इन्द्रेश कुमार
आज जम्मू-कश्मीर की धरती एवं जनता का सौदा हो रहा है। बंदूक उठाए आतंकवादी दल व उनके नेताओं की मांग है आजादी। देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेता व भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव कहते थे, नहीं भाई आजादी नहीं देंगे; परंतु आजादी से कुछ कम दे सकते हैं। देश के प्रधानमंत्री ने तो देश की एकता एवं अखंडता को ही दाँव पर लगाते हुए एक अनजान देश बारकीनो फासो में पैकेज-95 की घोषणा कर दी, जिनमें सदरे-रियासत एवं वजीरे-आजम पदों के लिए उन्होंने सहमति व्यक्त की है। प्रधानमंत्री के झुकते व कमजोर रवैये को देख डॉ. फारूख पांच-छह वर्षों से यूरोप में ही क्यों रह रहे हैं यह बात ध्यान में आई?
अमेरिकी नेता सुश्री रॉबिन राफेल के गुण क्यों गा रहे हैं? श्री नरसिम्हा राव के वक्तव्य को डॉ. फारूख की सफलता माना जाता है और तुरंत डॉ. फारूख इंगलैंड से पुनः भारत में श्रीनगर लौट आए। आज पुनः मनमोहन सिंह व सोनिया कश्मीरी अलगाववादियों के सामने घुटने टेककर स्वायत्तता यानी भारत विभाजन की मांग को स्वीकार करते दीख रहे हैं। आज हुर्रियत नेता गिलानी आदि के साथ-साथ मुफ्ती, महबूबा व उमर आदि का मन भी आजादी का ही है ऐसा लोगों का मानना है। आज हुरियत नेता खुले रूप में आजादी की बात बोलने लगे हैं।
प्रश्न खड़ा होता है कि 1946 क्यों नहीं, 1953 क्यों चाहिए ? आजादी से कुछ कम अथवा 53 की बात करने वाली पार्टियों व नेताओं को निम्न प्रश्नों का जवाब देना होगा-
1. 1953 से पूर्व परमिट सिस्टम था। क्या पुनः परमिट सिस्टम लागू होगा और डॉ. मुखर्जी का बलिदान बेकार कर दिया जाएगा?
2. कर होगा तो आज माता वैष्णों देवी के दर्शन हेतु प्रतिवर्ष देश-विदेश से 50 लाख लोग आते हैं, इसमें जम्मू क्षेत्र को 500 करोड़ रू. का प्रति वर्ष व्यापार मिलता है जो कि गांव-गांव तक वितरित होता है। वह सब व्यापार रुकेगा, जिसके कारण बेकारी, बेरोजगारी गरीबी बढ़ेगी। इसी प्रकार से बाबा अमरनाथ (कश्मीर घाटी) यात्रा के लिए 3 लाख से अधिक दर्शनार्थी प्रति वर्ष आते हैं जिसके कारण कश्मीर घाटी को 100 करोड़ रू. से अधिक का व्यापार मिलता है उस सारे पर असर पड़ेगा?
3. 1953 से पूर्व की स्थिति में अगर परमिट लागू होता है तो क्या लखनपुर में टोल टैक्स की बजाय कस्टम खुलेगा। कस्टम तो एक देश से दूसरे देश में होता है। टैक्स 8 या 10 प्रतिशत तक होता है, कस्टम तो 100 प्रतिशत से भी होता है। देशभर से जम्मू-कश्मीर आनेवाली प्रत्येक वस्तु बहुत महंगी होंगी।
4. देश के संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार 1950 के पश्चात् ही जम्मू-कश्मीर के लोगों को प्राप्त हुए थे। क्या ये मूलभूत अधिकार बरकारार रहेंगे या समाप्त हो जाएंगे ?
