इंद्रेश कुमार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आज से 50 वर्ष पूर्व अस्थायी अनुच्छेद– 370 को संविधान से समाप्त कर कश्मीर घाटी में जनसंख्या का संतुलन स्थापित कर अलगाववादी व पाकिस्तानी षड़्यंत्रों का मूंहतोड़ जवाब देते हुए हिंदुस्तानपरस्त ताकतों को सशक्त करने का उपाय सुझाया था। परंतु कांग्रेस सदैव कट्टरतावाद के सामने झुकती रही है तथा राष्ट्रवाद को नकारती रही है। इस र्वात्ता से यही बात सिध्द होती है कि राष्ट्रवादी किदवई ठुकराये गए तथा अलगाववादी शेख अब्दुला (जिनको बाद में वतन व कौम के साथ गद्दारी के कारण 22 वर्ष जेल में रहना पड़ा) नवाजे गए, जिसका परिणाम है आज का झुलसता जम्मू-कश्मीर। कांग्रेस द्वारा राष्ट्रवाद को नकारना व कट्टरतावाद को नवाजना इसके अनेक उदाहरणों में एक बड़ा उदाहरण है – शाहबानो केस, जिसमें राष्ट्रवादी मो. आरिफ खान ठुकराए गए और कट्टरवादी शहाबुद्दीन नवाजे गए। काश! आज भी कांग्रेस नेताओं को सद्बुध्दि आ जाए और वे अस्थायी धारा-370 को हटाने के पक्षधर बन जाएं तो कश्मीर की समस्या के समाधान का मार्ग खुल जाएगा।
पिछले अनेक वर्षों से आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में खुन की होली खेल रहे हैं। लाशों के अंबार (ढेर) लगाए जा रहे हैं। नारी की इज्जत को सरेआम लूटा जा रहा है। मानवता का गला घाेंटा जा रहा है। कश्मीर घाटी से 3 लाख से अधिक कश्मीरी पंडित, सिख व डोंगरा आदि लोग विस्थापित होकर अपना जीवन टैंटों, कैंपों (एक कमरे का घर), किराए के मकानों में व्यतीत करते हुए एक घुटन भरी व उजड़ी हुई जिंदगी जी रहे हैं। डोडा व उधमपुर जिलों के ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों से हिंदुओं को आतंकित कर लुटा जा रहा है, कत्ल किया जा रहा है। गाँव के गाँव खाली हो रहे हैं। इन क्षेत्रों में दहशत भरे माहौल का वातावरण बना हुआ है। आतंकवादियों के हौंसले इतने बुलंद हैं कि स्थान-स्थान पर पड़ी सेना की वे परवाह नहीं करते, बल्कि सेना पर प्रतिदिन हमले हो रहे हैं। अभी तक बहुत बड़ी संख्या में सैनिक, अर्ध सैनिक एवं पुलिस जवान मारे जा चुके हैं। ऐसे में आतंकवाद की माँ पाकिस्तान को भी समझना जरूरी है। पाकिस्तान का जन्म सन् 1947 में भारी खून-खराबे में से हुआ है। जन्म से हीं पाकिस्तानी नेताओं को नारा था, ‘हँसकर’ लिया है पाकिस्तान, लड़कर लेंगे ‘हिंदुस्तान’। पिछले 40-50 वर्षों से पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में लोगों को भारी मात्रा में हथियार एवं हथियारों का प्रशिक्षण देकर हिंदुस्तान को बर्बाद करने का निर्णय किया हुआ है। अब पाकिस्तान का नारा है कश्मीर को आजाद करो, भारत को बर्बाद करो, यहां (कश्मीर) क्या चलेगा निजामे मुस्तफा। एक नए मजहबी राज्य के निर्माण में अमरीकी धन एवं अमरीकी खुफिया एजेंसियों की भी पूरी मदद है।
सन् 1949 से 1953 तक जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री (वजीरे-आजम) शेख अब्दुल्ला ने अमेरिकन मि. फिल्प एडमन्स, मि. स्टीवनसन्स तथा डॉ. फ्रेंक बुकमेन से मिलकर आजादी (भारत विभाजन) का षड़्यंत्र रचा। उन्होंने परमिट सिस्टम, कस्टम, अलग प्रधान, अलग निशान, अलग संविधान, धारा-370 आदि लागू करवाकर ऐसी स्थिति बना ली थी कि कांग्रेस की कोख से पुनः नए मुस्लिम देश का जन्म होना मजबूरी बन गयी थी, परंतु संघ के देशभक्त स्वयंसेवकों द्वारा प्रजा परिषद् के रूप में उग्र एवं भारी आंदोलन शुरू किया गया। स्थान-स्थान पर 18 लोग राष्ट्रीय ध्वज व संविधान की रक्षा करते-करते शेख अब्दुल्ला की गोलियों का शिकार हुए। 5,000 सत्याग्रहियों ने यातना भरी अनेकों महीने जेल काटी। प्रतिदिन सत्याग्रहियों को सर्दी में बर्फ पर घंटों लिटाया जाता था जिसके कारण शरीर नीले पड़कर अकड़जाते थे। रेत व कंकड़ मिली रोटियाँ खाने से उनके पेट खराब होकर शरीर जर्जर हो गए थे। कोड़ों की मार से उभरे नील व खून की धाराएं उस समय सत्याग्रहियों पर हुए अत्याचारों की कहानियां कह रही है। देश के सपूत डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान ने गहरी नींद में सोए, तुष्टीकरण के चश्मे को चढ़ाए पं. नेहरू (तत्कालीन प्रधानमंत्री) व कांग्रेस पार्टी को झकझोर कर रख दिया। 1953 में शेख अब्दुल्ला को बंदी बनाकर जेल में डाला गया। इसके पश्चात् तिरंगा झंडा जम्मू-कश्मीर में लहराने लगा। परमिट सिस्टम टूटा तथा भारतीय संविधान लागू हुआ।
