Suresh Joshi alias Bhaiyaji Joshi |
वर्ष 1947 के पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में एक खेल मैदान पर खेलते थे, वह खेल था दिल्ली किसकी है। 1947 के बाद खेल बदला और प्रश्न आया कि कश्मीर किसका है? कश्मीर हमारा है। संघ की शाखा में स्वयंसेवकों के मन में इस भाव का जागरण बहुत पहले से ही होता आया है। समस्या है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, इसके बारे में संघ के स्वयंसेवकों के मन में अलग कोई भावना या विचार नहीं है, पहले से ही इस प्रकार की धारणा है।
कश्मीर के संदर्भ में भावी परिदृश्य क्या होता है? जो भूत में था वही परिदृश्य है, वर्तमान में वही रहेगा, कोई अलग नहीं है। वर्तमान में जो है उसके कारण कुछ प्रश्न है। कश्मीर के संदर्भ में वर्तमान परिदृश्य भूतकाल का परिदृश्य नहीं है और यह वर्तमान का भी परिदृश्य देने वाल नहीं है। कश्मीर के संदर्भ में भावी परिदृश्य यही है कि जो प्रारम्भ से चला आ रहा है उसी दृष्टिकोण को देश ही नहीं बल्कि दुनिया के समक्ष सिद्ध करना, हमारा यही कार्य है। परिदृश्य के बारे में कोई दोराय नहीं है।
इस देश पर समय-समय पर विभिन्न प्रकार के आक्रमण होते आये हैं। शस्त्र लेकर आये, सारा एकदम खुला स्वरूप था आक्रमण का, ध्यान में आता है, तो लोग तैयारी करते थे आक्रमण का। पुरुषार्थ के बल पर, शक्ति के बल पर विजय प्राप्त करते हैं। तो एक बहुत लम्बी परम्परा इस देश की शक्ति ने, पुरुषार्थ ने देखी है कि किस प्रकार से शत्रुओं का सामना करना पड़ता है। शस्त्र के सामने न झुकते हुए चलते थे उसी कारण भारत का अस्तित्व विश्वमंच पर बना रहा है नहीं तो भारत समाप्त हो जाता।
एक दूसरा विभिन्न प्रकार का आक्रमण जो चला, योजना पूर्वक एक षड्यंत्र के रूप में रहा, अंग्रेजों का जो आक्रमण था वह बहुत ही सहज, हमें लगा भी नहीं कि कोई शत्रु आ रहा है, अंग्रेज हमें मित्र ही लगे। लोगों को कितनी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करायी। अगर अंग्रेज नहीं होते तो यह देश कैसे बनता, अंग्रेजों ने एक देश को देश दिया है। ऐसी भावना अच्छे-अच्छे और बुद्धिमान लोगों के मन में है। कभी-कभी लोग कहते थे कि अंग्रेजों का राज्य बहुत अच्छा था, क्या अच्छा था- तो कोई कष्ट नहीं, सुविधाएं सब प्रकार की थी, सब सम्मान मिलता था। रायबहादुर वगैरह इस प्रकार की पदवियां दी जाती थीं। समाज के संभ्रांत लोग अपने आपको धन्य मानते थे। उस समय के अंग्रेज अधिकारियों के साथ उठना-बैठना तथा चाय-पान करने को एक बड़ा गौरव मानते थे। तो शत्रु को शत्रु न समझना, यह बहुत ही कठिन स्थिति है किसी देश के लिए। अंग्रेज इस देश में कई प्रकार के बीज रोपण करके गये कि यहां का एक समान्य व्यक्ति भी भारत का दिखेगा लेकिन भारत का रहेगा कि नहीं, यह प्रश्न है। यह सामान्य अनुभव हम लोग देखते आये हैं।
अब वर्तमान का दृश्य जब हम देखते हैं तो दोनों प्रकार के आक्रमण हमारे देश पर चल रहे हैं। शस्त्र का सहारा लेकर आतंकवाद यहां प्रवेश कर चुका। और भी भिन्न-भिन्न प्रकार की आर्थिक शक्तियों का इस देश के जीवन में हस्तक्षेप भारत को फिर से अर्थ की दृष्टि से गुलाम बनाने में लगा हुआ है। शस्त्र का सहारा लेकर आतंकवाद के रूप में खुला आक्रमण भी चल रहा है; परन्तु दुर्भाग्य की स्थिति इस समय यह हो रही है कि इस देश में रहने वाले लोगों को ही अपने मित्र बनाकर अपने देश