5. अगर मौलिक अधिकार छिन जाएंगे तो एक गंभीर प्रश्न खड़ा होता है कि राज्य लोकतांत्रिक होगा। अथवा मजहबी राज्य होगा। जम्मू-कश्मीर इस समय 110 लाख जनसंख्या का प्रदेश है जिसमें 42 लाख हिंदू (बौद्ध सिक्ख मिलाकर) हैं तथा 68 लाख मुसलमान हैं। दुनियां में मुस्लिम बहुल राज्य तो मजहबी राज्य ही हैं जैसे पाकिस्तान, बंगलादेश, ईरान, इराक आदि।
6. जम्मू-कश्मीर का व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय में न्याय प्राप्त करने जा सकता है अथवा नहीं, क्योंकि जम्मू-कश्मीर प्रदेश 1953 के पश्चात् 1960 में सर्वोच्च न्यायालय की परिधि में आया है।
7. 1953 के पश्चात् 1958 में सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेशन ट्रिब्यूनल लागू हुआ जिसके अंतर्गत आई.ए.एस., आई.पी.एस., आई.एफ.एस. अफसर देशभर से जम्मू-कश्मीर में आते हैं और यहां के लोग देशभर में अफसर बनकर जाते हैं। क्या सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेशन ट्रिब्यूनल रहेगा या जाएगा।8. 1953 के पश्चात् ही जम्मू-कश्मीर मुख्य महालेखाकार की हदबंदी में आया और प्रदेश में धन के व्यय पर केंद्र सरकार का नियंत्रण बना। यह नियंत्रण रहेगा या नहीं।
9.1952 में देशभर में लोकसभा तथा विधानसभा के चुनाव हुए, परंतु जम्मू-कश्मीर में उस समय लोकसभा चुनाव नहीं हुए। जम्मू-कश्मीर के नागरिकों ने लोकसभा के लिए पहली बार 1957 में वोट डाला। 1952 में जम्मू-कश्मीर विधान सभा ने लोकसभा के लिए 6 सदस्य नामजद किए थे। क्या 1953 से पूर्व की स्थिति का मतलब है कि जम्मू-कश्मीर की जनता लोकसभा के लिए मतदान नहीं करेगी और देश की संसद में उसकी आवाज का गला घोंट दिया जाएगा, उसे लोकमत अधिकार से वंचित किया जाएगा।
10. प्री-53 अर्थात् देश के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा की स्थिति क्या होगी। आज भी प्रदेश में दो झंडे हैं जबकि देशभर में आज किसी प्रांत में यह स्थिति नहीं हैं। 1953 तक तो जम्मू-कश्मीर की जनता तिरंगे के सम्मान के लिए प्रजा परिषद् के नेतृत्व में लड़ती रही है। 18 लोगों ने हीरानगर, सुंदरबनी, छंब ज्योड़िया व राममानव में शहादतें दीं। डॉ. मुखर्जी का बलिदान हुआ, क्योंकि उनका नारा था कि संविधान लूंगा या बलिदान दूंगा। 1952 के पश्चात् तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान प्राप्त हुआ। क्या तिरंगा झंडा प्रदेश में नहीं रहेगा अर्थात् झंडा देश की आन-बान-शान कुचल दी जाएगी?
11. उस समय जम्मू-कश्मीर प्रदेश का मुख्यमंत्री, प्रदेश का वजीरे-आजम अर्थात् प्रधानमंत्री कहलाता था, वहीं राज्यपाल अर्थात् सदर-ए-रियासत अर्थात् राष्ट्रपति कहलाता था। एक ही देश में दो प्रधान ? कितनी भयंकर विचित्र बात है, तो फिर शेष प्रांतों ने भी क्या कसूर किया है ? डॉ. फारूख तो साफ-साफ कहते हैं कि मैं सी. एम. नहीं, पी. एम. बनूंगा। देश के कांग्रेसी प्रधानमंत्री ने भी इस बात को स्वीकार करने की घोषणा करके संविधान एवं लोकतंत्र की अवमानना की है। फिर सदर-ए-रियासत के चयन की विधि भी निराली है। वह देश के राष्ट्रपति के प्रति जवाबदेह नहीं है। और न ही राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री अपनी इच्छा व देश की आवश्यकता वाला सदर-ए-रियासत नियुक्त कर सकते हैं। जम्मू-कश्मीर विधानसभा इस पद के लिए राष्ट्रपति के पास तीन नाम भेजेगी और राष्ट्रपति को उसमें से निश्चित बताना है कि कौन व्यक्ति इस पद के लिए उचित रहेगा। राष्ट्रपति सदर-ए-रियासत को बदल भी नहीं सकता। अगर कल सदर-ए-रियासत बगावत कर दे तो देश मुंह देखता रह जाएगा। ध्यान रहे, भारतीय संविधान की धारा 365/357 जम्मू-कश्मीर प्रदेश पर 1958-60 में लागू हुई है।
12. देश के संविधान के अनुसार किसी भी प्रांत में सत्तारूढ़ पार्टी के विधायकों का नेता मुख्यमंत्री कहलाता है। क्या भारतीय संविधान में इस प्रावधान को बदलकर नया प्रावधान जोड़ा जाएगा कि अब सत्तारूढ़ विधायक दल के नेता प्रधानमंत्री कहलाएगा? अगर यह संशोधन होगा तो देश के सभी प्रांतों में लागू होगा। तो क्या एक प्रधानमंत्री के नीचे अनेक प्रधानमंत्री होंगे?
