शेष नारायण सिंह
अमरीकी जांच एजेंसी एफबीआई ने कश्मीरी अलगाववादी आन्दोलन के एक नेता को गिरफ्तार किया है जिसके ऊपर आरोप है कि वह अमरीकी नागरिक होते हुए पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के लिए काम करता था. उसने अमरीका में एक संगठन बना रखा था तो प्रकट रूप से तो कश्मीर के अवाम के हित में काम करने का दावा करता था, लेकिन वास्तव में वह आईएसआई के कंट्रोल वाली एक संस्था चलाता था जो पूरी तरह से पाकिस्तान की सरकार के पैसे से चलती थी. उसने अमरीकी संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को प्रभावित करने के लिए आईएसआई के पैसे से लाबी ग्रुप भी तैनात किया था.
वर्जीनिया में रहने वाले डॉ. गुलाम नबी फई नाम के इस आदमी के खिलाफ जांच के बाद एफबीआई ने अपने हलफनामे में कहा है कि वह आईएसआई का एजेंट है और इसके काम से अमरीकी कानून का उल्लंघन होता है. एफबीआई के हलफनामे में लिखा है कि डॉ. गुलाम नबी फई ने पाकिस्तानी सरकार के एजेंट के रूप में एक ऐसी साज़िश का हिसा बन कर काम किया जिसके नतीजे अमरीकी हितों की अनदेखी करते थे. उन्होंने अमरीकी नागरिक होते हुए पाकिस्तान सरकार के लिए काम किया और सरकार को अपने काम के बारे में जानकारी नहीं दी. ऐसा करना अमरीकी कानून के हिसाब से ज़रूरी है.
डॉ. गुलाम नबी फई के साथ इस साज़िश में एक और अमरीकी नागरिक शामिल है जिसकी तलाश की जा रही है. पता चला है कि वह आजकल पाकिस्तान में कहीं छुपा हुआ है. ज़हीर अहमद नाम का यह आदमी भी अमरीकी नागरिक है और उसके ऊपर भी वही आरोप हैं जो डॉ. गुलाम नबी फई के ऊपर लगे हुए हैं. आईएसआई के कश्मीर एजेंडा पर काम करने वाले डॉ. गुलाम नबी फई ने पाकिस्तानी सरकार के मातहत काम करने की बात को कभी किसी से नहीं बताया. हालांकि वे करीब २० साल से कश्मीर में पाकिस्तान की दखलंदाजी के खेल में शामिल हैं. अमरीका में वे कश्मीर की तथाकथित "आज़ादी" के लिए संघर्षशील व्यक्ति के रूप में सक्रिय थे. अब जाकर अमरीकी जांच अधिकारियों को पता चला है कि वे वास्तव में आईएसआई के फ्रंटमैन थे. उन्होंने अमरीका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में कश्मीरी-अमेरिकन कौंसिल (केएसी) बना रखा है और उसी के बैनर के नीचे अमरीकी राजनेताओं के बीच में घूमते थे.
अब अमरीकी अधिकारियों ने भरोसे के साथ यह सिद्ध कर दिया है कि केएसी पूरी तरह से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी का एक विभाग है. केएसी वास्तव में आईएसआई का कश्मीर सेंटर है. आईएसआई ने इसी तरह के दो और सेंटर बना रखे हैं. एक ब्रुसेल्स में है जबकि दूसरा लन्दन में. अमरीका में सक्रिय इस पाकिस्तानी संगठन की जांच अमरीका केवल इसलिए कर रहा है कि इसमें पाकिस्तानी मूल के उसके दो नागरिक शामिल हैं और पाकिस्तान सरकार के लिए काम करके उन्होंने अमरीका के कानून को तोड़ा है. लेकिन भारत के लिए यह जांच बहुत ही अहम साबित हो सकती है. पाकिस्तान की सरकार और वहां के नेता कहते रहते हैं कि कश्मीर में उनकी कोई दखलंदाजी नहीं है, वहां तो कश्मीरी लोग खुद ही आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं और पाकिस्तान उन्हें केवल नैतिक समर्थन देता है.
सवाल है कि क्या नैतिक समर्थन देने के लिए अमरीका में ही अमरीकी नागरिकों को साजिशन पैसा देकर उनसे अपराध करवाना उचित है. जहां तक पाकिस्तान का सवाल है वह तो अब बाकी दुनिया में आतंकवाद की प्रायोजक सरकार के रूप में देखा जाता है, लेकिन क्या भारत के सरकारी अधिकारियों और नेताओं को नहीं चाहिए कि वे भारत के हितों के लिए पूरी दुनिया में चौकन्ना रहें और जहां भी भारत के दुश्मन सक्रिय हों उनके बारे में जानकारी हासिल करें. अफ़सोस की बात यह है कि भारत की सरकार इस मोर्चे पर पूरी तरह से फेल है. मुंबई पर २६ नवम्बर २००८ को हुए हमलों में भी पाकिस्तानी आईएसआई की पूरी हिस्सेदारी को साबित कर पाने में नाकाम रही भारत की जांच एजेंसियों को सारी बात तब पता चला था जब अमरीकी जांच एजेंसियों ने हेडली को पकड़ लिया था. गौर करने की बात यह है कि अमरीकी जांच का मकसद २६/११ के हमले की पूरी जांच करना नहीं था. वे तो केवल इसलिए जांच कर रहे थे कि २६/११ के हमले में कुछ अमरीकी नागरिक भी मारे गए थे. वर्जीनिया में डॉ. गुलाम नबी फई के पकडे़ जाने के बाद एक बार फिर साबित हो गया है कि भारतीय सुरक्षा और जांच एजेंसियां भारत के हितों के प्रति गाफिल रहती हैं.
(लेखक :वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं)
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