केवल कृष्ण पनगोत्रा
कुछ दिन पूर्व सेना की 15वीं कोर के लेफ्टिनेंट जनरल (जीओसी) सईद अता हसनैन ने राज्य में आतंकवाद की स्थिति पर एक पते की बात कही। उन्होंने कहा कि वर्ष 2012 में आतंकियों के राज्य में घुसपैठ के प्रयासों, अफगानिस्तान और पाकिस्तान की परिस्थितियों का राज्य की सुरक्षा पर प्रभाव होगा। बकौल हसनैन-हमने दूसरी ओर (पाकिस्तानी, आतंकी और अलगाववादी मानसिकता से ग्रस्त लोग) की मंशा में कोई बदलाव नहीं देखा। लांचिंग पैड पर आतंकी घुसपैठ के लिए अवसर की तलाश में हैं। इस साल उन्होंने एक नहीं बल्कि कई बार घुसपैठ का प्रयास किया। श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर के विधि मंत्री अली मुहम्मद सागर पर हुए आतंकी हमले को भी सैन्य कमांडर ने वर्ष 2012 में आतंकवाद जारी रहने संबंधी चिंता के दृष्टिगत ही देखा है। इसके अलावा कोर कमांडर का यह कहना भी खास मायने रखता है कि जब रूसी सेना अफगानिस्तान से हटी थी तो वहां सक्रिय कई आतंकी जम्मू-कश्मीर पहुंचे और आतंकी हिंसा में तेजी आई। अब अफगानिस्तान से नाटो सेना के हटने की संभावना है, इसलिए आतंकी फिर कश्मीर का रुख कर सकते हैं। उनका यह कहना भी जायज है कि वर्ष 2011 की शांति से आतंकी हताशा में हिंसा का रास्ता अख्तियार कर सकते हैं ताकि मरणासन्न आतंकवाद को जिंदा किया जा सके। अभी कुछ रोज पूर्व पुंछ के वीजी सेक्टर में आतंकियों के एक दल ने घुसपैठ का प्रयास किया था। आतंकियों और जवानों के बीच दो घंटे की गोलीबारी के बाद प्रयास नाकाम हुआ। सुरक्षा बलों को विश्वास में लिए बगैर अफस्पा जैसे कानून को हटाया नहीं जा सकता। ऐसा होना भी नहीं चाहिए, क्योंकि सेना, सुरक्षा और गुप्तचर एजेंसियों के बीच उच्चस्तरीय तालमेल से ही वर्ष 2011 में राज्य से आतंकवाद में काफी हद तक काबू पाया जा सका है। फिलहाल नेकां की प्रतिष्ठा का मुख्य सवाल राज्य के कुछ क्षेत्रों में अफस्पा हटाने का है लेकिन जिस तरह की आशंका सेना जता रही है, उसे देखते हुए यह भी नहीं कहा जा सकता कि आतंकी अफस्पा रहित शांत इलाकों में वारदात को अंजाम नहीं देंगे। और खास बात यह भी है कि जहां शांति है वहां अफस्पा स्वमेव ही प्रभावहीन है। जाहिर है कि शांत क्षेत्रों में अफस्पा को हटवाना एक खालिस सियासी मुद्दा है। नेकां इस कानून को हटवाने की जिद्द पर है और पीडीपी नेकां द्वारा श्रेय लेने की चिंता से ग्रस्त है। राज्य से आतंकवाद का समूल सफाया कब होगा? इस सवाल पर खुलकर गारंटी से कोई कुछ भी नहीं कह सकता। जिस चेतावनी के साथ विधि मंत्री पर हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन जमायतुल मुजाहिदीन के अल-जब्बार स्क्वाड ने ली है उससे तो भविष्य में राज्य से संपूर्ण शांति की उम्मीद करना ही बेमानी होगी। समाचार पत्रों में जमायतुल मुजाहिदीन के प्रवक्ता के हवाले से जिस प्रकार की चेतावनी प्रकाशित हुई है उससे तो यही लगता है कि अफस्पा