Saturday, April 14, 2012

विशेष दर्जे में फंसी शिक्षा

सुरेंद्र सिंह, जम्मू।
विशेष दर्जा प्राप्त राज्य जम्मू-कश्मीर के सरकारी और गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में गरीब बच्चों के लिए 25 फीसद सीटें आरक्षित नहीं होंगी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद यहां के गरीब लोगों के चेहरों पर कोई खुशी नहीं है। लंबे समय से प्राइवेट स्कूलों व सरकार के बीच चली आ रही तनातनी पर सुप्रीम कोर्ट ने बेशक यह आदेश जारी कर विराम लगा दिया हो, लेकिन राज्य के गरीबों का कोई खैरख्वाह नहीं बन पा रहा है। भारतीय संसद ने जब शिक्षा का अधिकार (राइट टू एजुकेशन) एक्ट को हरी झंडी दिखाई थी तो उस समय भी जम्मू-कश्मीर राज्य को इससे बाहर रखा गया था। राज्य ने अपना राइट टू एजुकेशन लागू कर रखा है, लेकिन उसे सही ढंग से क्रियान्वित नहीं किया जा रहा। इस एक्ट के अनुसार सभी बच्चों को सरकारी स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त है। यही नहीं सभी बच्चों को निशुल्क पुस्तकें व वर्दी देने का प्रावधान भी है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। अभिभावक आज भी अपने बच्चों के लिए बाहर से ही वर्दी व पुस्तकें खरीदते हैं।

केंद्र का राइट टू एजुकेशन एक्ट नहीं किया जा रहा है लागू केंद्र का राइट टू एजुकेशन एक्ट जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होगा। हमारे राज्य में पहले से ही अपना राइट टू एजुकेशन एक्ट लागू है। अगर राज्य सरकार जरूरी समझेगी तो ही इसमें संशोधन होगा। सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी आदेशों में भी जम्मू-कश्मीर राज्य को इससे बाहर रखा गया है और फिलहाल इसे यहां पर लागू नहीं किया जा रहा है।
-जीए कुरैशी, डायरेक्टर एजुकेशन (जम्मू)

सरकार भी लागू करे कानून
सिटीजन फोरम के प्रधान आरके चड्ढा ने जम्मू-कश्मीर सरकार से केंद्र की तर्ज पर राज्य में शिक्षा का अधिकार कानून लागू करने की मांग की है। उनका कहना है कि हमारे राज्य में भी कई लोग गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं और उनके बच्चों के लिए शिक्षा हासिल करना किसी सपने से कम नहीं है। राज्य के बच्चों को इस अधिकार से महरूम नहीं रखा जा सकता है। यहां पर भी केंद्र के इस कानून को पूरी तरह से लागू कर प्राइवेट स्कूलों को आदेश जारी किए जाने चाहिए। (दैनिक जागरण, 14/04/2012)

अलगाववादी जम्मू व लद्दाख में तलाशेंगे अपना आधार



जम्मू। बदल रहे राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को देखते हुए अलगाववादी संगठन विशेषकर ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के दोनों गुट अब कश्मीर से बाहर अपना आधार तलाशने में जुट गए हैं। नई रणनीति के तहत मीरवाइज मौलवी उमर फारूक, सैय्यद अली शाह गिलानी और मुहम्मद यासीन मलिक जम्मू संभाग और लद्दाख में जनसभाएं करने की तैयारी है। कट्टरपंथी गिलानी ने जम्मू के अलावा मुस्लिम बहुल जिलों में ही अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय करते हुए स्थानीय अल्पसंख्यकों को बैठकों में दावत देने को कहा है। उदारवादी गुट के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने अपने सहयोगी शब्बीर अहमद शाह और बिलाल गनी लोन की मदद से जम्मू संभाग के उन इलाकों में भी बैठकें करने का फैसला किया है, जहां गैर मुस्लिमों की आबादी कम है। इनमें आरएसपुरा, कठुआ व सांबा जैसे क्षेत्र शामिल हैं। बीते दिनों कश्मीर में मीरवाइज व गिलानी ने कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए हैं कि वे सभाओं में आम लोगों की समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर उठाएं जो राज्य में लोगों को प्रभावित करते हों। कश्मीर समस्या का जिक्र करते हुए हमेशा ध्यान रखें कि उससे गैर मुस्लिम आबादी खुद को उपेक्षित महसूस न करें। इसके अलावा जम्मू संभाग में जब भी मौका मिले तो अपने मंच पर स्थानीय नेताओं विशेषकर अल्पसंख्यक समुदायों से आए लोगों को ही बोलने का मौका दें। कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार रशीद राही ने कहा कि अब कश्मीर को लेकर भारत-पाक के बीच बहुत कुछ बदल चुका है। इसके अलावा पाकिस्तान भी कई मामलों पर हुर्रियत नेताओं से अलग थलग होने लगा है। ऐसे में हुर्रियत को अपनी सियासत चलाने के लिए कश्मीर से बाहर भी विशेषकर अल्पसंख्यक समुदायों में भी अपने लिए जमीन तैयार करनी है। इसलिए अब वह जनहित के मु्द्दों को भी उठा रही है। सबसे बड़ी बात तो पंडितों की वापसी के लिए जिस तरह से हुर्रियत के दोनों गुटों ने बीते दिनों आग्रह किया है, वह भी इसी सियासत का हिस्सा हैं ताकि कोई यह न कह सके कि हुर्रियत की सियासत कश्मीरी मुस्लिमों के एक वर्ग विशेष तक ही सीमित है। (14/04/2012)

