Wednesday, September 28, 2011

जम्मू के विधायकों की एकता

प्रो. हरिओम

21 सितंबर को जम्मू में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना घटी, लेकिन मीडिया के एक वर्ग ने इस पर उचित ध्यान दिया। यह घटना उस समय घटी जब एक के बाद एक कई घटनाएं घटित हुई थीं। ये सभी घटनाएं कश्मीर से संबंधित थीं। इनमें गुलाम कश्मीर के पूर्व प्रधानमंत्री सुल्तान महमूद चौधरी का विवादास्पद कश्मीर दौरा, वार्ताकारों का विवादित प्रेस कांफ्रेंस और 13 दिसंबर 2011 को संसद पर हमले का आरोपी अफजल गुरु को क्षमादान के लिए निजी सदस्य के बिल पर विचार-विमर्श शामिल है। 21 सितंबर को जम्मू में जो राजनीतिक घटनाएं हुई, उसकी शुरुआत चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (सीसीआइ), जम्मू ने की थी। सीसीआइ ने राजनीतिक दलों से जुड़े जम्मू आधारित विधायकों को एक मंच पर इकट्ठा किया और उनसे इस तरह विचार-विमर्श किया, जैसे जम्मू संभाग के लोगों ने उन्हें 63 साल पुराने कश्मीरी वर्चस्व को समाप्त करने के लिए नौकरी पर रखा हो। ताकि जम्मू समाज के सभी वर्गो की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जरूरतें पूरी हो सकें। पिछले 63 वर्षो में शायद पहली बार किसी संगठन ने ऐसा प्रयास किया है, जोकि मूल रूप से व्यापारिक हितों का प्रतिनिधित्व करता है। अतीत में सीसीआइ ने कई साहसिक कदम उठाए हैं और जम्मू संभाग के लोगों के हितों के लिए लड़ा है। तथ्य यह है कि सीसीआइ, बार एसोसिएशन जम्मू (बीएजे) की तरह हमेशा जम्मू संभाग के हितों के लिए आगे रही है। दरबार मूव आंदोलन, वर्ष 1998 में छात्र आंदोलन और वर्ष 2008 में अमरनाथ भूमि आंदोलन में इसकी भूमिका सराहनीय रही है। जम्मू के हितों के लिए यह उन लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी है, जिन्होंने इन आंदोलनों को नियंत्रित किया और इस प्रक्रिया में अत्यधिक आर्थिक नुकसान झेला है। यह मुख्य बात नहीं है। न ही चैंबर्स नेतृत्व की विश्वसनीयता पर उन्हें संदेह है, जिसमें भूत और वर्तमान शामिल है। यह चुनी हुई निकाय है और विभिन्न अवसरों पर यह जनादेश की कैद से बाहर निकल कर जम्मू के हितों के लिए अपनी खास पहचान बनाई है। मूल बात यह है कि इसने दूसरे दिन जो प्रयास किया वह प्रशंसनीय है। अतीत में किसी संगठन के इस तरह के प्रयास से शायद ही कोई परिचित हो, क्योंकि इसने विभिन्न विचारधारा मानने वाले विधायकों को एक मंच पर लाने का प्रयास किया है। हां, पैंथर्स पार्टी के भीम सिंह ने विभिन्न अवसरों पर अपने संगठन के अलावा दूसरे संगठनों के लोगों को जम्मू की दशा पर विचार-विमर्श करने और जम्मू संभाग पर कश्मीरी वर्चस्व को खत्म करने की योजना बनाई है। साथ ही अधिकारियों पर राज्य को पुनर्गठित करने का दबाव बनाया है ताकि जम्मू संभाग के लोगों को उनके संभाग का मुख्यमंत्री मिल सके। लेकिन यह तथ्य है कि पैंथर्स नेतृत्व ने कभी भी ऐसा माहौल बनाने का प्रयास नहीं किया, जोकि गैर पैंथर्स विधायकों को आम न्यूनतम कार्यक्रम और आम रणनीति को बांटने का प्रलोभन देता हो और अधिकारियों को जम्मू की असंतुष्टि और उदासी की रात समाप्त करने के लिए दबाव बनाया हो। यह भी एक