जम्मू। केंद्र द्वारा नियुक्त तीन वार्ताकारों द्वारा आयोजित दूसरी गोलमेज कांफ्रेंस के दूसरे दिन राज्य के तीनों क्षेत्रों के प्रतिनिधियों ने संस्कृतियों को लेकर स्वार्थ की राजनीति किए जाने के आरोप लगाए। इसके साथ ही संस्कृतियों को विकसित करने के कई सुझाव भी आए।
कइयों ने संस्कृतियों को नुकसान पहुंचने का मुख्य कारण आतंकवाद को बताया। कमोबेश इसके लिए दिल्ली तथा इस्लामाबाद दोनों को ही जिम्मेदार ठहराया गया। इसके चलते विश्वास बहाली के प्रयासों में कला तथा संस्कृति को शमिल किए जाने की बात भी कही गई। संभागों में अभी भी दूरियां कम होने की बजाय बढ़ने की बात वार्ताकारों ने कही।
दूसरे दिन के पहले सत्र की अध्यक्षता दारा शिकोह सेंटर की निदेशक ज्योत्सना सिंह ने की। सत्र का विषय था रोल ऑफ आर्ट इन प्लूरिज्म। सिंह ने कहा कि कल्चर वृहद मतलब वाला शब्द है। संस्कृतियों में वृहता होना ही देश तथा राज्य की मजबूती का कारण है। संस्कृतियों के विकास में राजनीति शामिल होने के चलते इसके लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। ज्योत्सना ने कहा कि शहरी और ग्रामीण संस्कृतियों को विकसित करने में भी भारी अंतर है। सिंह ने सुझाव दिया कि भारत तथा पाकिस्तान के बीच चल रहे विश्वास बहाली के प्रयासों में कला तथा संस्कृति को भी शामिल किया जाना चाहिए।
सूत्रों के अनुसार कश्मीर से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र ‘वायस ऑफ कश्मीर’ के संपादक गुलाम नबी ख्याल ने कहा कि कश्मीर में संस्कृति पर लगातार हमले हो रहे हैं। इसके लिए वादी में कुकुरमुत्तों की तरह मदरसे जिम्मेदार है। ख्याल ने कहा कि मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा कट्टरपंथ की ओर ले जाती है। इस ओर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। ख्याल ने कहा कि संस्कृतियों को नुकसान पहुंचाने के लिए भारत तथा पाकिस्तान दोनों ही बराबर के जिम्मेदार हैं। इस पर पत्रकार सादिया देहलवी ने भी चिंता जताई। कहा कि जब ले जन एस के सिन्हा राज्यपाल थे, तो उन्होंने कश्मीर में अहले आदिल विश्वविद्यालय खोले जाने का आइडिया दिया था। इस पर राधा कुमार ने कहा कि विधानसभा में पीडीपी के विधायक ने अहले-आदिल विवि खोलने के लिए बिल पेश किया था। इस बिल को पारित करवाने के लिए नेकां विधायकों ने इस बिल का समर्थन किया था।
मिर्जा अब्दुल रशीद ने कहा कि भारत तथा पाकिस्तान दोनों ही राज्य में सांस्कृतिक लोकाचार को बिगाड़ने में लगे हुए है। संस्कृतियों को बचाए रखने के लिए राज्य में स्वायत्तता को बहाल किया जाना चाहिए।थियेटर निर्देशक एवं लेखक एमके रैना ने कहा कि राज्य में संस्कृतियों में खाई काफी गहरी गई है। इसको दूर करने के लिए कला तथा संस्कृति के क्षेत्र में छात्रवृत्तियां दी जानीं चाहिए।
जम्मू विवि के वीसी प्रो. वरूण साहनी ने कहा कि राज्य में बहु संस्कृति होने के कारण अपनी-अपनी पहचान बनाए रखने के लिए राजनीति हो रही है। साहनी ने कहा कि समय की जरूरत यह है कि राज्य में अपने साथ दूसरी संस्कृतियों को आगे बढ़ाने के लिए राजनीति हो।
लेह के पूर्व सांसद पिंटो नाबरू ने कहा कि लद्दाख हिल डेवलेपमेंट कांउसिल की तरह ही हर क्षेत्र में काउंसिलों का गठन किया जाना चाहिए । दिल्ली द्वारा कश्मीरियों को खुश करने के लिए राज्य के अन्य क्षेत्रों की अनदेखी की नाबरू ने निंदा की। सांसद मणि शंकर अय्यर ने कहा कि पंचायत चुनावों के बाद पंचायतों को सशक्त करने की जरूरत है।
शंकर ने कहा कि संविधान के 73वें तथा 74वें संशोधन को राज्य के पंचायती राज एक्ट में ही शामिल कर इस मुद्दे को हमेशा के लिए समाप्त किया जाना चाहिए। जल स्रोतों पर हक जताने के लिए जम्मू को भी आवाज उठानी चाहिए
दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए पीएचई मंत्री ताज मोहयुद्दीन ने कहा कि जो लोग डिक्सन प्लान को लागू करने के लिए जम्मू के अढ़ाई जिलों की बात करते हैं उन्हें राजौरी, पुंछ, डोडा तथा किश्तवाड़ की भी बात करनी चाहिए। ताज ने कहा कि कुछ राजनीतिज्ञ डिक्सन प्लान को लागू करवा कर राज्य को और बांटना चाहते हैं।
मंत्री ने कहा कि पानी के स्रोतों पर राज्य का हक जताने के लिए जिस तरह से कश्मीर में आवाज उठ रही है, उसी तरह चिनाब तथा रावी के पानी पर राज्य का हक जताने के लिए जम्मू वालों को भी आवाज उठानी चाहिए। इससे राज्य को ही फायदा होगा।ताज ने कहा कि अमरनाथ भूमि विवाद के बाद कश्मीर तथा जम्मू संभाग के बीच दूरियां बढ़ी हैं। इन दूरियों को कम करने की जरूरत है। कश्मीरी पंडितों की वापसी को लेकर मंत्री ने कहा कि पंडितों के बिना कश्मीर अधूरा है। सीमा शेखर ने कहा कि इसके लिए अंतर क्षेत्रीय कल्चरल फेस्टिवल आयोजित किए जाने की जरूरत है।
(Courtesy : www.bhaskar.com/ 13 July 2011)
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