नरेंद्र सहगल
युद्ध-विराम का खुला उल्लंघन
वैसे तो पाकिस्तान 1 जनवरी, 1949 को अस्तित्व में आई युद्ध-विराम रेखा (अब नियंत्रण रेखा) का उल्लंघन प्रारंभ से ही करता चला आ रहा है, परंतु 23 नवम्बर, 2003 को दोनों देशों के मध्य हुए संघर्ष विराम समझौते की धज्जियां पाकिस्तान ने जिस तरीके और गति से उड़ाई हैं वह भारत सरकार और सेना के लिए चिंता का एक गंभीर विषय है। चिंता का विषय यह भी है कि देश की सेना भी अपने कमजोर राजनीतिक आकाओं की ढुलमुल पाकिस्तान नीति के कारण किसी भी प्रकार की कोई सख्त कार्रवाई नहीं कर पा रही।
पिछले नौ वर्षों से नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर लागू संघर्ष विराम का पाकिस्तान ने नौ सौ से भी ज्यादा बार उल्लंघन किया है। यदि भारत सरकार ने सेना को एक बार भी सख्त जवाब देने के आदेश जारी किए होते तो अब तक पड़ोसी देश के सैनिक तेवर ठंडे पड़ चुके होते और जम्मू-कश्मीर के सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी सुख-चैन से रह रहे होते। भारत की सेना और जनता का परंपरागत शौर्य भी बरकरार रहता और नियंत्रण रेखा भी नियंत्रण में रहती।
'हैवी मोर्टार' से गोलीबारी
पाकिस्तान की फौज जब नियंत्रण रेखा पर स्थित भारतीय सैन्य चौकियों पर गोले बरसाती है तो उससे हमारे सैनिक तो शहीद होते ही हैं, साथ ही सरहदी इलाकों के नागरिक भी प्रभावित होते हैं। खेती, व्यापार और नित्यप्रति के अन्य कारोबार का भी भारी नुकसान होता है। यह ठीक है कि भारतीय सैनिकों द्वारा की जाने वाली सामान्य जवाबी कार्रवाई से पाकिस्तान का भी इसी तरह का नुकसान होता है परंतु गोलीबारी करते रहना उस देश की भारत विरोधी सैन्य रणनीति है। भारत कब तक जवाबी कार्रवाई में ही उलझा रहेगा?
गत एक सितम्बर की आधी रात को पाकिस्तान के सैनिकों ने उत्तरी कश्मीर में केरन सेक्टर में स्थित भारतीय चौकियों पर अचानक गोले बरसाने शुरू कर दिए। यह भारी गोलाबारी हैवी मोर्टार (तोप) और मशीनगनों से की गई। भारत की थल सेना का एक जूनियर कमीशंड अफसर नायब सूबेदार गुरदयाल सिंह शहीद हो गया। इस जवाबी हमले में पाकिस्तान की मुजाहिद बटालियन के तीन जवानों के मारे जाने की खबर भी है। इसी तरह की गोलीबारी तीन सप्ताह पहले भी हुई, जिसमें पाकिस्तान के सैनिकों ने दो भारतीय सैनिकों के सिर काट लिए थे।
भारत पर लगते हैं उलटे आरोप
जब भी पाकिस्तान के सैनिक भारतीय चौकियों पर हमला करते हैं तो तुरंत पाकिस्तान के जिम्मेदार सेनाधिकारी उलटे भारत पर ही पहले गोलीबारी करने का आरोप लगाकर अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की सेना को बदनाम करने का दुस्साहस करते हैं। गत सप्ताह भी यही हुआ। पाकिस्तानी थल सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल अथर अब्बास ने इस्लामाबाद से बयान जारी कर दिया कि यह गोलीबारी भारत की ओर से की गई थी। भारतीय चौकियों पर बिना किसी उकसावे के हमला करके मुकर जाना और भारत की फौज को ही कटघरे में खड़ा करने की पाकिस्तानी रणनीति की कब तक और क्यों भारत की सरकार अनदेखी करती रहेगी? भारत की यही कमजोरी पाकिस्तान की ताकत है।
भारत के रक्षा प्रवक्ता ले.कर्नल जे.एस.बराड़ के अनुसार नियंत्रण रेखा पर हो रहे सीज फायर के उल्लंघन के पीछे पाकिस्तान के रेंजर्स (सीमा सुरक्षा सैनिक) का हाथ है। जम्मू-कश्मीर में भारी तादाद में सशस्त्र घुसपैठिए भेजने के लिए पाकिस्तानी सैनिक 'कवरिंग फायर' करते हैं ताकि भारतीय सैनिक जवाबी कार्रवाई में उलझे रहें और घुसपैठिए निर्बाध गति से भारतीय सीमा में घुसकर अपने गंतव्य स्थानों पर पहुंच जाएं। इस सैनिक रणनीति पर पाकिस्तान सरकार, सेना और आईएसआई सब एकमत हैं और संयुक्त रूप से 'एक्शन प्लान' बनाते हैं।
