दयासागर
क्या
सार्वजनिक संस्थानों को आम आदमी को मिलने वाली सुविधाएं जैसे बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा व
राजस्व का रिकार्ड रख कर बिना किसी जिम्मेदारी के उनके गैर निष्पादन कार्य को जारी रखने की
अनुमति प्रदान करनी चाहिए? जम्मू-कश्मीर
के वित्त मंत्री अब्दुल रहीम राथर ने विधानसभा में इस शेर से
बजट भाषण शुरू किया था कि तेज
हवा से डरने वाले, साहिल पर ही
डूब गए। तूफान से लड़ने वालों ने, मंजिल
अपनी पाई है। यह सिर्फ उन लोगों के लिए सही है जो सफलता प्राप्त करने के लिए बड़ी निडरता से
मुसीबतों का सामना करने को तैयार रहते हैं। जेएंडके में बिजली आपूर्ति प्रबंधन की
कहानी इससे भिन्न मालूम नहीं होती है। जेएंडके के वित्त मंत्री द्वारा विधानसभा में जो बातें
कही गई उसके अनुसार, वर्ष 2011-12
के लिए बिजली खरीदारी बिल लगभग 3000
करोड़ रुपये रहने का अनुमान है, लेकिन पीडीडी 1100 से 1200 करोड़ रुपये से अधिक संग्रह नहीं कर सकेगा। पहले बिजली खरीदारी बजट 2400 करोड़ रुपये था जो बढ़कर 3000 करोड़ रुपये हो गया। पहले वर्ष 2011-12 के लिए बिक्री राजस्व संग्रह लक्ष्य 1415
करोड़ रुपये रखा गया था, लेकिन करीब 1200 करोड़ रुपये डूबने का अनुमान है।
वर्ष 2012-13 के लिए बिजली खरीदारी की अनुमानित राशि 3100
करोड़ रुपये है, जबकि बिक्री राजस्व लक्ष्य सिर्फ 1732 करोड़ रुपये रखा गया है। इतना बड़ा घाटा इस कारण नहीं है
कि आम आदमी और इंडस्ट्री को सरकार बिजली पर बड़ी सब्सिडी देती है। यह इसलिए है कि सरकार बिजली
विभाग को उसके गैर निष्पादन और अक्षमता के लिए एक बड़ा अनुदान देती रही है। पीडीडी द्वारा जेएंडके
स्टेट इलेक्टि्रसिटी रेगुलेटरी कमीशन (जेकेएसइआरसी) को सौंपे गए आंकड़ों से साफ है कि इतना कम
बिजली बिक्री संग्रह अनुचित रूप से बिजली आपूर्ति पर सब्सिडी शुल्क दर के कारण नहीं
बल्कि 1. पीडीडी द्वारा अनुचित ढंग से टांसमिशन
एंड डिस्टि्रब्यूशन (टीएंडडी) घाटा को परिलक्षित करना है 2. बड़ी संख्या में बिजली कनेक्शन का पंजीकरण न होना 3.
बुनियादी संरचनाओं का गलत प्रबंधन और असंगत उच्च
स्थापना दर 4. दोषपूर्ण शुल्क दर संरचना जिससे निष्ठावान
उपभोक्ता हतोत्साहित हुए हैं 5. मीटर
कनेक्शनों के लिए
गलत न्यूनतम दर रखा गया है जो कि ईमानदार उपभोक्ताओं को कांट्रैक्ट भार बढ़ाने के लिए
हतोत्साहित करता है और वितरण लाइन पर वास्तविक कनेक्शन लोड का आकलन करने के लिए विभाग की राह में आना है। जेकेएसइआरसी के समक्ष डेवलपमेंट कमिश्नर ऑफ
पावर द्वारा दायर की गई बिजली शुल्क दर की पुनर्समीक्षा याचिका में वर्ष 2010-11 के लिए घरेलू बिजली कनेक्शन को 10.85 लाख (5,26073 मीटर वाले और 5,59342 बिना मीटर वाले) दिखाया गया है। वर्ष 2011-12 के लिए 11.19 लाख (7,19875 मीटर वाले और 3,99,697 बिना
मीटर वाले) और
वर्ष 2012-13 के लिए 11.41
लाख (10,21,433 मीटर वाले और 1,19,908 बिना मीटर वाले) प्रस्तावित है। बिजली विभाग ने 120 लाख से ऊपर जनसंख्या वाले जेएंडके राज्य के लिए
वर्ष 2012-13 में सिर्फ 11.41
लाख उपभोक्ताओं का
अनुमान बताया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि जेएंडके में एक
परिवार में 10 लोग हैं, जो यकीनन गलत है और यह दिखाता है कि राज्य में
