Monday, October 24, 2011

कांग्रेस की दुविधा

प्रो. हरिओम
राज्य में जमीनी स्तर से जुड़े कार्यकर्ता और कांग्रेसी नेता चाहते हैं कि पार्टी हाईकमान सत्ता में हिस्सेदारी वर्ष 2002 में लागू फार्मूले के तहत करे जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी को नियमित अंतराल पर मुख्यमंत्री बदलने के मुद्दे पर स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, लेकिन यह किंकर्तव्यविमूढ़ बनी हुई है। वास्तव में यह दुविधा की स्थिति में है। मालूम होता है कि इसे लकवा मार गया हो। राज्य में कांग्रेस पार्टी की सेहत के लिए नियमित अंतराल पर मुख्यमंत्री बदलने का मुद्दा अहम है। कई स्थानीय कांग्रेसी नेताओं की इच्छा है कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री पद पर तीन साल पूरे होने के बाद पार्टी हाईकमान नेशनल कांफ्रेंस की कुशासन और अराजकता को समाप्त करें। दूसरे शब्दों में, राज्य में जमीनी स्तर से जुड़े कार्यकर्ता और कांग्रेसी नेता पूर्ण बहुमत चाहते हैं। उनकी इच्छा है कि पार्टी हाईकमान सत्ता में हिस्सेदारी वर्ष 2002 में लागू फार्मूले के तहत करे। इस वर्ष सत्ता में हिस्सेदारी के लिए लागू फार्मूले के तहत पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को पहले तीन वर्षो तक सरकार चलानी थी और शेष कार्यकाल कांग्रेस को पूरी करनी थी। वर्ष 2002 में इस फार्मूले पर काम हुआ। यह स्थानीय कांग्रेस नेतृत्व को इस मायने में संतुष्ट करता है कि वह अपनी खोई राजनीतिक पृष्ठभूमि हासिल कर लेंगे, जिसे उन्होंने पीडीपी के शासन संभालने के कारण गंवा दिया था। इससे कांग्रेसी नेता और जमीनी स्तर से जुड़े कार्यकर्ता यह महसूस करेंगे कि वे सत्ता में बराबर के भागीदार थे न कि पीडीपी की बी या सी टीम थे। हालांकि आज जो स्थिति बनी हुई है, उससे अनिश्चितता और भ्रम का वातावरण बना हुआ है। अतीत में कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं ने वर्ष 2002 में सार्वजनिक रूप से सत्ता में भागीदारी के फार्मूले के पक्ष में अपने विचार व्यक्त किए थे। उन्होंने जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी प्रमुख सैफुद्दीन सोज की उपस्थिति में अनेकों बार इस विचार को प्रकट किए। लेकिन भ्रमित, कमजोर, द्विधामनोवृत्ति सोज ने कभी भी अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की। हमेशा उनका यही जवाब होता था कि वह स्थानीय कांग्रेस नेतृत्व की भावनाओं को पार्टी हाईकमान के समक्ष रखेंगे और उन्हें ही अंतिम निर्णय लेना होगा। यह सच है कि उन्होंने शांत पड़ चुके मुद्दों पर विवाद की इजाजत नहीं दी। इस पर गौर करना जरूरी है कि सोज की आंखें जम्मू-कश्मीर में शीर्ष पदों पर टिकी हुई थीं। यह एक अलग कहानी है कि प्रत्यक्ष तौर पर इस मामले में साहसिक कदम उठाने की उनमें कुव्वत ही नहीं है। फिलहाल वह इंतजार करने और पूरी स्थिति पर गौर करने पर अमल कर रहे हैं। इस प्रकार वह जिस पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं उसके चुनावी भविष्य को नुकसान पहुंचा रहे हैं। स्मरण रहे कि वह इस मुकाम पर सिर्फ राजनीति और लामबंदी के जरिये पहुंचे हैं। राहुल गांधी के जम्मू-कश्मीर के हालिया दौरे के दौरान भी नियमित अंतराल पर मुख्यमंत्री बदलने का मुद्दा उठा था। 