शंका समाधान की जरूरत


दयासागर
ऐसा प्रतीत होता है कि तवी पुल के पास महाराजा हरि सिंह की मूर्ति दिल्ली वालों से पूछ रही हो कि मैंने तो भारतीय गणराज्य में अपने राज्य का विलय कर दिया था फिर यहां इतनी अशांति क्यों है? आज भी कुछ लोग किस कश्मीर समस्या की बात कर रहे हैं, जिसके बारे में मनमोहन सिंह और जरदारी के बीच बातचीत हो सकती है? महाराजा को क्या पता कि जिस गैर जिम्मेदाराना ढंग से केंद्र सरकार ने वीपी मेनन के हाथों भेजे गए विलय दस्तावेज का निपटारा किया था उससे वर्ष 1947 में भारत में विलय नहीं चाहने वालों को बातचीत करने का अवसर मिला था। इसके साथ ही न तो कांग्रेसी नेताओं ने अपनी कार्रवाई की सही तरह से व्याख्या करने की कोशिश की, जिस कारण देश विरोधी तत्व बेरोकटोक अपनी बातों को लोगों तक पहुंचाने में लगे रहे, जिस कारण कुछ लोगों के मन में शंकाएं उत्पन्न होती चली गई। यही नहीं, राजसत्ता के कुछ भूखे लोग भी केंद्र सरकार के ऐसे रवैये में अपना लाभ देखने लगे और आम कश्मीरियों को भ्रमों के जाल से निकालने के लिए ईमानदारी से कोशिश नहीं की।
महाराजा द्वारा हस्ताक्षरित विलय दस्तावेज एक चिट्ठी से ढंका हुआ था, जिसमें तत्कालीन मौजूदा शर्तों की व्याख्या की गई थी। 27 अक्टूबर 1947 को विलय दस्तावेज स्वीकारने के बाद लॉर्ड माउंटबेटन ने भी महाराजा हरि सिंह को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें 26 अक्टूबर को उनकी लिखी चिट्ठी मिलने की बात कही गई थी। अलगाववादियों और देश विरोधी तत्वों ने विलय की पूर्णता के बारे में प्रश्न पूछने के लिए माउंटबेटन की चिट्ठी का सबसे अधिक प्रयोग किया है। कुछ लेखकों ने भी अंतिम विलय पर सवाल उठाने के लिए इस चिट्ठी का खूब प्रयोग किया है। यद्यपि यह चिट्ठी विलय दस्तावेज का हिस्सा नहीं थी। दिल्ली में सत्ता की कुर्सी पर काबिज लोगों को बहुत पहले इन सवालों के जवाब देने चाहिए थे। यहां तक कि महाराजा हरि सिंह की चिट्ठी के प्रारूप का भी अलगाववादियों के विचारों का विरोध करने के लिए प्रयोग नहीं हुआ है। हालांकि बहुत देर हो चुकी है, लेकिन अभी भी समय है।
जेएंडके (खासकर कश्मीर घाटी के लोगों) के कुछ मासूम लोगों के दिमाग में वर्षों से घर कर चुके भ्रमों को दूर करने के लिए सामान्य और व्यापक स्वीकार्य तर्कों को विस्तार देने की आवश्यकता है। भारतीय स्वतंत्रता कानून 1947 से संबंधित भारत सरकार कानून 1935 यह अवसर प्रदान करता है कि देश के किसी भी राज्य का शासक विलय दस्तावेज पर अमल कर भारतीय गणतंत्र में अपने राज्य का विलय कर सकता है।
महाराजा द्वारा हस्ताक्षरित विलय दस्तावेज के अनुसार- मैं श्रीमान् इंदर महेंदर राजराजेश्वर महाराजाधिराज श्री हरि सिंह, जम्मू और कश्मीर नरेश तत्था तिब्बत आदि देशाधिपति, जम्मू-कश्मीर का शासक अपने राज्य की संप्रभुता अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए राज्य को भारतीय गणराज्य में विलय करता हूं। साथ ही सूची में वर्णित शर्तों को स्वीकार करता हूं ताकि विधानमंडल राज्य के लिए कानून बना सके। भारतीय स्वतंत्रता कानून 1947 से विलय के दस्तावेज में किसी तरह का संशोधन या बदलाव नहीं होगा, जब तक कि मैं ऐसे संशोधनों को स्वीकार नहीं करता। मैं राज्य की ओर से विलय शर्तो को लागू करने की घोषणा करता हूं।