13. 1952 में शेख अब्दुल्ला ने सभी 75 विधानसभा सदस्य एक ही पार्टी नेशनल कान्फ्रेंस के विजयी घोषित किए थे, क्या ऐसा ही लोकतंत्र प्री-53 में होगा।
14. अनेक केंद्रीय कानून जो समय के साथ लागू हुए, क्या वे वापस होंगे?
15. सेना के वर्तमान कमान की स्थिति क्या होगी ? उत्तरी कमान देश की सबसे बड़ी कमान है। 1953 के पश्चात् जम्मू-कश्मीर में कमान कार्यालय स्थापित हुआ। वह रहेगा या स्थानांतरित होगा।
पं नेहरू ने संसद के माध्यम से देश की जनता से वायदा किया था कि समय के साथ-साथ अस्थायी तात्कालिक अनुच्छेद-370 समाप्त हो जाएगी और जम्मू-कश्मीर अन्य प्रांतों के समान भारत अटूट अंग होगा। कांग्रेस जनता से किए वायदे से मुकरकर पं. जवाहरलाल नेहरू की पीठ में छुरा घोंप रही है तथा जनता से धोखा कर रही है। प्रश्न खड़ा होता है कि सन् 1952 से पहले महात्मा गांधी, सन् 1900 से पूर्व विवेकानंद, 1600 से पूर्व छठी पातशाही श्री हरगोविंद राय, 2000 वर्षों से पूर्व जगत गुरू आदि शंकराचार्य कश्मीर आए तब जम्मू-कश्मीर भारत का अटूट अंग था और धारा-370 नहीं थी। अब इस खाई, पुल या दीवार की क्या जरूरत है?
देश के अन्य सभी प्रांतों में जब इस्लाम मतावलंबी अनुच्छेद-370 के बिना हिन्दुस्तान में रह सकते हैं तो यहां के नेताओं व जनता को क्या तकलीफ है ? परंतु पंथनिरपेक्षता के नाम पर तुष्टीकरण का खेल खेलने वाली, कुर्सी की खातिर देश की एकता व अखंडता का सौदा करनेवाली पार्टियां व नेता इस अलगाववादी अनुच्छेद-370 को पक्का बनाकर अपने नेताओं को संसद, न्यायपालिका व जनता को अपमानित करने का दुःसाहस कर रहे हैं। कश्मीर में अलगाववादियों का चरित्र कैसा अमानवीय हो गया है कि अब वे बच्चों से पत्थर फेंकवा कर, उन्हें मरवाकर अपनी गलत बात को मनवाने की कोशिश कर रहे हैं। हमने यही सुना, देखा पढ़ा था कि लोग बच्चों के लिए अपनी कु र्बानी देते हैं परंतु कश्मीर में लोग अपने षड़यंत्र पुरा करने के लिए बच्चों को मरवा रहे हैं। लगता है कश्मीर में शैतान आ घुसा है।
मेरा मन इस गलत परंपरा से भी देश की जनता को सावधान करना चाहता है कि वर्तमान प्रधानमंत्री नरसिंह राव को लगता है कि 1947 में गांधी एवं नेहरू ने एक मजहबी देश प. एवं पूर्वी पाकिस्तान को जन्म दिया। सन् 1947 से 1971 का अंतराल 24 वर्ष का है और 1971 से 1995 की अवधि भी ठीक 24 वर्ष की बनती है। गांधी ‘राष्ट्रपिता’, नेहरू ‘चाचा’ तो इंदिरा ‘दुर्गा’ कहलाईं। कहीं नरसिम्हा राव को भी यह लगता है कि प्रसव काल आया है कि वह भी एक मजहबी संतान पैदा करने में क्यों पीछे रहें, क्यों न कश्मीर के रूप में एक नया मजहबी देश पैदा कर दिया जाएं? वह भी महान नेता बन सकते हैं। गलतियां करना और उन्हें उपलब्धियों के रूप में गिनना कांग्रेस की पुरानी परंपरा है। अब मनमोहन सिंह व सोनिया भी इसी बात को आगे बढ़ा रहे हैं।