पाकिस्तान व कश्मीरी षड़यंत्रकारी नेताओं को यह अनुभव हुआ कि अगर जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करना है तो व्यापक तैयारी करनी होगी। 1953 से 1986 तक इस विद्रोह की तैयारियां करने में पाकिस्तान व अलगाववादी ताकतें जुटी रहीं। इन तैयारियों को जायजा लेने के लिए कश्मीर घाटी में सन् 1986 में अनेक मंदिर तोड़े गए, सैकड़ों हिंदुओं के घर जलाए व लूटे गए जिससे हजारों लोगों को बाध्य होकर बेघर होना पड़ा। भारत सरकार सोई ही नहीं रही, बल्कि वोटबैंक के गणित एवं नेताओं की दिशाहीनता के कारण इस षड़यंत्र में भागीदार विद्रोहियों के खिलाफ किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की गई। कश्मीर घाटी में उस समय सेना को मूकदर्शक बनाए रखने से आतंकवादियों के हौंसले बढ़ गए। आतंकवादियों को लगा कि सेना तो प्रशासन की आज्ञा की गुलाम है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा दिए गए सत्य विवरण एवं भाजपा, अ.भा.विद्यार्थी परिषद्, हिंदू रक्षा समिति, राष्ट्र सेविका समिति आदि संस्थाओं द्वारा धरने, जलसे, जुलूसों को छद्म धर्मनिरपेक्ष ताकतों एवं अमेरिका के दबाब में अनदेखा करने का परिणाम यह निकला कि पाकिस्तान व कश्मीरी आतंकवादियों को विद्रोह की सफलता का विश्वास हो गया। 1986 में मिली सफलता के कारण 1989 के भारत विभाजन के लिए पाकिस्तानी आतंकवादियों ने जिहाद रूपी परोक्ष युध्द शुरू किया। अनेक महत्वपूर्ण कश्मीरी हिंदू नागरिक सर्वश्री टीकालाल, नीलकंठ गंजू, प्रेमनाथ भट्ट आदि की हत्या पर सरकार के कोई कार्रवाई न करने से आतंकवादियों के हौंसले इतने बुलंद हो गए कि कश्मीर घाटी हिंदू विहिन कर दी गई। ऐसे कठिन दौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं संबंधित अनेक संस्थाओं के भारी दबाव, भारतीय खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट्स एवं भाजपा के सहयोग से बनी उस समय की जनता दल की केंद्रिय सरकार ने कमजोर राज्यपाल श्री के.वी. कृष्णाराव को वापिस बुला लिया। उनके स्थान पर अत्यंत कुशल, देशभक्त, निडर एवं दिशायुक्त प्रशासक श्री जगमोहन को राज्यपाल बनाकर जम्मू-कश्मीर भेज दिया गया।
26 जनवरी,1990 को आजादी के स्वप्न को साकार करने के देशद्रोहियों के षड़यंत्र को श्री जगमोहन ने सख्ती से कुचला ही नहीं, बल्कि उचित एवं प्रभावी कदम उठाए जिसके कारण आजादी (भारत विभाजन) का षड़्यंत्र सदियों पीछे धकेल दिया गया। विश्व की पूरी इस्लामिक कट्टरवादी शक्तियां एवं अमेरिकन खुफिया ताकतें इस बात के लिए एकजुट हो गई ताकि जगमोहन जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल पद से हटा दिए जाएं। बेनजीर भुट्टो ने तो सार्वजनिक रूप से भाषण दिए कि जल्दी ही जगमोहन को भागमोहन बना दिया जाएगा। दुर्भाग्य से भाजपा समर्थित केंद्र सरकार गिर गई और नई सरकार ने जगमोहन को वापिस बुलाकर पाकिस्तान व अमेरिका की इच्छा को पूरा कर आतंकवादी आंदोलन को ताकत प्रदान की, जिसका परिणाम बहुत हीं भयंकर निकला। सरकारी पदों पर बैठे सरकारी अफसरों तथा कर्मचारियों में 5,500 से अधिक अफसर आतंकवादी हैं या आतंकवादियों की मदद करते हैं ऐसा केंद्रिय गृह विभाग का कहना है।
(लेखक : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अ.भा. कार्यकारिणी के सदस्य हैं।)
Courtesy : www.pravakta.com, 27/11/2010)
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