। श्रीनगर में रविवार की छुट्टी के बावजूद शहर की रौनक गायब दिखी, जिसने आम अवाम पर नए डर के पुख्ता संकेत दिए।
अवाम की दहशत की वजह भारतीय जनता युवा मोर्चा द्वारा लाल चौक पर झंडा फहराना ही नहीं है, बल्कि जेकेएलएफ के चेयरमैन यासीन मलिक द्वारा २६ जनवरी को लाल चौक चलो की कॉल भी अधिक भयभीत कर रही है। वरिष्ठ नागरिकों का कहना है कि यह समीकरण सीधे टकराव के संकेत हैं। उन्होंने कहा कि अगर बीजेपी के कार्यकर्ता यहां पहुंच गए तो घाटी में कुछ भी हो सकता है। दूसरी और प्रशासनिक अमले को इस बात की फिक्र सता रही है कि राज्य सरकार द्वारा एकता रैली को लेकर लगाई गई पाबंदी के बावजूद अगर भाजपा कार्यकर्ता तिरंगा फहराने में कामयाब हो जाते हैं, तो कई को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है। चूंकि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला सुरक्षा समीक्षा के लिए आयोजित एक आपात बैठक में कड़े निर्देश दे चुके हैं, कि गणतंत्र दिवस पर किसी भी कीमत पर हालात बिगड़ने नहीं चाहिए। ऐसे में बख्शी स्टेडियम जहां आतंकी गतिविधियों की काली छाया मंडरा रही है और लाल चौक जहां भाजपा और जेकेएलएफ एक चुनौती लेकर पहुंचने का दावा कर रहे हैं, तो इस लहजे से यहां कुछ भी परिस्थितियां पैदा हो सकती हैं। श्रीनगर के उपायुक्त असगर अली कहना है कि ऐसे हालातों में सुरक्षा एजेंसियों का अंटेशन डायवर्ट होने खतरा बना हुआ है। सुरक्षा एजेंसियों को विशेष निर्देश दिए गए हैं कि आपसी तालमेल में पूरी सुरक्षात्मक गतिविधियों पर नजर रखी जाए।

घमासान के लिए रणभूमि तैयार

Jan 22, 02:06 am
जम्मू, वरिष्ठ संवाददाता
गणतंत्र दिवस पर श्रीनगर के लाल चौक में तिरंगा फहराने को लेकर राज्य सरकार व भारतीय जनता युवा मोर्चा में टकराव बढ़ता जा रहा है और घमासान के लिए रणभूमि भी तैयार हो चुकी है। सरकार ने जहां एकता यात्रा को नाकाम बनाने के लिए लखनपुर से लेकर ऊधमपुर और रेलवे स्टेशन पर अतिरिक्त सुरक्षाबल तैनात करने की कवायद शुरू कर दी है। वहीं भाजयुमो ने अपना संकल्प दोहराते हुए कहा कि हर कीमत पर लाल चौक में तिरंगा फहराकर रहेंगे।
भाजयुमो के राष्ट्रीय महामंत्री नितिन नवीन ने शुक्रवार को पार्टी मुख्यालय में पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार चाहे कुछ भी करे, वे लाल चौक में तिरंगा फहराकर रहेंगे। नवीन ने कहा कि अब तीर कमान से निकल चुका है जिसे रोका नहीं जा सकता, बेहतर होगा मुख्यमंत्री अपने फैसले पर पुनर्विचार करें और भाजयुमो कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर लाल चौक में तिरंगा फहराएं। उन्होंने कहा कि उनकी यात्रा पूर्ण रूप से शांतिपूर्वक होगी, लेकिन सरकार ने कोई आपात स्थिति पैदा की तो इसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी।
इस बीच कानून मंत्री अली मोहम्मद सागर ने भी पत्रकारवार्ता कर कहा कि राज्य के हालात खराब करने की इजाजत किसी को नहीं दी जाएगी। संबंधित जिला मजिस्ट्रेट कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए कार्रवाई करेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य के हालात खराब करने के लिए भाजपा व पीडीपी में सांठगांठ हो गई है।
सनद रहे कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पहले ही पुलिस व प्रशासन को किसी भी सूरत में इस यात्रा को कठुआ से आगे न बढ़ने देने के निर्देश दे चुके हैं। सूत्रों की माने तो सरकार की योजना है कि भाजयुमो कार्यकर्ताओं को कठुआ और जम्मू रेलवे स्टेशन पर हिरासत में लिया जाएगा। सरकार ने 25 जनवरी को जम्मू के परेड ग्राउंड में भाजपा की प्रस्तावित रैली को विफल करने के लिए भी कार्यकर्ताओं को शहर तक पहुंचने से पहले ही तितर-बितर करने की योजना बनाई है।
भाजपा के दोनों हाथ में लड्डू
जम्मू : तिरंगा यात्रा भारतीय जनता पार्टी के लिए दो-दो लड्डू लेकर आई है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के इस यात्रा को रोकने के फैसले ने भाजपा को ऐसा राजनीतिक मुद्दा दिया है जिसके दोनों तरफ भाजपा की जीत तय है। भाजयुमो अगर लाल चौक में तिरंगा फहराने में कामयाब रहती है तो भाजपा इसे राष्ट्रीय स्तर पर भुनाएगी। अगर भाजयुमो तिरंगा फहराने में विफल रहती है, तब भी भाजपा को एक ऐसा मुद्दा मिलेगा जो आने वाले समय में वोटों में तबदील किया जाएगा। शायद यही कारण है कि अभी तक कांग्रेस ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधी हुई है। राष्ट्रीय स्तर के अलावा प्रदेश कांग्रेस की ओर से भी भाजयुमो के इस कार्यक्रम पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं आई है।

