दयासागर
आज कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं और सामाजिक कार्यकर्ता आम आदमी की दिक्कतों को लेकर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं, जिन्हें प्रत्येक दिन पटवारी, क्लर्क, पुलिस कांस्टेबल व स्कूल के शिक्षकों से काम पड़ता है। यहां तक कि राहुल गांधी जैसे वरिष्ठ नेता भी मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंगुली उठा चुके हैं। यह उद्धृत किया जा सकता है कि आइएएस, आइपीएस, आइआरएस, आइएएएस व राजस्व अधिकारियों के घरों को सीबीआइ व एसवीओ शायद ही कभी जब्त करती हो या उन्हें हिरासत में लिया जाता हो या फिर उन्हें सेवा से बर्खास्त किया जाता हो। इसके विपरीत कई मामलों में आरोपित सरकारी अधिकारी बाद में निर्दोष साबित होते हैं और उन्हें एरियर की बड़ी राशि का भी भुगतान किया जाता है। कारण, जांच करने वाली सरकारी एजेंसियां कोर्ट के समक्ष उनके खिलाफ आरोप को साबित नहीं कर पाती हैं। कई मामलों में तो कुछ आइएएस अफसर भ्रष्टाचार के आरोप से मुक्त होने के बाद पदोन्नत होकर नौकरशाही के उच्च पदों तक पहुंच जाते हैं। ऐसी स्थिति में राज्य के खजाने की लूट कैसे रुके? वर्ष 2004 में जम्मू-कश्मीर में राज्य जवाबदेही आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग के पास सिर्फ पूछताछ के बाद सरकार के पास सिफारिशों को भेजने का अधिकार था। लेकिन राज्य जवाबदेही आयोग द्वारा सरकार को भेजे गए अधिकांश सिफारिशों में पेंशन रोकने, सेवा से बर्खास्त करने जैसे सुझावों को राज्य सरकार ने लागू नहीं किया। वहीं, हाईकोर्ट ने कुछ सिफारिशों पर रोक लगा दिया। इसे लागू करने के लिए कोई ध्यान नहीं दिया गया। उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर राज्य जवाबदेही आयोग अप्रैल-मई 2008 से जुलाई 2011 तक बिना सिर-पैर के होने के कारण कोई काम नहीं किया है। राज्य सरकार वर्ष 2011 में जेएंडके राज्य जवाबदेही आयोग कानून में संशोधन कर नौकरशाह को इसके दायरे से बाहर निकालने में सफल रही है। पहले राज्य जवाबदेही आयोग के तहत किसी राजनीतिज्ञ या नौकरशाह पर कर्तव्यों के गैर निष्पादन के खिलाफ आरोप लगाया जा सकता था। इसके अलावा जब नौकरशाह राज्य जवाबदेही आयोग के तहत था तो विधायक व मंत्री के दोषों को साबित करना आसान था। यद्यपि राज्य जवाबदेही आयोग के पास कोई अधिकार नहीं है फिर भी यह भ्रष्ट नौकरशाहों को परेशान कर सकता है। यह भी आरोप लगाया जाता है कि नौकरशाहों ने राजनीतिज्ञों के साथ अपनी निकटता का बखूबी इस्तेमाल किया है। वर्ष 2004 में जवाबदेही आयोग से नौकरशाहों को निकालने के लिए राज्य जवाबदेही आयोग कानून में जेएंडके राज्य सतर्कता आयोग कानून-2010 के माध्यम से संशोधन किया गया। जब तक जेएंडके राज्य जवाबदेही आयोग कानून में संशोधन कर आयोग को अभियोजन, आदेश प्रशासनिक दंडों और जेएंडके राज्य जवाबदेही आयोग के दायरे में नौकरशाह को फिर से शामिल करने के आदेश का अधिकार नहीं देता है तब तक राज्य जवाबदेही आयोग मौजूदा स्वरूप में परिणाम देगा, इसमें संदेह है। जेएंडके राज्य सतर्कता संगठन भी भ्रम की स्थिति में है। कारण, राज्य सतर्कता आयोग कानून-2010 के बाद आज तक राज्य जवाबदेही आयोग का गठन नहीं हुआ। इसका उद्देश्य सत्य प्रतीत नहीं होता है। इसलिए जनलोकपाल और लोकपाल आयुक्त जैसे संगठनों को अधिकार प्रदान करने, शिकायतों को सुनने, पूछताछ करने, एफआइआर आदेश का पंजीकरण, अभियोजन के लिए मामलों को भेजने और आर्थिक दंड देने