के साथ गद्दारी करने वाले खड़े करते गये। आतंकी घटनाएं होती हैं, मुम्बई, दिल्ली, जम्मू में होती है, या देश में कहीं और होती है, यह इसीलिए होती है क्योंकि उनको सहयोग करने वाले तत्व यहां विद्यमान हैं। यह पिछले आक्रमणों की तुलना में आया हुआ एक नया रूप है। इस देश के अंदर ही उनको सब प्रकार से सहयोग करने वाले लोग हैं। क्या अजमल कसाब बिना किसी सहयोग के ही यहां आया? केवल कसाब की ही बात नहीं है, बल्कि 26/11 में तो 10 पाकिस्तानी आतंकी समुद्री सीमा से देश में घुस आये और मुम्बई में तीन दिन तक रहकर 26/11 को अंजाम दे दिया। यह बिना किसी सहयोग के संभव ही नहीं है। यह सारा कुछ इसलिए हो रहा है कि देश के साथ गद्दारी करने वाली शक्तियां सक्रिय हैं। यह एक बड़ी समस्या है। इसके साथ हम जूझ रहे हैं।
सीमावर्ती देश पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश अपने देश में घुसपैठ कारने की कोशिश करते रहते हैं। एसे सीमावर्ती क्षेत्र पीड़ित हैं। तो ऐसी परिस्थितियां देश के अंदर हैं। देश के जो रणनीतिकार हैं उनका दायित्व बनता है कि अपने देश के लिए रणनीति बनाकर चलें। कोई नीति है क्या, इस प्रकार की नीति बनाने वाले जो लोग हैं उनकी प्रामाणिकता पर, देशभक्ति पर प्रश्नचिन्ह कभी-कभी लगाये जाते हैं। क्या वे प्रामाणिकता से देशहित को सामने रखकर रणनीति बनाने में लगे हुए हैं, यह सोचना आवश्यक है।
यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजनैतिक-तात्कालिक स्वार्थ को सामने रखकर, उसको हिंदू मुस्लिम का संघर्ष बताकार उसको राजनीतिक पाले में डाल दो, यह एक बड़ी आदत है। अब कश्मीर के बारे में कोई बोलेगा, घुसपैठ और आतंकवाद के बारे में कोई बोलेगा तो वह साम्प्रदायिक है। वह इस्लाम का विरोधी है। ऐसी छवि निर्माण करने का प्रयास हो रहा है।
प्रश्न के मूल में जाकर, उसको समझकर, समस्या निवारण के प्रति योजना या रणनीति बनाने की बजाय अपने राजनीतिक स्वार्थ को सामने रखकर क्षणिक लाभ देनेवाली बातें करते रहना, दुर्भाग्य से कुछ राजनीतिक दलों ने अपनी भूमिका इस प्रकार की बनायी है।
अब इस राष्ट्र के बारे में, देश की समस्याओं के बारे में बोलना भी राजनीतिक हो गया है, वह राष्ट्रीय नहीं रहा। यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्रीय मुद्दों को उठा रहा है तो वह राजनीतिक हो गया। क्या राष्ट्रहित से जुड़े हुए मुद्दों को जनजागरण की दृष्टि से उठाने में कोई चुनावी लाभ निहित है? किसी राजनैतिक क्षेत्र को प्रभावित करने के लिए है? ऐसे कुछ संकुचित स्वार्थ को लेकर क्या प्रश्न उठाये जाते हैं? जनसामान्य की देशभक्ति पर इस प्रकार की आशंकाएं प्रकट करना क्या देश की मानसिकता को दुर्बल करने वाला सिद्ध नहीं होगा? परन्तु इतना प्रामाणिकता से विचार करने के लिए किसके पास समय है, यह सोचने की आवश्यकता रहेगी।
भारत की शैली रही है बाचतीत करो, वार्तालाप करो, समझौता करो। यह पद्धति तो श्रेष्ठ है। इस इक्कीसवीं सदी में, आज के इस वैज्ञानिक युग में, एक विकसित मानव-जीवन के कालखंड में वार्तालाप करते हुए, गलतफहमियां दूर करते हुए, मनुष्य का जीवन सुख-शांति से चले, यह समय की मांग है। परन्तु बातचीत करने वाले को दुर्बल माना जाता है, शक्ति नहीं है तो बात करने आये हैं। जो शांति का मार्ग लेकर चले हैं और सबको मिलकर चलने की बात करते हैं, सबकी अस्मिताओं का संरक्षण करते हुए अपना-अपना देश अपने-अपने ढंग से चलता रहे, ऐसी बात करना दुर्बलता का प्रतीक माना गया है! इस प्रकार की एक गलत सोच विकसित हुई है।