यात्री वाहन जम्मू जाने पर रोक
January 24, 2011
राजोरी/नौशेरा। भारतीय जनता युवा मोर्चा की एकता यात्रा को विफल करने के लिए सरकार ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। सीमावर्ती जिला राजोरी में शनिवार देर रात से यात्री वाहनों के जिले से बाहर जाने पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है। यात्री वाहन न चलने पर रविवार को दिन भर सैकड़ों लोग बस अड्डे पर दर-बदर होते रहे लेकिन जिले से एक भी वाहन जम्मू रवाना नहीं हो सका। हालांकि सरकार के इस फैसले से लोगों में भारी रोष व्याप्त हो गया, लेकिन प्रशासन अपने फैसले पर अडिग रहा।

उल्लेखनीय है कि भाजयुमो को लाल चौक पर तिरंगा फहराने से रोकने के लिए इन दिनों राज्य सरकार ने भाजयुमो कार्यकर्ताओं की धरपकड़ शुरू कर दी है । इसी कवायद में रविवार की सुबह राजोरी से यात्री वाहनों के जम्मू जाने पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है। हालांकि जिला प्रशासन ने शनिवार देर रात ही शहर की बस यूनियन और ट्रेवल एजेंटों को रविवार की सुबह किसी भी यात्री वाहन को जम्मू भेजने से मना कर दिया गया था। रविवार की सुबह वाहनों की रवानगी पर रोक के चलते बस अड्डे और टैक्सी स्टैंड पर यात्रियों की भारी भीड़ जमा हो गई देर शाम तक जारी रही लेकिन पुलिस की सतर्कता के चलते एक भी वाहन जम्मू नहीं जा सका। हाईवे पर राजोरी से लेकर जिले के प्रवेश द्वार सुंदरबनी तक दर्जनों नाके लगाए गए थे जिनमें पुलिस के अलावा सीआरपीएफ के जवान भी तैनात थे। हाईवे के अलावा जिले से बाहर जाने वाले हरेक लिंक मार्ग पर भी कड़ी सतर्कता बरती जा रही थी। हरेक वाहन की पुलिस कर्मी रोक कर जांच कर कर रहे थे। उधर, नौशेरा से भी जम्मू के लिए बसें नहीं रवाना हुईं। इस कारण दूरदराज क्षेत्रों से आने वाले यात्रियों का परेशानियां उठानी पड़ीं।
(Courtesy : jagran.com, 24.01.2011)

युवा भाजपाइयों ने बनाई गुप्त रणनीति

January 24, 2011
राजोरी । सरकार द्वारा यात्री वाहनों के जम्मू जाने पर रोक लगाने के अलावा सतर्कता बढ़ाए जाने के बावजूद रविवार को भाजयुमो कार्यकर्ता गुप्त बैठकें कर आगे की रणनीति बनाते रहे ।

हालांकि किसी भी दल ने जम्मू कूच नहीं किया लेकिन सोमवार को भाजयुमो कार्यकर्ताओं के अलग-अलग दलों में जम्मू निकलने की संभावना जताई जा रही है । हालांकि इस संदर्भ में भाजयुमो नेताओं ने अपनी रणनीति नहीं बताई, लेकिन उन्होंने कहा कि सरकार कुछ भी कर ले उन्हें एकता यात्रा में भाग लेने से नहीं रोक सकती। उधर, पुलिस ने भाजयुमो नेताओं की गतिविधियों पर अपनी पैनी नजर जमा रखी है
(Courtesy : jagran.com, 24.01.2011)