तत्कालीन गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया लॉर्ड माउंटबेटन ने इसे स्वीकार करते हुए 27 अक्टूबर 1947 को इस पर हस्ताक्षर कर दिया। उन्होंने कहा मैं 27 अक्टूबर 1947 के विलय के दस्तावेज को स्वीकार करता हूं। इसलिए तकनीकी रूप से यह विलय पूर्ण और असंदिग्ध है। यह उल्लेख करना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि जेएंडके राज्य के विलय दस्तावेज का प्रारूप देश के अन्य राज्यों के विलय दस्तावेज से भिन्न नहीं था।
हरि सिंह ने 26 अक्टूबर को अपनी चिट्ठी में विलय दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के लिए 14 अगस्त 1947 के बाद देरी के कारणों का उल्लेख करने की कोशिश की है। महाराजा ने अपनी चिट्ठी में कहा है कि महामहिम मैं आपको सूचित करना चाहता हूं कि मेरे राज्य में एक गंभीर स्थिति पैदा हो गई है। मैं आपकी सरकार से तत्काल मदद पहुंचाने का आग्रह करता हूं। महामहिम जैसा कि आप जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर राज्य का न तो भारतीय गणराज्य और न ही पाकिस्तान में विलय हुआ है। उत्तरी पश्चिमी सीमांत प्रांत के दूरस्थ क्षेत्रों से बड़ी संख्या में जनजातियों का घुसपैठ हो रहा है। ये मानसेहरा-मुजफ्फराबाद सड़क से बड़ी संख्या में ट्रकों में सवार होकर आ रहे हैं और आधुनिक हथियारों से पूरी तरह लैस हैं। उत्तरी पश्चिमी सीमांत प्रांत की स्थानीय और पाकिस्तान सरकार की जानकारी के बिना यह संभव नहीं है। बार-बार अपील करने के बावजूद इन हमलावरों को रोकने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।
महाराजा ने राज्य के लोगों के बारे में जो कुछ कहा उससे बहुत कुछ खुलासा होता है। उन्होंने कहा कि मेरे राज्य के लोग जिसमें मुस्लिम, गैर मुस्लिम और सामान्य लोग शामिल हैं, उनका इसमें कोई हाथ नहीं है। मौजूदा आपातकालीन स्थिति को देखते हुए भारत सरकार से मदद मांगने के अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। इसी कारण मैंने ऐसा करने का फैसला किया है और आपकी सरकार हमारी बात को स्वीकार करे इसके लिए विलय के दस्तावेज को संलग्न करता हूं। इसलिए स्पष्ट रूप से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि महाराजा ने जेएंडके के राजकुमार के साथ मौजूदा परिस्थितियों का वैचारिक और तार्किक मूल्यांकन के बाद यह निर्णय लिया था। जबकि लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा महाराजा को लिखी चिट्ठी से तत्कालीन अनुत्तरित केंद्र सरकार और माउंटबेटन के इरादों का पता चलता है। तत्कालीन जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट ने उन अनुत्तरित प्रश्नों का स्पष्टीकरण देने तक की परवाह नहीं की।
लॉर्ड माउंटबेटन ने विचित्र ढंग से अपनी चिट्ठी में लिखा है कि परिस्थितियों को देखते हुए मेरी सरकार ने भारतीय गणराज्य में कश्मीर के विलय को स्वीकार करने का निर्णय लिया है। अगर किसी राज्य में विलय का मुद्दा विवाद का विषय रहा है तो उस राज्य के लोगों की इच्छाओं के अनुरूप विलय के सवाल पर फैसला लेना चाहिए। मेरी सरकार की इच्छा है कि कश्मीर में कानून व्यवस्था बहाल होने और यहां की धरती को हमलावरों से मुक्त करवाने के बाद राज्य के विलय के प्रश्न को लोगों के माध्यम से निपटाना चाहिए। सवाल है कि जेएंडके के विलय के मुद्दे पर माउंटबेटन का नाम विवाद के रूप में कैसे लिया जा सकता है। महाराजा ने किसी विवाद के बारे में बात नहीं की थी। न ही भारतीय स्वतंत्रता कानून को लेकर कोई विवाद था और न ही नेहरू ने इसकी व्याख्या की थी और न ही कांग्रेसियों ने उनका अनुसरण किया था।
(लेखक : जम्मू-कश्मीर मामलों के अध्येता हैं।)


