नई दिल्ली। अमेरिका में कश्मीर मुद्दे पर भारत विरोधी लॉबिस्ट गुलाम नबी फई की गिरफ्तारी ने पाकिस्तान के गोरखधंधे को बेपर्दा करने के साथ ही भारतीय पेशबंदी को मजबूती ही दी है। कश्मीर पर अमेरिकी मत प्रभावित करने के लिए घूसखोरी के आरोप में फंसे फई ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाक के खिलाफ पेशबंदी के लिए भारत को नया औजार दे दिया है।
हालांकि इस मामले पर भारत की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन फई की गिरफ्तारी पर नजर रख रहे भारतीय खेमे ने राहत की सांस जरूर ली है। सूत्रों के मुताबिक फई की गतिविधियों पर लंबे समय से भारत की नजर थी। साथ ही अलगाववादी ताकतों के समर्थन की वजह से वह भारतीय एजेंसियों के रडार पर भी था। इस गिरफ्तारी पर पूर्व विदेश सचिव सलमान हैदर कहते हैं कि एफबीआइ की गिरफ्त में आए गुलाम नबी फई को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी से मिल रही आर्थिक रसद ने भारत को बदनाम करने की काली करतूतों का पर्दाफाश किया है जो काफी समय से चल रही थी। हालांकि उन्होंने भारत-पाक विदेश मंत्री स्तर वार्ता के ठीक पहले हुई इस घटना के बातचीत पर सीधे किसी असर की संभावना से इंकार किया।
उनका कहना था कि कश्मीर के अपेक्षाकृत स्थिर और शांत हालात फिलहाल बातचीत के दौरान पाक को कश्मीर कार्ड चलने का कोई मौका नहीं देते। मालूम हो कि अमेरिकी अदालत में एफबीआइ की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि फई ने कश्मीर पर अमेरिकी नीति प्रभावित करने के लिए 40 लाख अमेरिकी डॉलर (करीब 17 करोड़ 80 लाख रुपये) दिए हैं। साथ ही 2008 से अब तक आइएसआइ के अपने आकाओं के साथ चार हजार बार संपर्क कर चुका है।
फई वाशिंगटन में कश्मीरी-अमेरिकी परिषद का अध्यक्ष है जो कश्मीर के आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए लॉबिंग करता है। एफबीआइ का कहना है कि फई बीते 20 वर्षो से पाकिस्तान सरकार के निर्देश और आर्थिक मदद से काम चलाता रहा। हालांकि पाकिस्तान अब फई से पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहा है। इस बीच कश्मीर घाटी से अलगाववादी नेता सैय्यद अली शाह गिलानी जैसे नेताओं ने फई के समर्थन में सुर अलापे हैं।
(दैनिक जागरण, 21 जुलाई 2011)
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