भारत मित्रता चाहता है, सबसे मित्रता का इच्छुक है। समानता के आधार पर, हम अपनी छोटी भूमिका लेकर नहीं, और कुछ बातों में हम श्रेष्ठ भी हैं, इस भाव को लेकर भारत को खड़ा होना पड़ेगा। ऐसे रणनीतिकार भारत के चाहिए। इस भाव को प्रबल करने वाले लोग सत्ता में बैठने चाहिए। किसी भी प्रकार की देशहित के साथ समझौता करने वाली राजनीतिक शक्तियों को समाज में जागृत होकर पराभूत करने की आवश्यकता है। उनके सारे षड्यंत्रों का पर्दाफाश करने की आवश्यकता है।
वर्तमान में कई प्रश्नों के बारे में उदासीनता का वातावरण है। ऐसे प्रश्नों के निवारण के लिए समाज को कुछ करना चाहिए, इसके प्रति उदासीनता है। उदासीनता तो है ही, अज्ञानता भी है, हम कई बातों को जानते ही नहीं। इसके बारे में समाज को जागृत करना चाहिए, इसकी आवश्यकता है। यह जो कश्मीर का प्रश्न है, हिंदुस्तान, पाकिस्तान का प्रश्न है, ऐसा जो माना जाता है। ठीक है पाकिस्तान सारी समस्याओं की जड़ में है, लेकिन क्या यह प्रश्न हमारा नहीं है, देश का नहीं है, देश के रणनीतिकारों का नहीं है। देश के अंदर राष्ट्रभाव को जागृत करते हुए, उदासीनता को दूर करते हुए प्रश्नों को दूर करने के लिए, प्रश्नों का हल ढंढने के लिए समाज के अंदर शक्ति का जागरण करना पड़ेगा। यह काम एक चुनौती है, एक आह्वान है। इसको लेकर हम जायेंगे, हम खड़े हैं। कभी-कभी लोग कहते हैं कि हो गया, अब बहुत हो गया, कितने बार कश्मीर को लेकर आंदोलन करेंगे। इस प्रश्न का भी सरल शब्दों में यही उत्तर है कि जब तक कश्मीर समस्या हल नहीं होगी, यह प्रश्न बार-बार उठता रहेगा। इसके लिए हम निरंतर प्रयास करेंगे।
लोग बड़ी सहजता से कह देते हैं कि जो नियंत्रण रेखा है, एलओसी है, उसको अंतरराष्ट्रीय सीमा मान लो। क्यों झगड़ा करना। पड़ोसी देश है। बड़ा गरीब है। बड़े पिछड़ा हुआ है। भारत से ज्यादा पाकिस्तान में दर्दनाक घटनाएं होती हैं। क्या ऐसी सामान्य बुद्धि को लेकर विदेशी शक्ति की उदण्डता को देखते रहेंगे? देश के प्रश्नों के बारे में कठोरता से कहना पड़ता है, कदम उठाने पड़ते हैं। ऐसी सरकार चाहिए। अपने अस्मिता और सम्मान के साथ कोई समझौता नहीं। इस प्रकार की शक्ति का भाव का जागरण निरंतर करेंगे। प्रश्नों को लंबित करते जाओ, प्रश्नों की उपेक्षा करते रहो, ऐसे आत्मविश्वास से शून्य, इस प्रकार का परिचायक जो व्यवहार होता है, इससे सब लोगों को मुक्त करना, यह संकल्प हम लोगों ने लिया है।
हम कश्मीर के प्रश्न को लेकर जाएंगे। लोकतंत्र में शासन जनशक्ति को ही समझता है। ऐसे प्रश्नों पर शासन जनशक्ति को ही समझता है। हमारा भी दायित्व बनता है कि हम जनशक्ति का प्रकटीकरण करें, जनशक्ति को खड़ा करें। और आवश्यकता पड़ती है तो शक्ति का लोकतांत्रिक प्रदर्शन करने की भी तैयारी करें।
(उपरोक्त आलेख राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री सुरेश जोशी उपाख्य भैयाजी द्वारा ‘जम्मू-कश्मीर : तथ्य समस्याएं एवं समाधान’ नामक कार्यशाला में व्यक्त विचारों का मूलरूप है। इसका आयोजन 19 व 20 नवम्बर 2011 को ‘जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र’ के तत्वावधान में नागपुर स्थित रेशिमबाग में किया गया था।)
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