Thursday, July 21, 2011

फाई को आईएसआई देती है एक लाख डॉलर

वाशिगंटन। वाशिंगटन स्थित कश्मीरी अमरीकी समिति के अध्यक्ष फाई को राजनीतिक अभियान के लिए आईएसआई सालाना एक लाख डॉलर देती है। फाई 20 साल से भी ज्यादा समय से पाक सरकार के निर्देशों पर काम कर रहा है। पाक सरकार अमरीका में अपने पक्ष में प्रचार को निर्देशित करने के अलावा अनुदान भी दे रही है। हलफनामे में स्पष्ट किया गया कि पाक सरकार से उनका आशय आईएसआई और पाक सेना से है।


10 लोगों का नेटवर्क करता है काम

हलफनामे में कहा गया कि पाक में रहने वाले अमरीकी नागरिक जहीर अहमद के जरिए आईएसआई फाई को अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए धन मुहैया कराती है। इसमें पाकिस्तान में रहने वाले फाई के चार और आका-अब्दुल्ला, जावेद अजीज खान उर्फ राठौर उर्फ अब्दुल्ला उर्फ निजामी मीर, तौकीर महमूद बट्ट और सोहेल महमूद उर्फ मीर शामिल हैं। ये लोग अहमद के संपर्क में रहते थे और उसके ई-मेल से इसकी पुष्टि होती है। पाक ने इस काम में 10 लोगों के नेटवर्क का इस्तेमाल किया। इसकी एवज में आईएसआई उन्हें या उनके परिवारों को पाकिस्तान में धन देता था।
(http://patrika.com/ 21.07.2011)


अमरीकी नेताओं को मिली 20 करोड़ की घूस

वाशिंगटन। पाकिस्तान की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अमरीका में कश्मीर मुद्दे पर भारत विरोधी माहौल बनाने के लिए वहां के नेताओं को करीब 20 करोड़ रूपए की रिश्वत दी। अमरीकी संघीय जांच एजेंसी एफबीआई ने कश्मीरी अलगाववादी नेता गुलाम नबी फाई (62) को बुधवार को गिरफ्तार करने के बाद एलेग्जेंड्रिया की अदालत में दायर हलफनामे में पाक की कुटिल चाल का खुलासा किया।
उधर, वाशिंगटन स्थित पाकिस्तानी दूतावास ने कहा कि फाई पाकिस्तानी नहीं हैं और हमारी सरकार व दूतावास को मामले की कोई जानकारी नहीं है। हलफनामे के अनुसार, आईएसआई ने कश्मीर को लेकर अमरीकी नीति में भारत विरोधी रूझान पैदा करने के लिए अमरीकी सांसदों को रिश्वत खिलाई। यह धन पिछले दो दशक में सांसदों और राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को प्रचार अभियान के लिए दिया गया था।
एफबीआई ने इस बारे में पाकिस्तानी मूल के गुलाम फई व जहीर अहमद के खिलाफ मामला दर्ज किया है। हालांकि एफबीआई ने 43 पन्नों का हलफनामा 18 जुलाई को पेश कर दिया था लेकिन फाई की गिरफ्तारी के बाद इसे बुधवार को सार्वजनिक किया गया। फई व जहीर पर विदेशी सरकार के एजेंट के रूप में पंजीकरण नहीं कराने और गैरकानूनी ढंग से लामबंदी करने का आरोप है।
पाक से धन मिलने वाले नेताओं में पेंसिल्वेनिया के सांसद जोए पिट्स और इंडियाना के सांसद डान बर्टन शामिल हैं। हालांकि एफबीआई ने कहा कि उसे ऎसे प्रमाण नहीं मिले हैं कि चंदा पाने वाले नेताओं को उसके मूल स्त्रोत का पता हो। अमरीका में राजनीतिक उम्मीदवारों का विदेशी सरकारों से चंदा लेना प्रतिबंधित है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पाक जासूस ने अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को उनके चुनाव अभियान के लिए ढाई सौ डॉलर का चंदा दिया था।

दान में जाएगी धनराशि

न्यूयॉर्क टाईम्स के अनुसार फाई के चंदे का अधिकांश हिस्सा दो भागों में गया। इंडियाना के रिपब्लिकन प्रतिनिधि डैन बर्टन व राष्ट्रीय रिपब्लिकनसीनेटोरियल समिति को। कश्मीर मसले पर काफी मुखर बर्टन ने बताया कि वह फाई के बारे में इस जानकारी से अचंभित हैं। वह फाई से मिली राशि को अमरीका के ब्वॉयज स्कॉउट को दान में दे देंगे।
(http://patrika.com/ 21.07.2011)


आईएसआई एजेंट के साथी बुद्धिजीवी!

वाशिंगटन। कश्मीर के मसले पर अमरीकी सांसदों की लॉबिंग करने वाले आईएसआई के एजेंट डॉक्टर गुलना नबी फाई के कई भारतीय बुदि्धजीवियों से रिश्ते हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक फाई के संगठन कश्मीर अमरीकी काउंसिल की बैठक में कई भारतीय बुद्धिजीवी शामिल हो चुके हैं। गौरतलब है कि फई को एफबीआई ने हाल ही में गिरफ्तार किया था।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर कमल मित्रा चेनॉय , द कश्मीर टाइम्स के एडिटर इन चीफ वेद भसीन और डल के पूर्व चीफ इंजीनियर जितेन्द्र बख्शी केएसी की ओर से आयोजित सेमीनारों और कांफ्रेंसों में शामिल हो चुके हैं। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर,दिलीप पडगांवकर के अलावा दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र सच्चर और एक्टिविस्ट गौतम नवलखा भी केएसी की ओर से आयोजित कांफ्रेंसों और सेमिनारों में भाग ले चुके हैं।
सूत्रों के मुताबिक फाई ने इन सभी को सेमीनार और कांफ्रेंस में शामिल होने के लिए खर्चा दिया था। एफबीआई काफी समय से से इन सभी की गतिविधियों पर नजर रख रही थी। राष्ट्रवादी तत्वों के मुताबिक फाई सोशल नेटवर्किग साइट्स पर भी कश्मीर के लिए मुहिम चला रहा था। नैयर, सच्चर और नवलखा को फाई की इस मुहिम के बारे में पूरी जानकारी थी। लेकिन पडगांवकर सहित कई अन्य लोगों का कहना है कि उन्हें फाई के आईएसआई से रिश्तों के बारे में जानकारी नहीं थी। अगर जानकारी होती तो वे सेमीनार में हिस्सा नहीं लेते।

(http://patrika.com/ 21.07.2011)

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