Sunday, January 23, 2011

Contradictory signals over Kashmir

By DR. JITENDRA SINGH
On the eve of Republic Day and in the background of the row over hoisting of tricolour at Srinagar's Lal Chowk, it makes an interesting case study to follow the sequence of events of the last one year beginning around the time of Republic Day last year.
Exactly a few weeks before the Republic Day last year, the Union Home Minister made a dramatic disclosure that his ministry was engaged in what he described as ‘‘quiet’’ talks with Kashmir based groups including separatists. But, what the Home Minister failed to realise that by going to the press he had himself unleashed a ‘‘disquietening’’ or a rather deafening controversy over the issue.
Then followed the announcement regarding withdrawal of 30,000 troops from the State on the pretext of improved security situation but the announcement simultaneously coincided with a ban on prepaid mobile though later reverted and at the same time the claim in improved security scene was not befittingly matched by a reduction in the personal security of the high-ups who pompously announced this claim.
Then came the claim of fully controlled security situation on the eve of Republic Day but precisely on the Republic Day, mobile phones were jammed for five hours.
Soon thereafter came a statement from the Union New and Renewable Energy Minister during his visit to Jammu that there could be no possibility of talks with Pakistan unless Islamabad brings to book the culprits of Mumbai terror attack but then within a week came the announcement of foreign secretary level talks and by the end of the year, the Union Renewable Energy Minister also seemed to have stage a volte face to favour talks with Pakistan.
Amidst all these contradictory conflicting signals as well as the confusion resulting therefrom, came the Union Home Minister's announcement endorsing the demand of the so called mainstream but Kashmir-centric political parties to bring about a plan facilitating return of Kashmiri youth who have over the years voluntarily crossed over to PoK which the Union Home Minister adds on to claim as a part of India. However, while exuding human compassion, the Union Home Minister conveniently forgets the Govt of India's twenty year old promise of repatriating, resettling and rehabilitating tens of thousands of displaced Kashmiri Pandits who did not leave the Valley voluntarily but were forcibly thrown out of their homes and hearths in one of the history's most shameless ever mass exodus. And, what about the Sikh youth who fled the State and some the country in the aftermath of Operation Blue Star followed by Indira Gandhi's tragic assassination and whose applications for repatriation are pending with the Government for over quarter of a century.
The present rulers of the State take pleasure is declaring publicly that they are aware of their his- tory.... personal or collective! If that be so, the people of the State expect them to be aware also of the history of 1947 refugees from PoK as well as from the then West Pakistan who continue to languish as outsiders for the last 63 years without being granted their legitimate rights as the residents of the State where three generations of theirs have lived or grown up. The displaced persons of 1965 of whom there is little record. The dislocated victims of 1971 war for whom a resettlement authority was set up without much consequence.
Meanwhile, three high profile ‘‘Interlocutors’’ appointed by the UPA Government came and went interlocking themselves in new controversies instead of unlocking the earlier existing ones.
Be that as it is, neither the people of India nor the polity of India is going to allow this harakiri to happen. Incidentally, those advocating such unrealistic proposals from either Union Government or State Government also know this but continue to do so simply for strategic reasons of ‘‘political posturing’’. And, this is precisely what the common man needs to be educated about. To clear the air of confusing signals over Kashmir, Umapathy cites poetic inference ‘‘Takhaliyaat Ke Dhoke Hain Subh-o-Shaam, Na Aaa Raha Hai Na Jaa Raha Hai Koi !’’


(Courtesy : www.dailyexcelsior.com)

Government duty-bound to hoist tricolour at Lal Chowk: Swamy

NEW DELHI : Holding that the Centre is “duty-bound” to unfurl the tricolour at Lal Chowk in Srinagar, Janata Party chief Subramanian Swamy today said central rule should be imposed in Jammu and Kashmir if the State Government fails to cooperate in hoisting the national flag there.

“The UPA government is duty bound under the Transaction of Business Rules framed under the Constitution to officially unfurl the tricolour national flag at Lal Chowk in Srinagar, J&K,” he said in a statement here.

He said a resolution to this effect was adopted by the Cabinet Committee on Political Affairs in January first week or thereabouts in 1991 when Chandrashekhar was Prime Minister and he was Union Minister for Law and Justice and Commerce.
“As a senior minister and member of CCPA, I had raised the issue in the CCPA because the V P Singh Government had considered the matter and decided to discontinue the practice of unfurling the flag in Lal Chowk in 1990 as it might hurt the feelings of the people of the state.

