सुरेंद्र
सिंह, जम्मू।
विशेष दर्जा प्राप्त राज्य जम्मू-कश्मीर के सरकारी और
गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में गरीब बच्चों
के लिए 25 फीसद सीटें आरक्षित नहीं होंगी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद यहां के गरीब लोगों के
चेहरों पर कोई खुशी नहीं है। लंबे समय से प्राइवेट स्कूलों व सरकार के बीच चली आ रही
तनातनी पर सुप्रीम कोर्ट ने बेशक यह आदेश जारी
कर विराम लगा दिया हो, लेकिन राज्य के गरीबों का कोई खैरख्वाह नहीं बन पा रहा है। भारतीय संसद ने जब शिक्षा
का अधिकार (राइट टू एजुकेशन) एक्ट को हरी झंडी
दिखाई थी तो उस समय भी जम्मू-कश्मीर
राज्य को इससे
बाहर रखा गया था। राज्य ने अपना राइट टू एजुकेशन लागू कर रखा है, लेकिन उसे सही ढंग से
क्रियान्वित नहीं किया जा रहा। इस एक्ट के अनुसार सभी बच्चों को
सरकारी स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार
प्राप्त है। यही नहीं सभी बच्चों को निशुल्क पुस्तकें व वर्दी देने का प्रावधान भी है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है।
अभिभावक आज भी अपने बच्चों के लिए बाहर से ही वर्दी व
पुस्तकें खरीदते हैं।
केंद्र का राइट टू एजुकेशन एक्ट नहीं किया जा रहा है
लागू केंद्र का राइट टू एजुकेशन एक्ट
जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होगा। हमारे राज्य में पहले से ही
अपना राइट टू एजुकेशन एक्ट लागू है। अगर राज्य सरकार जरूरी समझेगी तो ही इसमें संशोधन होगा। सुप्रीम कोर्ट
की ओर से जारी आदेशों में भी जम्मू-कश्मीर
राज्य को इससे बाहर रखा गया है और फिलहाल इसे यहां पर लागू नहीं किया जा रहा है।
-जीए कुरैशी, डायरेक्टर एजुकेशन (जम्मू)
सरकार भी लागू करे कानून
सिटीजन फोरम के प्रधान आरके चड्ढा ने जम्मू-कश्मीर
सरकार से केंद्र की तर्ज पर राज्य में शिक्षा का
अधिकार कानून लागू करने की मांग की है। उनका कहना है कि हमारे राज्य में भी कई लोग गरीबी रेखा से नीचे रह
रहे हैं और उनके बच्चों के लिए शिक्षा हासिल करना
किसी सपने से कम नहीं है। राज्य के बच्चों को इस अधिकार से महरूम
नहीं रखा जा सकता है। यहां पर भी केंद्र के इस
कानून को पूरी तरह से लागू कर प्राइवेट स्कूलों को आदेश जारी किए जाने चाहिए। (दैनिक जागरण, 14/04/2012)
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