तथ्य है कि राज्य विधानमंडल सत्र पैंथर्स पार्टी, भाजपा और जम्मू स्टेट मोर्चा के विधायकों का गवाह बना, जो एकजुट होकर मिलीजुली सरकार के गलत कामों का भंडाफोड़ कर जम्मू संभाग के लोगों की समस्याओं को उजागर कर रहे थे। सच में बुधवार को पहली बार जम्मू संभाग में एक पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए गंभीर और ईमानदार प्रयास हुआ है, जिससे वर्षो पुरानी शिकायतों को दूर करने और जम्मू संभाग में नुकसान झेल रहे लोगों की कठिनाइयों को कम करने का काम हुआ है। निश्चित रूप से इसका श्रेय सीसीआइ अध्यक्ष को जाता है। यह एक महत्वपूर्ण घटना है, क्योंकि वह राजनीतिक खेमे में एक प्रतिबद्ध कांग्रेसी के रूप में जाने जाते हैं। उनका प्रयास कुछ रंग लाया है। इस तथ्य से इसे समझा जा सकता है कि आठ विधायक न केवल निर्धारित समय पर जम्मू समस्या की प्रकृति पर सीसीआइ प्रायोजित विचार-विमर्श में भाग लेने के लिए पहुंचे और सुधारात्मक उपायों का सुझाव दिया बल्कि तीन घंटे तक बातचीत कर प्रश्नों का जवाब देते रहे। नि:संदेह इसमें उनकी गंभीर भागीदारी रही। इन विधायकों में हर्षदेव सिंह, बलवंत सिंह मनकोटिया व वाइपी कुंडल (पैंथर्स पार्टी), अशोक खजुरिया, जुगल किशोर शर्मा व सुखनंदन चौधरी (भाजपा), अश्विनी शर्मा (जेएसएम) और चरणजीत सिंह (निर्दलीय) शामिल थे। विधानसभा में जो लोग कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस का प्रतिनिधित्व करते हैं, इन लोगों की अनुपस्थिति पर उनका ध्यान गया। लेकिन सीसीआइ अध्यक्ष ने श्रोताओं को सूचित किया कि उनमें से अधिकतर विधायक इसमें शामिल होना चाहते थे, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सकते। कारण, उन्हें श्रीनगर में एक पार्टी की बैठक में भाग लेना है। सीसीआइ अध्यक्ष बिल्कुल आश्वस्त हैं कि आगामी वार्ता में ये विधायक जरूरत भाग लेंगे, जोकि जल्द ही आयोजित होने वाली है। यही मनोवृत्ति होनी चाहिए। हालांकि अभी भी यह एक प्रश्न है कि क्या सभी जम्मू आधारित विधायकों जिसमें सांसद, विधायक और एमएलसी शामिल हैं, पार्टी राजनीति से ऊपर उठकर एक मंच पर आएंगे? जैसा कि आंध्र प्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र में सभी विधायक अपने क्षेत्र के हितों के लिए आगे आए हैं और राज्य का दर्जा हासिल करने के लिए प्रयासरत हैं। हालांकि यह वांछनीय होगा यदि वे जम्मू संभाग के लोगों को सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक-आर्थिक रूप से पुनर्जीवित करने के लिए हाथ मिलाते हैं। कश्मीरी नेतृत्व को समर्थन देने की कोई जरूरत नहीं है। अगर जम्मू आधारित विधायक विधानसभा में दबाव बनाकर ऐसा माहौल बनाते हैं जिससे अधिकारियों को जम्मू संभाग के लोगों जिसमें हिंदू, मुस्लिम और सिख शामिल हैं, को न्याय देने के लिए बाध्य होना पड़े तो वे अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे। लोकसभा और विधानसभा में वे जिस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं उसकी देखरेख करना उनका मौलिक कर्तव्य है।

(लेखक जम्मू विवि के सामाजिक विभाग के पूर्व डीन हैं)


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