प्रो. हरिओम
जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सैफुद्दीन सोज पूरे देश में कुशल व्यक्ति बन गए हैं। पिछले कुछ दिनों में उन्होंने राष्ट्रवादियों का राष्ट्रवादी और राज्य व देशवासियों के सच्चे मित्र के रूप में अपने विचारों को प्रकट किया है। पिछले कुछ दिनों में उन्होंने ऐसे ही भरोसेमंद तरीकों से चीजों की व्याख्या की है। यहां तक कि उनके कटु आलोचकों, नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं खासकर तीनों अब्दुल्ला (फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और मुस्तफा कमाल) को छोड़कर, ने भी उनके विचारों को सराहा है।
लोगों को सोज की तारीफ करने के लिए जो कुछ प्रेरित किया, वह न केवल मुख्यमंत्री और उनकी कार्यशैली व अफस्पा पर उनके विचार थे, जिसे उन्होंने तिरस्कारपूर्ण ढंग से पंथनिरपेक्ष और नारेबाजी की राजनीति के रूप में खारिज कर दिया, बल्कि नेकां जिसे लगातार राजनीतिक समस्या (नेशनल कांफ्रेंस के अनुसार, कश्मीर एक राजनीतिक समस्या है और इसके लिए राजनीतिक समाधान की जरूरत है) कह रही है, उस पर भी उन्होंने स्पष्ट विचार दिए हैं। नेकां, जोकि हमेशा केंद्र से कश्मीर मुद्दे को राजनीतिक रूप से संबोधित करने की याचना करती है, का मानना है कि रोजगार और वित्तीय पैकेज से नहीं बल्कि राजनीतिक पैकेज से ही घाटी में शांति बहाल हो सकती है। राजनीतिक पैकेज से नेकां का मतलब राज्य और केंद्र के बीच सीमित संबंध है।
वर्ष 1998 से पहले सोज भी इस प्रकार के विचार व्यक्त करते थे, लेकिन अब यह अतीत की बात हो चुकी है। आज वह महत्वपूर्ण कांग्रेसी नेता हैं और अपनी जिम्मेदारियों से भिज्ञ हैं। देश और राज्य जिस समस्या का सामना कर रहा है, उसके प्रति उनके परिपक्व नजरिये पर विचार करने की जरूरत है। सोज राष्ट्रीय मुख्यधारा का हिस्सा बन चुके हैं। इसे अंतिम सप्ताह में दिल्ली आधारित प्रमुख न्यूज चैनलों पर नेकां ने राजनीतिक समस्या के बारे में जो बयान दिए थे, उससे समझा जा सकता है। उन्होंने नेकां की राजनीतिक समस्या को पूरी तरह खारिज कर चीजों को सही परिप्रेक्ष्य में रखने के लिए महत्वपूर्ण बयान दिया।
उन्होंने कहा कि इस साल पंचायती चुनावों में 85 प्रतिशत लोगों ने भाग लेकर यह साबित कर दिया कि राजनीतिक मोर्चे पर अब किसी चीज की जरूरत नहीं है। पंचायती चुनाव में भारी मतदान से कश्मीर समस्या के राजनीतिक समाधान का स्वत: पता चलता है। सोज ने कहा है कि यूपीए सरकार इसके समाधान के लिए प्रतिबद्ध है। इसने जम्मू-कश्मीर के लिए तीन वार्ताकारों को नियुक्त किया है, जो केंद्रीय गृहमंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंप चुके हैं। यह एक सामान्य बयान था। इसलिए, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं था। उनका सबसे महत्वपूर्ण बयान पंचायती चुनावों में 85 प्रतिशत मतदाताओं की भागीदारी से कश्मीर समस्या का राजनीतिक समाधान स्वत: निकलना है।