ज्वलंत खतरे की अनदेखी
भारत के गृहसचिव आर.के.सिंह के अनुसार इस समय भी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में 700 से 2000 तक प्रशिक्षित घुसपैठिए कश्मीर घाटी में घुसने के लिए तैयार हैं। इन्हें पी.ओ.के.में सेना के नियंत्रण में चल रहे प्रशिक्षण शिविरों में हिंसा फैलाने की ट्रेनिंग दी गई है। नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तानी सेना का जमावड़ा कभी कम नहीं होता। इसलिए सीमा के इस पार भारतीय सीमांत क्षेत्रों में दहशत का माहौल सदैव बना रहता है। गृह सचिव यह भी स्वीकार करते हैं कि जम्मू कश्मीर की अन्तरराष्ट्रीय सीमा एवं नियंत्रण रेखा पर हो रही पाकिस्तान की सैनिक कारस्तानियां भारत की जानकारी में हैं।
कागजों पर भारत-पाक सीमा, विशेषतया नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों द्वारा सर्वसम्मत युद्ध-विराम लागू है। परंतु सैन्य सूत्रों के मुताबिक मात्र पिछले आठ महीनों में पाकिस्तान ने साठ से ज्यादा बार गोले बरसा कर युद्ध-विराम का उल्लंघन करके भारतीय सैनिकों को आवश्यक जवाबी कार्रवाई के लिए उकसाया है। केन्द्रीय गृह विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2010 में पाक सैनिकों ने केवल नियंत्रण रेखा पर ही 44 बार युद्ध-विराम का उल्लंघन करके भारत के सीमांत इलाकों में दहशत फैलाई। पाकिस्तान के इस दुस्साहस को समाप्त करने के लिए सेना तो सक्षम है। देश की सरकार का ध्यान इस ज्वलंत मसले की ओर कम जाता है।
नियंत्रण रेखा की पृष्ठभूमि
पाकिस्तान की सेना का सारा ध्यान नियंत्रण रेखा को ही निशाना बनाने पर क्यों रहता है, इसकी पृष्ठभूमि में उतरना जरूरी है। 22 अक्तूबर 1947 को पूरे कश्मीर को हड़पने के उद्देश्य से पाकिस्तान की सेना ने कबायलियों के साथ मिलकर कश्मीर पर धावा बोल दिया। महाराजा हरिसिंह की रियासती सेना ने पूरी ताकत से सामना किया परंतु रियासती सेना की एक बहुत बड़ी मुस्लिम रेजीमेंट द्वारा बगावत करके पाकिस्तानी सेना में मिल जाने से खतरा बढ़ गया। पाकिस्तानी सेना श्रीनगर के द्वार तक आ पहुंची। महाराजा हरिसिंह द्वारा 26 अक्तूबर, 1947 को जम्मू-कश्मीर रियासत का भारत में पूर्ण विलय कर देने के पश्चात 27 अक्तूबर को भारत की सेना कश्मीर के मोर्चे पर जा डटी। कश्मीर का अधिकांश हिस्सा पाकिस्तान से मुक्त करवा लिया गया। परंतु तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सरकार और सेनाधिकारियों की अवहेलना करके सुरक्षा परिषद से अपील कर दी कि वह पाकिस्तान को भारत पर हमला करने से रोके। इस तरह सुरक्षा परिषद द्वारा दोनों देशों में युद्ध-विराम लागू करवा दिया गया। जिस सीमा रेखा पर भारत और पाकिस्तान की सेनाएं खड़ी थीं वह युद्ध-विराम रेखा कहलाई। इस भारत-पाक युद्ध-विराम समझौते पर 27 जून 1949 को कराची में हस्ताक्षर किए गए। उस समय जो भाग पाकिस्तान की सेना के कब्जे में था वह आज भी उसी के पास है।
पाकिस्तान नहीं मानता नियंत्रण रेखा
1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद शिमला में दोनों देशों के मध्य हुए समझौते में अन्य प्रस्तावों के साथ इस युद्ध-विराम रेखा को नियंत्रण रेखा स्वीकार कर लिया गया। इस नियंत्रण रेखा का पाकिस्तान ने आज तक पालन नहीं किया। वास्तव में पूरे जम्मू-कश्मीर पर अपना हक जताने वाला पाकिस्तान नियंत्रण रेखा जैसी किसी सीमा को मानता ही नहीं। जहां भारत ने युद्ध-विराम रेखा को मिटाते हुए उसे नियंत्रण रेखा बनाकर पाकिस्तान के आक्रमणकारी स्वरूप को कम कर दिया, वहीं पाकिस्तान ने इसी की आड़ में जबरदस्ती हथियाए गए कश्मीर पर अपना संवैधानिक हक जता दिया।