कश्मीर में भी विभिन्न कांग्रेसी कार्यकर्ताओं, पंचों और सरपंचों ने मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उनकी सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए नियमित अंतराल पर मुख्यमंत्री बदलने की मांग की है। राहुल गांधी जो कि उमर अब्दुल्ला के मित्र हैं और हमेशा उनकी बात मानते हैं, भी सोज की तरह अस्पष्ट हैं। उन्होंने उमर अब्दुल्ला और नेशनल कांफ्रेंस के समालोचकों और नियमित अंतराल पर मुख्यमंत्री बदलने के समर्थकों से कहा है कि वह इस मामले में कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि इस मामले में पार्टी हाईकमान को फैसला करना है। जम्मू में भी विभिन्न युवा कांग्रेसी नेताओं, पंचों और सरपंचों ने नियमित अंतराल पर मुख्यमंत्री बदलने की मांग की है, लेकिन राहुल गांधी का यही रटा-रटाया जवाब मिलता है। तथ्य यह है कि राहुल ने उन लोगों को निराश किया है जो 4 जनवरी 2012 या इससे पहले नेशनल कांफ्रेंस के शासन को समाप्त करने का प्रयास कर रहे हैं। इस दिन उमर के मुख्यमंत्री बने तीन साल पूरे हो जाएंगे। पहले भी स्थानीय कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे को वरिष्ठ नेताओं के समक्ष उठाया था, जिसमें माखन लाल फोतेदार और करण सिंह भी शामिल हैं। उनका यह तर्क था कि अगर उमर अब्दुल्ला पूरे छह साल तक मुख्यमंत्री बने रहते हैं तो इससे कांग्रेस को गंभीर नुकसान होगा। दोनों वरिष्ठ नेताओं ने स्थानीय कांग्रेसी नेताओं के विचारों की सराहना की और उन्हें आश्वस्त किया कि वे हाईकमान के साथ इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करेंगे। उन्होंने उम्मीद जताई की राज्य में कांग्रेस पार्टी की व्यापक हितों के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जाएंगे। यह सब कुछ चार महीने पहले हुआ था। लेकिन वे कांग्रेस हाईकमान को यह विश्वास दिलाने में विफल रहे कि नियमित अंतराल पर मुख्यमंत्री को बदलना निहायत जरूरी है। यह बात उस समय और स्पष्ट हो गई जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम बड़ी मजबूती से उमर अब्दुल्ला के पीछे खड़े नजर आए। उन्होंने मीडिया के एक वर्ग से कहा कि वर्तमान गठबंधन जारी रहेगी और यह सरकार अपने छह वर्षो का कार्यकाल अवश्य पूरा करेगी। 

 कांग्रेस हाईकमान का वर्ष 2002 में सत्ता में साझीदारी के फार्मूले को पुनर्जीवित करने की मांग करने वालों के प्रति बिल्कुल नकारात्मक नजरिया है। वह यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं। नियमित अंतराल पर मुख्यमंत्री बदलने की मांग करने वाले आज तक इसी समस्या का सामना कर रहे हैं। दूसरी समस्या ताराचंद, आरएस चिब, रमन भल्ला, शाम लाल शर्मा, ताज मोहिउद्दीन जैसे कांग्रेसी मंत्रियों की पर्दे के पीछे की गतिविधियां हैं। अंदरुनी लोगों के मुताबिक, ये मंत्री कांग्रेस और नेकां के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी घूमने के विचार का विरोध करते हैं। इन मंत्रियों का मानना है कि वे लोग जिस पद पर बने हुए हैं उसे वे हासिल कर सकते हैं अगर एक बार मुख्यमंत्री की कुर्सी नेकां से खिसक कर कांग्रेस की झोली में आ गिरे। अगर इनकी बातों पर गौर किया जाए तो यह कहा जा सकता है कि नियमित अंतराल पर मुख्यमंत्री बनने की संभावना दूर की कौड़ी है। यह राज्य में कांग्रेस पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं है जोकि पहले ही गठबंधन सरकार की अनेकों गलतियों के कारण समाप्ति की ओर है। नियमित अंतराल पर मुख्यमंत्री बदलने के समर्थक अंतिम रूप से इस पर निर्भर करेंगे कि वे अगले 85 दिनों में क्या कदम उठाते हैं। निरस्तीकरण का समय सीमित है और जिस विपक्ष का वे सामना कर रहे हैं, वह बहुत ही मजबूत है। अगर नेकां को तीन साल और तीन महीने की शेष अवधि में शासन करने की अनुमति मिलती है तो इससे कांग्रेस को बहुत अधिक नुकसान होगा।

(लेखक : जम्मू विवि के सामाजिक विभाग के पूर्व डीन हैं।)

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