जम्मू-कश्मीर में जाली नोटों का बढ़ता प्रचलन इस दृष्टि से चिंता का विषय है कि इससे राज्य की अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ रहा है। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ राज्य की अर्थव्यवस्था को चौपट करने में अपनी कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रही है। यह जाली करसंी बांग्लादेश और नेपाल के रास्ते से यहां पहुंच रही है। विगत दिवस राज्य पुलिस के स्पेशल आपरेशन ग्रुप ने जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित झज्जर कोटली में तीन तस्करों को गिरफ्तार कर उनसे पांच लाख रुपए की जाली करंसी बरामद की। यह जाली करंसी कश्मीर घाटी ले जाई जा रही थी। यह ऐसी पहली घटना नहीं है। इससे पहले जम्मू के जानीपुर इलाके से पुलिस ने डेढ़ लाख रुपये की जाली करंसी पकड़ी थी जिसे दम तोड़ रहे आतंकवाद को जीवित रखने के लिए उनके आकाओं तक पहुंचाना था। इन घटनाओं से जाहिर हो जाता है कि राज्य में तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है जो मार्केट में जाली नोटों को उतार रहा है। बेशक सीमा पर कंटीली तार लगाए जाने के बाद आतंकियों की घुसपैठ में कमी तो आई है, लेकिन उनके कुछ साथी यहां बेरोजगार युवकों को इस गोरखधंधे में फंसा रहे हैं। अकसर यह देखा गया है कि यह तस्कर चालीस हजार असली नोटों के बदले एक लाख रुपये नकली करंसी देते हैं। नेपाल तथा बांग्लादेश सीमा से यहां लाकर उन्हें बाजार में उतारने की कोशिश में कई बार वे पुलिस के हत्थे भी चढ़ जाते हैं। शहरों के बजाय इन लोगों का नेटवर्क सीमावर्ती और दूरदराज क्षेत्रों में ज्यादा रहता है। सीमावर्ती क्षेत्रों के सीधे-सादे लोगों को जाली करंसी की पहचान नहीं होती और वे अकसर धोखे में आ जाते हैं। पिछले कुछ वर्षो के दौरान राज्य और विशेष रूप से कश्मीर घाटी में पुलिस तथा सुरक्षा बलों ने आतंकियों के पास से न केवल बड़ी मात्रा में जाली करंसी बरामद की, बल्कि हवाला के जरिए आतंकी संगठनों को राशि पहुंचाने के आरोप में कई लोगों को गिरफ्तार भी किया। देखा गया है कि पुलिस या सुरक्षा बल जब भी किसी व्यक्ति को जाली मुद्रा या विदेशी करंसी के साथ पकड़ते हैं तो उसके खिलाफ मामला दर्ज कर अपनी कार्रवाई की इतिश्री कर लेते हैं। जबकि आवश्यकता इस बात की है कि जब भी इस तरह के किसी मामले में गिरफ्तारी होती है तो इसकी तह तक पहुंचने का प्रयास हो। ताकि ऐसा धंधा करने वालों के उद्गम Fोत तक पहुंचने में मदद मिल सके। गुप्तचर एजेंसियों को चाहिए कि वे इस धंधे को रोकने के लिए तत्काल इसके मूल तक पहुंचे। ताकि राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लगे लोग इसका फायदा उठाकर अपने नापाक इरादों को अंजाम न दे सकें।
(दैनिक जागरण, सम्पादकीय, जम्मू संस्करण, 28 अगस्त 2011)
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