1953 से पूर्व की स्थिति के नारे के खिलाफ प्रदेश की जनता में भयानक रोष पनप रहा है। लद्दाख हिल कौंसिल के चेयरमैन मि. थुपसन ने तो प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस मांग का भरपूर विरोध करते हुए डॉ. फारूख व केंद्र सरकार को चेतावनी दी है। गैर राजनीतिक संस्था लोक जागरण मंच ने तो प्री-53 के विरोध में कमर कस ली है। पोस्टर, पर्चा (पत्रक) घर-घर, गांव-गांव में वितरित करते हुए यह बात जन-जन में पैदा की जा सकती है कि हम जम्मू-कश्मीर की जनता के सम्मान व स्वतंत्रता का सौदा नहीं होने देंगे। रियासी, उधमपुर, सुंदरबनी में तो सभी पार्टियों के लोगों ने भाजपा के आवाहन पर प्री-53 के विरोध में बंद तथा प्रदर्शन किए।
जम्मू में गुर्जर-बकरवाला मुसलमानों ने सैकड़ों-हजारों की संख्या में भाजपा के झंडे के नीचे प्री-53के विरोध में भारी जुलूस निकाला। राजौरी में एक युवक स्वयंसेवक यशवंत तो डॉ. फारूख की इस मांग पर इतना भावुक हो उठे कि गुस्से से भरकर हाथ उठाने की कोशिश की। भारत के अवकाश प्राप्त विदेश सचिव श्री जे.एन. दीक्षित कहते हैं कि 1953 से पूर्व की स्थिति का अर्थ पुनः भारत विभाजन की ओर पहला मुर्खतापूर्ण कदम होगा। कश्मीर घाटी में भी स्थानीय मुस्लिम इस मांग का विरोध कर रहे हैं। जम्मू व करगिल का मुसलमान भी हिंदुस्तान जिंदाबाद बुलंद कर रहा है। वह आजादी याने विभाजन के विरुद्ध है।
1953 से पूर्व की स्थिति अर्थात् आजादी से कुछ कम अथवा आजादी तीनों ही पर्याय जनता को स्वीकार्य नहीं हैं। राज्य की जनता को लगता है कि अगर यह स्थिति आई तो उसे या तो रिफ्यूजी बनना पड़ेगा, नहीं तो पाकिस्तान एवं बंग्लादेश की तरह हिंदू एवं राष्ट्रवादी मुस्लिम की गुलामी का जीवन जीना पड़ेगा। लोगों के मन में यह भी शंका आती है कि मजहब यानी धर्म भी बदलने के लिए जोर जबरदस्ती होगी। लोगों के सामने 1990 से 1995 तक का उदाहरण है, जब कश्मीर से लोग बेघरबार हुए तथा डोडा, उधमपुर के ऊंचे पहाड़ी इलाकों से बार-बार उजड़ने को मजबूर हैं।
आज आवश्यकता है कि पूरा देश एक स्वर में आजादी अथवा आजादी से कुछ कम एवं 1953 से पूर्व की स्थिति का भरपूर विरोध करे। बल्कि अब तो समय आ गया है जब पाक अधिकृत कश्मीर को लेने के लिए सरकार व सेना को कार्यवाही चाहिए। युद्ध कोई बुरी बात नहीं, बल्कि देश की अखंडता एवं एकता के लिए सदैव अपरिहार्य है। निर्णय व तैयारी भारत को ही करनी होगी। कश्मीर घाटी को संदेश देना होगा लव भारत या लिव भारत साथ ही साथ भारतपरस्त ताकतों को मजबूती व सहारा देना होगा। जम्मू-कश्मीर भारत का था, भारत का है और भारत का हीं रहेगा। इसी से पाकिस्तान व दुनिया की षड्यंत्रकारी ताकतों को ठीक उत्तर मिलेगा।
(लेखक : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अ.भा. कार्यकारिणी के सदस्य हैं।)
Courtesy : www.pravakta.com, 27/11/2010)
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