“After hearing the service chiefs, the intelligence chiefs, and the cabinet secretary, Chandrashekhar had agreed with me and directed that it be resolved that the Government unfurl the flag and the army defend it if there was any problem,” Swamy said.
He said that then chief minister Farooq Abdullah “later concurred and cooperated in ensuring a peaceful unfurling of the tricolour national flag on January 26, 1991.”
Maintaining that Lal Chowk is a historic place and not some “bazaar area” “as the present chief minister blandly and ignorantly states”, he said, “I demand, therefore, that on January 26th the flag be unfurled, and if the state government does not cooperate in the unfurling, then central rule be declared in the state, and the army be handed the administration of the state”.
Prime Minister Manmohan Singh yesterday stepped into the controversy over BJP’s plan to hoist national flag in Srinagar on Republic Day saying the ‘solemn occasion’ should not be used to score ‘political points’ and appealed for maximum restraint in ‘sensitive’ Jammu and Kashmir.
Omar Abdullah Government has opposed the flag hoisting on the grounds that it will vitiate the atmosphere in the State.
The BJP reacted with shock and disappointment to the Prime Minister’s disapproval of the plan accusing him of letting down the nation and said he will be emboldening separatists. (AGENCIES)

(Courtesy : www.dailyexcelsior.com)

Flag issue: Advani claims State surrendering to separatists

NEW DELHI : Questioning the Prime Minister’s reservations on BJP’s plan to unfurl the national flag at Lal Chowk in Srinagar, party veteran L K Advani today said the “State is surrendering” to the separatists who have declared that they will not let the tricolour be hoisted.
“If the rationale for the prohibitory orders is apprehension of breach of peace, curbs should be targeted towards those who have declared that they will not let the tricolour be put up at the Lal Chowk....
“And certainly not against those who have been repeatedly asserting that they will peacefully, and respectfully, unfurl the tricolour at Lal Chowk,” Advani wrote in his latest blog posting titled ‘Let not the State surrender to separatists’.
Referring to Prime Minister Manmohan Singh’s statement on the issue yesterday, Advani voiced hope that he would realise that BJP Yuva Morcha activists were “not trying to score a political point” but were instead challenging the separatists.
“And the State is surrendering to them,” he said.
Dubbing the decision of the Jammu and Kashmir Government not to allow BJP hoist flag at Lal Chowk as “perverse”, he said the Government should realise the “enormity of the shame our authorities are inviting for themselves” by their move.
The BJP parliamentary party chairman recalled how separatists had hoisted the Pakistani flag on Eid at Lal Chowk last year in full media glare and wondered why Indian flag cannot be hoisted at the historic place on Republic Day.
He also referred to Congress MP Naveen Jindal’s legal battle seeking freedom for the common man to hoist and wave the national flag.
“About the same time as the Home Ministry had taken cognisance of the objections many private citizens had expressed to the restrictive Flag Code that prevailed, a Delhi citizen Naveen Jindal, today a Member of Parliament, had taken the matter to the Supreme Court.
“The Supreme Court in its judgement in Jindal’s case described the citizen’s right to fly the national flag a fundamental right subject only to reasonable restrictions spelt out in the two statutes,” Advani wrote.
He said the changed Flag Code clearly mentions that there shall be no restriction onthe display of the national flag by members of general public, private organisations and educational institutions.
In his statement, the prime minister had said that it is not an occasion to score political points, to embarrass state and local administrations, to create situations that could lead to entirely avoidable problems, or to promote divisive agendas. (AGENCIES)
(Courtesy : www.dailyexcelsior.com)

The Real Face of Interlocutors

Er. Maqsood Ahmad Shahdad
This is with reference to the statement of the India's Kashmir interlocutors that UN Resolutions have few takers in Kashmirin J&K. This is an eye opener for Kashmiris in general and the leaders of the present movement in particular. This statement of the interlocutors is indicative of the mindset and the motive of the interlocutors and their sponsors that is Government of India.

They appear to be working strictly in accordance with the instructions of their bosses in New Delhi by issuing a few favourable statements for trying to cool down the tempers and subsequently pursue their agenda for diverting the people from supporting the movement and get them towards their fold.

The only thing Govt of India has been serious and fast about was appointing two high powered committees for Jammu and Ladakh province to look into their grievances regarding development and other issues as if more than 100 innocent and unarmed young Kashmiris had laid down their lives for the development of Ladakh and Jammu.
The interlocutors arte talking about improvement in Governance and Development etc and ensuring some basic rights to the people as if these are the issues for which Kashmiris have been fighting for the last 63 years and in the process have paid huge sacrifices which are known to all.

The irony of the whole issue is that every official agency in India or Kashmir and the interlocutors as well as other political parties including the All Party Delegation that came to Kashmir last year are talking about measures to be taken to bring peace back to Kashmir and no one is talking about the political resolution of Jammu & Kashmir and even if sometimes some leaders or parties or individuals of Govt. of India or the Indian political parties talk about the resolution within the parameters of the Indian constituition which is not what we have sacrificed for or laid down our lives, honour and dignity for.

