Sunday, August 21, 2011

वार्ताकारों के बीच बढ़ती दूरी


प्रो. हरिओम

जम्मू-कश्मीर के लिए केंद्र द्वारा नियुक्त तीन वार्ताकारों में से एक एमएम अंसारी ने सावधानीपूर्वक जो काम किया है, उसे कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार और मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी भी नहीं कर सकी। अंसारी ने मुख्य वार्ताकार दिलीप पडगांवकर से हमले की शुरुआत की है। इसके बाद राधा कुमार पर निशाना साधा है, जो उनकी दूसरी सहकर्मी हैं। इसका कारण एक जैसा है। पडगांवकर ने वाशिंगटन डीसी में जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ/गुलाम नबी फई द्वारा प्रायोजित भारत विरोधी सेमिनार में भाग लिया था। राधा कुमार ने भी आइएसआइ प्रायोजित और इसके ब्रुसेल्स आधारित एजेंट अब्दुल मजीद ट्रम्बू जो कश्मीर मूल का है, के भारत विरोधी सेमिनार में भाग लिया था। 

ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में कुछ समय पहले इस सेमिनार का आयोजन हुआ था। राधा का कहना है कि उन्होंने केंद्र सरकार की सहमति से ही सेमिनार में भाग लेकर भारतीय दृष्टिकोण को पेश किया था। हालांकि राधा के तर्को को किसी ने तवज्जो नहीं दी, क्योंकि जम्मू-कश्मीर पर अपने विवादास्पद विचारों के लिए वह जगजाहिर हैं। अंसारी ने पडगांवकर पर यह कहते हुए हमला किया कि फई प्रायोजित सेमिनार में उनकी भागीदारी दुर्भाग्यपूर्ण थी। अगर फई और उनके अन्य लोग उन्हें निमंत्रण भी देते तो वह ऐसे सेमिनार में भाग नहीं लेते। वास्तव में, पडगांवकर ने जो कुछ किया है, उस पर अंसारी ने खुलेआम असहमति जताते हुए उनसे स्थिति स्पष्ट करने की बात कही है। उनकी शिकायत है कि कश्मीर पर भारत विरोधी सेमिनार में पडगांवकर की भागीदारी से वार्ताकारों के पैनल की विश्वसनीयता कमजोर पड़ गई है। उम्मीद के अनुरूप, पडगांवकर ने यह कहते हुए सेमिनार में अपनी भागीदारी को सही ठहराया कि उन्होंने कोई गलती नहीं की है। वह नहीं जानते थे कि इस सेमिनार का आयोजन कौन कर रहा है? यह बहुत ही कमजोर स्पष्टीकरण है। अंसारी आज भी उनकी भागीदारी पर सवाल उठा रहे हैं। वास्तव में, उन्होंने हमला तेज कर दिया है और हर दिन यह पडगांवकर पर केंद्रित होता है। 

अंसारी ने पडगांवकर के खिलाफ अपनी टिप्पणियों को वापस लेने से इंकार कर दिया है। उनका कहना है कि मैं अपनी टिप्पणियों को वापस नहीं लूंगा। अंसारी ने अपने वरिष्ठ सहकर्मी पडगांवकर के दृष्टिकोण से संतुष्ट हुए बिना राधा कुमार पर भी हमले तेज कर दिए हैं। उनका तर्क समान है। इस पर राधा इस हद तक चिढ़ गई कि उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्रालय को यह कहते हुए पत्र लिख दिया कि वह एमएम अंसारी के साथ नहीं बैठ सकतीं और 13 अक्टूबर 2010 से वार्ताकार के रूप में सेवा प्रदान करने के लिए उन्हें जो तनख्वाह मिल रहा है, वह भी नहीं लेंगी। गृह मंत्रालय से राधा ने अपने इस्तीफे को स्वीकार करने की विनती की। राधा का त्यागपत्र विचित्र था। एक तरफ उन्होंने गृह मंत्रालय को इस्तीफा स्वीकार करने के लिए कहा और दूसरी तरफ मंत्रालय को यह आश्वासन दिया कि उन्हें जो काम सौंपा गया है, उसे वह बिना वेतन लिए पूरा करेगी। गृह मंत्रालय ने इस वृत्तांत को कमतर आंकने की कोशिश की और यह बयान जारी किया कि वह इस्तीफा नहीं दी थीं। एक राष्ट्रीय दैनिक अखबार ने राधा द्वारा गृह मंत्रालय को लिखे पत्र को प्रकाशित कर इसका भंडाफोड़ किया। 

