प्रो.
हरिओम
देश में
धर्मनिरपेक्षता के लिए सबसे बड़ा खतरा पाकिस्तान के साथ टकराव है। मनमोहन सिंह सरकार में
कांग्रेसी नेता, राज्यसभा सांसद
और पूर्व मंत्री मणि शंकर अय्यर ने 29 मार्च
को यह निंदनीय और संदेहास्पद बयान दिया। नई दिल्ली में दिल्ली आधारित तथाकथित थिंक टैंक, केंद्र के लिए नीति समीक्षा (सीपीए) द्वारा आयोजित तीन
दिवसीय कांफ्रेंस भारत-पाकिस्तान : सिविल सोसायटी रिव्यू ऑफ स्ट्रैटेजिक रिलेशंस में उन्होंने
यह बात कही। सीमा मुस्तफा जो राज्यसभा और राम जेठमलानी की कश्मीर कमेटी के भी सदस्य
हैं, इस घटना के पीछे मुख्य रूप से शामिल
थी। यह बिल्कुल स्पष्ट है। 12 मार्च
को सीपीए ने भी संवैधानिक क्लब में एक दिवसीय युवा सम्मेलन का आयोजन किया था, जोकि संसद से कुछ मीटर दूर था, जिसमें विभिन्न शैक्षणिक
संस्थानों के 150 से अधिक कश्मीरी विद्यार्थियों ने भाग लेकर
अपने विचार व्यक्त
किए।
उनका कहना था कि सिर्फ आत्मनिर्णय के अधिकार से ही कश्मीर समस्या का समाधान हो
सकता है। सम्मेलन में कई भारतीय कानून निर्माताओं, कश्मीर के कुछ विधायकों और अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष
वजाहत हबीबुल्ला ने भी भाग लेकर अपने विचारों को व्यक्त किया। अधिकांश वक्ताओं ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून
(अफस्पा) और जन सुरक्षा कानून (पीएसए) को हटाने का सुझाव दिया। इसके साथ ही राजनीतिक बंदियों को छोड़ने
की मांग और राज्य के लिए वृहत्तर स्वायत्तता की वकालत भी की। उन्होंने इस तथ्य
को नजरअंदाज कर दिया कि राज्य की एक बहुत बड़ी आबादी जेएंडके को और स्वायत्तता देने के विचार
का पुरजोर
विरोध करती है। सचमुच सीपीए कुछ समय से नई दिल्ली में जनमत को लामबंद करने का प्रयास
कर रही है ताकि कश्मीर में निहित स्वार्थी तत्वों को वे अधिकार मिल जाएं जिससे वे अपनी अधूरी इच्छा
पूरी कर सकें। उनकी इच्छा क्या है? यह सबको मालूम है। यदि संभव हो तो वे देश से आजाद होने के मंसूबे पाले हुए हैं।
12 मार्च को संवैधानिक क्लब में जो कुछ
हुआ उसे हम नजरअंदाज कर इस तीन दिवसीय सम्मेलन के पहले दिन अय्यर ने जो सुझाव दिया था,
उस पर ध्यान केंद्रित करें। उनका सुझाव था कि भारत में
धर्मनिरपेक्षता के लिए पाकिस्तान के साथ टकराव सबसे गंभीर खतरा है।
उन्होंने इस्लामाबाद
के साथ सामरिक संबंधों के महत्व पर जोर दिया। उनका कहना था कि सभी देशों के साथ हमारी सामरिक साझेदारी है
जिसका कोई अर्थ नहीं है, लेकिन
जिस देश के साथ कोई सामरिक साझेदारी नहीं है उसका सचमुच महत्व है। अय्यर का कहना था कि पाकिस्तान के साथ
सामरिक साझेदारी न होने से हम लोग अत्यंत असुरक्षित हो गए हैं। धर्मनिरपेक्षता हमारे देश को एकसूत्र में
बांधने का काम करता है लेकिन भारतीय समाज का एक वर्ग जो 15-16 प्रतिशत है, भावनात्मक रूप से हमारे देश में पूरी तरह एकीकृत महसूस नहीं करता है।
कारण, कई भारतीय और पाकिस्तानी मुस्लिम एक
जैसे दिखाई देते हैं। उनके तर्को का यह निष्कर्ष था कि कई भारतीय मुस्लिम जब कभी पाकिस्तान का
दौरा करते हैं तो उन्हें बुखार हो जाता है। वे सोचते हैं कि जब वापस लौटेंगे तो उन पर