They should know that even if peace returns to Kashmir for some time, it is temporary and should not be construed as the issue having been settled. Let me mention here that even if the whole wealth of India is pumped into Kashmir, the people will not give up their demand for the Right to Self Determination
It is not known how they have come to the conclusion that the people of Kashmir are not in favour of settlement of Kashmir Problem in accordance with the UN Resolutions and who are the people who have given them this feeling. If they want to ascertain truth about it, let them in the first instance hold a referendum or free and impartial survey to find the truth about it.

They are trying to dilute the strength of the movement and the leaders of the movement by talking to people, individuals , academicians and some political parties who have no dispute over accession with India as those are all INDIA based/sponsored political parties. They instead need to talk to those parties/groups and leaders who represent the aspirations and feelings of the majority of the people of the state and who are fighting for liberation of Kashmir from the continued forcible military occupation of the State by INDIA as well as PAKISTAN and denial of the Right to Self Determination to them.UN Resolutions are international commitments to the people of Jammu and Kashmir and both INDIA anmd PAKISTAN are signatories to the Resolutions. Any other solution outside UN Resolutions can only be possible if acceptable to all the three parties concerned i.e INDIA, PAKISTAN and most importantly the majority of the people of Jammu & Kashmir for which the representatives of all the three parties will need to sit down for discussion and negotiation and the representatives of the majority of Jammu & Kashmir will have to be ascertained through a proper impartial process.

(Courtesy : www.kashmirobserver.net)

BJP firm on march to Lal Chowk

22.01.2011
Bharatiya Janata Yuva Morcha president Anurag Thakur addresses BJP workers during the Rashtriya Ekta Yatra at Mohali on Saturday. MP Navjot Singh Sidhu and Punjab BJP chief Ashwini Sharma look on. Photo: Akhilesh Kumar. The Hindu Bharatiya Janata Yuva Morcha president Anurag Thakur addresses BJP workers during the Rashtriya Ekta Yatra at Mohali on Saturday. MP Navjot Singh Sidhu and Punjab BJP chief Ashwini Sharma look on. Photo: Akhilesh Kumar

Insisting that no one can stop citizens from peacefully hoisting the national flag anywhere in the country, the Bharatiya Janata Party on Saturday said that opposition to its peaceful unity march to Srinagar would strengthen the separatists. “We are living in a free nation and we have the right to hoist our national flag anywhere in the country. So what is the problem in hoisting the Tricolour at Srinagar's Lal Chowk in Kashmir Valley?” said Bharatiya Janata Yuva Morcha president and MP Anurag Thakur.

Mr. Thakur, who is an MP from Hamirpur in Himachal Pradesh, is leading the Rashtriya Ekta Yatra (March for national unity) which started on January 12 in Kolkata. The march is to culminate on January 26 at Lal Chowk. Unfazed by repeated urgings of Jammu & Kashmir Chief Minister Omar Abdullah not to come to Lal Chowk as it might trigger violence, Mr. Thakur invited Mr. Abdullah to join the march and honour the Tricolour at Lal Chowk.

“Separatists go to Delhi, make derogatory remarks about the country and claim that Kashmir is separate from India but they are not held responsible for sedition. Why is the government lending support to that agenda of anti-national forces by protecting them under the right to freedom of speech? But when we are trying to unite the county by performing a basic national duty we are neither supported nor protected!” he said.

Mr. Thakur also accused the Jammu & Kashmir government of supporting separatists in the Valley. “While the Omar Abdullah government is not doing anything about Pakistan-occupied Kashmir, it has adopted a very lenient attitude towards separatists and is least concerned about their own people. It has given Rs.5 lakh as compensation to each of the accused of stone-pelting who had injured over 2,500 policemen but has not done anything for the rehabilitation of Kashmiri Pandits and Sikhs,” he said, and added: “There is a need for Article 370 to go. Jawaharlal Nehru gave this as a temporary solution which has now become a permanent problem.”
“If the Government decides to stop our Yatra when it enters Jammu, the onus will be on it. If the Yatra is stopped, it will be a victory of the separatists and anti-nationalist forces who want to divide this country. Our basic purpose is unity and integrity of the country and to end the gap that is there between Kashmir and the country,” he added. The 15-day Yatra, which was flagged off by BJP president Nitin Gadkari from Kolkata, is expected to cover a distance of over 3,000 km and pass through 12 States.