क्या नेकां सोज की पार्टी की तारीफ करेगी? अगर नेकां राज्य के राजनीतिक अखाड़े में बने रहना चाहती है तो उसे ऐसा करना चाहिए। सोज एक समझदार सलाहकार हैं और नेकां इसकी सराहना करने से इंकार कर बड़ी गलती करेगी और अप्रचलित व पीछे हटने वाले विचारधारा से चिपकी रह जाएगी। उमर और उनकी कार्यशैली पर सोज की प्रतिक्रिया सराहनीय है। वह अफस्पा, राष्ट्रीय विचारधारा और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी निर्णायक मुद्दों पर स्पष्ट रूप से बोलने के लिए प्रशंसा के पात्र हैं। ठीक समय पर हस्तक्षेप और कश्मीर में राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए अफस्पा को रद्द करने वालों का भंडाफोड़ कर उन्होंने सराहनीय कार्य किया है।
सचमुच, वह शानदार और सफल हस्तक्षेप के लिए फूलों का गुलदस्ता प्राप्त करने योग्य हैं। यही नहीं, कांग्रेस पार्टी की मदद से मुख्यमंत्री बनने के बाद उमर जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं, उस पर स्पष्ट टिप्पणी के लिए भी सोज प्रशंसा के पात्र हैं। किसी ने भी सोचा नहीं होगा कि कोई कश्मीरी नेता कभी उमर की कार्यशैली के बारे में कुछ कहेगा। सोज ने पंथनिरपेक्ष और नारेबाजी की राजनीति करने की बात छेड़कर नेकां को उद्वेलित कर दिया है। उन्होंने निराशा जताते हुए कहा है कि विकास कार्यों पर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है। उमर सरकार को पंथनिरपेक्ष राजनीति करने के बजाय विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। कश्मीर में कोई भी उनके सामने यह नहीं कह सकता, जो उन्होंने कहा है। सोज को वर्षों तक उनकी महान सेवा के लिए याद किया जाएगा। उमर और नेकां जिस तरह की राजनीति में लिप्त है, उसके बारे में सोज ने जो कुछ कहा, उससे उनके कई समालोचक शर्मिदगी महसूस कर रहे होंगे।
जनवरी 2009 से निरंतर वह कह रहे हैं कि उमर और दूसरे नेकां नेता धर्मनिरपेक्षता का विरोध कर पंथनिरपेक्षता की राजनीति में लिप्त हैं। वर्ष 1996 में कई गलतियों के कारण पार्टी की खिसक चुकी जनाधार को फिर से बहाल करने की राजनीति और विभिन्न मोर्चों पर पार्टी की विफलता इसके प्रमुख कारण हैं। वे नेकां शैली की राजनीति को उजागर नहीं कर रहे हैं बल्कि तीन मौलिक कारणों से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं। इसमें एक मुख्यमंत्री का कार्यभार संभालने के बाद उमर जिस तरह की राजनीति का सहारा लिए उससे कुंठित और पस्त अलगाववादियों और सांप्रदायिक तत्वों को मदद मिलना शामिल है।
दूसरा कारण यह है कि उमर ने जिस तरह की राजनीति की, उससे राज्य की राजनीति और समाज पर विपरीत असर पड़ा, क्योंकि जिनके हाथों में सत्ता की चाबी थी उन्होंने भावुक और विभाजनकारी मुद्दों को भुनाया, जिनका कर्तव्यबोध से कोई लेना-देना नहीं था, जोकि संवैधानिक और राजनीतिक रूप से राज्य और देश के लोगों के प्रति कर्तव्य पालन के लिए बाध्य करता है।
उमर और उनकी पार्टी नेकां जिस तरह की राजनीति का सहारा ली हुई है उससे दोनों संभागों के बीच अभूतपूर्व स्तर पर कड़वाहट और वैमनस्यता फैली है। कोई भी सिर्फ प्रार्थना ही कर सकता है कि भगवान उन्हें सद्बुद्धि दें और वह विभाजनकारी और पंथनिरपेक्ष मुद्दों को छोड़ प्रशासनिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करें।
(लेखक : जम्मू विवि के सामाजिक विभाग के पूर्व डीन हैं।)
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