के आदेश की मांग की जा रही है। समय की मांग है कि भ्रष्टतंत्र के शासन को पस्त करने के लिए प्रभावी कानून बनाया जाए अन्यथा ये संस्थान जिनका निर्माण भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए किया गया है, आम लोगों के लिए बोझ बनकर रह जाएगा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लाल किले के प्राचीर से कहा था कि भ्रष्टाचार को तुरंत खत्म करने के लिए उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है। सच में भ्रष्टाचार को शून्य स्तर तक नहीं लाया जा सकता, लेकिन भ्रष्टतंत्र के शासन को निश्चित रूप से छिन्न-भिन्न किया जा सकता है। 27 अगस्त को भारतीय संसद ने भी कोई चिंता नहीं जताई। लेकिन निश्चित रूप से इन घटनाओं से यह बात सामने आई है कि भ्रष्टाचार ने भारतीय अर्थव्यवस्था को पूरी तरह असंतुलित कर दिया है और मौजूदा परिस्थितियों में सामान्य तौर-तरीकों से निकट भविष्य में भ्रष्ट तत्वों पर लगाम कसता नजर नहीं आता है। इस तथ्य के बावजूद कि अंग्रेजों के लौटने के बाद स्वतंत्र भारत में संस्थानों, विभागों, सीवीसी, सीबीआइ, अपराध इकाई नियंत्रण जैसी एजेंसियां, पुलिस स्टेशनों, नागरिक पुलिस और दूरसंचार व नियंत्रण पद्धति कई गुना बढ़ चुकी है। सरकार को राज्य के खजाने में भ्रष्टाचार, विकास खर्च, टैक्स, एक्साइज, कस्टम ड्यूटी में साझेदारी, आयकर न चुकाने वालों और शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय, अपराध, कानून जैसे सरकारी विभागों में लोगों की गैर निष्पादित उपयोगिता और अन्य बलों के लिए अतिरिक्त श्रमशक्ति को तैनात करने की जरूरत होती है। सरकार अतिरिक्त कीमतों को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक प्रत्यक्ष और परोक्ष करों को लगाती है। मूल्यवृद्धि को तब तक कम नहीं किया जा सकता, जब तक कि सरकारी फंडों के तहत खर्च की जाने वाली धनराशि की क्षमता को सुधारा नहीं जाता। इसके लिए सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए एक प्रभावी कानून होना चाहिए। अनावश्यक मूल्यवृद्धि रोकने के लिए यही समाधान है। इसमें संदेह नहीं कि सरकार स्रोतों द्वारा प्रस्तावित विकास दर कुछ लोगों को आश्वस्त करती है। वर्ष 1960 में कुछ मुख्यमंत्रियों ने राज्य संसाधनों में व्याप्त भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाया था। नेहरूजी ने कहा था कि चिंता की कोई बात नहीं, आखिर भ्रष्ट तरीके से अर्जित धन भारत में ही रहेगा। कुछ लोग राष्ट्रीय संपत्ति और संसाधनों में हुई वृद्धि का गलत ढंग से प्रयोग कर रहे हैं, जबकि आम लोग अभी भी दबे-कुचले हैं। लेकिन औसत आंकड़े वशीभूत करने वाले हैं। सभी काले धन को भारत में नहीं रखा गया है, इसे यहां से हटा दिया गया है। कुछ लोगों ने आरोप लगाया है कि भारत से बाहर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जमा काला धन 400 लाख करोड़ से भी अधिक है। निश्चित रूप से नेहरूजी ने धनी भारत में धन के इस तरह निर्यात होने का अनुमान नहीं लगाया होगा। कुछ लोग इस बात से असहमत हैं और उनका यह तर्क है कि जब पहले से ही कई संस्थाएं (सीवीसी, सीबीआइ, एसवीओ (जेकेएसवीसी), जम्मू-कश्मीर राज्य जवाबदेही आयोग) भ्रष्टाचार को रोकने के लिए मौजूद हैं तो फिर नए कानून बनाने की क्या जरूरत है? इसका सीधा जवाब मिलता है कि बिना गलत सिफारिशों के काम नहीं होता है।
(लेखक जम्मू-कश्मीर मामलों के अध्येता हैं।)
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