(Courtesy : www.thehindu.com)

U.N. urges India to curb powers of security forces in Kashmir

22 Jan 2011
NEW DELHI (AlertNet) – The United Nations has called on India to repeal a controversial law which gives security forces, who are battling militancy in the troubled regions of Kashmir and the northeast, sweeping powers to search, arrest or shoot people.
Human rights groups say the Armed Forces Special Powers Act (AFSPA) is a draconian law which the military is arbitrarily using to violate the fundamental freedoms of innocent civilians. But the authorities and the Indian army dismiss the allegations, saying the legislation is essential to root out insurgents.
Following a ten-day fact-finding mission to India, the U.N.'s Special Rapporteur on the situation of Human Rights Defenders urged New Delhi to end this law, which she said was only causing suffering to ordinary people, but also those speaking out against violations such as lawyers and journalists. "While I acknowledge the security challenges faced by the country, I am deeply concerned about the arbitrary applications of security laws at the national and state levels such as in Jammu and Kashmir and in the northeast of India," Margaret Sekaggya told a news conference.
"The Armed Forces Special Powers Act … should be repealed and application of other security laws which adversely affect and safety of human rights defenders should be reviewed." Sekaggya, a Ugandan lawyer and academic, said that she had visited five states, including Kashmir and Assam, where she heard numerous testimonies from families of human rights activists who had been killed, tortured, ill-treated, disappeared, threatened or arbitrarily arrested and detained. The repeal of the AFSPA was one of the main demands of protestors in the Himalayan region of Jammu and Kashmir last year which led to serious unrest.
Between June and September, over 100 people were killed by government forces during the biggest protests since a separatist rebellion in 1989, fuelling anger in Kashmir where sentiment against Indian rule runs deep. The violence raised fears that anger at New Delhi could spin out of control and that if the government failed to check the protests, deaths and rights violations, the region could slide into a renewed phase of armed uprising, as happened in 1989.
The AFSPA allows an officer of the armed forces to fire upon or use force, even to point of causing death, against anyone acting in contravention of any law against assembly of five or more persons or possession of deadly weapons. Officers can also arrest without a warrant anyone who has committed or is suspected of committing certain offenses. The entry and search of any premise in order to make such arrests is also permitted. The act also bestows legal immunity to the officials, which means that they can not be sued or prosecuted.
Sekaggya said she met with senior government officials including the foreign secretary and the home secretary and recommended that they repeal the Act, as well as other laws affecting the human rights of Indians. "The government said 'We have the issue of security, we have the issue of terrorism,' and so they are explaining it that way," she said. "But the issue is how do you balance between security and the freedoms of the people?"

(Courtesy : www.trust.org)

Join us in hoisting national flag in the State, Soz to BJP

SRINAGAR : Urging the Bhartiya Janata Party (BJP) to desist from hoisting the national flag at Lal Chowk on Republic Day, Pradesh Congress Committee (PCC) president Prof Saifuddin Soz today said this action could be perceived by some elements as a provocation which should be avoided.
In a statement here this afternoon the former Union minister said that Rebublic Day would be celebrated as usual in the entire Jammu and Kashmir.
The national flag will be hoisted at Moulana Azad stadium in Jammu, Bakshi stadium in Jammu besides at all district and tehsil headquarters in the state, he said.
Mr Soz said the BJP leaders and cadres would naturally be welcome to join the celebrations wherever the flag hoisting ceremony will be held.
The BJP must however, desist from hoisting flag at Lal Chowk as action might be perceived by some elements as a provocation which should be avoided, Mr Soz said in the statement.
I therefore strongly urge the BJP leadership not to adopt a course of action that can invite unsavory reaction and acrimony, he added.
(agencies)

(Courtesy : www.dailyexcelsior.com)

PM asks parties not to disturb peace in Jammu and Kashmir

New Delhi, Jan 22 With the BJP's youth wing planning to hoist the national flag in Srinagar on Republic Day, Prime Minister Manmohan Singh Saturday asked all political parties to refrain from "promoting divisive agendas" and stressed that peace should not be disturbed in the "sensitive" Jammu and Kashmir.

"It is not an occasion to score political points, to embarrass the state and local administrations, to create situations that could lead to entirely avoidable problems, or to promote divisive agendas," Manmohan Singh said while stressing that Republic Day is "a solemn occasion".

"It is my hope that all our citizens and political parties will heed this call and will do nothing that will disturb peace and harmony, or detract in any way from the dignity of Republic Day," the prime minister said in a statement.
It was "all the more important to observe maximum restraint particularly in a sensitive state like Jammu and Kashmir," Manmohan Singh said. It was a veiled reference to to 'Ekta Yatra' planned by the BJP's youth wing to proceed to Srinagar to hoist the national tricolour at the historic Lal Chowk. Unfazed by pleas by the Jammu and Kashmir government, which has made it clear that it will not allow hoisting of the national flag by BJP on that day, the party is going ahead with the plan.
Stressing the significance and solemnity of the occasion, the prime minister said: "It is up to the states to ensure that public traditions are honoured and they would be well within their rights to insist upon punctilious adherence.". "It is a day that joins all Indians in a shared celebration of modern nationhood," he said.