यह नियंत्रण रेखा जम्मू के अखनूर सेक्टर से प्रारंभ होकर पुंछ, उड़ी, टिथवाल, द्रास, कारगिल होकर सियाचिन ग्लेशियर तक जाती है। इसके पार वाला 78114 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र पाकिस्तान के कब्जे में है। इसके अतिरिक्त 5180 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र पाकिस्तान ने चीन को भेंट कर दिया है। जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र का भी 37555 वर्ग किलोमीटर इलाका चीन के कब्जे में है। इस कारण नियंत्रण रेखा का महत्व और भी बढ़ जाता है।
पाकिस्तान के नापाक इरादे
पाकिस्तान ने पहले युद्ध-विराम रेखा और अब नियंत्रण रेखा पर निरंतर गोलीबारी करके सारे संसार के सामने इस झूठ को सत्य में बदलने का प्रयास किया है कि पूरा जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा है। इसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए पाकिस्तान ने भारत पर चार बड़े युद्ध थोपे हैं। 1948-1965-1971 और 1999 के भारत पाक युद्धों में पराजित होने के बाद भी पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर अपना कथित हक नहीं छोड़ा। नियंत्रण रेखा पर इन दिनों हो रही गोलीबारी पाकिस्तान के इन्हीं नापाक इरादों की सैनिक अभिव्यक्ति है। यह कितने आश्चर्य की बात है कि नियंत्रण रेखा पर निरंतर हो रहे पाकिस्तानी अतिक्रमण को भारत सरकार ने कभी भी किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने की कोशिश नहीं की। पिछले 64 वर्ष में विशेषतया गत 23 नवम्बर 2003 को लागू हुए युद्ध-विराम समझौते के बाद हुए भारत पाक वार्तालापों में कभी भी यह ज्वलंत मसला नहीं उठाया गया। इस प्रकार के वार्तालापों में आतंकवाद जैसे मुद्दों पर तो चर्चा की गई परंतु नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तानी गोलीबारी की सदैव अनदेखी की जाती रही। यह सिलसिला आज भी ज्यों का त्यों चल रहा है। नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तानी गोलीबारी से जम्मू-कश्मीर के सीमांत ग्रामीण क्षेत्रों के दो लाख से ज्यादा परिवारों को तबाही का मंजर देखना पड़ रहा है। खेती, व्यापार, शिक्षा इत्यादि सब कुछ चौपट हो रहा है।
गोलीबारी की अनदेखी क्यों?
आज पाकिस्तान की फौज का एक बहुत बड़ा भाग नियंत्रण रेखा पर तैनात है। सुरक्षा परिषद द्वारा 1949 में करवाए गए युद्ध विराम की दो जरूरी शर्तें भी हैं- युद्ध-विराम रेखा से सेना हटाना और गोलीबारी तुरंत समाप्त कर देना। भारत ने इन शर्तों का अक्षरश: पालन किया परंतु पाकिस्तान ने दोनों शर्तों का खुला उल्लंघन करते हुए सेना की तैनाती भी बढ़ाई और गोलीबारी भी जारी रखी। इसी तरह नवम्बर 2003 में हुए युद्ध विराम समझौते को पाकिस्तान ने अनेक बार तोड़ा। देश की सुरक्षा और अखंडता के लिए यह आवश्यक है कि भारत के सेनाधिकारियों और सुरक्षा विशेषज्ञों के सुझावों को आधार मानकर भारत सरकार तुरंत कोई ऐसी ठोस सैन्य रणनीति बनाए और तद्नुसार कार्रवाई भी करे। जब पाकिस्तान अपनी सुरक्षा का बनावटी हौव्वा खड़ा करके नियंत्रण रेखा पर सेना का जमावड़ा और गोलीबारी कर रहा है तो भारत अपनी रक्षा के लिए सीधी और ठोस कार्रवाई से परहेज क्यों कर रहा है?
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