Shri Arun Kumar |
नई
दिल्ली। विगत 3 अप्रैल को दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में "जम्मू-कश्मीर : तथ्य, समस्याएं एवं समाधान" विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह आयोजन छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद
द्वारा किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अ.भा. सह
सम्पर्क प्रमुख श्री अरुण कुमार थे।
उन्होंने
कहा कि जम्मू-कश्मीर समस्या मूलत: नई दिल्ली द्वारा
निर्मित, पोषित और बनाई रखी गयी है। नई दिल्ली में बैठे रणनीतिकार जम्मू-कश्मीर की
वास्तविक समस्याओं से पूर्णत: परिचित नहीं है और
जानकारी के अभाव में गलत नीतियों का निर्माण कर रहे हैं।
उन्होंने
कहा कि कश्मीर वास्तव में जम्मू-कश्मीर राज्य का एक छोटा सा हिस्सा मात्र है।
राज्य के अन्य दो हिस्से लद्दाख और जम्मू हैं। इन क्षेत्रों में न कोई अलगाववादी
और राष्ट्रविरोधी स्वर हैं और न रहे हैं। कश्मीर के भी केवल सामान्यत: पांच जिलों में ही अलगाववादी गतिविधियां चलायी जाती रही हैं।
पृथकतावादी नेतृत्व केवल इन्हीं जिलों में से हैं।
श्री
कुमार के अनुसार, कश्मीर के संदर्भ में तीन भ्रांतियां हैं जिसका निवारण आवश्यक
है। प्रथम- जम्मू-कश्मीर एक विवाद है, यह सत्य नहीं है। जम्मू-कश्मीर के महाराजा
हरि सिंह ने उसी विलय पत्र पर हस्ताक्षर किये थे जिस पर अन्य देशी रियासतों के राजाओं
ने किये थे। साथ में ही जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने भी इस विलय को अनुमोदित कर
दिया। जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय पूर्ण
वैधानिक प्रक्रिया के अन्तर्गत है। दूसरी भ्रांति जनमत संग्रह को लेकर है।
भारत ने सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को सशर्त स्वीकार किया था। पूर्व शर्त के
अनुसार, पाकिस्तान को पहले अपनी सेनाओं को वापस बुलाना और पाकिस्तान अधिगृहीत
जम्म-कश्मीर (पीओके) की अवैधानिक सरकार को भंग करना था। ये दोनों शर्तों का पालन नहीं
हुआ। इसलिए यह प्रस्ताव स्वत: ही निरस्त हो जाता
है। तीसरी भ्रांति अनुच्छेद 370 को लेकर है। यह न तो जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा
देता है और न ही राज्य को किसी प्रकार की स्वायत्तता प्रदान करता है। इस अनुच्छेद
का प्रारम्भ से दुरुपयोग ही हो रहा है। इस अनुच्छेद के कारण पश्चिमी पाकिस्तान से
आये तीन लाख शरणार्थियों का बसाया नहीं जा सका है। इसी के आंड़ में अन्य पिछड़े
वर्ग को लोकसेवाओं में और अनुसूचित जनजाति को राजनीतिक आरक्षण प्राप्त नहीं है।
पंचायती राज और सूचना के अधिकार जैसे विधेयक भी ठीक से लागू नहीं किये गये।
उन्होंने गिलगित और बल्तिस्तान के सामरिक महत्व को भी बताते हुए कहा कि वास्तव में
मुद्दा कश्मीर नहीं अपितु पीओके है।
श्री
अरुण ने आह्वान किया कि भारत की ताकत उसकी जनता है और जनता को दलीय तथा वोट की
राजनीति से ऊपर उठकर जम्मू-कश्मीर समस्या का समाधान खोजने के लिए जनजागरण, आम
सहमति एवं इच्छाशक्ति का निर्माण करने के लिए जुट जाना चाहिए। (3/4/2012)
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