उल्लेखनीय है कि दिल्ली आधारित अंग्रेजी अखबार ने प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित किया था कि राधा ने औपचारिक रूप से गृह मंत्रालय को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। अब फई वृत्तांत से उपजे विवाद से वार्ताकारों की कसरत पर विपरीत असर पड़ेगा। इसका मतलब है कि वार्ताकार जम्मू-कश्मीर पर अपनी रिपोर्ट सौंपने की स्थिति में नहीं होंगे और अगर वह रिपोर्ट सौंपते भी हैं तो कोई भी व्यक्ति इस पर विश्वास नहीं करेगा। यह सही आकलन है। वार्ताकारों ने सचमुच अपनी उपयोगिता से बढ़कर काम किया है। पडगांवकर और राधा कुमार अपनी प्रतिष्ठा खो चुके हैं। अगर कोई केंद्र की रिपोर्ट पर गौर करे तो पूरी दृढ़ता से यह कह सकता है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रयासों को पटल पर लाने की जरूरत है, क्योंकि एमएम अंसारी ने इच्छित परिणामों को प्रस्तुत नहीं किया है। अंसारी ने इंडियन एक्सप्रेस को स्पष्ट रूप से कहा है कि वह अपने बयान से विचलित नहीं होंगे। अब यदि संबंधित अधिकारी अंसारी और उनके सहकर्मियों के बीच अंतर मिटाने में सफल नहीं होते हैं तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। कारण, इससे पहले ही काफी नुकसान हो चुका है। उनके बीच कटुता की प्रकृति ऐसी है कि तत्काल मेल-मिलाप संभव भी नहीं है। पूरे देशवासियों का यह नजरिया है कि दिलीप पडगांवकर और राधा कुमार ने देश विरोधी सेमिनारों में भाग लेकर अपना मुंह काला कर लिया है और जिस देश में वे रहते हैं, उसको नुकसान पहुंचाया है। 

इससे पता चलता है कि अंसारी ने पडगांवकर और राधा को अपना प्रतिद्वंद्वी बनाकर बढि़या काम किया है और सही चीजों को उसके परिप्रेक्ष्य में रखा है। अंसारी को दोनों वार्ताकारों के भारतीय मित्रों और सही चीजों को उजागर करने और इससे निपटने के तौर-तरीके अपनाने चाहिए। केंद्रीय गृह मंत्रालय के बारे में जितना कम कहा जाए, उतना ही अच्छा है। इसने जम्मू-कश्मीर के मुद्दों को सुलझाने और अलगाववादियों व कट्टरपंथियों को अलग-थलग करने के बजाय देश के दुश्मनों में बढ़ोतरी ही की है।

उल्लेखनीय है कि मई 2009 में जब से कांग्रेस कुछ क्षेत्रीय संगठनों से गठजोड़ कर फिर से सत्ता में आई है, कश्मीर में स्थिति और बिगड़ गई है। यूपीए-2 के शासन में कश्मीर की स्थिति बदतर हो गई है। इसे जम्मू-कश्मीर सरकार के इस फैसले से समझा जा सकता है कि कश्मीर में स्वतंत्रता दिवस समारोह से छात्रों को दूर रखा गया।

(लेखक जम्मू विवि के सामाजिक विभाग के पूर्व डीन हैं)

(Dainik Jagran/21/08/2011)

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