मुरारी गुप्ता
आखिरकार बीबीसी हिंदी का भारत के प्रति सोचने का नजरिया सामने आ ही गया. समझ नहीं आता क्या सोचकर बीबीसी हिंदी ने विषय रखा है- क्या कश्मीरी अलगाववादियों को शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात कहने की इजाजत देनी चाहिए. क्या कभी ये भी विषय रखने के बारे में सोचा कि क्या कश्मीरी पंडितों को वापस कश्मीर घाटी में लौटने देना चाहिए. जो ढाई सौ साल पहले इंग्लैंड ने भारत में किया, लगभग वैसा ही बीबीसी हिंदी अब भारत के साथ कर रहा है. अलगाववादी कौनसी बात करना चाहते हैं. आजादी की? क्या बीबीसी लंदन उन्हें आजादी दिलाएगा. हर बार बीबीसी लंदन के विषय भारत विरोधी होते हैं. इससे बीबीसी हिंदी की मानसिकता समझ में आती है.
छब्बीस अक्टूबर को बीबीसी के मुख्य पृष्ठ पर अरुंधति राय का कमेंट छपा-न्याय की मांग करने पर जेल. इससे पहले भी उनके कश्मीर आजादी के बयान को प्रमुखता से छापा. हम बीबीसी लंदन की मानसिकता को समझ रहे हैं. शायद उन्हें भारत में अलगाव फैलाने में खूब मजा आता है, लेकिन बीबीसी लंदन वालों, बीबीसी हिंदी वालों यह कान खोल कर सुन लो, यह हथकंडा अब ज्यादा दिन तक नहीं चलने वाला. अरुंधति और जिलानी जैसे देशद्रोहियों और उनके बढ़ावा देने वाली बीबीसी हिंदी को यहां का पत्रकार जगत अच्छी तरह जानता है.
(लेखक : स्वतंत्र पत्रकार हैं)
No comments:
Post a Comment