जैसे कानून को हटाने की फिलवक्त कोई जरूरत ही नहीं है। कारण चाहे कुछ भी हो, खास बात यह है कि जमायतुल मुजाहिदीन ने दूसरे भारत समर्थक नेताओं के साथ नेकां नेताओं और कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने की चेतावनी दी है। कुल मिलाकर यह कहना गलत होगा कि सीमापार से आतंकियों की घुसपैठ बंद है और राज्य में आतंकी सक्रियता पूरी तरह से समाप्त हो गई है। जाहिर है कि इन हालात में जहां विशेष सुरक्षा घेरे में रहने वाले राजनेता सुरक्षित नहीं, वहां आम लोगों की सुरक्षा रामभरोसे ही है। अगर राज्य के कुछ क्षेत्रों में आतंकी गतिविधियां बंद हैं और शेष भागों में आतंकवाद में काफी कमी दर्ज की जा रही है तो यह अफस्पा के कारण ही संभव हुआ है। अत: सरकार के लिए यह जरूरी है कि सेना को अपना काम करने दिया जाए और अफस्पा की चिंता त्याग कर जम्मू-कश्मीर के सर्वोत्तम पीड़ादायक सामाजिक कष्ट भ्रष्टाचार की ओर वरीयता से ध्यान दिया जाए। अफस्पा से पूरे राज्य की जनता का कोई सरोकार नहीं लेकिन भ्रष्टाचार से हर आम आदमी सामाजिक और राजनैतिक तौर पर विचलित है। जब से लोकपाल सामने आया है तब से ही राज्य में भी मजबूत लोकपाल के समर्थन में सियासी और समाजी हलके संघर्षरत है और समाजसेवी अन्ना हजारे के समर्थन में स्वर मुखर किए हैं। राज्य में अचानक जनता का अन्ना के समर्थन में एकजुट हो जाना ही इस बात को दर्शाता है कि जनता आतंकवाद के साथ भ्रष्टाचार से भी पीडि़त है। राज्य के संदर्भ में खास बात यह है कि यहां जब भी सरकार विरोधी धरने-प्रदर्शन हुए, जनता ने आतंकवाद के साथ-साथ भ्रष्टाचार को भी खास मुद्दा बनाया है। इसका कारण यह है कि राज्य में भ्रष्टाचार काबू से बाहर हो चुका है। हाल में ही राज्य में मदरसों को आर्थिक सहायता के लिए जारी राशि पर केंद्र और राज्य सरकार का अलग-अलग आंकड़ा विवाद का मुद्दा बना हुआ है। मानव संसाधन मंत्रालय राज्य में मदरसों की सहायता के लिए वर्ष 2010-11 के लिए पांच करोड़ रुपये की जानकारी दे रहा है मगर राज्य सरकार तीन करोड़ 74 लाख रुपये बता रही है। राबिता मदरसा इस्लामिया अरबिया संगठन का कहना है कि उनके बैनर तले 200 मदरसे हैं मगर किसी भी मदरसे ने केंद्रीय सहायता की एक कौड़ी नहीं ली। राज्य में ऐसे और भी कई मदरसे हैं जिन्हें राज्य सरकार द्वारा केंद्रीय मदद का एक पैसा भी नहीं मिला। इन हालात में यह कहना गलत होगा कि अफस्पा को राज्य के कुछ क्षेत्रों से हटाने की मांग आम जनता की है। आम जनता अफस्पा से नहीं बल्कि भ्रष्टाचार से त्रस्त है। जहां सिर्फ सिटीजन चार्टर जैसे कानूनों की कागजी घोषणाएं ही होती हैं। आए दिन राज्य में भ्रष्टाचार के खुलासे होते रहते हैं मगर अपवाद को छोड़कर ही कार्रवाई होती है। क्या भ्रष्टाचार से बढ़कर कोई और चिंता है?
(लेखक : जम्मू-कश्मीर मामलों के अध्येता हैं।)
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