(Courtesy : www.prokerala.com)

BJP flays Manmohan's stand on Ekta Yatra

Jan 23, 2011
New Delhi: Just 48 hours before the BJP's controversial Tiranga Yatra is slated to enter Jammu and Kashmir, Prime Minister Manmohan Singh has broken his silence. He has called upon all concerned to observe maximum restraint in a sensitive state like Jammu and Kashmir. Manmohan Singh says the Republic Day is not an occasion to score political points or promote divisive agendas.
Senior BJP leader LK Advani reacted to Manmohan Singh's comment and wrote in his blog, "I wish the Prime Minister realises that these young men led by Anurag Thakur are not trying to score a political point; they are challenging the separatists. And the state is surrendering to them!"
PM intervention comes after J&K chief minister Omar Abdullah after consultation with Union home ministry decided that the BJP will not be allowed to go ahead with its proposed flag hoisting programme at Lal chowk on Republic day. BJP leader Arun Jaitley said, "Is hoisting a national flag a divisive programme? BJP is determined to its programme and therefore 26th January is when it should be hoisted and nobody should be apologetic about it."
BJP youth wing president who is leading the yatra is to enter the state on the January 24 at Lakhanpur at the J&K border. Meanwhile BJP is in a fix at a time when it has the government on the mat on the issues like corruption and price rise, there is a view emerging that escalation of tension due to yatra can digress parties campaign against UPA though for on record party seems firming backing the yatra. With BJP adamant on hoisting the national flag at Lal Chowk on January 26, it remains to be seem how Omar Abdullah handles the situation especially when the separatists are also adamant to foil the tiranga yatra at any cost.

(Courtesy : http://ibnlive.in.com)

'Is tricolour hoisting in JK anti-national?'

Srinagar, Jan 23: A decision by the main Opposition party BJP to hoist tricolour in Srinagar on the Republic Day (Jan 26) divided the political parties and raised controversy in the nation.
After Prime Minister Manmohan Singh broke his silence on the controversial move by BJP - "ekta yatra", BJP asked the PM, "hoisting the national flag anywhere in India is 'anti-national'?"
Jammu Kashmir's CM Omar Abdullah reiterated his request to the BJP workers to withdraw their decision which may harm the long-awaited peace of the state.
Stating on the issue, PM claimed, "It is all the more important to observe maximum restraint, particularly in a sensitive State like Jammu and Kashmir."
The PM also asserted that Republic Day should not be treated as an occasion to score political points, to embarrass state and local administrations, to create situations that could lead to entirely avoidable problems, or to promote divisive agendas.
However, criticising PM's intervention in the issue, BJP claimed, "We are taken aback by the stand taken by the Prime Minister virtually siding with those, who are opposing hoisting the national flag and voicing anti-India sentiments."
The party also stated, " It is not only disappointing, but the Prime Minister has let down the nation by making statement, which is unbelievable. Instead of supporting a nationalist cause and crusade launched by the BJP, the Prime Minister has sadly preferred to disapprove of it."

(Courtesy : http://news.oneindia.in)

ध्वजारोहण से रोकने को कश्मीर में होगा बलप्रयोग

जम्मू (23.01.2011)। जम्मू- कश्मीर सरकार ने भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट कर दिया है कि यदि वह गणतंत्र दिवस पर श्रीनगर के लाल चौक में तिरंगा फहराने की अपनी योजना पर आगे बढ़ी तो सरकार बल प्रयोग के लिए मजबूर होगी। सूत्रों के मुताबिक राज्य सरकार ने भाजपा नेतृत्व को स्पष्ट किया है कि जम्मू- कश्मीर में पार्टी की तिरंगा यात्रा अवांछित है क्योंकि इससे प्रदेश का शांतिपूर्ण माहौल बिगड़ सकता है।

सूत्रों ने कहा कि सरकार रैली में शामिल लोगों को प्रदेश की सीमा से बाहर रोकने के लिए बल प्रयोग कर सकती है। एक आधिकारिक बयान के मुताबिक गुरुवार को मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय बैठक में निर्णय लिया गया कि प्रदेश में ऐसे किसी कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जाएगा जिससे शांति व्यवस्था भंग होने की आशंका हो।
जम्मू- कश्मीर पुलिस जम्मू से 90 किलोमीटर दूर पंजाब के लखनपुर से सटी प्रदेश की सीमा सील कर रही है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी गणतंत्र दिवस पर विभाजनकारी एजेंडे को बढ़ावा देने से बचने की अपील की है। तिरंगा यात्रा कोलकाता से 12 जनवरी को भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर के नेतृत्व में शुरू हुई थी। अलगाववादियों ने भी 26 जनवरी को श्रीनगर के लालचौक पर जवाबी रैली निकालने और काले झंडे फहराने की घोषणा की है।

