डॉ. वेदप्रताप वैदिक
नतीजा कोई बहुत बड़ा निकलना भी नहीं था। पाकिस्तान की नई विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार की भारत-यात्रा से किसी चमत्कारी परिणाम की उम्मीद होती तो खुद आसिफ-जरदारी या यूसुफ रजा गिलानी भारत आ जाते। वे नई-नवेली विदेश मंत्री को यह श्रेय क्यों लेने देते। दोनों पक्षों को पता था कि इस यात्रा के परिणाम सीमित, लेकिन सुखद होंगे।
ऐसा ही हुआ। वरना शर्म-अल-शेख और इस्लामाबाद की तरह इस बार नई दिल्ली में भी खींचातानी हो सकती थी। खींचातानी का बहाना भी मिल गया था। हिना ने भारतीय नेताओं से मिलने के पहले हुर्रियत के नेताओं से मुलाकात की। भारत ने अपनी नाराजगी भी जाहिर कर दी, मगर इस नाराजगी को महज औपचारिकता ही समझा जाना चाहिए। हिना ऐसी पहली पाकिस्तानी नेता नहीं है, जो हुर्रियत वालों से मिली हों। जो भी पाकिस्तान से आता है, उनसे मिलता ही है। आजकल इंटरनेट और मोबाइल फोन का जमाना है। कोई भी किसी से भी बात कर सकता है। कोई किसी को रोक नहीं सकता। पाकिस्तानी विदेश सचिव सलमान बशीर को कहना पड़ा कि हुर्रियत की भेंट और गुलाम नबी फई मामले को बहुत उछालने की जरूरत नहीं है।
फई के खिलाफ अमेरिकी सरकार ने जो कार्रवाई की है, उसे हिना की भारत यात्रा से जोड़ा जा सकता है। ओसामा बिन लादेन की हत्या और फई की गिरफ्तारी ने अमेरिका और पाकिस्तान के बीच तनाव का जो एक मोटा पर्दा खींच दिया है, उसने पाकिस्तान को मजबूर किया कि वह अपनी विदेश नीति पर पुनर्विचार करे। अब तक पाकिस्तान अमेरिका से भारत तथा अफगानिस्तान पर दबाव डलवाता था। पर ओसामा कांड ने सिद्ध किया कि अमेरिका पाकिस्तान पर विश्वास नहीं कर सकता। पाकिस्तान जिस जमीन पर खड़ा है, वह कभी भी उसके नीचे से खिसक सकती है। फई की ‘कश्मीर-अमेरिकन कौंसिल’ को अमेरिकी सरकारों का सहयोग सुलभ रहा है, लेकिन पाकिस्तान जब सीआईए के एजेंट रेमंड डेविस को गिरफ्तार करने का दुस्साहस कर सकता है, तो फई को आईएसआई का एजेंट बताकर ओबामा प्रशासन गिरफ्तार क्यों नहीं कर सकता?
यदि हिना रब्बानी खार की यात्रा इस सोच के साये में हुई है, तो इसे नया शुभारंभ माना जा सकता है। हिना के बयान से कुछ इसी तरह के संकेत भी उभरे हैं। उन्होंने यहां आकर यही कहा था कि भूतकाल को भूलें और भविष्य के भाव को समझों। यह बात उस विदेश मंत्री के मुंह से और भी शोभनीय बन जाती है, जिसने विभाजन तो क्या, बांग्लादेश का निर्माण भी नहीं देखा। भारत-पाक संबंधों में अब एक नया पैटर्न उभर सकता है। यह नया समीकरण उसी तर्ज का दिखाई पड़ता है, जो पिछले कुछ वर्षो से भारत और चीन के बीच चालू है। यानी विवाद के मुद्दों को फिलहाल दरकिनार करें और सहयोग के मुद्दों पर लगातार काम करते रहें।
(अध्यक्ष, भारतीय विदेश नीति परिषद)
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