Friday, April 13, 2012

रिफ्यूजियों को मिलेंगे डोमिसाइल सर्टिफिकेट

जम्मू।  पिछले 62 वर्षो से राज्य में स्थायी नागरिकता के अधिकार से वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूजी भले ही वंचित हों, लेकिन केंद्र सरकार ने सरकारी नौकरियों और सुरक्षाबलों में भर्ती के लिए व्यवस्था कर दी है। केंद्रीय गृहमंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी निर्देश के तहत वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूजियों को केंद्र सरकार की ओर से डोमिसाइल सर्टिफिकेट जारी किए जाएंगे। इसके लिए राज्य में सर्टिफिकेट बनाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। 

जम्मू संभाग के आरएसपुरा, अखनूर, बिश्नाह, हीरानगर, सांबा, कठुआ इलाकों में बसे वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूजियों को इस सर्टिफिकेट से लाभ होगा। तहसील स्तर पर यह काम सबसे पहले आरएस पुरा तहसील में शुरू किया गया है, यहां रिफ्यूजियों की संख्या सबसे अधिक है। वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूजी एक्शन कमेटी के प्रधान लब्बा राम गांधी ने केंद्र के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यकीनन इससे हमारे बच्चों को लाभ मिलेगा। 

केंद्र सरकार ने रिफ्यूजियों कोसर्टिफिकेट जारी करने का फैसला केंद्र में कोआर्डिनेशन सचिव अनिल गोस्वामी की टीम के जम्मू दौरे के बाद लिया है। केंद्र की यह टीम पिछले साल नवंबर में रिफ्यूजियों की स्थिति का जायजा लेकर लौटी थी। टीम की सिफारिश पर ही केंद्र ने राज्य सरकार को सर्टिफिकेट जारी करने के निर्देश दिए हैं। बता दें के वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूजी जम्मू-कश्मीर में स्थायी नागरिकता की मांग के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हाल ही में रिफ्यूजियों ने अपनी मांग को लेकर दिल्ली में प्रदर्शन भी किया था। (13/04/2012)

आजाद भाजपा के सांसद प्रभारी बने

जम्मू। राज्य के मुद्दों को लोकसभा तक ले जाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने सांसद कीर्ति आजाद को जम्मू-कश्मीर का प्रभारी सांसद बनाया है। हालांकि जम्मू-कश्मीर भाजपा का मुख्य प्रभार डॉ. जगदीश मुखी के पास ही रहेगा। 
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष शमशेर सिंह को पत्र भेज कर सूचना दी है कि कीर्ति आजाद संसद में उनका प्रतिनिधित्व करेंगे। कीर्ति आजाद से पहले पार्टी हाईकमान की ओर यह जिम्मेदारी सांसद राजन सुशांत को सौंपी गई थी। पार्टी सूत्रों के अनुसार कीर्ति आजाद जल्द जम्मू दौरे पर आएंगे। 
(13/04/2012)