आधा से ज्यादा परिवार बिना बिजली के रहता है, जिसे नहीं माना जा सकता। वर्ष 2010-11 के लिए गैर घरेलू/कॉमर्शियल कनेक्शन 1.46 लाख (75,719 मीटर वाले और 70,124 बिना मीटर वाले) दिखाया गया है। वर्ष 2011-12 के लिए 1.49 लाख (105,592 मीटर वाले और 43,339 बिना
मीटर वाले) और वर्ष 2012-13 के
लिए 1.5 लाख (1,24,176 मीटर वाले और 26,004 बिना मीटर वाले) है। जेएंडके पावर डेवलपमेंट डिपार्टमेंट
(जेकेपीडीडी) ने 12 दिसंबर 2011
को जेकेएसइआरसी के समक्ष वर्ष 2012-13 के लिए वार्षिक राजस्व मांगों पर सहमति बनाने के लिए एक याचिका
सौंपी थी। वर्ष 2011-12 के लिए 3991.20
करोड़ रुपये के रूप में संशोधित वार्षिक राजस्व आंकड़े का
उल्लेख किया गया है। वर्ष 2012-13 के
लिए वार्षिक राजस्व जरूरत के लिए अनुमानित राशि 4,105 करोड़ रुपये है। 3 जनवरी 2012 को एक दूसरी
याचिका में पीडीडी ने मांग की है कि घरेलू उपभोक्ताओं के लिए जहां मीटर लगे हैं वहां बिजली
किराये में 23 प्रतिशत की वृद्धि
की जाए और जहां नहीं लगे हैं वहां 35 प्रतिशत किराया बढ़ाया जाए। इसी प्रकार कॉमर्शियल गैर घरेलू
उपभोक्ताओं के लिए 21 प्रतिशत
(मीटर वाले) और 31 प्रतिशत (बिना मीटर वाले) किराया वृद्धि की
मांग की गई है।
इसके साथ ही राज्य के लिए टीएंडडी घाटा वित्त वर्ष 2010-11 के लिए 60.55 प्रतिशत अनुमानित है और वर्ष 2011-12 के लिए 56.76 प्रतिशत। पिछले वर्षो में कार्य निष्पादन को देखते हुए सिर्फ कल्पना
ही की जा सकती है क्योंकि ताज मोहिउद्दीन जो कि उमर सरकार में एक वरिष्ठ मंत्री हैं,
ने फरवरी में एक स्थानीय टीवी पर विचार विमर्श
करते हुए कहा था कि जेएंडके में पीडीडी का टीएंडडी घाटा 70 प्रतिशत के करीब है। हो सकता है वह प्रमाणित आंकड़े नहीं बताए हों
पर यकीनन तथ्यों के नजदीक ही होंगे। वर्ष 2011-12 की याचिका पर नजर डाली जाए तो पीडीडी के आंकड़ों में
विरोधाभास ही नजर आता है। बिजली विभाग का खराब निष्पादन किसी से छुपा नहीं है।
पर लगता है कि सरकार ने मान लिया है कि बिजली विभाग में सुधार नहीं हो सकता। अगर ऐसा नहीं होता तो पीडीडी की याचिका
में बिक्री राजस्व आंकड़े, टीएंडी
घाटा और वर्ष 2012-13 में बिजली
किराये में बढ़ोतरी की मांग सरकार में बैठे किसी भी तार्किक सोच वाले व्यक्ति खासकर वित्त मंत्री
को विचलित कर देता, लेकिन 5
मार्च को वित्त मंत्री की बजट और उसके
बाद सदन में चर्चा के समय ऐसा कुछ नहीं हुआ। हां, 10 मार्च को बजट पर चर्चा करते हुए राथर साहब ने राज्य विधानसभा को यह सूचना
जरूर दी कि जेएंडके सरकार ने 1 अप्रैल
2012 से इनर्जी अकाउंटिंग सिस्टम
प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है। इस नई पद्धति में यह लक्ष्य रखा गया है कि जो बिल उपभोक्ताओं पर
पीडीडी का भार डालेगा उनमें दिखाई गई बिजली खपत का प्रतिबिंब वितरण ट्रांसफार्मर
के साथ लगे हुए मीटर में भी दिखना चाहिए। यकीनन इस बात की जरूरत इसलिए समझी गई है क्योंकि
बिजली के
तारों में से बिजली की दो तिहाई भाग पीडीडी विभाग टीएंडडी घाटा दिखा रहा है। पर इस बात को
भी ध्यान में रखना होगा कि आज तक घाटा कम करने के सभी दावे जेएंडके स्टेट इलेक्टि्रसिटी रेगुलेटरी
अथॉरिटी (1 जून 2006) बनने के बाद भी पूरी तरह नाकाम रहे हैं।
(लेखक
जम्मू-कश्मीर मामलों के अध्येता हैं)
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