शक किया जाएगा। यही नहीं, अय्यर ने
पाकिस्तान को सचेत किया कि 26/11 जैसी
घटनाएं शांति प्रक्रिया
को पटरी से उतार देगी। यदि इस तरह की घटनाएं होती हैं तो भारत में किसी भी
लोकतांत्रिक सरकार के लिए शांति पथ पर निरंतर कार्य करते रहना असंभव हो जाएगा। कोई भी
अय्यर की सलाह को अस्वीकार नहीं कर सकता कि भारत और पाकिस्तान के बीच सामरिक महत्व का संबंध होना
चाहिए। वास्तव में, हर शांतिप्रिय भारतीय
दृढ़तापूर्वक इसका समर्थन करेगा, लेकिन
अय्यर के प्रतिपादन
के साथ समस्या यह है कि यह अत्यधिक दोषपूर्ण है। यह जमीनी सच्चाई पर आधारित नहीं है।
भारत पहले से ही समय-समय पर इस्लामाबाद को और अधिक समय देकर यह बीड़ा उठाने का उपाय करता रहा है,
लेकिन पाकिस्तान एक बार भी सदाशयता भावों का
परस्पर आदान-प्रदान नहीं किया है। इस्लामाबाद ने सदैव एक ही वर्ग की सदाशयता भावों को भारतीय कमजोरी के
रूप में चिन्हित किया है। बेहतर होता अगर अय्यर दो देशों के बीच असहमति के
बिंदुओं पर प्रकाश डालते और भारत-पाकिस्तान के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित
करने के लिए जो कदम उठाने चाहिए, उसकी सलाह
देते। क्या वह कह सकते हैं कि इस्लामाबाद अपनी आक्रामकता छोड़ देगा और भारतीय सेना को वर्ष 1947-1948
से अवैध रूप से अपने कब्जे में लिए
क्षेत्रों में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जाने की अनुमति देगा? इस्लामाबाद जम्मू-कश्मीर पर भारतीय स्टैंड का समर्थन
करेगा? क्या इस्लामाबाद भारतीय
पानी पर ध्यान केंद्रित करना बंद करेगा? क्या इस्लामाबाद
बीजिंग को गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र से बोरिया बिस्तर समेटने की बात कहेगा? क्या इस्लामाबाद अफगानिस्तान पर भारतीय स्टैंड
की सराहना करेगा?
क्या इस्लामाबाद सियाचिन ग्लेशियर और सर
क्रीक पर अपने दृष्टिकोण बदलेगा? क्या इस्लामाबाद कश्मीरी अलगाववादियों को नैतिक, राजनीतिक और कूटनीतिक समर्थन बंद करना चाहेगा?
इन सभी मुद्दों पर पाकिस्तान का ठोस दृष्टिकोण है और यह
कहना अतिश्योक्ति होगा कि वर्षो से वह जिस पथ पर चला आ रहा है उससे वह विचलित होगा। पाकिस्तान टकराव
के इस मार्ग से जिस दिन विचलित होगा उसी दिन समाप्त हो जाएगा। भारत में
धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने के लिए नई दिल्ली को क्या करना चाहिए? क्या पाकिस्तान को अपनी इच्छा पूरी करने की छूट देनी
चाहिए? अय्यर की इच्छा है कि नई
दिल्ली उपरोक्त बातों पर गंभीरता से विचार करे, लेकिन यह संभव नहीं है। वास्तव में, कोई भी देश अपने संप्रभु अधिकारों से समझौता कर
धर्मनिरपेक्षता के लिए अपनी क्षेत्रीय अखंडता की जड़ें खोदने का अधिकार नहीं देगा।
धर्मनिरपेक्षता और संप्रभुता दो भिन्न चीजें हैं। अय्यर इस कटु सच को स्वीकार कर बढि़या काम करेंगे। धर्मनिरपेक्षता
का मतलब पाकिस्तान जिस चीज को समर्थन देता है, उसे स्वीकार करना नहीं हो सकता।
(लेखक
जम्मू विवि के सामाजिक विभाग के पूर्व डीन हैं)
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