कंचन शर्मा, जम्मू देश के बंटवारे की त्रासदी में सब कुछ लुटा कर गुलाम कश्मीर से भारत आये हजारों हिंदू शरणार्थी सरकारी उदासीनता के कारण आज भी गुरबत की जिंदगी जी रहे हैं। दशकों पहले सीमा पार से आए इन विस्थापितों में से तकरीबन 200 परिवार आज भी अखनूर में दरिया चिनाब के किनारे गंदे नाले के आसपास बनी बस्ती में भीख मांग कर गुजार-बसर करने को मजबूर हैं। बुजुर्ग और अधेड़ पुरुष और महिलाएं सुबह होते ही भीख मांगने चले जाते हैं। दुख की बात यह है कि छंब नियाबत के जिला मीरपुर की तहसील भिंबर के गांव बटाला में खानाबदोश जिंदगी जी रहे इन परिवारों पर अब बाजीगर होने का लेबल भी लग गया है। विभाजन के दौरान अपनी जान बचा कर आए ये परिवार अभी भी कच्ची मिट्टी से बनी टूटी-फूटी झोपडि़यों में रहने को मजबूर हैं। किसी ने अपनी मेहनत से एकाध पक्का कमरा जरूर बना लिया है। अधिकतर लोगों का आरोप है कि वह आज भी इस बस्ती में नरक भरा जीवन जी रहे हैं।
बस्ती में न तो कोई शौचालय है और न ही साफ-सफाई की व्यवस्था। बस्ती के मोहल्ला प्रधान बिट्टू राम का कहना है कि चुनाव के दिनों में तो सभी राजनेताओं को हमारी याद आती है। सुविधाएं मुहैया करवाने के बड़े-बड़े वादे भी किए जाते हैं, लेकिन इसके बाद नतीजा वही ढाक के तीन पात। सबसे बड़ी समस्या उनके स्टेट सब्जेक्ट की है क्योंकि उनका कहीं भी रिकार्ड मौजूद नहीं है। पीओजेके डीपी फ्रंट के प्रधान कैप्टन युद्धवीर सिंह का कहना है कि गुलाम-कश्मीर रिफ्यूजियों को हर संभव सहायता देने के दावों की पोल अखनूर की रिफ्यूजी बस्ती में रहने वाले ये लोग खोलते हैं जो अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए सुबह ही भीख मांगने के लिए निकल जाते हैं। हालांकि गुलाम मोहम्मद बख्शी नेतृत्व वाली सरकार ने इन रिफ्यूजियों के पंद्रह परिवारों को चार कनाल व सात मरले की जगह खसरा नं 688-263 के अंतर्गत अलॉट भी की थी, लेकिन उसके बाद किसी ने भी उनकी सुध नहीं ली।
(Courtesy : www.jagran.com, 22.02.2011)
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