(Courtesy : jagran.com)

'लाल चौक पर किसी कीमत पर नहीं फहराने देंगे तिरंगा'

जम्मू, एजेंसी। जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को स्पष्ट कर दिया है कि यदि वह गणतंत्र दिवस पर श्रीनगर के लाल चौक में तिरंगा फहराने की अपनी योजना पर आगे बढ़ी तो सरकार बल प्रयोग के लिए मजबूर होगी।
सूत्रों के मुताबिक राज्य सरकार ने भाजपा नेतृत्व को स्पष्ट किया है कि जम्मू एवं कश्मीर में पार्टी की तिरंगा यात्रा अवांछित है क्योंकि इससे प्रदेश का शांतिपूर्ण माहौल बिगड़ सकता है। सूत्रों ने कहा कि सरकार रैली में शामिल लोगों को प्रदेश की सीमा से बाहर रोकने के लिए बल प्रयोग कर सकती है।
एक आधिकारिक बयान के मुताबिक गुरुवार को मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय बैठक में निर्णय लिया गया कि प्रदेश में ऐसे किसी कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जाएगा जिससे शांति व्यवस्था भंग होने की आशंका हो।
जम्मू एवं कश्मीर पुलिस जम्मू से 90 किलोमीटर दूर पंजाब के लखनपुर से सटी प्रदेश की सीमा सील कर रही है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी गणतंत्र दिवस पर विभाजनकारी एजेंडे को बढ़ावा देने से बचने की अपील की है। तिरंगा यात्रा कोलकाता से 12 जनवरी को भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर के नेतृत्व में शुरू हुई थी। अलगाववादियों ने भी 26 जनवरी को श्रीनगर के लालचौक पर जवाबी रैली निकालने और काले झंडे फहराने की घोषणा की है।
(Courtesy : www.livehindustan.com, 23.01.2011)

लाल चौक पर ध्वजारोहण सरकार का दायित्व

Jan 23, 02:21 pm
नई दिल्ली। जनता पार्टी प्रमुख सुब्रमण्यम स्वामी ने केंद्र को श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा फहराने को लेकर दायित्व बाध्य करार देते हुए रविवार को कहा कि यदि राज्य सरकार वहां राष्ट्रीय ध्वज फहराने में सहयोग करने में विफल रहती है तो जम्मू कश्मीर में केंद्र शासन लगा दिया जाना चाहिए।

स्वामी ने यहां जारी एक बयान में कहा कि संविधान में उल्लेखित नियमों के पालना के तहत संप्रग सरकार का यह दायित्व है कि वह लाल चौक पर आधिकारिक रूप से तिरंगा फहराए। उन्होंने कहा कि राजनीतिक मामलों की केबिनेट समिति ने वर्ष 1991 में जनवरी के पहले सप्ताह में इस संबंध में एक प्रस्ताव मंजूर किया था। उन्होंने कहा कि उस समय चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे और वह केंद्रीय कानून, न्याय एवं वाणिज्य मंत्री थे।

उन्होंने कहा कि वरिष्ठ मंत्री एवं सीसीपीए का सदस्य होने के नाते मैं यह मुद्दा सीसीपीए में उठाया था क्योंकि वी पी सिंह सरकार ने इस मामले पर विचार करने के बाद वर्ष 1990 में लाल चौक पर झंडा फहराने की परंपरा पर रोक लगाने का फैसला किया क्योंकि इससे राज्य की जनता की भावनाओं को ठेस पहुंच सकती थी।

स्वामी ने कहा कि चंद्रशेखर सेवा प्रमुख, गुप्तचर प्रमुखों और केबिनेट सचिव से बात करने के बाद मुझसे सहमत हुए और निर्देश दिया कि सरकार झंडा फहराए और यदि कोई समस्या खड़ी होती है तो सेना सुरक्षा मुहैया कराए। उन्होंने कहा कि राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने बाद में इससे सहमति जताने के साथ ही 26 जनवरी 1991 को तिरंगा झंडा फहराए जाने के दौरान शांति व्यवस्था सुनिश्चित करने में सहयोग प्रदान किया।

उन्होंने कहा कि लाल चौक को कोई बाजार क्षेत्र नहीं बल्कि एक ऐतिहासिक स्थान है जिसे तत्कालीन मुख्यमंत्री भी स्वीकार कर चुके हैं इसलिए वह मांग करते हैं कि 26 जनवरी को वहां पर तिरंगा फहराया जाए। यदि राज्य सरकार सहयोग नहीं करती है तो राज्य में केंद्र शासन घोषित करके शासन व्यवस्था सेना को सौंप दिया जाए।

(Courtesy : jagran.com)